অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

शहरी विकास मंत्रालय की उपलब्धियाँ: 2014 - 2016

शहरी विकास मंत्रालय की उपलब्धियाँ: 2014 - 2016

  1. भूमिका
  2. उदाहरणीय परिवर्तन
    1. हितधारकों के साथ विचार विमर्श
    2. लोगों की भागीदारी
    3. शहरों और कस्बों के चयन और धन आवंटन में निष्पक्षता
    4. सहकारी संघवाद – राज्यों की स्वायतत्ता
    5. सुधारों के लिए प्रोत्साहन देना
    6. प्रतियोगिता के आधार पर शहरों का चयन
    7. क्षेत्र आधारित दृष्टिकोण के लिए परिवर्तन
    8. संमिलन आधारित कार्यान्वयन
  3. 2014 के पहले और बाद में
  4. नए शहरी मिशन
  5. वास्तविक प्रगति
    1. स्मार्ट सिटी मिशन
    2. अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत)
    3. शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत मिशन
    4. स्वच्छ भारत मिशन के तहत सहायता
    5. स्वच्छ भारत मिशन को समर्थन
    6. खुले में शौच से मुक्त शहर
    7. धरोहर विकास एवं संवर्धन योजना (हृदय):
    8. शहरी मेट्रो परियोजनाएं
  6. शहरी विकास मंत्रालय की दिल्ली के लिए विशेष पहलें
  7. अन्य पहलें

भूमिका

भारत के शहरी हड़प्पा सभ्यता जितने ही पुराने हैं, क्योंकि विस्तृत शहरी नियोजन के काफी सबूत हैं। हालांकि समय और इतिहासस्मार्ट सिटी के बीतने के साथ तथा कई कारणों से 21 वीं सदी में देश में शहरीकरण सामाजिक-आर्थिक विकास की गंभीर चुनौती बन गया है, जिसका जल्द ही निवारण करने की आवश्यकता है।

आजादी के समय 17% लोग शहरी क्षेत्रों में रहते थे। 2011 में शहरीकरण बढ़कर 31% से अधिक हो गया और 2030 तक 40% तक शहरीकरण हो जाने की उम्मीद है। तेजी से शहरीकरण कर रहा भारत विश्व में सबसे तेज शहरीकरण करने वाले समाज में से एक है और 2050 तक इसके ग्रामीण से अधिक शहरी होने का अनुमान लगाया गया है। इस समय चौतरफा चुनौतियों का मुकाबला करने के साथ ही भविष्य की तैयारी के लिए सहायक अवसरों का उपयोग करने की आवश्यकता है।

लोगों की प्रकृति बेहतर ढंग से जीवन जीने और शिक्षा, रोजगार तथा मनोरंजन के अधिक अवसरों को तलाशने की होती है। इससे शहरीकरण को बढ़ावा मिलता है और भारत भी इससे अछूता नहीं है, क्योंकि लोगों का शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन बढ़ रहा है। अगर शहरी क्षेत्रों में बढ़ती जनसंख्या को पर्याप्त भविष्य की योजनाओं के साथ शहरों में शामिल नहीं किया गया, तो शहरी क्षेत्र रहने लायक नहीं रह जाएंगे। शहरी क्षेत्रों में जीना पहले से ही  दुखद अनुभव है।

स्वतंत्रता के बाद से ही भारत की शहरीकरण के प्रति दुविधा की स्थिति रही है, एक ओर जहां ग्रामीण भारत की समस्याओं के निवारण पर ध्यान केंद्रित किया गया है, वहीं शहरी भारत अनजाने में उपेक्षित रहा है। इसके परिणाम स्वरूप शहरी शासन में योजनाओं और उसके कार्यान्वयन में काफी कमी देखी गई है। इसके अलावा अपर्याप्त संस्थागत प्रौद्योगिकी और प्रशासनिक क्षमताओं, परिकल्पना और स्थानीय शहरी निकायों के स्तर पर स्मार्ट नेतृत्व की कमी और शहरी शासन के सबसे नीचे के स्तर के सशक्तिकरण की ओर राज्य सरकार की उदासीनता से शहरी स्थानीय निकायों के संसाधन आधार में खामी आदि देखी गई है।

पिछले दशकों में हमारे देश में शहरी विकास समग्र और दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर आधारित परियोजनाओं के बजाए अनौपचारिक रूप से और टुकड़ों-टुकड़ों में हुआ है। शहरी नियोजन और शासन की उदासीनता के चलते बेतरतीब शहरी विकास के परिणाम स्वरूप बुनियादी ढांचा की कमी का खराब प्रभाव शहरी क्षेत्रों के जीवन की गुणवत्ता पर पड़ रहा है।

पहले की सरकार द्वारा 2005-2014 के दौरान कार्यान्वित जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के अंतर्गत खामियों को दूर कर शहरी नियोजन और शासन के मसलों को हल करने का प्रयास किया गया, लेकिन इसका अंतिम लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका, क्योंकि जेएनएनयूआरएम के अंतर्गत नियोजित विकास की खामियां दूर करने की दिशा में किए गए प्रयास कम साबित हुए। डिजाइन में खामी और बुनियादी मुद्दों को हल करने में असमर्थता के कारण लोग अभी भी शहरी क्षेत्र से बाहर हैं और इसमें दिल्ली की भूमिका प्रमुख बनी हुई है। इसलिए अधिक पैसा आवंटित और खर्च कर इसकी भूमिका को और बढ़ाया जाना चाहिए।

विकास योजनाओं को प्राथमिकता देने, नियोजन और कार्यान्वयन में अगर लोग शामिल नहों होते हैं तो ऐसी पहलों से लोगों की जरूरतों को पूरा करने की संभावना कम होती है और पिछले दशकों में हमारे शहरी विकास के संदर्भ में यही हुआ है। इसमें हमेशा जनता के नेतृत्व में ‘नीचे से ऊपर’ के बजाए दिल्ली से परिचालित ‘ऊपर से नीचे’ का रूख रहा।

दुनिया भर में आर्थिक वृद्धि शहरी क्षेत्रों से परिचालित होती है, जिसका लाभ शहरी समुदाय को मिलता है। हम अपवाद नहीं हैं। हमारे सकल घरेलू उत्पाद का 60 प्रतिशत से अधिक शहरी क्षेत्र से आता है और अनुमान है कि अगले 15 वर्ष में यह बढ़कर 70 प्रतिशत हो जाएगा। आर्थिक वृद्धि के ऐसे इंजन की अनदेखी से हमारी स्थिति दुखद हो सकती है। भारत की आर्थिक वृद्धि बढ़ाने के अलावा उसकी प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने की आकांक्षा और क्षमता को देखते हुए बेहतर जीवन के लिए शहरी परिदृश्य के पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। भारत प्रमुख आर्थिक शक्ति बनने योग्य है।

संक्षेप में, परिवर्तनकारी पहल के माध्यम से शहरी पुनरुद्धार एक चुनौती है। इसीलिए मई, 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार गठन के बाद से ही इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया गया था।

उदाहरणीय परिवर्तन

सरकार और सभी हितधारकों के साथ उच्च स्तर पर विचार विमर्श के बाद सरकार ने त्वरित आर्थिक वृद्धि अनुकूल और जीने के लिए बेहतर स्थान बनाने के लिए हमारे शहरी क्षेत्रों में उदाहरणीय परिवर्तन करने का निर्णय लिया है।

हितधारकों के साथ विचार विमर्श

शहरी स्थानीय निकाय और राज्य सरकारें नई योजनाओं के अंतिम कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण होती है। इसलिए नई पहलों की परिकल्पना के स्तर पर ही नीति बनाने और तैयार करने में उन्हें शामिल करना जरूरी है। उनकी साझेदारी और स्वामित्व से ऐसी नई योजनाओं और नीतियों के कार्यान्वयन में उनके बेहतर प्रयास सहायक होंगे। इसी उद्देश्य से सरकार गठन के दो महीने के भीतर ही जुलाई, 2014 में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का एक सम्मेलन किया गया था। दो दिनों तक विचार विमर्श करने के बाद शहरी शासन और सुधारों पर एक राष्ट्रीय घोषणा पत्र अपनाया गया। इससे देश में शहरी नवचेतना के प्रति नई सोच और रूख की नींव रखी गई।

नई योजनाओं को शुरू करने का फैसला करने के बाद राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और 500 शहरी स्थानीय निकायों के साथ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय परामर्श कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें स्मार्ट सिटी मिशन, अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत), धरोहर विकास एवं संवर्धन योजना (हृदय), स्वच्छ भारत मिशन और शहरी क्षेत्रों में सभी के लिए आवास जैसी नई पहलों की डिजाइन और कार्यान्वयन के लिए दिशा निर्देश के बारे में विस्तृत विचार विमर्श किया गया।

2015 में प्रमुख नई योजनाएं शुरू करने से पहले शहरी नियोजनकर्ताओं, विशेषज्ञों और औद्योगिक निकायों जैसे अन्य हितधारकों के साथ एक वर्ष तक विचार विमर्श किया गया।

लोगों की भागीदारी

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों की जरूरतों को प्राथमिकता देने के लिए शहरी क्षेत्रों में विकास योजनाएं तैयार में उन्होंनें शामिल करने पर बल देकर 'नीचे से ऊपर' के दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। तदनुसार, सभी नए शहरी क्षेत्र की पहल के तहत नागरिकों और जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करना अनिवार्य बना दिया गया है।

स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 97 मिशन शहरों के लिए शहर वार स्मार्ट सिटी योजनाएं बनाने में लगभग 2 करोड़ लोग शामिल हुये। इसके अलावा माय गोव  पर प्राप्त  हुई 25 लाख से अधिक लोगों की प्रतिक्रियाओं सहित उनकी प्राथमिकताओं के बारे में विभिन्न मंचों के माध्यम से सुझाव और टिप्पणियां मिली।

शहरों और कस्बों के चयन और धन आवंटन में निष्पक्षता

दशकों से केन्द्र सरकार के बारे में प्रमुख रूप से आलोचना की जाती है कि वह कोष मंजूर करने में चयनात्मक रूख अपनाती है। इस आलोचना से बचने के लिए एक अग्रणी पहल की गई है। शहरों और कस्बों तथा संसाधनों के आवंटन के लिए मानदंडों के आधार पर चयन किया गया, जिसमें केन्द्र सरकार के पास किसी भी प्रकार के अधिकार की गुंजाइश नहीं है।

प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) सभी 4,041 वैधानिक शहरों और कस्बों में कार्यान्वित की जा रही है, जिसके लिए राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों द्वारा अनुमानित मांग के आधार पर कोष आवंटित किया गया है। स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत शहरों का चयन दो स्तरों पर ‘शहर चुनौती प्रतियोगिता’ के आधार पर किया गया और मिशन की अवधि के दौरान प्रत्येक मिशन शहर को 500 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता मिलेगी। अमृत के तहत एक लाख से अधिक की आबादी वाले सभी शहरों और कस्बों, राजधानी शहरों और कुछ अन्य विशेष श्रेणी के कस्बों सहित कुल 500 शहर और कस्बे कोष आवंटन के लिए योग्य पाए गए। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में संसाधन आवंटन के लिए भी यही निर्देश अपनाए गए, जिसमें कस्बों की संख्या और राज्य में कुल शहरी आबादी को समान महत्व दिया गया।

सहकारी संघवाद – राज्यों की स्वायतत्ता

‘टीम इंडिया’ और सहकारी संघवाद की भावना के अनुरूप तथा शहरी स्थानीय निकायों एवं राज्यों के प्रति विश्वास कायम रखने के लिए विभिन्न नई योजनाओं के अंतर्गत परियोजनाओं को तैयार करने, समीक्षा और मंजूरी देने में उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता दी गई है। यह शहरी मंत्रालय की पहले की कार्यप्रणाली के विपरित है, जहां शहरी स्थानीय निकायों और राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तावित प्रत्येक परियोजना के मूल्यांकन और मंजूरी मंत्रालय द्वारा दी जाती थी। इस स्वायतत्ता से परियोजनाओं का त्वरित शुभारंभ और उनके कार्यान्वयन के अलावा शहरी स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी बढ़ेगी, क्योंकि वे स्वयं अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार होंगे।

सुधारों के लिए प्रोत्साहन देना

अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत) ने शहरों और कस्बों में किए जा रहे सुधारों के तरीकों में उदाहरणीय परिवर्तन प्रस्तुत किया है। पहले सुधार लागू न करने पर परियोजनाओं का पैसा रोककर दंड दिया जाता था, लेकिन अमृत के जरिए प्रदर्शन में सुधार के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। शहरों/राज्यों को कार्यों के लिए प्राप्त प्रोत्साहन कोष का इस्तेमाल मिशन के सिद्धांतों के अनुसार या मिशन परियोजनाओं में यूएलबी के भाग का उपयोग निर्धारित सुधार में प्रोत्साहन राशि देने के रूप में देना शुरू किया गया है।

प्रतियोगिता के आधार पर शहरों का चयन

स्मार्ट सिटी मिशन में शामिल करने के लिए प्रतियोगिता के आधार पर शहरों का चयन किया गया। इसके बाद देश में शहरी विकास के लिए चरणबद्ध केन्द्रीय सहायता कम हो जाएगी, क्योंकि यह अपने तरह की पहली पहल है। इससे प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद की भावना बढ़ेगी, क्योंकि प्रत्येक शहर अपने प्रतिस्पर्धी शहर से बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करेगा। इस स्वस्थ भावना से अन्य योजनाओं की परियोजनाओं को तैयार करने और उनके क्रियान्वयन में सुधार लाने में मदद मिलेगी। इसके परिणाम स्वरूप नीचे के स्तर पर अलग तरह से सोचा और कार्य किया जा रहा है, जो पहले नहीं होता था।

क्षेत्र आधारित दृष्टिकोण के लिए परिवर्तन

2014 तक परियोजनाओं की मंजूरी के लिए एक क्षेत्र या शहर अथवा कस्बे में बुनियादी सुविधाओं के अंतर के विस्तृत विश्लेषण को प्रधानता दी जाती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। नए शहरी पहल के तहत परियोजनाएं अमृत के अंतर्गत शहर या कस्बे के पूरे बुनियादी ढांचे में अंतर का विस्तृत आकलन के आधार पर तैयार की जाती हैं और स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत आधारभूत ढांचे के लिए भी यही तरीका अपनाया जाता है।

अमृत के तहत, योजना में परिणाम आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाता है, जिसमें अलग-अलग परियोजनाओं का निर्दिष्ट परिणामों से जुड़ा होना आवश्यक होता है। प्राथमिकता के सिद्धांत भी पूर्व निर्धारित होते हैं, ताकि उपलब्ध संसाधनों का राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप बेहतर उपयोग किया जा सके। तदनुसार, प्रत्येक शहरी घर में पानी की आपूर्ति के लिये कनेक्शन और प्रति दिन प्रति प्रति व्यक्ति 135 लीटर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने तथा प्रत्ये क शहरी घर के लिये सीवरेज कनेक्शन को दूसरों कार्यों से अधिक प्राथमिकता दी गई है। शहर विशिष्ट सेवा स्तर सुधार योजना (एसएलआईपी) में यह बताना जरूरी है कि कितने शहरी घरों में पानी और सीवरेज कनेक्शन है और एक वर्ष में कितने प्रस्तांवित घरों में ये कनेक्शनन उपलब्ध कराये जायेंगे।

संमिलन आधारित कार्यान्वयन

शहरी विकास विकास परियामजनाओं को अलग-अलग लागू करने के तरीके को समाप्ते करते हुये नई परियोजनाओं को तैयार करने और उनके कार्यान्वूयन के लिये केंद्र और राज्य  सरकारों की सभी योजनाओं के संमिलन का नया नियम है, ताकि  कार्यों का दोहराव न हो और संसाधन भी नष्ट  ना हो। अमृत के तहत कार्य योजनाओं में जलापूर्ति और अन्य योजनाओं पर केंद्र सरकार के साथ राज्यों के संसाधनों के प्रस्तायवित व्यपय का ब्यौरा देना होगा। स्मार्ट सिटी योजना के तहत, संसाधन जुटाने की योजना में तफसील से यह बताना होगा कि किस तरह अलग योजनाओं और स्रोतों के संसाधनों से 24 X 7 पानी और बिजली की आपूर्ति, महत्वापूर्ण बुनियादी ढांचा का विकास और  किफायती आवास आदि सुनिश्चित किया जायेगा।

कार्यान्वयन में संमिलन के इस सिद्धांत को रेखांकित करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 25 जून,2015 को एक ही दिन में अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन, स्मार्ट सिटी मिशन और प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) का शुभारंभ किया।

2014 के पहले और बाद में

शहरी नवचेतना जगाने या पुनरुद्धार के लिये इच्छाशक्ति, तीव्रता, निवेश और नागरिकों सहित सभी हितधारकों की भागीदारी महत्वपूर्ण हैं। सरकार विनम्रतापूर्वक दावा कर सकती हैं कि पिछले दो वर्ष के दौरान उसने विमुक्तर होने की बजाय इन सभी मोर्चों पर बेहतर काम किया हैं।

देश के शहरी क्षेत्रों में इस तरह की नवचेतना जगा कर सोच में बदलाव लाने की प्रक्रिया से सरकार की मंशा और तीव्रता के संकेत मिलते हैं। शहरी स्थानीय निकायों ने पहले से ही स्मार्ट सिटी मिशन, अमृत, सभी के लिए आवास आदि के तहत कार्ययोजना बनाकर पूरी तरह से नए स्तर की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है।  अतीत की सीमाओं से निकल कर शहरी स्थानीय निकायों ने नये लचीलेपन और चुनौतियों से निपटने की क्षमता का प्रदर्शन किया है। अति वांछित शहरी नवचेतना के लिये अच्छी शुरुआत के संकेत मिले हैं, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये अभी बहुत कार्य करने होंगे।

लोगों के बेहतर जीवन के लिये देश के शहरी परिदृश्य को दोबारा तैयार करना होगा और आर्थिक विकास बढ़ाने के लिये बड़े निवेश की जरूरत होगी। शहरी पुनरुद्धार की यह प्रक्रिया बनाये रखने के लिये सौहार्दपूर्ण व्यापार और निवेश का माहौल आवश्यक है।

भारत के शहरी क्षेत्रों में 'कारोबार करने में आसानी' का स्थायन अच्छान नहीं है। इसके समाधान के लिए सरकार ने शहरी क्षेत्रों में निर्माण परियोजनाओं के लिए मंजूरी देने की प्रक्रिया को सरल और व्यवस्थित किया है, ताकि  इस प्रकार की अनुमतियां 30 दिनों के भीतर दी जा सके। इस संबंध में मंत्रियों और सात केंद्रीय मंत्रालयों के अधिकारियों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद मॉडल भवन निर्माण के लिये उपनियम बनाये गये हैं। इन उपनियमों के तहत आवेदनकर्ता द्वारा अलग से आवेदन करने की जरूरत को समाप्त  करते हुये मेजबान एजेंसी की ओर से मंजूरी के लिये दिये गये आवेदनों को शहरी स्थानीय निकायों द्वारा मंजूरी देने को अधिकार दिया गया है। दिल्ली और मुंबई में स्थानीय निकायों द्वारा निर्माण परमिट देना ऑनलाइन कर दिया गया है और बाहरी एजेंसियों की मंजूरी / अनापत्ति प्रमाण पत्र भी ऑनलाइन के साथ जोड़ दिये गये हैं, ताकि निर्माण करने वालों को इसके लिये अलग से कार्रवाई ना करनी पड़े। संसाधन जुटाने में भी पीपीपी मॉडल की सफलता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

इस साल लागू किये गये ऐतिहासिक रियल एस्टेट (विकास एवं नियमन विधेयक), 2016 से भी निर्माण क्षेत्र में निवेश सुविधा बढ़ जायेगी, जिससे काफी लाभ होगा।

वर्ष 2014-15 में विभिन्न नए मिशन के तहत शहरों के चयन के अलावा हितधारकों के साथ परामर्श, अवधारणा और नई योजनाएं बनाने तथा परियोजनाओं के परिचालन के लिये दिशा-निर्देश तैयार किये गये। 2015-16 के दौरान योजनाओं का शुभारम्भ, शहर और राज्य स्तर पर कार्य योजना की तैयारी और कोष मंजूरी तथा केंद्रीय सहायता जारी की गई।

संसाधनों के बारे में, जेएनएनयूआरएम के कार्यान्वयन के दस वर्षों के दौरान  राज्यों को शहरी बुनियादी ढांचा विकास के लिए 46,751 करोड़ रुपये की केन्द्रीय सहायता देने का वादा किया गया था, जिसमें से 33,902 करोड़ रुपये ही जारी किये गये थे। इसकी तुलना में, वर्तमान सरकार ने अमृत, स्मार्ट सिटी मिशन, स्वच्छ भारत मिशन और हृदय के तहत पांच वर्ष की मिशन की अवधि के लिये शहरी स्थानीय निकायों और राज्यों को बुनियादी ढांचा विकास के लिए 1,13,143 करोड़ रुपये देने के लिये प्रतिबद्ध है, जो केन्द्रीय सहायता के रूप में बड़ी रकम है।

शहरी गरीबों के आवास  के लिये जेएनएनयूआरएम और राजीव आवास योजना के तहत मार्च, 2014 तक कुल 13,90,349 घरों के निर्माण के लिये 21,072 करोड़ रूपये की केंद्रीय सहायता मंजूर की गई थी। जिसमें से मार्च, 2014 तक 8,03,820 घरों का निर्माण किया गया और 10,114 रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की गई थी।

इसकी तुलना में, किफायती आवास को समावेशी शहरी विकास का प्रमुख तत्व मानते हुये वर्तमान सरकार ने वर्ष 2022 तक शहरी क्षेत्रों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और निम्न आय समूह के लिये अनुमानित 2 करोड़ आवासीय इकाइयों की कमी को पूरा करने के लिये 3 लाख करोड़ रुपये की केन्द्रीय सहायता प्रदान करने का लक्ष्य रखा है। जून,2015 में पीएमएवाई (शहरी) के शुभारम्भन के बाद से काफी कम समय में ही आवास एवं शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय ने शहरी गरीबों के लिए 6,83,724 मकानों के निर्माण के 10,050 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता देने की मंजूरी दी है।

हालांकि पिछली सरकार ने जेएनएनयूआरएम को समाप्त  कर दिया था, लेकिन वर्तमान सरकार ने पहले की आवासीय योजनाओं के तहत मार्च, 2017 तक शहरी गरीबों के लिए मकानों के निर्माण में सहायता देने का निर्णय लिया है। तदनुसार, पिछले दो वर्ष में पुरानी योजनाओं के अंर्तगत 2,26,901 घरों और पीएमएवाई (शहरी) के तहत 710 मकानों का निर्माण किया गया है।

वास्तव में, जेएनएनयूआरएम के 10 वर्षों के दौरान आवास और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास के लिए दी गई 67,823 करोड़ रुपये की कुल केंद्रीय सहायता की तुलना में वर्तमान सरकार विभिन्न नई पहलों के तहत 5-7 साल की अवधि में क्रियांवित किये जाने वाले जाने वाले कार्यों के लिये 4,13,143 की कुल केंद्रीय सहायता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।

इस सरकार द्वारा नए शहरी क्षेत्र में शुरू की गई पहलों के तहत निवेश क्षमता 18 लाख करोड़ रुपये की है। वर्ष 2015-16 के दौरान विभिन्न योजनाओं के तहत शहरी क्षेत्रों में कुल 1,15,364 रुपये के निवेश की मंजूरी दी गई। इसमें किफायती आवास के लिये 43,922 करोड़ रुपये, 20 शहरों की स्मार्ट सिटी योजनाओं के लिये 50,560 करोड़, अमृत के लिये 20,882 करोड़ रुपये शामिल है।

अगले कुछ वर्षों में देश के प्रत्येयक शहरी परिवार को लाभान्वित करने के उद्देश्य से अमृत के तहत 500 शहरों और कस्बों तथा स्मार्ट सिटी मिशन के अंर्तगत 100 शहरों में बुनियादी ढांचे के विकास और किफायती आवास, स्वच्छता तथा देश के सभी 4,041 वैधानिक कस्बों में रोजगार के अवसर प्रदान करवाये जायेंगे।

दो शहरी मंत्रालय भी सभी शहरी स्थानीय निकायों के अधिकार बढ़ाने पर ध्यान दे रही हैं, ताकि वे देश के शहरी परिदृश्य में परिवर्तन  की चुनौती से निपटने में सक्षम हो।

सरकार को विश्वास है कि इस तरह के ध्यान केंद्रित, लोगों से प्रेरित, संमिलन आधारित, सहयोगी और एकीकृत शहरी विकास के दृष्टिकोण से जगी नवचेतना से तार्किक परिणाम प्राप्त किये जा सकेंगे।

नए शहरी मिशन

 

  1. जून, 2015 में राज्यों,  शहरी स्थानीय निकायों, वित्तीय संस्थानों, रियल एस्टेट डेवलपर्स, विशेषज्ञों, कस्बों का नक्शा तैयार करने वालों, वास्तुविदों सहित सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार विमर्श के कई दौर के बाद तीन नए मिशन शुरू किए गए।
  2. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 25 जून, 2015 को स्मार्ट सिटी मिशन और अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत) का शुभारंभ किया।
  3. 2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत की गई। धरोहर विकास एवं संवर्धन योजना (हृदय) का शुभारंभ जनवरी, 2015 में किया गया।
  4. स्मार्ट सिटी मिशन का उद्देश्य मौजूदा शहरों में उन्नयन के जरिए 100 स्मार्ट शहर विकसित करना और नये शहर निर्मित करना है। केंद्र सरकार 2019 तक राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों को 48,000 करोड़ रुपये प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह केंद्र प्रायोजित योजना है।
  5. स्मार्ट सिटी को महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा और सतत तथा स्वच्छ पर्यावरण एवं स्मार्ट समाधान आधारित प्रौद्योगिकी सुनिश्चित कर बेहतर जीवन जीने के लिए शहर के रूप में परिभाषित किया गया है।
  6. अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत) में 500 मिशन शहरों में जल आपूर्ति, सीवरेज नेटवर्क सेवाओं,पानी की नालियों, गैर मोटर चालित परिवहन पर बल देते हुए शहरी परिवहन से संबंधित आधारभूत बुनियादी ढांचा विकसित किया जाएगा और हरित तथा सार्वजनिक स्थलों का प्रावधान होगा।
  7. अमृत भी केंद्र प्रायोजित योजना है। इस मिशन के तहत प्रत्येक राज्य /केंद्रशासित प्रदेश में वैधानिक शहरों तथा कस्बों एवं शहरी आबादी की संख्या के आधार पर राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों को 2019 तक 50,000 करोड़ की कुल केन्द्रीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
  8. शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत मिशन के जरिए 1.04 करोड़ घरेलू शौचालय और 2.58 लाख सामुदायिक एवं सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कर खुले में शौच को समाप्त किया जाएगा। इसके अलावा 100 प्रतिशत कूड़ा घर-घर से इक्ट्ठा करना, परिवहन और नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का प्रसंस्करण सुनिश्चित किया जाएगा।
  9. शहरी क्षेत्रों के लिए इस मिशन के लिए अनुमानित लागत 62,009 करोड़ रुपये है, जिसमें केंद्र सरकार की भागीदारी 14,643 करोड़ रुपये की है।
  10. हृदय का उद्देश्य समावेशी तरीके से शहरी नियोजन, आर्थिक विकास और विरासत के संरक्षण को एक साथ लाकर प्रत्येक शहर की अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और सुरक्षा करना है।
  11. हृदय केंद्र सरकार की योजना है, जिसके तहत 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है और यह योजना मार्च, 2017 तक कार्यान्वित की जाएगी।

वास्तविक प्रगति

स्मार्ट सिटी मिशन

  1. सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से 98 शहरों को शहर की चुनौती प्रतियोगिता के पहले दौर में अंत:राज्य प्रतियोगिता के जरिये मिशन में शामिल करने के लिए पहचान की गई है। उसके बाद प्रथम वर्ष अर्थात 2015-16 में 20 शहरों के पहले समूह का चयन केंद्रीय सहायता प्रदान करने के लिए किया गया है।
  2. चौदह शहरों की स्थापना और संबंधित स्मार्ट सिटी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी) शामिल किए गए हैं। शेष शहर एसपीवी के समावेश की प्रक्रिया में है।
  3. 2015-16 के लिए चुने गए 20 स्मार्ट शहरों का पहला समूह उनके रैंक के क्रमानुसार: भुवनेश्वर (ओडिशा), पुणे (महाराष्ट्र), जयपुर (राजस्थान), सूरत (गुजरात), कोच्चि (केरल), अहमदाबाद (गुजरात ), जबलपुर (मध्य प्रदेश),विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश), शोलापुर (महाराष्ट्र), दावणगेरे (कर्नाटक), इंदौर (मध्य प्रदेश), नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, कोयम्बटूर (तमिलनाडु), काकीनाडा (आंध्र प्रदेश), बेलगावी (कर्नाटक), उदयपुर (राजस्थान), गुवाहाटी (असम),लुधियाना (पंजाब) और भोपाल (मध्य प्रदेश) हैं।
  4. 20 स्मार्ट मिशन शहरों के पहले समूह ने प्रत्येक शहर के चिन्हित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कुल 50,560 करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव किया है, जो पुनः संयोजन  और पुनर्विकास तथा शहरों में उपलब्ध बुनियादी ढांचे के कुशल उपयोग के लिए पैन सिटी-स्मार्ट समाधान के आधार पर है।

20 शहरों द्वारा उनकी स्मार्ट सिटी योजना में प्रस्तावित निवेश का ब्यौरा निम्नानुसार है:

शहर

प्रस्तावित निवेश (करोड़ रुपये)

भुवनेश्वर

4,537

पुणे

2,960

जयपुर

2,340

सूरत

2,597

कोच्ची

2.076

अहमदाबाद

2,290

जबलपुर

3,998

विशाखापट्टनम

1,743

सोलापुर

2,247

दावणगेरे

2,283

इंदौर

4,857

नई दिल्ली नगरपालिका परिषद

1,897

कोयम्बटूर

1,570

काकीनाडा

1,993

बेलगावी

3,534

उदयपुर

1,526

गुवाहाटी

2,256

चेन्नई

1,366

लुधियाना

1.049

भोपाल

3,441

 

  1. प्रत्येक शहर जिसने कंपनी अधिनियम 2013 के तहत एसपीवी शामिल किए हैं, उन्हें पहले वर्ष में केंद्रीय सहायता के रूप में 200 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे और उसके बाद 100 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की दर से दिए जाएंगे। मिशन की अवधि के दौरान प्रत्येक शहर को 500 करोड़ रुपये की कुल केंद्रीय सहायता प्राप्त होगी। राज्य और शहरी स्थानीय निकाय इसी आदेश के समान कोष उपलब्ध कराएंगे।
  2. इसके अलावा पहले 20 शहरों की सूची में शामिल नहीं हो पाए 23 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के उन 23 शहरों को उनके प्रस्ताव में त्वरित उन्नयन कर 21 अप्रैल, 2016 तक मंत्रालय में भेजने का अवसर प्रदान किया गया है। जो विजेता शहरों द्वारा निर्धारित मानक हासिल कर लेंगे वे 2016-17 में त्वरित वित्त पोषण के लिए पात्र हो जायेंगे।
  3. सभी 23 फास्ट ट्रैक शहरों से स्मार्ट सिटी योजनाएं प्राप्त हो गयी हैं और विशेषज्ञों का पैनल इसका मूल्यांकन कर रहा है तथा इस फास्ट ट्रैक प्रतियोगिता के परिणाम 15 मई, 2016 के बाद घोषित किये जायेंगे।
  4. शेष 54 शहर और फास्ट ट्रैक प्रतियोगिता में नाकाम रहने वाले शहर जून, 2016 तक संशोधित प्रस्ताव प्रस्तुत कर शहर चुनौती प्रतियोगिता के दूसरे दौर में नियमित रूप से भाग लेंगे।
  5. 2016-17 के दौरान केंद्रीय सहायता प्रदान करने के लिए कुल 40 स्मार्ट शहरों का चयन किया जाएगा।
  6. स्मार्ट सिटी मिशन से लगभग 13 करोड़ शहरी आबादी लाभान्वित होगी, जो क्षेत्र विकास और पैन सिटी स्मार्ट समाधान के माध्यम से देश की कुल शहरी आबादी का एक तिहाई है।

अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत)

 

  1. अब तक सभी राज्यों की राजधानियों और पर्यटन तथा आर्थिक महत्व, पहाड़ी इलाकों और मुख्य नदी के नजदीक बसे शहरों के अलावा एक लाख से अधिक की आबादी वाले 497 शहरों और कस्बों को जून, 2015 में शुरू किये गये इस मिशन में शामिल किया गया है।
  2. मिशन शहरों ने 2015-16 के लिये शहर वार सेवा स्तर में सुधार योजनाएं (एसएलआईपी) और संबंधित राज्यों में सभी एसएलआईपी के एकीकरण पर आधारित  राज्य स्तरीय वार्षिक कार्य योजनाएं (एसएएपी) तैयार की हैं। जिससे मिशन शहरों और कस्बों  में पानी की आपूर्ति के लिये कनेक्शन और जलापूर्ति में सुधार, सीवरेज कनेक्शन उपलब्ध कराने, जल निकासी व्यवस्था, सार्वजनिक परिवहन और हरित स्थानों तथा पार्कों के लिये निवेश का संकेत मिले हैं।
  3. 2015-16 के लिए शहरी विकास मंत्रालय ने सभी 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 497 मिशन शहरों के राज्य स्तरीय वार्षिक कार्ययोजनाओं को मंजूरी दे दी है।
  4. मंत्रालय ने 2015-16 के लिए कुल 20,882 करोड़ रुपये के निवेश को मंजूरी दी है, जिसमें कुल 9,894 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता शामिल है।
  5. प्रत्येक मिशन शहर में 2015-16 के दौरान मंजूर किए गए कुल निवेश में से 13,324 करोड़ रुपये जल आपूर्ति के लिए, 6,360 करोड़ रुपये सीवरेज परियोजनाओं के लिए, 424 करोड़ रुपये जल निकासी के लिए, 322 करोड़ रुपये शहरी परिवहन के लिए और 453 करोड़ रुपये हरित स्थानों तथा पार्कों के लिए प्रदान किए जाएंगे।
  6. अमृत के तहत मंजूर किए गए निवेश का राज्यवार ब्यौरा और 2015-16 के लिए प्रदान की गई केंद्रीय सहायता की जानकारी निम्नलिखित हैः

 

क्रं सं.

राज्य/केंद्रशासित प्रदेश

मंजूर की गई राज्य योजनाओं का आकार(करोड़ रुपये)

मंजूर की गई केंद्रीय सहायता(करोड़ रुपये)

1

आंध्र प्रदेश

662.86

300.41

2

अरूणाचल प्रदेश

40.94

36.84

3

असम

186.27

169.34

4

बिहार

664.2

332.10

5

चंडीगढ़

15.04

15.04

6

छत्तीसगढ़

573.4

276.47

7

दिल्ली

223.07

223.07

8

गोवा

59.44

29.71

9

गुजरात

1204.42

564.30

10

हरियाणा

438.02

219.01

11

हिमाचल प्रदेश

158.82

79.41

12

जम्मू और कश्मीर

171

153.87

13

झारखंड

313.36

137.95

14

कर्नाटक

1258.54

592.29

15

केरल

587.48

287.98

16

मध्य प्रदेश

1655.81

672.03

17

महाराष्ट्र

1989.41

914.92

18

मणिपुर

51.43

46.29

19

मेघालय

22.81

20.53

20

मिजोरम

73.00

36.50

21

नगालैंड

34.98

31.48

22

ओडिशा

461.3

228.14

23

पुदुचेरी

18.97

18.97

24

पंजाब

709.66

318.86

25

राजस्थान

919.00

459.50

26

सिक्किम

13.43

12.09

27

तमिलनाडु

3249.23

1372.41

28

तेलंगाना

415.51

204.25

29

त्रिपुरा

36.62

32.96

30

उत्तर प्रदेश

3287.27

1409.07

31

उत्तराखंड

269.93

133.68

32

पश्चिम बंगाल

1104.86

552.43

33

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह

3.18

3.18

34

लक्ष्यदीप

0.68

0.68

35

दमन और दीव

4.96

4.56

36

दादर और नगरहवेली

3.41

3.41

 

कुल

20882.31

 

9893.73

 

  • 31 मार्च, 2016 को 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 1,978 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता राशि जारी कर दी गई है, जो 2015-16 के लिए प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश के लिए दी जाने वाली केंद्रीय सहायता का 20 प्रतिशत की दर से है।

अमृत में शामिल शहर और कस्बे

अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह-1, आंध्र प्रदेश-33, अरूणाचल प्रदेश-1, असम-4, बिहार-27, चंडीगढ़-1, छत्तीसगढ़-9, दादर एवं नगर हवेली-1, दमन और दीव-1, दिल्ली-4, गोवा-1, गुजरात-31, हरियाणा-20, हिमाचल प्रदेश-2, जम्मू और कश्मीर-4, झारखंड-7, कर्नाटक-27, केरल-9, लक्षद्वीप-1, मध्य प्रदेश-34, महाराष्ट्र-44, मणिपुर-1, मेघालय-1, मिजोरम-1, नगालैंड-2, ओडिशा-9, पुदुचेरी-2, पंजाब-16, राजस्थान-29, सिक्किम-1, तमिलनाडु-32, तेलंगाना-12, त्रिपुरा-1, उत्तर प्रदेश-61, उत्तराखंड-7 और पश्चिम बंगाल-61

अमृत के अंतर्गत लाभ

लगभग 80 मिलियन शहरी परिवारों के एक तिहाई से अधिक को मिशन अवधि के दौरान जल आपूर्ति कनेक्शन उपलब्ध कराए जाएंगे। इनमें से अधिकतर को जल निकासी तथा शहरी परिवहन परियोजनाओं के लाभ के अतिरिक्त सीवरेज कनेक्शन भी उपलब्ध कराया जाएगा। सभी मिशन शहरों में हरित स्थान और पार्क होंगे।

शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत मिशन

 

  1. मार्च, 2016 के अंत तक 24.65 लाख निजी शौचालय का निर्माण कार्य शुरू किया गया और 13.26 लाख निजी शौचालयों का निर्माण पूरा कर लिया गया है। इसके अलावा अब तक 68,506 सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया गया है।
  2. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में, देश के कुल 79,515 शहरी वार्डों में से 34,606 वार्डों में घर-घर से ठोस अपशिष्ट उठाया जा रहा है। कुल नगरपालिका द्वारा एकत्रित किये जा रहे ठोस अपशिष्ट के प्रसंस्करण का स्तर 17.97 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
  3. श्रेष्ठ 10 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अब तक निजी शौचालयों का निर्माणः गुजरात-4,97,634, मध्य प्रदेश-1,82,072, उत्तर प्रदेश-1,77,743, महाराष्ट्र-1,46,385, आंध्र प्रदेश-90,051, छत्तीसगढ़-85,952, तेलंगाना-28,807, तमिलनाडु-27,880, चंडीगढ़-13,830 और पश्चिम बंगाल-12,220
  4. समुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण: तमिलनाडु-36,754, मध्य प्रदेश-6,960, दिल्ली-5,776,छत्तीसगढ़-3,571, महाराष्ट्र-2,689, उत्तर प्रदेश-2,297, आंध्र प्रदेश-2,255, राजस्थान 1,880, चंडीगढ़-1,313 और गुजरात 1,150
  5. शत प्रतिशत घरों से नगरपालिका का ठोस अपशिष्ट एकत्रित करना: तमिलनाडु-कुल 13,667 वार्डो में से 9,182 वार्ड, कर्नाटक-3,962 / 5,252, मध्य प्रदेश-3,912 / 6,999, आंध्र प्रदेश-3,072 / 3393, पंजाब-2,000/3,065, गुजरात -1,658 / 1,738, तेलंगाना-1,625 / 1,967, राजस्थान-1,300 / 5,247, पश्चिम बंगाल-1,130 / 2,875 और केरल-1,280 / 2,096
  6. मंत्रालय ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के संदर्भ में की गई पहलों और प्रगति, खुले में शौच की समस्या के समाधान और लोगों के व्यवहार में परिवर्तन के आधार पर 10 लाख से अधिक आबादी और 22 राज्यों की राजधानियों की रैंकिंग के लिए शामिल 53 शहरों सहित 75 शहरों में ‘स्वच्छ सर्वेक्षण’ शुरू किया है। इसका उद्देश्य शहरों के बीच स्वच्छता में सुधार के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है।
  7. मिशन लक्ष्य और प्रत्येक राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए आवंटन, प्राप्त हुए प्रस्तावों और वास्तविक प्रगति के आधार पर अक्टूबर, 2014 में स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत से राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अब तक 1,968 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता दी गई है।

विवरण निम्नलिखित हैं:

राज्य/केंद्रशासित प्रदेश

दी गई केंद्रीय सहायता

(करोड़ रुपये)

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह

0.14

आंध्र प्रदेश

113.18

अरूणाचल प्रदेश

10.57

असम

0.23

बिहार

57.72

चंडीगढ़

1.70

छत्तीसगढ़

66.66

दादर और नगर हवेली

0.03

दमन और दीव

0.19

दिल्ली

104.75

गोवा

6.22

गुजरात

163.90

हरियाणा

29.57

हिमाचल प्रदेश

6.92

जम्मू और कश्मीर

19.32

झारखंड

39.23

कर्नाटक

150.00

केरल

34.17

मध्य प्रदेश

156.83

महाराष्ट्र

222.00

मणिपुर

12.85

मेघालय

4.05

मिजोरम

12.86

नगालैंड

13.72

ओडिशा

26.04

पुदुचेरी

1.95

पंजाब

56.40

राजस्थान

105.73

सिक्किम

3.46

तमिलनाडु

165.57

उत्तराखंड

7.34

उत्तर प्रदेश

168.29

पश्चिम बंगाल

117.53

 

 

स्वच्छ भारत मिशन के तहत सहायता

केन्द्र सरकार प्रत्येक घर में व्यक्तिगत शौचालय के निर्माण के लिए 4,000 रुपये की सहायता, व्यवहार्यता अंतर के लिए अनुदान (वीजीएफ) के तौर पर सामुदायिक शौचालयों की लागत का 40 प्रतिशत, वीजीएफ के रूप में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं की लागत का 20 प्रतिशत प्रदान करती है।

राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रत्येक शौचालय के निर्माण के लिए योगदान के रूप में केंद्रीय सहायता का एक तिहाई का न्यूनतम योगदान देना होगा, जो प्रति शौचालय 1,333 रुपये है।

स्वच्छ भारत के प्रति उत्सुकता दर्शाते हुये 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने मिशन के दिशा निर्देशों के तहत आवश्यक समर्थन से अधिक की घोषणा की है। विवरण इस प्रकार हैं: पुदुचेरी- 16,000 रुपये, छत्तीसगढ़-13,000 रुपये, गोवा-12,000 रुपये, केरल-11,400 रुपये, आंध्र प्रदेश-11,000 रुपये, हरियाणा- 10,000 रुपये, जम्मू और कश्मीर-10,000 रुपये, गुजरात-8,000 रुपये, महाराष्ट्र-8,000 रुपये, तेलंगाना-8,000 रुपये, बिहार-8,000 रुपये,झारखंड-8,000 रुपये, मध्य प्रदेश-6,880 रुपये, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश-4,000-4,000 रुपये।

स्वच्छ भारत मिशन को समर्थन

शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ भारत मिशन को आगे बढ़ाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नगरपालिका ठोस अपशिष्ट से तैयार किए गए कंपोस्ट खाद का बाजार विकसित करने के लिए 1,500 रुपये प्रति टन की सहायता देने को मंजूरी दे दी है। इसके अलावा लाइसेंस वितरित कर एमएसडब्ल्यू द्वारा उत्पादित ऊर्जा की 100 प्रतिशत खरीदारी और केंद्रीय ऊर्जा नियमन आयोग द्वारा तय दर पर सभी स्रोतों से बिजली की खरीदारी में उनके अनुपात को भी मंजूरी दी गई है। 2015-16 के लिए ऊर्जा संयंत्र आधारित एमएसडब्ल्यू के लिए मान्य दर 7.04 रुपये प्रति किलो वाट और व्युत्पन्न ईंधन आधारित बिजली संयंत्र के लिए 7.90 रुपये प्रति किलो वाट है।

देश में अपशिष्ट से कंपोस्ट खाद बनाने की क्षमता 54 लाख टन है, जबकि अपशिष्ट से कंपोस्ट बनाने के 56 संयंत्रों की क्षमता 10 लाख टन है और वास्तविक उत्पादन केवल 1.5 लाख टन है।

एमएसडब्ल्यू का 1.70 लाख टन प्रतिदिन अपशिष्ट से बिजली उत्पादन की क्षमता 700 मेगावाट है, जबकि वर्तमान स्थापित क्षमता 53 मेगावाट है, जो चल रही परियोजनाओं के पूर्ण हो जाने पर 424 मेगावाट हो जाएगी।

शहरी विकास मंत्रालय ने उपभोक्ता मामले मंत्रालय के साथ विचार विमर्श कर निर्माण में सी और डी व्यर्थ पदार्थ के उपयोग के लिए नई विशेष निर्देश जारी किे हैं। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने केवल नदी थाले से निकाली गई रेत का उपयोग करने के निर्देश को बदल कर निर्दिष्ट किया है कि सी और डी अपशिष्ट से मोटी और बारीक रोड़ी का 20 प्रतिशत तक अब भार वहन प्रयोजनों के निर्माण में और गैर भार वहन प्रयोजनों के लिए इसका 100 प्रतिशत तक उपयोग किया जा सकता है। इससे प्रति वर्ष लगभग 100-120 लाख टन तैयार किए जा रहे सी और डी अपशिष्ट के निपटान और दोबारा उपयोग में मदद मिलती है।

खुले में शौच से मुक्त शहर

18 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों ने दिसंबर, 2016 तक ‘खुले में शौच से मुक्त’ बनाए जाने के लिए 400 शहरों को चिन्हित किया है।

इन शहरों का राज्य और केंद्रशासित प्रदेश वार ब्यौरा हैः गुजरात-79, मध्य प्रदेश-68, आंध्र प्रदेश 66, महाराष्ट्र 60,राजस्थान 33, छत्तीसगढ़-32, तेलंगाना-14, पश्चिम बंगाल-8, बिहार-7 हरियाणा-7, तमिलनाडु-7, पंजाब-5, झारखंड-4,उत्तराखंड -3, उत्तर प्रदेश-3, पुडुचेरी-2, हिमाचल प्रदेश-1 और दिल्ली-1

धरोहर विकास एवं संवर्धन योजना (हृदय):

21 जनवरी, 2015 को शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य 500 करोड़ रुपये की कुल आवंटित राशि से नागरिक सुविधाओं के विकास के जरिए देश के विरासत शहरों की आत्मा और अद्वितीय चरित्र को संरक्षित और पुनर्जीवित करना है, जिनका कार्यान्वयन मार्च, 2017 तक पूरा हो जाएगा।

कुल 500 करोड़ रुपये लागत के साथ यह केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में कार्यान्वित की जा रही है, जिसका खर्च भारत सरकार द्वारा उठाया जा रहा है।

2014 में 12 शहरों को चिन्हित किया गयाः 40.04 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ अजमेर,  आंध्र प्रदेश में अमरावती (22.26 करोड़ रुपये), अमृतसर (69.31 करोड़ रुपये) , कर्नाटक में बदामी (22.26 करोड़ रुपये), गुजरात में द्वारका ( 22.26 करोड़ रुपये), गया (40.04 करोड़ रुपये), तमिलनाडु में कांचीपुरम (23.04 करोड़ रुपये), मथुरा (40.04 करोड़ रुपये), पुरी (22.54 करोड़ रुपये), वाराणसी (89.31 करोड़ रुपये), तमिलनाडु में वेलांकिनी (22.26 करोड़ रुपये) और तेलंगाना में वारंगल ( 40.54 करोड़ रुपये) ।

अब तक शहर वार मंजूरी दी गई शहर विरासत योजनाओं की लागत: अजमेर-35 करोड़ रुपये, अमरावती-20 करोड़ रुपये, अमृतसर-60 करोड़ रुपये, बादामी- 20 करोड़ रुपये, द्वारका-  20 करोड़ रुपये, गया- 35 करोड़ रुपये,कांचीपुरम-20 करोड़ रुपये, मथुरा-35 करोड़ रुपये, पुरी-20 करोड़ रुपये, वाराणसी-80 करोड़ रुपये, वेलांकिनी-20 करोड़ रुपये और वारंगल-35 रुपये हैं।

शहरी मेट्रो परियोजनाएं

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 6,928 करोड़ रुपये लागत की सीसीएस हवाई अड्डा से मुंशी पुलिया (उत्तर-दक्षिण गलियारा) के बीच 22.878 किलोमीटर लंबी लखनऊ मेट्रो रेल परियोजना चरण-1ए को मंजूरी दे दी है। यह परियोजना लखनऊ मेट्रो रेल निगम द्वारा कार्यान्वित की जा रही है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकार की 50-50 प्रतिशत की भागीदारी है। इसमें केंद्र सरकार का 1,300 करोड़ रुपये का योगदान है।

लखनऊ मेट्रो का कार्य पांच वर्ष में पूर्ण हो जाएगा। प्रथम प्राथमिकता वाला हवाई अड्डा से चारबाग रेल स्टेशन के बीच 8.50 किलोमीटर सेक्शन पर 2016 के अंत तक परिवहन शुरू हो जाने की संभावना है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 8,680 करोड़ रुपये की लागत का 38.20 किलोमीटर लंबी नागपुर मेट्रो परियोजना को मंजूरी दे दी है। यह मार्च, 2018 में पूर्ण हो जाएगी।

अहमदाबाद-गांधीनगर मेट्रो परियोजना को भी मंजूरी दे दी गई है, जिसमें 10,773 करोड़ रुपये की लागत से 36 किलोमीटर लंबी मेट्रो लाइन बिछाई जाएगी। यह परियोजना मार्च, 2018 तक पूरी हो जाएगी।

शहरी विकास मंत्रालय की दिल्ली के लिए विशेष पहलें

आवागमन में आसानी और निर्माण तथा बुनियादी ढांचा तैयार करने सहित राष्ट्रीय राजधानी के विकास की अनिवार्यताओं को देखते हुये पिछले दो वर्ष के दौरान दिल्ली के लिये कई विशिष्ट पहल की गई हैं।

दिल्ली-2016 के लिए एकीकृत भवन निर्माण उप कानून

मंत्रालय ने 33 साल के बाद उपनियमों में संशोधन कर इस वर्ष दिल्ली के लिए एकीकृत भवन निर्माण उप कानूनों की घोषणा की है। संशोधित कानून में ऑनलाइन आवेदन, एकल खिड़की मंजूरी की सुविधा प्रदान की गई और भवन निर्माण की मंजूरी में लगने वाले समय को कम किया गया तथा निर्माण परमिट को 60 दिन से घटाकर 30 दिन करने का प्रावधान है। निर्माण में सुगमता लाने और राष्ट्रीय राजधानी में कारोबार करने में आसानी के लिए ऐसी मंजूरियों के मानदंडों और प्रक्रियाओं को काफी हद तक सरल बनाया गया है। उदाहरण के लिए, 105 वर्ग मीटर तक के आवासीय भूखंडों के के लिए कम भवन निर्माण नक्शे  की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। 1,50,000 वर्ग मीटर तक के निर्मित क्षेत्र की इमारतों के लिए अलग से पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) की आवश्यकता नहीं होगी।

दिल्ली को भीड़भाड मुक्तआ बनाना

दिल्ली की सड़कों पर भीड़ की गंभीर समस्या का समाधान के लिए, मंत्रालय ने शहरी विकास कोष से 3,250 करोड़ रूपये आवंटित किये है, ताकि संसाधनों की कमी के कारण बंद पड़ी विभिन्नक सड़क और पुल परियोजनाएं पूरी हो सकेंगी।  दिल्ली सरकार को 1500 करोड़ रूपये, डीडीए को 1,665 करोड़ रूपये  और उत्तरी दिल्ली नगर निगम को 85 करोड़ रूपये मिले हैं।

दिल्ली  पुलिस के साथ विचार-विमर्श कर कई प्रमुख अवरूद्ध करने वाले बिन्दु ओं की पहचान की गई है और मंत्रालय द्वारा और विचार-विमर्श करने तथा आवंटन के लिए दिल्लीु सरकार के लोक निर्माण कार्यविभाग से विस्तृरत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है।

परिवर्तन उन्मुख विकास (टीओडी) नीति

टीओडी नीति कम कार्बन, उच्च घनत्व और सतत विकास के मिश्रित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अधिसूचित की गई है। इससे नागरिकों के लिए यात्रा का समय कम करने, सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल को बढ़ावा देने, प्रदूषण और भीड़ को कम करने, अधिक समरूप वातावरण तैयार करने, कार्यस्थलों के पास आवास और कम दूरी पर सार्वजनिक सुविधायें निर्मित करने तथा सुरक्षित पर्यावरण प्रदान करने का प्रावधान है।

टीओडी नीति एमआरटीएस गलियारों के प्रभावी क्षेत्र के दोनों किनारों पर 500 मीटर तक विस्तार पर लागू होगी। दिल्ली के कुल क्षेत्र का लगभग 20 प्रतिशत टीओडी क्षेत्र में शामिल है। इस नीति में सम्मिलित पूरे भूखंड पर 400 एफएआर का उच्च प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है और आवासीय, वाणिज्यिक और संस्थागत स्था0नों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए ऊंचे भवनों के निर्माण को बढ़ावा दिया जाता है।

लैंड पूलिंग नीति

मंत्रालय ने दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा प्रस्तावित लैंड पूलिंग नीति लागू करने के नियमों को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत अधिक मकानों की बढ़ती मांग को पूरा करने लिये ऊंचे भवनों के निर्माण का प्रावधान है।

अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने की अंतिम तिथि को बढ़ाना

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिल्ली में अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने की अंतिम तिथि 31 मार्च, 2002 से बढ़ा 01 जून, 2014 कर दी है। इस निर्णय से नियमित करने के रूप में पहचान की गई 895 कालोनियों के साथ ही ऐसी 700 अतिरिक्ती कालोनियों को लाभ मिलेगा। दिल्ली में लगभग 60 लाख लोग अनधिकृत कालोनियों में रहते हैं।

नजरूल संपत्ति की भूमि का पूर्ण स्वांमित्व  के तौर पर परिवर्तन

शहरी विकास मंत्रालय ने पहाड़गंज, करोल बाग जैसी 23 नजरूल संपत्ति के समाप्त हो गये पट्टों के नवीनीकरण की नीति को मंजूरी दे दी है, ताकि 31 दिसंबर,2015 तक उनका पूर्ण स्वाोमित्वक के तौर पर परिवर्तन किया जा सके। इन संपत्तियों की पट्टे से पूर्ण स्वा मित्व् के तौर पर परिवर्तन की दर लगभग दो लाख रुपये प्रति 100 वर्ग मीटर है।

चूल्हा कर वाले गांवों में पूर्ण स्वा1मित्वट के अधिकार

शहरी विकास मंत्रालय ने 'जिस रूप में है, वैसे ही' के आधार पर नांगली राजापुर, तोडापुर, दासघरा, झिलमिल ताहिरपुर और अराखपुर  बाग मोची के 5 चूल्हा कर वाले गांवों के निवासियों को मौजूदा कब्जे पर पूर्ण स्वाजमित्वम का अधिकार देने का निर्णय लिया है। इसके लाभार्थी मूल चूल्हा करदाता और उनकी संतान, मूल आवंटियों से खरीदने वाले और उनकी संतान तथा वाल्मीकि वर्ग और उनकी संतान हैं।

अन्य पहलें

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में यातायात और प्रदूषण कम करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा में 9 परिवहन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए कुल 3,113 करोड़ रुपये की ऋण सहायता की मंजूरी दी है। ये परियोजनाओं कुल 7,838 करोड़ रुपये की लागत से शुरू की जा रही हैं।

इसमें से उत्तर प्रदेश को 2,287 करोड़ रुपये मिलेंगे, जिसमें एकल घाट एलिवेटेड छह लेन हिंडन सड़क निर्माण के लिये 700 करोड़ रुपए और 29.70 किलो मीटर के नोएडा-ग्रेटर नोएडा मेट्रो लाइन अनुभाग के लिए 1,587 करोड़ रुपये शामिल हैं।

हरियाणा को 724.12 करोड़ रुपये प्राप्त  होंगे, जिसमें से 344 करोड़ रुपये मानेसर-पलवल (पश्चिमी परिधी) पर सड़क के लिये, गुड़गांव-पटौदी-रेवाड़ी सड़क की मरम्मरत के लिए 38.41 करोड़ रुपए, रोहतक में छोटूराम चौक बस अड्डे से एनएच 10 पर 5.80 किलोमीटर एलिवेटेड सड़क के लिये 114.62 करोड़ रुपये और शेष राशि राज्य  के 4 सड़क ओवर ब्रीज के लिये है।

स्रोत: पत्र सूचना कार्यालय

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate