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बच्चों का उत्तरजीविता

भूमिका

गर्भधारण करने से लेकर जन्म तक किसी बच्चे का स्वास्थय उसकी माता के स्वास्थय पर निर्भर करता हैऔर इस प्रकार शिशुओं का जन्म के बाद जीवित रहना उनके लिए जन्म के  पूर्व से लेकर दो वर्ष की आयु तक किए गए अनेक महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों पर निर्भर करता है। बच्चों के जीवित रहने के लिए गर्भावस्था के दौरान माता की देखभाल की गुणवत्ता, विशेष रूप से स्वास्थय संस्थाओं में कुशल पर्यवेक्षण ले अंतर्गत प्रसव (यदि यह संभव नहीं, तो प्रशिक्षित और योग्य दाइयों द्वारा प्रसव), के उपरांत बेहतर देख-रेख समय पर पर्याप्त टीकाकरण, सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता और स्वच्छ परिवेश अत्यंत निर्णयक तत्व हैं।

क्या आप जानते हैं कि:

गर्भावस्था के दौरान समुचित देखभाल तथा किसी योग्य प्रसव परिचारिका द्वारा किसी स्वास्थय संस्था में कराये जाने वाले पर्यवेक्षित प्रसव बच्चों के जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण हैं?

 

गर्भावस्था के दौरान यदि माता की बेहतर देखभाल की जाए तथा उसे नियमित रूप से अपने स्वास्थय की जाँच कराए जाने संबंधी जानकारी दी जाए और इसकी सुविधा भी उसे उपलब्ध कराई जाए, तो गर्भपात, माता की मृत्यु, जन्म के दोष, जन्म के समय शिशु का कम वजन, प्रसव के बाद शिशु की मृत्यु, समय से पूर्व जन्म तथा अन्य निवारण योग्य स्वास्थय समस्याएँ जिनमें शिशु की मृत्यु भी शामिल हैं, कम की जा सकती है। सही समय पर वृद्धि एवं मस्तिष्क सहित प्रत्येक अंग का विकास, प्रसव के दौरान माता की कुशलता पर निर्भर करता है।

किसी स्वास्थय संस्थान में कराया गया प्रसव माता द्वारा शिशु को दूध पिलाने की शूरूआत तथा शिशु के टीकाकरण को सुनिश्चित करता है। माता द्वारा शिशु को जन्म के तत्काल बाद अपना दूध पिलाना आरंभ कर देना चाहिए। नवदुग्ध पोषक – तत्वों का एक अत्यंत अच्छा स्रोत है जो नवजात शिशु की रोग प्रतिरोध क्षमता का निर्माण करता है। चिकित्सा द्वारा ऊपर आहार के संबंध में कोई परामर्श दिए जाने तक शिशु को कोई अन्य आहार नहीं दिया जाना चाहिए।

(कृपया ध्यान दें कि प्रसवोपरांत गुण वत्तापूर्ण देखभाल और अच्छी चिकित्सा संस्था में बच्चे का जन्म तथा इन क्षेत्रों में ग्राम पंचायत की विस्तृत भूमिका जैसे पहलुओं को एक अन्य पुस्तक  – ‘ग्राम पंचायतों में महिला विकास’ में शामिल किया गया है। बच्चे की उत्तरजीविता से संबंधित पहलुओं जैसे लिंग चयन संबंधी, गर्भपात पर नियंत्रण, नवजात शिशु की देखभाल, रोग नियंत्रण, कुपोषण आदि का वर्णन ग्राम पंचायतों में स्वास्थय, नामक पुस्तक में किया जा रहा है।

आंगनबाड़ी के आलवा, ग्राम पंचायत क्षेत्रों में बच्चों की उत्तरजीविता सुनिश्चित करने के लिए अन्य मुख्य स्वास्थय संस्थाएँ हैं – ग्राम स्वास्थय और पोषण समिति, रोगी कल्याण समिति और सार्वजनिक/ सामुदायिक स्वास्थय केंद्र अथवा स्वास्थय उपकेन्द्र। आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता के अलावा मुख्य पदाधिकारी हैं – आशा, एएनएम और चिकित्सा अधिकारी। ग्राम पंचायत के लिए आवश्यक है कि वह इन स्वास्थय कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ समन्वय बनाते हुए कार्य करे, इन्हें सहयोग परदान करे तथा साथ ही इनके कार्यकरण की निगरानी भी करें।

गर्भावस्था, जन्म और मृत्यु का पंजीकरण

एएनएम उपकेन्द्र/आंगनबाड़ी में अथवा ग्राम स्वास्थ्य और पोषण दिवस (वीएचएनडी) के दौरान गर्भवती महिला का पंजीकरण करती है तथा उसे माता एवं बाल संरक्षण (एमसीपी) कार्ड परदना करती है। यदि गर्भवती महिला पंजीकृत हो तो इससे प्रसव – पूर्व जाँच, टीकाकरण और अनुपूरक पोषण प्रदान करने के लिए गर्भवती महिला से संपर्क स्थापित करना असं हो जाता है। गर्भावस्था के पंजीकरण से जन्म/मृत्यु के पंजीकरण की निगरानी रखने तथा ग्राम पंचायत में शिशुओं की मृत्यु का अनुमान लगाने में भी सहायता होती है।

जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 के अनुसार भारत में जन्म, मृत्यु तथा मृत पैदा हुए बच्चों का पंजीकरण कराना अनिवार्य है। ग्राम पंचायत सचिव अथवा सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी को जन्म/मृत्यु के होने के 21 दिन के भीतर या उसके पश्चात् शीघ्र ही जन्म/मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करना चाहिए। प्रमाण पत्र prapप्राप्त करने के लिए विधिवत रूप से भरा गया फार्म प्रस्तुत करना अनिवार्य है।

जबकि गर्भावस्था का पंजीकरण कन्या भ्रूण – हत्या पर नजर रखने के लिए उपयोगी है, जन्म का पंजीकरण बालिका – हत्या तथा साथ ही बाल विवाह पर नजर के 28 दिन के भीतर शिशुओं की अप्राकृतिक मृत्यु की पहचान करने के लिए मृत्यु प्रमाण – पत्र उपयोगी होती हैं। ग्राम पंचयत के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वह यह पता लगाए कि क्या मृतक शिशु के कन्या तो नहीं थी। ग्राम पंचायत इस बारे में पता लगा सकती है, यदि वह 28 दिन से कम आयु की कन्या शिशु की मृत्यु के तात्कालिक कारणों और मृत्यु के स्थान के बारे में जानने का प्रयास करें।

शिशु के जीवित रहने के लिए किसी भी प्रकार की स्वास्थय संबंधी जटिलता अथवा विकासात्मक दोषों का समय रहते पता लगाया जाना और इस पर तत्काल चिकित्सा के लिए ध्यान दिया जाना आवश्यक है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वस्थ्य मिशन का राष्ट्रीय बाल स्वास्थय कार्यक्रम (आरबी एसके) बाल स्वास्थय जाँच तथा शीघ्र हस्तक्षेप का प्रावधान करता है।

पूछने के लिए प्रमुख प्रश्न

1. पिछले वर्ष के दौरान आपके ग्राम पंचायत क्षेत्र में शिशुओं तथा 1-5 वर्ष के बच्चों की मृत्यु की कितनी सूचनाएं प्राप्त हुई हैं?

2. इन मृत्यु के क्या  कारण थे?

आरबीएसके का उद्देश्य चार दोषों /रोगों की पहचान करना और उनका निवारण करना है(1) जन्म के समय के समय दोष, (2) बच्चों के स्वास्थय की असमान्य स्थिति (खून की कमी, कुपोषण, जन्म के समय कम वजन), (3) विकास – संबंधी विलंब जिनमें बच्चों में पाई जाने वाली विकलांगता भी शामिल हैं। आरबीएसके के अंतर्गत मुख्य ध्यान उपर्युक्त समस्याओं की पहचान के लिए 0-18 वर्ष तक के सभी बच्चों की स्वास्थय जाँच पर केन्द्रित किया गया है। किसी स्वास्थय संस्था में प्रसव होने की स्थिति में अस्पताल में ही नवजात शिशु की स्वास्थय की जाँच की जाती है अथवा प्रसव के 4 सप्ताह के अंदर आशा द्वारा घर पर किए गए दौरों के दौरान गर्भवती स्त्री के स्वास्थ्य की जाँच की जाती है। जो बच्चे बीमार पाए जाते हैं, उन्हें जिला अस्पताल में स्थापित किए गए जिला त्वरित हस्तक्षेप केन्द्रों में भेजा जात्ता है। जिन बच्चों की जाँच के उपरांत किसी प्रकार की असमर्थता की पुष्टि की जाती है, उन्हें आगे नि:शुल्क शल्यचिकित्सा और अन्य विशेषीकृत उपचारों के लिए अन्य अस्पतालों में भेजा जाता है।

प्रत्येक वर्ष भारत के गांवों में बड़ी संख्या में बच्चे टीकाकरण के अभाव के कारण के अभाव के अपने जन्म के वर्ष के भीतर मर  जाते हैं। यदि उन्हें समय पर टीके लगवा दिए जाएँ, तो उनमें से कई को बचाया जा सकता है।

टीकाकरण

टीकाकरण एक प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति को उसके जीवन को संकट में डाल देने वले रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है। टीके की दवाई शरीर में रोग प्रतिकारकों अथवा ऐसे पदार्थों को उत्पन्न करने में सहायता करती है जो शरीर को बीमार होने से बच जाता है। यदि सही समय पर टीकाकरण करवा दिया जाए, तो बच्चों के जीवन को प्रभावित करने वाले अनेकों रोगों से बचा जा सकता है। यदि ऐसा नहीं किया जाए तो बच्चे इन रोगों के शिकार हो जाएंगे। बच्चों का टीकाकरण उनके जन्म से ही आरंभ हो जाता है।

सात रोगों के विरूद्ध टीकाकरण करवाना आवश्यक है- तपेदिक, डिप्थीरिया, कुकुरखाँसी, टिटनेस, पोलियों खसरा और हैपिटाटाइटिस – बी। इसके अलावा, उन स्थानों के लिए भी टिका उपलब्ध हैं जहाँ जैपनीज – बी एंसेफैलीटिस एफ़्लूएन्ज – बी, रोटावायरस आदि भी उपलब्ध हो सकते हैं।

शिशुओं, बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम

टीका

कब दिया जाना चाहिए

खुराक

 

गर्भवती महिलाओं के लिए

0.5 मिली

टीटी- 1

गर्भवती के प्रारंभिक दिनों में

0.5 मिली

टीटी- 2

टीटी – 1 के चार सप्ताह के बाद

0.5 मिली

टीटी – बूस्टर

यदि पिछले 3 साल के भीतर गर्भावस्था में 2 टीटी बूस्टर लगाए गए हैं

 

शिशुओं के लिए

बीसीजी

जन्म पर अथवा यथासंभव शीघ्र एक वर्ष की आयु के अंदर

0.1 मिली (एक माह की आयु तक 0.5 मिली)

हैपिटाइटिस - बी

जन्म पर अथवा यथासंभव शीघ्र एक वर्ष की आयु के अंदर

0.5 मिली

ओपीवी – 0

जन्म पर अथवा यथासंभव शीघ्र प्रथम 15 दिन के अंदर

दो बूंदें

ओपीवी – 1,2 और 3

6 सप्ताह, 10 सप्ताह और 14 सप्ताह पर

दो बूंदे

टीका

कब दिया जाना चाहिए

खुराक

डीपीटी -1, 2 और 3

6 सप्ताह, 10 सप्ताह और 14 सप्ताह पर

0.5 मिली

हैपिटाइटिस – बी, 1,2 और

6 सप्ताह, 10 सप्ताह और 14 सप्ताह पर

0.5 मिली

खसरा

9  माह पूर्ण होए से – 12 वर्ष

0.5 मिली

विटामिन ए (पहली खुराक)

खसरे के साथ 9 माह पर

1 मिली

बच्चों के लिए

डीपीटी बूस्टर

16 – 24 माह

0.5 मिली

खसरा दूसरी खुराक

16 – 24 माह

0.5 मिली

ओपीवी  बूस्टर

16 – 24 माह

2 बूंदे

जैपनीज  एंसेफैलिटिस”

16 – 24 माह

0.5 मिली

विटामिन ए” (2 से 9 खुराक)

16 माह, उसके उपरांत प्रत्येक छह माह उपरांत एक खुराक पांच वर्ष की आयु तक

2 मिली

डीपीटी बूस्टर

5-6 वर्ष

0.5 मिली

टीटी

10 वर्ष और 16 वर्ष

0.5 मिली

* टीटी  -2 अथवा बूस्टर खुराकें गर्भावस्था के 36 सप्ताह से अधिक समय गुजर भी गया है, तो भी इसे महिला को दिया जाना चाहिए। यदि महिला ने पहली टीटी खुराक नहीं ली है तो उसे प्रसव के दौरान टीटी की खुराक दे दें।

** जैपनीज एंसेफैलिटिस टीकाकरण चुनिंदा क्षेत्रों में अभियान संचालित करने के उपरांत दिया जाना चाहिए।

*** 1 से 5 के आयु वर्ग बच्चों को विटामिन – ए की दूसरी से नौंवीं खुराक आईसीडीएस की सहायता से वर्ष में दो बार दी जा सकती है।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत मुख्य कार्यनीतियाँ

माता और बाल निगरानी प्रणाली टीकाकरण के दौरान छूट जाने अथव उसमें शामिल न हो सकने की स्थिति का निवारण करती है। माता को दिए गए एमसीपी कार्डों में उसे और उसके शिशु को लगाए टीकों की जानकारी होती है। स्कीम के अंतर्गत पंजीकृत किए गए मोबाइलों पर एसएमएस एलर्ट भेजे जाते हैं जिसमें शिशु के टीकाकरण की निर्धारित तारीख के बारे में सूचित किया जाता है।

राष्ट्रीय टीका एक्सप्रेस एक विशेष रूप से तैयार किया गया वाहन है जिसका उद्देश्य ग्राम में टीकाकरण के लिए छूट गए अत्व्हा उसमें शामिल न हो पाए लाभार्थी को टीके की वैकल्पिक सुविधा मुहैया कराना है ताकि उसके टीकाकरण को सुनिश्चित किया जा सके। राष्ट्रीय टीका एक्सप्रेस की सेवाओं का प्रयोग ऐसे दुर्गम गांवों में टीकाकरण सत्र का आयोजन करने के लिए किया जाता है जहाँ पहुँचना प्राय: कठिन होता है।

इसके उपरांत भी छूट गए और शामिल न हो पाये बच्चों के लिए आशा तथा आंगनबाड़ी द्वारा गाँव में घर- घर जाकर अथवा अन्य संभव माध्यमों से जानकारी एकत्र की जाती है ताकि ऐसे बच्चों को टीकाकरण के आगामी आयोजना में शामिल किया जा सके।

टीकाकरण सूक्ष्म योजना तैयार करना और उसका क्रियान्वयन :

ग्राम अथवा ग्राम पंचायत स्तर पर समस्त पीएचसी गाँव में नियमित टीकाकरण सुनिश्चित करने के इर टीकाकरण सूक्ष्म योजना अवश्य तैयार करें। इस योजना में शामिल है:

  1. उपकेन्द्र कार्य योजनाएँ जिसमें सेवाएँ प्रदान करने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति के विवरण, टीकाकरण की तारीख।
  2. क्षेत्र का मानचित्र जिसमें उप – केंद्र के अंतर्गत शामिल गांवों दुर्गम क्षेत्रों आदि को शामिल किया गया हो। इसमें ऐसे मार्ग भी शामिल होने चाहिए जिनके प्रयोग द्वारा दुर्गम क्षेत्रों तक टीके पहुँचाए जा सकते हैं।

ग्राम पंचायत के सदस्य एएनएम/चिकित्सा अधिकारी के पास उपलब्ध उप – केंद्र/पीएचसीसूक्ष्म योजना के नमूने की समीक्षा कर सकते हैं तथा यह देख सकते हैं कि इसमें कोई संशोधन किए जाने की आवश्यकता तो नहीं। ग्राम पंचायत को यह भी निगरानी करनी चाहिए कि योजना को एक व्यवस्थित ढंग से क्रियान्वित किया जाए।

  1. पीएचसी योजना जिसमें वाहन की लागत, बैठकों की लागत आदि को तथा सूचना, शिक्षा और संप्रेषण (आईईसी) के विवरणों को शामिल किया गया है।

टीकाकरण दिवस

ऐसे कुछ टीकाकरण दिवस भी हैं, जब वह बड़े पैमाने पर टीकाकरण संचालित किया जा सकता है :

  • पोलियो की खुराक के व्यापक रूप से टीकाकरण के लिए राष्ट्रीय टीकाकरण दिवसों पर देश में 5 वर्ष से कम आयु के प्रत्येक बच्चे को दो बूँद ओरल पोलियो वैक्सीन (मुंह द्वारा पोलियो की खुराक) दी जाती है तथा ये दिवस सामान्यत: प्रत्येक वर्ष जनवरी और फरवरी में आते हैं।
  • प्रत्येक वर्ष सर्वाधिक जोखिम वाले राज्यों में उप – राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस आयोजित किए जाते हैं जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल राज्य तथा पोलियो की घटनाएँ होने के जोखिम से घिरे अन्य क्षेत्र में शामिल हैं।
  • ‘पोलियो रविवार’ वाले दिन ‘बूथ दिवस’ के साथ पोलियो अभियान संचालित किए जाते हैं। इस दिन, बच्चों को ओपीवी (पोलियो) की खुराक देने के लिए समूचे क्षेत्र में हजारों बूथ लगाए जाते हैं।

टीकाकरण में वृद्धि करने के लिए स्वास्थय विभाग द्वारा भारत के टीकाकरण के संबंध में पिछड़े हुए 239 जिलों में टीकाकरण सप्ताहों का आयोजन किया जाता है।

बच्चों के लिए सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता और साफ – सफाई

विशेष रूप से 0-5 वर्ष के आयु – वर्ग के बच्चों को अस्वस्थ परिस्थितियों के फलस्वरूप प्रभावित होने का खतरा सबसे अधिक होता है तथा वे असुरक्षित पेयजल से भी सर्वाधिक बीमार  पड़ते हैं। पानी से पैदा होने वाली बीमारियाँ जैसे हैजा और दस्त इस आयु – वर्ग में बच्चों की  मृत्यु का सबसे प्रमुख कारण होते हैं तथा ये बीमारियाँ इस आयु से बड़े बच्चों विकास की दर को कम कर देती हैं।

पानी को पीने के लिए सुरक्षित तभी माना जाता है यदि यह रंगहीन, गंधहीन, जीवाणुओं के संदूषण से मुक्त हो तथा इसमें रसायन केवल निर्धारित सीमा तक ही हों। पानी अनेक कारणों से प्रदूषित होता है जैसे हवा में विद्यमान प्रदूषण – तत्व, भूमि में विद्यमान खनिज, मनुष्य और पशुओं का मल, मूत्र, कपड़े ढोने से, उर्वरकों, कीटनाशकों के प्रयोग से तथा विभिन्न अन्य स्रोतों से । घरों में गलत तरीके से पानी के रख – रखाव तथा गंदे हाथों से स्वच्छ पानी को छूने से भी स्वच्छ पेयजल प्रदूषित हो जाता है। अत: स्वच्छ पानी के संबंध में पर्याप्त ध्यान रखे जाने और समुचित उपाय किए जाने की आवश्यकता है ताकि विशेष रूप से बच्चों के लिए पेयजल को सुरक्षित बनाया जा सके।

साफ – सफाई का अर्थ है स्वास्थय को उत्तम बनाए रखने के लिए संचालित की जाने वाली प्रक्रियाएं तथा साथ ही ऐसी प्रक्रियाएं जो रोग उत्पन्न करने वाले जीवाश्मों को फैलने से रोकती हैं। इसमें व्यक्तिगत साफ – सफाई भी शामिल है जैसे नियमित रूप से नहाना, दांतों की देखभाल और महत्वपूर्ण अवसरों पर (खाने से पूर्व, मल त्याग के पश्चात, बच्चों को आहार देने से पूर्व तथा भोजन पकाने पूर्व) हाथ धोना, साफ – सुथरे  कपड़े पहनना तथा बालिकाओं और महिलाओं के मामले में मासिक – धर्म के दौरान साफ – सफाई बरतना। अस्वाथ्यकर परिस्थितियाँ तथा अपर्याप्त व्यक्तिगत स्वच्छता सबसे अधिक बच्चों को ही प्रभावित करती है क्योंकी उनमें प्रतिरोधन क्षमता कम होती है।

स्वच्छता में शामिल हैं मनुष्य और पशुओं के मल का सुरक्षित निपटान, पेयजल का सुरक्षित भंडारण और प्रयोग, व्यर्थ द्रव्य और ठोस अपशिष्ट आदि का सुरक्षित निपटान। खुले में शौच करने तथा ठोस एवं द्रव्य कूड़े के अपर्याप्त निपटान से अनेक रोगवाहकों को उत्पन्न होने का स्थान मिलता है, जैसे मच्छर और मक्खियाँ। यदि इसका ठीक से निपटान नहीं किया जाए तो इस कूड़े – कर्कट से पैदा होने वाले जीवाणु और विषाणु रोगजनक मक्खियों, बिना धुले हाथों, भोजन तथा पेयजल के माध्यम से पुन: मानव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

स्वच्छता संबंधी सुविधाओं का अभाव जैसे विद्यालय में शौचालयों का अभाव या शौचालयों का प्रयोग योग्य न होना बालिकाओं को विद्यालय जाने के प्रति हतोत्साहित करता है। आंगनबाड़ी या विद्यालय में प्रयोग योग्य शौचालय न होने के कारण प्राय: बालिकाओं को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

अपर्याप्त स्वच्छता के फलस्वरूप, सभी बच्चों को संक्रमित होने का खतरा सबसे अधिक रहता है। अत: बच्चों की उत्तरजीविता और उनके विकास हेतु स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त स्वच्छता और साफ – सफाई अति आवश्यक है।

आंगनबाड़ियों  में सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता के लिए निम्न बातों को सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है:

  • पानी के फिल्टरों की नियमित रूप से साफ - सफाई करें।
  • प्रत्येक आंगनबाड़ी में एक अलग साफ – सफाई रसोई होने चाहिए जिसमें धूँआ रहित चूल्हा हो।
  • पर्याप्त जलापूर्ति के साथ कम – से कम एक प्रयोग किए जाने योग्य शौचालय जो बल- हितैषी हो।
  • पर्याप्त जलापूर्ति के साथ हाथ ढोने का प्रावधान तथा साबुन की व्यस्था
  • समुचित जल- निकासी और कूड़े – कर्कट का उचित निपटान
  • आसान हैंडल व ताले वाले दरवाजे जिन्हें छोटे बच्चे बिना कठिनाई के प्रयोग कर सके।

वॉश का अर्थ है – जल, स्वच्छता और साफ- सफाई, यह इन तीन अवयवों के पारस्परिक संबंध को दर्शाता है।स्वच्छ जल, स्वच्छता सेवाओं और स्वास्थयकर प्रक्रियाओं का समय पर और पर्याप्त प्रावधान स्वास्थय संबंधी समस्याओं को कम करने तथा संक्रमणकारी न को नियंत्रित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

प्रभावी और निरंतर सफ्फई कार्यक्रम के तीन स्तंभ

सक्षम करने वाले वातावरण

व्यवहार में परिवर्तन

जल एवं स्वच्छता सेवाएँ

ग्राम स्वच्छता पोषण दिवस के दौरान, आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता एएनएम और आशा ग्रामीण समुदाय को वॉश (जल, स्वच्छता और साफ – सफाई) संबंधी जानकारियाँ प्रदान कर सकती हैं। वॉश  पर आईईसी सामग्रियों का प्रदर्शन आंगनबाड़ी में किया जा सकता है।

स्वच्छ भारत अभियान की निधि का प्रयोग करते हुए आंगनबाड़ी केंद्र में शौचालयों का निर्माण किया जा सकता है। आंगनबाड़ी केन्द्रों में शौचालयों का निर्माण तथा वॉश सुविधाओं का प्रावधान मनरेगा के अंतर्गत अनुमत कार्य है।

ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों की उत्तरजीविता सुनिश्चित करने के लिए ग्राम पंचायत की भूमिका :

ग्राम पंचायत लोगों को गर्भधारण और जन्म के पंजीकरण तथा टीकाकरण चार्ट के अनुसार  बच्चों के टीकाकरण कार्यक्रम का अनुपालन करने की आवश्यकता के बारे में जागरूक करते हुए, ग्राम  पंचायत क्षेत्र में बच्चों की मृत्यु – दर और अस्वस्थता - दर में कमी कमी लाने में एक निर्णायक भूमिका निभा सकती है। ग्राम पंचायत विद्यालयों तथा आंगनबाड़ियों में स्वच्छ पेयजल और स्वाच्छता को सुनिश्चित कर सकती है। ग्राम पंचायत को सुनिश्चित कर सकती है। ग्राम पंचायत को सुनिश्चित करना चाहिए कि ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा ग्राम पंचायत क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थय सेवाएं प्रदान की जाएँ।

ग्राम पंचायत इन पहलुओं के संबंध में ग्राम सभा की बैठकों में, वार्ड सभा और महिला सभा में, एसएचजी की बैठकों में, ग्राम स्वास्थय पोषण दिवस पर तथा आंगनबाड़ियों द्वारा आयोजित किशोर/किशोरी दिवसों पर लोगों के बीच जागरूकता जानकारी का संचार कर सकती है तथा उन्हें इनके महत्व से अवगत कर सकती है। ग्राम पंचायत के लिए आवश्यक है कि वह पोषण और स्वच्छता शिक्षा कक्षाओं के दौरान तथा घरों में किए जाने वाले दौरों के दौरान इन पहलुओं के महत्व के बारे में लोगों के साथ चर्चा करने के लिए आशा, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को प्रोत्साहित करे। यह टीकाकरण के लिए महिलाओं और बच्चों को एकत्र करने के लिए अपने कार्यकत्ताओं को प्रोत्साहित की प्रदान कर सकती है। पोस्टर अभियान, विवरणिका वितरण, दीवारों पर लिखना तथा नुक्कड़ नाटक जागरूकता फ़ैलाने के अच्छे साधन हो कसते हैं।

ग्राम पंचायत को यह सुनिश्चित करना होगा कि भौगोलिक दृष्टि से दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों, प्रवासी लोगों आदि तक सूचना तथा सेवाएँ अवश्य पहुंचे।

ग्राम पंचायत बच्चों की उत्तरजीविता के लिए निम्नलिखित भूमिका निभा सकती है :

  • ग्राम पंचायत, ग्राम पंचायत सेवक – सह रजिस्ट्रार (जन्म एवं मृत्यु) द्वारा जन्म प्रमाण – पत्रों का समय पर जारी दिया जाना ही सुनिश्चित कर सकती है।
  • ग्राम स्वास्थय, स्वच्छता और पोषण समिति का पाएं अध्यक्ष होने के नाते सरपंच इस बात की निगरानी कर सकते हैं कि क्या ग्राम स्वास्थय व पोषण दिवस के दौरान टीकाकरण सत्रों का नियमित रूप से आयोजन किया जा रहा है अथवा और क्या आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा या एएनएम माता एवं शिशु संरक्षण कार्डों (एसपीपीसी) और रजिस्टरों पर समुचित रूप से जानकारियाँ भर रही हैं या नहीं।
  • ग्राम पंचायत के सदस्यों द्वारा निभाई जाने वाली कुछ और भूमिकाएँ हैं – रद्द किए गए स्तरों तथा इसके कारणों की समुचित निगरानी करना, टीकाकरण से चुक गए बच्चों के संबंध में एएनएम आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता/आशा द्वारा की गई अनुवर्ती कार्रवाई को ध्यान में रखना, टीकाकरण अवयव की कमी पर नजर बनाए रखना आदि।
  • ग्राम पंचायत रोगी कल्याण समिति से चर्चा कर के टीकों की उपलब्धता, उनकी ढुलाई, भण्डारण और वितरण से संबंधित किसी समस्या का समाधान सुनिश्चित कर सकती है तथा यह भी देख सकती है कि आपातकालीन स्थितियां जैसे विद्युत आपूर्ति में व्यवधान में रोगी कल्याण समिति के पास पर्याप्त वैकल्पिक व्यवस्था विद्यमान है या नहींहैं
  • ग्राम पंचायत के सदस्य यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि अध्यापक किशोर युवतियों को टीटी और टीकाकरण प्रदान करने के लिए एएनएम/आशा के साथ सहयोग करें।
  • ग्राम पंचायत के सदस्य अपने क्षेत्र में संक्रामक रोगों के प्रकोप के संबंध में सचेत होने चाहिए तथा इस बात   की सूचना तत्काल ही संबंधित स्वास्थय कार्यकर्ताओं को देनी चाहिए।
  • ग्राम पंचायतों को यह देखना चाहिए कि ग्राम आंगनबाडियों में सुरक्षित पेयजल की नियमित आपूर्ति की जा रही है तथा पानी के फिल्टरों का समुचित रख – रखाव और उनकी समय पर साफ – सफाई की जा रही है। ग्राम पंचायत गाँव की समस्त बस्तियों को शामिल करते हुए एक ग्राम जल सुरक्षा योजना भी तैयार कर सकती है ग्राम पंचायत आंगनबाड़ी केंद्र, विद्यालयों और स्वास्थय संस्थाओं के नियमित दौरे करके देख सकती है कि क्या बच्चों को जल के सही उपयोग, व्यक्तिगत साफ- सफाई प्रक्रियाओं तथा स्वच्छता सुविधाओं के उचित प्रयोग के विषय में अच्छी आदतें सिखाई जा रही है।
  • ग्राम पंचायतें बिना शौचालय वाले घरों के आंकड़ों इक्कट्ठा करने में सहायता कर सकती है तथा उन्हें प्रासंगिक सरकारी स्कीमों जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, स्वच्छ भारत अभियान, तथा इन पहलुओं पर कार्य करने वाले गैर – सरकार संगठनों के साथ भी जोड़ सकती है। ग्राम पंचायतों को यह सुनिश्चित करना होगा कि ग्राम पंचायत क्षेत्र खुले में शौच मुक्त हो तथा वहां के ठोस एवं द्रव्य कूड़े – कर्कट  का सुरक्षित ढंग से निपटान किया जाए।
  • ग्राम पंचायत समस्त  संस्थाओं जिनमें विद्यालय, पीएचसी और आंगनबाड़ी आदि शामिल हैं, में जल की गुणवत्ता का परिक्षण करना के लिए पहल भी कर सकती है। ग्रामवासियों को निजी और सरकारी जल स्रोतों के वाटर स्कोर कार्ड रखने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • ग्राम पंचायत अपने ग्राम पंचायत क्षेत्र में खुली/बिना ढकी नालियों की पहचान करने तथा उन्हें ढकने के लिए तत्काल आवश्यक कार्रवाई करने और नियमित अंतरालों पर, विशेष रूप से मानसून के आगमन से पूर्व, उनकी साफ – सफाई कराने के लिए सिविल कार्य विभाग के पधिकारियों के साथ समन्वय कर सकती है।
  • ग्राम पंचायत गाँव में कूड़ा- कर्कट संग्रहण, उसकी छंटाई और निपटान की प्रणाली स्थापित करने की योजना भी बना सकती है। कूड़े को एकत्र करने के लिए घरों से एक छोटी राशि का भुगतान भी लिया जा सकता है। उस कार्य के लिए गैर – सरकारी संगठनों, नियमित संस्थाओं की सहायता भी प्राप्त की जा सकती है।

ऊपर लिखे कुछ कदम उठाकर ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में बच्चों की उत्तरजीविता की संभावनाओं को बढ़ा सकती है इससे बच्चों को विद्यालय के स्तर पर शिक्षा अर्जित करने के और अवसर प्राप्त होंगे।

हमने क्या सीखा ?

ü  बच्चों के जीवित रहने के लिए प्रयत्न उनके जन्म से पूर्व ही आरंभ हो जाते हैं अर्थात माता की गर्भावस्था के दौरान समुचित देखरेख।

ü  गर्भावस्था और जन्म का पंजीकरण बाल उत्तरजीविता के लिए महत्वपूर्व है।

ü  बच्चों की उत्तरजीविता सुनिश्चित करने के लिए सभी बच्चों को टीके लगाए जाने चाहिए।

ü  घर तथा आंगनबाड़ी में सुरक्षित पेयजल, बेहतर स्वच्छता और बच्चों की निजी साफ़ – सफाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।

ü  ग्राम पंचायत को जागरूकता फ़ैलाने, लोगों को प्रेरित – प्रोत्साहित करने, वितरण सेवाओं का पर्यवेक्षण और अनुवीक्षण करने तथा ग्राम स्तर और उससे ऊपर के स्तर पर मुख्य पधाधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित करने में एक निर्णायक भूमिका निभानी होगी ।

 

स्रोत: भारत सरकार, पंचायती राज मंत्रालय

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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