जलगांव ग्राम पंचायत के वृद्ध ग्रामवासियों ने ऐसा स्थल तैयार करने के लिए एक परियोजना सोची और ग्राम पंचायत के सम्पूर्ण सहयोग से उसे शुरू किया जहाँ वृद्धजन बैठ सकें, एक दूसरे से बात कर सकें और शांतिपूर्ण और आनंदमय जीवन जी सकें | ये वृद्धजन ऐसे स्थल पर मिल रहे थे जिसका इस्तेमाल ग्राम पंचायत द्वारा नहीं किया जा रहा था | इसलिए एक समान सोच वाले वृद्धजनों के इस समूह ने इस स्थल को विकसित करने के लिए अपने धन और अन्य संसाधनों का सामूहिक उपयोग किया |
यह प्रस्ताव ग्राम पंचायत के सामने रखा गया जिसने तत्काल इसे स्वीकार कर लिया | यह परियोजना भूमि भराई के साथ 2009-10 में शुरू हुई और इसे 2012 में पूरा किया गया | इस परियोजना पर कुल 1.5 लाख रु. की लागत आई जिसके लिए ग्राम पंचायत में लोगों द्वारा अपनी क्षमता के अनुसार योगदान किया गया | 70,000 रूपये का सबसे ज्यादा योगदान ग्राम पंचायत में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ने किया | इस परियोजना के पूरा होने के बाद, परियोजना का रखरखाव करने और आगे विकसित करने के लिए एक समिति गठित की गई | ग्राम पंचायत का युवा सदस्य इस समिति की सक्रिय सहायता करता है |
यह स्थल 5,000 वर्ग फुट के क्षेत्र में है और इसमें 30 20 फुट का एक शेड है और शेष क्षेत्र को प्रांगण तथा वृक्षारोपण के लिए खुला रखा गया है | वे अन्य सुविधाएँ जो पहले ही प्रदान की गई है:
वरिष्ठ नागरिकों के बैठने के एक स्थल के रूप में इस्तेमाल किए जाने के अलावा इस केंद्र का इस्तेमाल समुदाय के लिए योग कक्षाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम और अन्य विशेष समारोह आयोजित करने के लिए भी किया जा रहा है | प्रबंधन समिति ने भवनों में शौचालय गड्डों से निकलने वाली गंदी गैसों को निकालने के लिए लम्बा एग्जॉस्ट पाइप भी लगाया है | इस केंद्र को ‘राम्य जीवन –ज्येष्ठ नागरिक कटा’ का नाम दिया गया है और यह जलगांव ग्राम पंचायत का गौरवपूर्ण स्थल बन गया है |
अधिकांश ग्राम पंचायतों में एक या दो ऐसे कमरे होते है जिनमें रोशनी और हवा बहुत ही कम होती है और जो उसके कार्यालय, रिकार्ड कक्ष और बैठक कक्ष का काम करते है | अभी हाल तक रत्नागिरी जिले के दपोली ब्लॉक में जलगांव ग्राम पंचायत के कार्यालय का भी कुछ ऐसा ही हाल था | लेकिन अब यह बीते समय की बात है | आज ग्राम पंचायत सचिवालय के नाम से प्रसिद्ध पंचायत कार्यालय, ग्राम पंचायत में सबसे उत्कृष्ट भवनों में से एक है और निश्चित रूप से यह रत्नागिरी जिले में सबसे उत्कृष्ट ग्राम पंचायत कार्यालय है और शायद राज्य में सबसे उत्तम ग्राम पंचायत कार्यालय है | इस परिवर्तन की शुरुआत 3 वर्ष पहले उस समय हुई जब पूर्व सरपंच ने यह निर्णय किया कि ग्राम पंचायत के दक्ष कार्यक्रम और अच्छी छवि के लिए न केवल वर्तमान के लिए अपितु आगे की भावी आवश्यक्ताओं के लिए भी एक नए और बेहतर भवन की आवश्यकता है | इस प्रकार नए पंचायत कार्यालय के निर्माण की परियोजना शुरू हुई | यह एक तीन मंजिला भवन है, जिसका निर्मित क्षेत्र 72,000 वर्ग फुट है इस भवन में निम्नलिखित सुविधाएँ है:
कार्यालय यूनिट के भाग के रूप में ये सुविधाएँ प्रथम तल पर हैं | सबसे ऊपर का पूरा तल ग्राम सभा के बैठक हॉल के लिए इस्तेमाल किया जाता है | भवन के भूतल पर वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिए कमरे हैं | जिनका इस समय निम्नलिखित के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है/उन्हें उनके लिए रखा गया है:
भवन के पीछे खुला स्थल है जिसे बागीचे और पार्किंग के लिए विकसित किया जाएगा | इस परियोजना के वित्त पोषण के लिए पंचायत ने अपने ही संसाधनों से 51.71 लाख रूपये आबंटित किए और आंतरिक ऋण के रूप में जिला परिषद ग्राम निधि से 34.43 लाख रूपये प्राप्त किए | ग्राम सभा बैठक हॉल के निर्माण के लिए स्थानीय एमएलए निधि द्वारा और 11 लाख रूपये दिए गए |
पारम्परिक रूप से रत्नागिरी जिले में खरीफ की केवल एक फसल उगाई जाती थी | जबकि खरीफ फसल का क्षेत्रफल लगभग 1,00,000 हेक्टेयर था, रबी फसल का क्षेत्रफल केवल 9,000 हेक्टेयर था | इससे लगभग आधा वर्ष जोतने योग्य भूमि का कम उपयोग का पता चलता है | एक कारण यह था कि जिले में भूमि धारिता खण्ड रूप में है और बहुत छोटे प्लाटों पर रबी की फसल पर ज्यादा लागत आती है | साथ ही जिले में सब्जियों की खेती नगण्य थी और इसे सब्जियों की आपूर्तियों के लिए सीमावर्ती जिलों पर निर्भर रहना पड़ता था |
इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जिला परिषद ने सहकारिता कृषि के माध्यम से और स्व-सहायता समूह (एसएचजी) की सहायता से भूमि के कम उपयोग को रोकने के लिए एक विशेष टिम तैयार की | ऐसा छोटे प्लाटों के धारकों को रबी के मौसम में सहकारिता कृषि करने हेतु प्रेरित करके किया गया | इसके बाद जिला परिषद में कोकण विद्या पीठ से एसएचजी और सहकारी किसानों को लधु कीट उपलब्ध कराने का अनुरोध किया जिसमें तरबूज और खीरे आदि जैसे फलों और सब्जियों के लिए बीज हो और साथ ही परिषद ने उसे, जिले के विभिन्न भागों में विभिन्न सब्जियों की उपयुक्तता का अध्ययन करने के लिए भी कहा | इसके साथ-साथ जिला परिषद ने उनके बीजों को उन समूहों को बेचने के लिए निजी कम्पनियों से भी संपर्क किया | ड्रिप सिंचाई को भी प्रोत्साहित किया गया |
इस परियोजना से उत्साहवर्धक परिणाम मिले हैं जिससे रबी के क्षेत्र में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है | किसानों के हितों के देखते हुए इसमें उर्त्तोतर वृद्धि होने की संभावना है | इस प्रयोग से अन्य प्रमुख लाभ इस प्रकार है:
(क) प्रदर्शनों द्वारा समुदाय कृषि की संस्कृति पैदा करना |
(ख) रबी खेती में एसएचजी के माध्यम से महिलाओं और युवाओं को लगाना |
(ग) जल प्रबंधन (ड्रिप सिंचाई) द्वारा किसानों को रबी की फसल से अपनी आय में वृद्धि करने के तरीके बताना |
(घ) परिवार के आहार को सब्जियों से परिपूर्ण करना जिससे कुपोषण दूर होगा |
(ङ) विश्वविद्यालय और निजी कम्पनियों, दोनों से बीजों की व्यवस्था जिससे किसान, परिणामों की तुलना कर सकेंगे और उत्तम बिकल्प चुन सकेंगे |
स्रोत: भारत सरकार, पंचायती राज मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 7/25/2019
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