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पंचायत एवं महिलाएं

पंचायत एवं महिलाएं

परिचय

बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 में महिलाएं के लिए 50% आरक्षण तथा पंचायत चुनाव में लगभग 65% महिला प्रतिनिधियों की जीत से जो पंचायतों का स्वरुप बदला है, उसकी पृष्ठभूमि में अब मात्र यह बताना काफी नहीं होगा कि महिलाओं के सशक्तिकरण में पंचायतों की भूमिका क्या है, बल्कि अब खुद पंचायतों के सशक्तिकरण में महिलाओं की भूमिका क्या होने जा रही है- यह देखना भी बहुत रोचक होगा।

पंचायतों का यह नया एवं बदला हुआ स्वरुप जिला प्रशासन एवं राज्य शासन के लिए भी एक नई चुनौती है और एक नया अवसर भी। चुनौती इसलिए कि प्रशासन को किसी महिला बहुल लोक-संस्था के साथ कार्य करने का कोई अनुभव नहीं। और, अवसर इसलिए कि अब पंचायतों को प्रशासनोन्मुखी से लोकोन्मुखी बनाने में राज्य शासन को बहुत अधिक चेष्टा नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि, महिलाएं अपनी हर भूमिका को परिवार से जोड़कर देखना कभी नहीं भूलतीं।

जीवकोपार्जन और संतानोत्पत्ति की दोहरी भूमिकाओं के बीच खड़ी महिलाओं की माँ, बहन, बेटी, और पत्नी के रूप में पारिवारिक भूमिकाएं अच्छी तरह परिभाषित हैं जिन्हें वे अनन्तकाल से सफलतापूर्वक निभा रही है। इसके अतिरिक्त आज की  दुनिया में प्रायः हर क्षेत्र में हर स्तर पर उनहोंने अपनी प्रतिभा, मेहनत और लगन का लोहा मनवाया है। परन्तु, किसी गणतंत्र की संवैधानिक संस्था के बहुमत वाले वर्ग के रूप में अपनी भूमिका निभाने का मौका महिलाओं को पहली बार प्राप्त हुआ है। शायद दुनिया में पहली बार बिहार की महिलाओं को यह अवसर प्राप्त हुआ है। महिलाओं के लिए एक वर्ग के रूप में नया एक अनोखी एवं अचानक आई स्थिति है। इसमें चुनौतियाँ भी है और खतरे भी। बड़ी चुनौती यह है कि अपनी पारिवारिक दायित्वों को निभाने  के साथ-साथ  अब महिलाओं को एक वर्ग के रूप में अपनी सूझ-बुझ एवं निर्णय लेने की क्षमता दिखानी होगी। साथ ही सामुदायिक कल्याण के लिए अपनी कल्पनाशक्ति और  प्रतिबद्धता भी सिद्ध करनी होगी। इतनी बड़ी सामाजिक भूमिका निभाने में बहुत सी महिला प्रतिनिधियों का  साक्षर न होना थोड़ी मुशिकल तो पैदा करता है, पर रुकावट नहीं, क्योंकि जिस समझदारी एवं सूझ-बुझ की आवश्यकता इस नई भूमिका को निभाने में है उसमें शिक्षित होना एक सहूलियत तो है पर उसका अभाव अड़चन नहीं पैदा कर सकता ।

महिलाएं पंचायत में बदल सकती है स्थिति

पंचायत राज व्यवस्था के सशक्तिकरण में महिला प्रतिनिधिगण वर्ग के रूप में संगठित होकर विभिन्न स्तरों पर बहुत सारे प्रयास का स्थिति बदल सकती है, जैसे-

ग्राम सभा स्तर पर

  • स्वयं सहायता समूहों को ग्राम सभा की बैठक में अधिक से अधिक संख्या में भाग लेने को प्रेरित एवं उत्साहित का सकती है।
  • ग्राम सभा द्वारा गठित निगरानी समितियों में महिलाओं को भागीदारी बढ़ाई जा सकती है।
  • ग्राम सभा में कुछ मूलभूत प्रश्न उठाकर, जैसे, गरीबी रेखा से नीचे रह रहे व्यक्तियों का क्रमवार चयन, सड़क निर्माण योजना में स्थान का निर्धारण रोजगार योजना से जोड़कर स्थानीय स्तर पर निर्माण कार्य की परियोजना आदि में महिलाओं को प्राथमिकता दिलवा सकती हैं।
  • ग्राम पंचायत में महिलाओं के  लिए शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता सम्बन्धी पहल आदि पर चर्चा चला सकती हैं और निर्णायक भूमिका अदा कर सकती हैं।

ग्राम पंचायत स्तर पर

  • स्थानीय विकास की कार्य योजनाओं का निर्माण करने तथा उनमें महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उपाय कर सकती है।
  • महिला शौचालय के निर्माण एवं सामान्य स्वच्छता सम्बन्धी प्रयासों में तेजी लाई जा सकती है।
  • सभी बच्चों को स्कूल भेजने का प्रयास सफलीभूत हो सकता है।
  • सामाजिक- सामुदायिक कार्यों में स्त्री-पुरुष समानता के मूल्यों को स्थापित करने में मदद मिल सकती है।

ग्राम कचहरी स्तर पर

  • अधिक से अधिक मामलों का सौहार्दपूर्ण निपटारा करवाने में मदद कर सकती है।
  • महिलाओं की सखी-सहेली टोली बनाकर सामुदायिक सौहार्द बढ़ाने में मदद कर सकती हैं।
  • महिलाओं की निगरानी समिति बनाकर विकास कार्यों के अवरोधों को पहचान कर उन्हें दूर करने की पहल का सकती हैं।

समितियों के स्तर पर

  • ग्राम पंचायतों के परिवार के रूप में सामाजिक शांति समितियां बनाकर सौहार्दपूर्ण वातावरण सृजित कर सकती है।
  • ग्राम पंचायतें को अपना लेखा-जोखा, कागज-पत्तर ठीक ढंग से रखने में मदद कर सकती है।
  • ग्राम पंचायतों की आपदा प्रंबधन सम्बन्धी योजनाओं को स्वयं हाथ में लेकर आवश्यक प्रबंध करने के लिए सम्बन्धित व्यक्तियों/ विभागों पर दबाव डाल सकती हैं।

जिला परिषद स्तर पर

जिला परिषद् की बैठक को कभी प्रखंड और कभी ग्राम पंचायत स्तर पर आयोजित कर इसे केन्द्रित बनाने में मदद कर सकती है

  • ग्राम पंचायत-स्तर पर विकासात्मक कार्यों में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहन दे सकती हैं।

वास्तव में महिला प्रतिनिधि आपस में बैठकर अपने स्तर पर किये जा सकने वाले कार्यों को तीन सूची में बाँट सकती हैं। पुरुष प्रतिनिधियों की तुलना में महिला प्रतिनिधिगण अधिक आसानी से यह काम कर सकते हैं, क्योंकि परिवार चलाने के लिए महिलाएं यही काम सदियों से करती आयी हैं-

1 – ऐसे कार्य जिसे पंचायत स्तर पर बातचीत या जनसम्पर्क के आधार पर किया जा सकता है, जैसे भ्रूण-हत्या, बाल विवाह, नशाबन्दी, बच्चों को स्कूल भेजना, शिक्षकों का समय से उपस्थिति, श्रमिकों को संगठित करना आदि। इन कामों को करने में किसी धन एवं बाहरी मदद की आवश्यकता नहीं, केवल संस्थागत लगाव होना चाहिए।

२- ऐसे कार्य जिसे पंचायत स्तर पर स्थानीय संसाधन और सहयोग से किये जा सकते हैं, जैसे-स्कूल भवन का रख-रखाव, स्कूल में पेयजल एवं शौच की व्यवस्था, गंदे नाले का निकास एवं रख-रखाव, समय-समय पर महिलाओं एवं बच्चों के लिए स्वास्थ्य कैम्प, वृक्षारोपण, पर्यावरण का रख-रखाव, बाँध, पुलिया का रख-रखाव आदि।

3- ऐसे कार्य जिसके लिए अधिक संसाधन एवं बाहरी मदद की आवश्यकता पड़ेगी, जैसे- मत्स्य-पालन के  लिए पोखरा खुदवाना, गाँव को राज्य-मार्ग से जोड़ने वाली सड़कों का निर्माण, अभिवंचित वर्गों के लिए आवास की व्यवस्था, रोजगार की व्यवस्था, जीविकोपार्जन के लिए प्रशिक्षण, कुटीर-उद्योग का विकास आदि।

तीसरी सूची के बहुत सारे कार्यों को भी वर्तमान में चल रहे केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा पोषित योजनाओं से जोड़ कर कर चलाया जा सकता है।  इन सभी कार्यों को करते हुए महिला प्रतिनिधियों को यह हमेशा ध्यान में रखना होगा कि जिस प्रकार परिवार पिता के नाम से भले ही जाना जाता हो पर परिवार माँ की सोच और परिवार पिता के नाम से भले ही जाना जाता हो पर परिवार माँ को सोच और समझदारी पर ही निर्भर करता है उसी प्रकार इस बार की नवगठित पंचायत राज व्यवस्था में  महिलाओं की निर्णायक भागीदारी उसे माँ का संरक्षण दे सकती है। पंचायतों के सशक्तिकरण में महिलाओं का यह अभूतपूर्व योगदान होगा।

अगर हम घर चला सकते हैं तो पंचायत क्यों नहीं?

पुणे जिले के कमलाबाई काकड़े नाम की एक महिला ने यह अपनी सहयोगी महिलाओं से सवाल पूछा था। यह महिला 1963 से 1968 तक की अवधि के लिए सरपंच चुनी गयी थी। पहली बार पुणे जिले के बारामती तालुका में निम्बुट नामक गाँव में सर्व-महिला पंचायत बनी थी। कई महिलाएं चुनाव लड़ने से डर रही थीं लेकिन क्म्लाबार ने उनकी हिम्मत दिलाई। “ “डरना क्यों”? उनहोंने पूछा, “अगर तुम घर चला सकती हो तो पंचायत क्यों नहीं चला सकती? यह प्रश्न आज हर स्त्री पुरुष को कुछ सोचने पर मजबूर करता है। पांच साल के अंदर निम्बुट की सर्व-महिला पंचायत ने ग्राम पंचायत के कार्यालय भवन का निर्माण किया, स्कूल की मरम्मत की और गान के लिए विद्युत आपूर्ति स्कीम मंजूर की। उन्हें जीप में बैठकर तालुका मुख्यालय में बैठक में भाग लेने का अनुभव भी प्राप्त हुआ और आम सभा में कुर्सी पर बैठकर अपनी राय व्यक्त करने का भी अनुभव मिला। कुछ महिलाओं को औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं थी लेकिन घर के बाहर कदम रखने के फलस्वरूप उनको जो आत्मविश्वास प्राप्त हुआ। उससे दूसरी महिलाओं का मार्गदर्शन हुआ जो दूसरे इलाकों में ग्राम पंचायतों चुनाओं में भाग लेना चाहती थीं।

महिलाओं के सशक्तिकरण में पंचायत की भूमिका तीन रूपों में की हो सकती है- एक लक्षित वर्ग के रूप में , एक वंचित वर्ग के महिलाओं को तीन तरह से सशक्त  कर सकती है

1-      एक लक्षित वर्ग के रूप में महिलाओं के लिए पंचायत विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में एवं अपनी योजनाओं में उन्हें प्राथमिकता देकर उनके सशक्तिकरण में सहायक हो सकती है। इसके अलावा, महिलाओं के लिए विशेष रूप से बनी योजनाओं में अधिक्स अधिक महिलाओं को सहभागी बना सकती है, जैसे- राज्य महिला विकास निगम द्वारा चलाई जा रही निम्नलिखित योजनाओं में उन्हें शामिल करके

-          स्वशक्ति

-          स्वयंसिद्ध

-          स्वावलंबन

-          दीप

ये कार्यक्रम स्वयं सहायता समूह निर्माण द्वारा महिलाओं को संगठित करते हैं एवं बचत को प्रोत्साहित करते हैं। तथा उन्हें प्रशिक्षण के माध्यम से लघु उद्यमी के रूप में भी विकसित होने में सहायता प्रदान करते हैं। इस तरह की योजनाओं के माध्यम से पंचायत के अंदर महिलाओं में एकजुटता लाई जा सकती है एवं उनका सशक्तिकरण किया जा सकता है।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत चलाई जाने वाली योजनाओं में उन्हें शामिल करके, जैसे –

-          जननी एवं बाल सुरक्षा योजना

इसके अतर्गत प्रसवपूर्व महिलाओं की देखभाल, संस्थागत प्रसव, प्रसव पश्चात देखभाल तथा 9 महीने तक बच्चों का नियमित टीकाकरण शामिल है।

यह योजना जिला स्वास्थ्य समितियों  द्वारा चलाई जाती है। इसके अतर्गत गरीबी रेखा के नीचे आने वाली माताओं को प्रसव के लिए अस्पाताल पहुँचाने से लेकर प्रसव पश्चात दवाएं इत्यादि आवश्यक वस्तु खरीदने के लिए आर्थिक मदद का भी प्रावधान है।

महिला स्वाधार योजना

केंद्र सरकार द्वारा सम्पोषित इस योजना के अंतर्गत निराश्रित, परित्यक्ता, विधवा एवं प्रवासी महिलाओं को प्राथमिकता के आधार पर शामिल किया गया है। इसके अंतर्गत सामाजिक एवं आर्थिक सहयोग की व्यवस्था इस प्रकार है:

  1. पुनर्वास के लिए जमीन क्रय हेतु वितीय सहायता
  2. भवन निर्माण हेतु सहायता
  3. भोजन, आश्रय, वस्त्र आदि के लिए सहायता

समेकित बाल विकास सेवा कार्यक्रम

यह कार्यक्रम जन्म से लेकर 6 वर्ष तक की उम्र के बच्चों, गर्भवती/शिशुवती महिलाओं और किशोरी बालिकाओं के सम्पूर्ण विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से चलाया जा रहा है।

राज राजेश्वी महिला कल्याण बीमा  योजना

इस योजना के अंतर्गत 10 से 75 वर्ष के आयु वाली महिलाओं के बीमा का प्रावधान है। इसके तहत घरेलू गृहिणी छात्रायें, घरेलू श्रमिक एवं अकुशल महिला मजदूरों को लाभाविन्त करना है।

इसके तहत व्यक्तिगत एवं समूह स्तर पर महिलाएं बीमा का लाभ उठा सकती है। महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों को इसका लाभ अवश्य उठाना चाहिए।

भाग्यश्री बाल कल्याण पॉलिसी

यह पॉलिसी 18 वर्ष की बालिकाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना के रूप में लागू की गई है। इस योजना के अंतर्गत माता/पिता की मृत्यु के पश्चात बालिका को 17 वर्ष की उम्र तक एक निर्धारित राशि देने की व्यवस्था है।

एक वंचित वर्ग के रूप में महिलाओं के लिए पंचायत निम्नलिखित के सन्दर्भ में पहल कर सकती है-

-          शिक्षा की व्यवस्था

-          स्वास्थ्य की देख-रेख

-          जीविकोपार्जन के समान-अवसर

-          स्वयं सहायता समूह निर्माण एवं सशक्तिकरण

-          रोजगार गारंटी योजना के के अंतर्गत जीविकोपार्जन के लिए वैसी महिलाएं जिनके पति बाहर गये होने, उनके लिए प्राथमिकता के आधार पर काम।

-          निर्माण योजना के तहत काम करने के समान अवसर

एक मानवीय समूह के रूप में महिलाओं को सशक्त करने के लिए पंचायत

-          समान प्रतिष्ठा

-          समान व्यवहार

-          समान अवसर तथा

-          समान ध्यान

देकर उन्हें व्यवहार में बराबरी का दर्जा दिला सकती है। पंचायतों को अपनी सोच, व्यवहार एवं कर्म के स्तर पर, महिला सशक्तिकरण के लिए ये सभी पहल करना परम आवश्यक है।

जब हम पंचायतों तथा अन्य संस्थाओं को सशक्त एवं सफल बनाने में महिलाओं की भूमिका निर्धारित करने की बात करते हैं तो दोनों ही स्थितियों में हम देश की 48.26% और प्रदेश की 47.93% आबादी की बात कर रहे होते हैं।

यह अभूतपूर्व स्थिति है कि पंचायत राज के तीनों स्तर की चारों संस्थाओं में जहाँ लगभग 65% महिलाओं प्रतिनिधि हों वहाँ तो पंचायत को करनी है होगी। इस स्थिति में तो वास्तव में महिला सशक्तिकरण से पंचायतों का सशक्तिकरण स्वमेव होता रहेगा। पंचायत में  महिलाओं का ही बहुमत वाला समूह है। और महिलाएं जब समूह में होती हैं तो वे बड़ी से बड़ी कठिनाइयों एवं चुनौतियों का सामना कर लेती हैं। इसके अलावा, चाहे स्त्री हों यह पुरुष, सभी पंचायत सदस्य एक ही सूत्र से बंधे हैं। वह सूत्र हैं सामाजिक समानता, स्थानीय विकास एवं स्थानीय स्व-शासन।

पुरुष वर्ग विशेषकर निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के परिवार के पुरुष, सदस्यों को महिलाओं की क्षमतावृद्धि में सहायक की भूमिका निभाने की जरूरत है। यह समय मांग है। इसमें महिलाओं के आरक्षण की सार्थकता भी निहित है।

वैसे भी महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए समय-समय पर केंद्र सरकार की ओर से अबतक पन्द्रह अधिनियम लागू किये गये हैं। इनकी छाया में महिलाएं मुक्त होकर अपने उत्तरदायित्वों को निभा सकती है। आवश्यकता है तो उनके साहस एवं व्यक्तिगत पहल की, जिसके लिए उन्हें सशक्त तो किया जा सकता है पर कदम तो उन्हें ही उठाना पड़ेगा। वे पन्द्रह अधिनियम इस प्रकार है:

  1. महिला घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम, २००५
  2. हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम,१८५६
  3. हिन्दू विधवा पुनर्विवाह (निरसन), अधिनियम,१९८३
  4. हिन्दू महिला सम्पत्ति अधिकार अधिनियम,१९३७
  5. चिकित्सकीय गर्भ समापन, अधिनियम,१९८३
  6. पूर्व गर्भधारण एवं पूर्व-प्रसव नैदारिक तकनीक (लिंग-चुनाव निषेध) अधिनियम , १९९४
  7. राष्ट्रीय महिला आयोग, १९९०
  8. मातृत्व लाभ अधिनियम,१९६१
  9. मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) अधिनियम, १९८६
  10. मुस्लिम विवाह विघटन  अधिनियम,१९३९
  11. परिवार न्यायालय अधिनियम,१९८४
  12. दहेज़ निषेध अधिनियम,१९६१
  13. अनैतिक व्यापार  (निवारण) अधिनियम,१९५६
  14. महिला अशोभनीय प्रतिनिधित्व (निषेध, अधिनियम,१९८६
  15. सती प्रथा (निवारण) अधिनियम,१९८७

पंचायत के स्तर पर भी इन अधिनियमों के विषय में समुचित जानकारी महिलाओं को मिलनी चाहिए। इसके लिए भी पंचायत को जरुरी उपाय करने चाहिए।

एक श्रमिक विधवा मुखिया की निर्वाचन के बाद की दिनचर्या की एक झलक (उदाहरण)

सुबह 5 बजे उठाना एवं 5. 30 बजे तक

क्रियाक्रम से निवृत होकर बच्चों के कलेवा लेकर काम पर जाना।

दोपहर 1 बजे तक काम से वापस आना

बच्चों को स्कूल से वापस

दोपहर २ बजे तक

खाना-पीना, तैयार होकर पंचायत भवन जाना

दोपहर २ बजे से 4 बजे तक

पंचायत प्रतिनिधियों के साथ पंचायत एवं गाँव के विभिन्न मुद्दों पर बातचीत

अपराह्ण 3 बजे से 4 बजे तक

पंचायत सचिव के साथ परामर्श बैठक। जरुरी कागजों के विषय में जानकारी। ग्राम-सभा की बैठक बुलाने की तारीख पक्की करना एवं बही-खाते के विषय में बातचीत। ग्राम पंचायत द्वारा पारित खर्च की समीक्षा करना। ग्राम पंचायत द्वारा पारित खर्च की समीक्षा करना।

4 बजे शाम से 5 बजे तक

महिलाओं के साथ बातचीत

5 बजे शाम से 6 बजे तक

पंचायत क्षेत्र में मुहल्ले विशेष के लोगों से जकार मिलना तथा हाल-चाल पूछने के दौरान अगर कोई दिक्कत हो तो उसके विषय में जानकारी लेना। विकास कायों में लोगों के सहयोग की बात करना।

6 बजे शाम से 7.30 बजे तक

बच्चों के साथ-बातचीत तथा उनके स्कूल के विषय में बातें करना।

7.30 बजे से 8 बजे तक

मिलने आये लोगों से मिलना तथा हाल-चाल पूछना एवं मिलने के कारण के विषय में जानकारी प्राप्त करना।

8 बजे से सोने तक

बच्चों के साथ भोजन करने के बाद हंसते-बोलते सो जाना।

नोट:- आवश्यकतानुसार दिनचर्या में परिवर्तन की गुंजाइश रहेगी।

 

स्त्रोत: पंचायती राज विभाग, बिहार सरकार

अंतिम बार संशोधित : 9/29/2019



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