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पंचायत व्यवस्था में खाद-पानी

ग्राम सभा का सफल आयोजन

पंचायती राज व्यवस्था की बुनियादी इकाई है ग्रामसभा।यानी गांव की सभा। इसमें गांव के सभी लोग अपने गांव की समस्याओं का हल ढूंढ़ते हैं और विकास के रास्ते तलाशते हैं। नियमानुसार हर साल ग्राम सभा की कम से कम चार बैठक जरूरी हैं। झारखंड में पंचायती राजव्यवस्था नयी होने के कारण ग्राम सभा का आयोजन एक चुनौती है।रांची जिले के टाटी सिल्वे प्रखंड की टाटी पूर्वी पंचायत की मुखिया किरण पहान के प्रयास से हर महीने ग्राम सभा का सफल आयोजन हो रहा है।श्री अशोक भगत के नेतृत्व में विकास भारती नामक स्वयंसेवी संस्था की प्रेरणा से यहसंभव हो पाया है। विकास भारती की ओर से पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने में जुटे निखिलेश जी के अनुसार टाटी सिल्वे जैसी पंचायतों में ग्राम सभा के सफल आयोजन को हम मॉडल के रूप में अन्य पंचायतों को भी दिखाना चाहते हैं ताकि  हर जगह ग्राम सभा का बखूबी आयोजन हो सके।हर माह 26 तारीख को टाटी पूर्वी की ग्राम सभा में गांव की महिलाएं और पुरूष काफी उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। मुखिया किरण पहान की पहल पर दो-तीन दिन पहले ही एक नोटिस छपवा कर गांव के प्रमुख स्थानों पर चिपका दी जाती है ताकि सबको मालूम हो। 26 तारीख की सुबह लगभग दस बजे स्थानीय तालाब के समीप बने पंचायत कार्यालय में गांव के लोग जुट जाते हैं। ग्राम पंचायत का नया भवन अभी निर्माणाधीन होने के कारण मात्र एक कमरे के पुराने कार्यालय के बाहर ही ग्रामसभा होती है।

चर्चा के विषय

ग्राम सभा में ग्राम प्रधान अर्जुन पहान, पंचायत सेवक सनिका मुंडा तथा जनसेवक अनिल शर्मा भी मौजूद रहते हैं। बैठक के दौरान ग्रामीणों को विभिन्न योजनाओं से संबंधित नियमों की जानकारी दी जाती है।  ग्रामीणों के बीच एक-एक करके हर प्रकार की समस्या पर विस्तार से चर्चा होती है।मनरेगा, इंदिरा आवास और जन वितरण प्रणाली, गांव के तालाब, नालियों, सड़कों, चापाकल की मरम्मत वगैरह पर भी चर्चा होती है। इनमें आ रही कठिनाई पर भी खुलकर बात होती है। मुखिया किरण पाहन के नेतृत्व में गांव की महिलाएं ग्रामसभा की कार्यवाही में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। हालांकि कई बार पंचायत सेवक और जनसेवक तथा कुछ  अन्य पुरूष ग्रामीण बैठक में ज्यादा हावी होने की कोशिश करते हैं। इसके बावजूद गांव की महिलाएं बीच-बीच में अपनी पहल करके दावे के साथ अपनी बात रखते हुए यह एहसास दिलाने की लगातार कोशिश करती हैं कि उन्हें दरकिनार करना अब संभव नहीं है। उदाहरण के लिए 26 अगस्त 2012 को ग्रामसभा की बैठक में एक महिला ने गांव की एक सड़क में पुल के समीप बड़े-से गड्‌ढे़ के कारण ग्रामीणों के सामने आ रही परेशानी का हल निकालने पर जोर दिया।एक अन्य महिला ने सड़क पर जलजमाव के कारण परेशानी की बात कही। इस दौरान विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, विकलांगता पेंशन जैसे मामलों पर भी बात हुई।

महिलाओं से जुड़े विषयों पर भी चर्चा

महिलाओं ने गांव में बन रहे इंदिरा आवासों की स्थिति के बारे में भी बात निकाली और उनके आबंटन में ग्राम सभा की भूमिका तथा प्रतीक्षा-सूची जारी करने का काम नियमानुसार करने पर जोर डाला। महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को मजबूत करके उनके माध्यम से स्वरोजगार की संभावनाओं पर भी विस्तार से चर्चा हुई। कुछ महिलाओं ने इस बात पर अफसोस जताया कि स्वयं सहायता समूहों के लिए बीपीएल श्रेणी की शर्त क्यों रख दी गयी है जबकि बीपीएल की सूची में सारे गरीबों के नाम अब तक नहीं जोड़े गये हैं। साथ ही ऐसी महिलाओं की बड़ी संखया है जिनके नाम बीपीएल सूची में भले ही नहों लेकिन जो निम्न आर्थिक श्रेणी में हैं और जिन्हें अवसर मिले तो स्वरोजगार के माध्यम से अपने परिवार को मजबूत कर सकती हैं। ग्रामीणों के लिए ग्राम सभा में आकर समस्याओं पर चर्चा करना और विकास कार्यों के लिए प्रस्ताव तैयार करना काफी उत्साहजनक काम है। लेकिन इनके अमल में अब भी समस्या होने के कारण कई बार उन्हें मायूसी भी होती है।मुखिया किरण पहान के अनुसार हम प्रस्ताव पारित तो जरूर करते हैं, लेकिन उन्हें जमीन पर उतारना संभव नहीं हो पा रहा है। अभी भी प्रखंड और जिले तक पहुंचकर हमारे प्रस्ताव बदल जाते हैं। इसके कारण हम जो कुछ भी पंचायती राज के बारे में पढ़ते-सुनते हैं, सब उल्टा दिखने लगता है।

मनरेगा की योजना को लेकर भी नये सिरे से सोचने की जरूरत

किरण पहान के अनुसार मनरेगा की योजना को लेकर भी नये सिरे से सोचने की जरूरत है। शहरी एवं औद्योगिक इलाके से सटा गांव होने के  कारण यहां के लोगों को मनरेगा में मात्र 120 रुपये पर दिन भर हाड़-तोड़ काम करने में दिलचस्पी नहीं। लिहाजा, मनरेगा योजना के तहत उनके इलाके में काम का क्या तरीका हो, इस पर नये तरीके से सोचने की जरूरत महसूस करती हैं किरण पहान। उन्हें मालूम है कि अभी झारखंड में पंचायत राज व्यवस्था नये सिरे से अपनी नींव जमाने की कोशिश कर रही है और ऐसी ग्राम सभाएं इसमें खाद-पानी का काम करेंगी। विकास भारती जैसी संस्थाओं का मकसद भी यही है कि किसी भी तरह एक शुरूआत हो और दिखे।

स्त्रोत : पंचायत का पगडंडी,राज्य ग्रामीण विकास संस्थान,झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर, रांची.

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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