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राष्ट्रीय वृद्धजन नीति

पृष्ठभूमि

यह नीति मानती है कि बुजुर्गों के हित में एक निश्चित कार्यक्रम की आवश्यकता है। इसलिए हमें सुनिश्चत करना है कि बुजुर्गों के अधिकारों का हनन नहीं हो। उन्हें विकास के फायदों में उचित अवसर एवं बराबर का हिस्सा मिले। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के प्रति इन कार्यक्रमों एवं प्रशासनिक गतिविधियों का अधिक संवेदनशील होना जरूरी है। वृद्ध महिलाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होगी ताकि वे लिंग वैधव्य एवं आयु के आधार पर तिहरा तिरस्कार एवं भेदभाव न झेले।

जनगणना सूचांक

जनगणना आकलन में बुजुर्ग लोगों की संख्या वृद्धि एक सर्वाधिक परिघटना है। भारत भी इससे अछूता नहीं है।  लोग दीर्घायु हो रहे हैं। सन 1951-60 के बीच  की जीवन- प्रत्याशा जन्म के समय 42 वर्ष थी जो सन 2011-16 के बीच यह और बढ़कर 67 वर्ष तक पहुँच जाएगी। इस प्रकार 1986- 90 से 2011 – 16 की अवधि के पच्चीस वर्षों में देश की कुल आबादी में बुजुर्गों की जीवन प्रत्याशा की गणना में  लगभग 9 वर्षों में देश की कूल आबादी ने बुजुर्ग की जीवन प्रत्याशा की गणना में लगभग 9 वर्ष की वृद्धि होने की संभावना है जब यह 58 वर्ष से बढ़कर 67 वर्ष जो जाएगी। महिलाओं के लिए जीवन प्रत्याशा अधिक बढ़ी है। समान अवधि में ही यह बढ़ोतरी करीब 11 वर्ष की है महिलाओं के लिए यह जीवन प्रत्याशा सन 1986-90 के 58 वर्षों से बढ़कर सन 2011- 16 में 69 वर्ष होने की संभावना है। 60 वर्ष के आयु वर्ग में भी जीवन – प्रत्याशा में निरंतर वृद्धि परिलक्षित है और उपरोक्त प्रवृति के अनुरूप महिलाओं में पुरूषों के मुकाबले यह कुछ अधिक है। 1989 – 93 के वर्षों में यह वृद्धि पुरूषों के लिए 15 वर्ष और महिलाओं के लिए 16 वर्ष थी।

जीवन प्रत्याशा में सुधार के परिणामस्वरुप 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संस्था में वृद्धि हुई है। सन 1901 में भारत में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोग मात्र 1.2 करोड़ थे। यह आबादी बढ़कर सन 1951 में 2 करोड़ तथा 1991 में 5.7 करोड़ तक पहुँच गई। टेक्नीकल ग्रुप ऑन पॉपुलेशन प्रोजेक्शन (1996) द्वारा सन 1996 – 2016 की अवधि के लिए व्यक्त की नयी संभावित जनसंख्या सन 2013 तक 10 करोड़ का आंकड़ा छु लेगी। सन 2016 के बाद के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किये गए आंकलन (संशोधन 1996) इंगित करते हैं कि भारत में सन 2030 में 60 वर्ष में अधिक उम्र के व्यक्ति 19.8 करोड़ और सन 2050 में 32.6 करोड़ होंगे।  स्पष्टता कूल आबादी में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के प्रतिशत में निरंतर बढ़ोतरी हुई है। सन 1901 को वह 5.1 प्रतिशत थी जो सन 1991 में बढ़कर हुई है। सन 2016 में इसके 8.9 प्रतिशत तक पहुँच जाने की संभावना है। संयुक्त राष्ट्र संघ (संशोधन, 1996) द्वारा सन 2016 के बाद के लिए दिए गए आंकड़ों के अनुसार सन 2050 तक भारत की आबादी का 21 प्रतिशत 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के होगा।

उपरोक्त आंकड़ों में यह वृद्धि जनगणना के विस्तृत आधार के कारण वास्तविक जनसंख्या वृद्धि बिलकुल स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आ जाएगी। सन 2001- 11 के दशक में 60 वर्ष से अधिक के आयु वर्ग में 2.5 करोड़ लोगों की बढ़ोतरी होने की संभावना है। यह बढ़ोतरी सन 1961 में 60+ के लोगों की कूल संख्या के बराबर होगी। पुन: सन 1991- 2016  के बीच पच्चीस वर्षो में इस आयु वर्ग में 5.54 करोड़ लोगों की वृद्धि संभावित है जो सन 1991 में इसी आयु वर्ग के लोगों की कूल आबादी के करीब – करीब संभावित है जो सन 1991 में इसी आयु वर्ग के लोगों की कूल आबादी के करीब करीब बराबर है। दुसरे शब्दों में सन 1991 से अगले पच्चीस वर्षो की अवधि में 60 वर्ष से अधिक आयु के संख्या करीब दोगुनी हो जाएगी।

सन 1991 में कुल आबादी का 63 प्रतिशत (अर्थात 3.6 करोड़) 60-69 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों का था। इन लोगों को अक्सर ‘अपेक्षाकृत कम वृद्ध’ या वृद्ध का दर्जा दिया गया। 80 वर्ष एवं ऊपर के 11 प्रतिशत (अर्थात 60 लाख) वृद्ध थे जिन्हें ‘वयोवृद्ध’ या ‘अतिवृद्ध’ की श्रेणी में रखा गया। सन 2016 में इन आयु वर्गों में लोगों का प्रतिशत समान ही होगा परंतु उनकी संख्या क्रमश: 6.9 करोड़ एवं 1.1 करोड़ संभावित है। इस प्रकार हम उम्मीद कर सकते हैं कि 60- 69 आयु वर्ग की आबादी का 60% भाग एक सीमा तक शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ होगा। वे गंभीर विकलांगता से बचे हुए होंगे 70-79 आयु वर्ग आबादी का करीब एक तिहाई सक्रिय जीवन यापन के लिए समर्थ होगा। ये आंकड़े वस्तुत: हमारे देश की व्यापक मानव संसाधन निधि के परिचायक है।

भारत में 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले वर्ग में पुरूषों की संख्या महिलाओं से अधिक उम्र के पुरूषों की संख्या 2.9 करोड़ थी जबकि महिलाओं की 2.7 करोड़ थी। हमारे आंकलन के अनुसार सन 2016 तक यही स्थिति बनी रहेगी। उस समय 60+ वाले वृद्ध पुरूषों की संख्या अनुमानता 5.7 करोड़ रहेगी जबकि ऐसी वृद्ध महिलाओं की संख्या 5.6 करोड़।

60 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में उसी वर्ग के पुरूषों की अपेक्षा वैधव्य की घटना कहीं अधिक है। इसका स्पष्ट कारण है- महिलाओं का अपने से कई वर्ष बड़े पुरूषों के साथ विवाह और फिर पति के मृत्यु के बाद उनका पुनर्विवाह नहीं होना। वे अधिक दिनों तक जीवित भी रहती है। सन 1991 में 1.48 करोड़ विधवाएँ 60 वर्ष से अधिक आयु की थी, परंतु मात्र 45 लाख विधुर (पुरूष) थे। अर्थात विधुरों की तुलना में विधवाओं की संख्या कहीं अधिक थी।

प्रभाव

वृद्ध व्यक्तियों की बढ़ती जनसंख्या का प्रभाव वैश्विक एवं घरेलू दोनों स्तरों पर है। यह विशाल संख्या दो बातों की ओर इंगित करती है – मानव संसाधन विधि की विशालता एवं उसे सामाजिक सुरक्षा एवं अन्य लाभ देने के लिए किए जाने वाले प्रयासों की आवश्यकता।

जनगणना परिवर्तन  के साथ सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन होते है। ये परिवर्तन कुछ क्षेत्र में लाभदायक होते है और कुछ अन्य से चिंताजनक।

आने वाले दशकों में 60 वर्ष से अधिक उम्र लोगों की तादाद बढ़ेगी जो मध्य एवं ऊपरी आय वर्ग में रहेंगे। अत: उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी एवं वे उस तरफ से कुछ सुरक्षित रहेंगे। उनकी शैक्षिणिक योग्यता एवं जानकारी बेहतर स्तरीय होगी। वे अपने 60 के दशक में ही नहीं अपितु 70 के दशक के पूर्वाद्ध में भी सक्रिय जीवन यापन कर सकेंगे। अपनी उत्साहपूर्ण मनोदशा के कारण ने अधिक सक्रिय रचनात्मक एवं संतुष्ट जीवन जीने के अवसर ढूढेंगे।

वृद्धजनों की दशा में कुछ चिंतनीय पहलू भी उभरेंगे। दरअसल उनके लक्षण स्पष्ट हो चुके है। वृद्धजनों की जीवन शैली में दबाव एवं दरार बढ़ेंगे। हालाँकि आज भी भारत में पारिवारिक बंधन निर्विवाद रूप से अधिक मजबूत है और अधिकांश ऐसे लोग अपने बेटों के साथ रहते हैं या फिर उनके आसरे, और फिर कामकाजी दंपतियों के लिए तो वृद्ध माता-पिता की उपस्थित ने केवल भावनात्मक बंधन है बल्कि एक आवश्यकता भी है। ये वृद्धजन घर संभालने एवं बच्चों की देखभाल में बहुत सहायक होते हैं। फिर भी कई कारणों से वृद्धजनोंकी एक बड़ी तादाद का जीवन असुरक्षित हो गया है। और अब वे यह मानकर निश्चित नहीं हो सकते है वृद्धावस्था में आवश्यकता पड़ने पर इनके बच्चे उनके काम आएँगे। इस सोच के पीछे खासकर उनके जीवन का लंबापन है। परिणाम निर्भरता की अवधि बढ़ती है और तदनुसार बढ़ता है स्वास्थ्य एवं अन्य आवश्यकताओं पर होने वाला खर्च।

औद्योगिकीकरण शहरीकरण शिक्षा एवं विकसित देशों की जीवन शैली की जानकारी हमारे मूल्यों एवं जीवन को प्रभावित करती है। आज बच्चों के लालन-पालन शिक्षा एवं उनकी मांगों पर अत्यधिक खर्च होता है। परिणामत लोग अपनी आय में माता – पिता के देखभाल का हिस्सा काटने के मजबूर है। शहरी इलाकों में आवास में जगह की कमी एवं उच्च किरायों के कारण प्रवासी जन अपने माता-पिता को उनके मूल निवास स्थानों पर ही रहने देते है।

महिलाओं की बदलती भूमिका एवं आकंक्षा तथा उनकी परिकल्पना में ‘अपनी जगह’ एंव निजीपन की भावना के परिणामस्वरूप वृद्धजनों की देखभाल के समय में कटौती हो जाती है। महिलाएँ अब वृद्धजनों की देखरेख का दायित्व अधिक दिनों तक बोझ स्वरुप नहीं ढोना चाहती पर ये बाहर किए जाने वाले रोजगार एवं जीविका संबंधी उनकी महत्वकांक्षाओं का खामियाजा भी वृद्धजनों को भुगतना पड़ता है। इतना ही नहीं, छोटे परिवार का नारा बुलंद करने वालों की बढ़ती तादाद से सेवा करने वालों की संख्या में बहुत कमी आयी है। इसकी ख़ास वजह यह है कि निरंतर बढ़ते ऐसे परिवारों में लड़कियों भी पूरी तरह व्यस्त है। वे या तो अपने शैक्षणिक गतिविधियों में लगी हैं या फिर रोजगार के विकास में एकांकी जीवन बिताने वालों के लिए (खासकर महिलाओं के लिए) वृद्धावस्था का जीवन अधिक दुष्कर हो जाता है। बहुत कम ऐसे लोग है जो उनका भी ध्यान रखते हैं जिनसे उनका कोई वंशानुगत संबंध नहीं होता। ऐसी ही दशा विधवाओं की भी है। उनमें अधिकांश के पास आय का व्यक्तिगत स्रोत नहीं होता है। उनकी कोई संपति नहीं होती और वे पूर्णतया किसी पर आश्रित होती है।

प्रावधान

भारत के संविधान में वृद्धजनों के कल्याण का प्रावधान है। राज्य के नीति निर्देशित तत्त्व (अनूच्छेद 41) के अनुसार राज्य अपनी आर्थिक क्षमता एवं विकास को ध्यान में रखते हुए वृद्धजनों हेतु सरकारी सहायता का अधिकार सुनिश्चित करेंगे। इसके अतिरिक्त अन्य प्रावधान भी है जो राज्य को निर्देशित करते है कि वह अपने नागरिकों के जीवन में गुणात्मक सुधार लाएं। हमारे संविधान में समानता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। इसके प्रावधान वृद्धों के लिए भी प्रभावी है और सामाजिक सुरक्षा का दायित्व राज्य एवं केंद्र सरकारों पर सामान रूप से है।

विगत दो दशकों में वृद्धजनों की दशा पर जनांकिक सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन के प्रभाव जैसे मुद्दें पर गहन विचार विमर्श एवं बाद - विवाद हुए है। संयुक्त राष्ट्र संघ विभिन्न देशों को समय –समय पर वृद्धजनों के लिए नीति बनाकर तदनुसार कार्यक्रम चलाने के लिए उत्साहित करता रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सन 1991 में वृद्धजनों के लिए संयुक्त राष्ट्र की नीति अपनायी गई। 1992 में महासभा द्वारा वृधावस्था पर एक घोषणा पत्र एवं सन 2001 के लिए वृद्धावस्था पर वैश्विक लक्ष्य जैसे कार्यक्रम बनाए गए। इसके अलावा अन्य कार्यक्रम बनाए गए। इसके अलावा अन्य कार्यक्रम भी निर्धारित किए गए।

वरिष्ठ नागरिकों के संबंध में राज्य नीति का विवरण जैसी मांग कई वर्षों से उठायी जा रही है इसका उद्देश्य है ऐसे नागरिकों को उनकी पहचान बनाए रखने में मदद करना और राष्ट्रीय परिदृश्य में उनकी स्थिति बरकरार रखना। विभिन्न मंचो पर वृद्धावस्था के मुददे उठाए गए जहाँ संबंधित नीतियों के विवरण की आवश्यकता पर बल दिया गया। इस विविरण में नीतिगत बातों का आधारभूत सिद्धांत दिशा एवं आवश्यकता का खुलासा होगा। सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों की अपिक्षित भूमिका तय होगी। इस प्रकार मानवोचित ढंग से एकीकृत समाज के निर्माण में विभिन्न कार्यक्रम एवं उनका संचालन करने वाले संस्थानों का दायित्व निश्चित किया जाएगा।

राष्ट्रीय नीति का विवरण

राष्ट्रीय नीति वृद्धजनों को आश्वासन देती है कि उनकी चिंताएं राष्ट्र की समस्या है। उन्हें असुरक्षित जिन्दगी नहीं बितानी होगी। वे हाशिये पर या तिरस्कृत नहीं रहेंगे। राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य वृद्धजनों का कल्याण है। इसका उद्देश्य है समाज में इन लोगों की बैध स्थिति को मजबूत बनाना और जिन्दगी के अंतिम पड़ाव पर इन की जिन्दगी को उद्देश्यपूर्ण, सम्मानजनक एवं शांतिपूर्ण बनाना।

इस नीति की परिकल्पना में राज्य वृद्धजनों की आर्थिक स्वास्थय की देर रेख आवास, कल्याण एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूर्ण सहयोग करेगा। जिन्हें शोषण एवं दुर्व्यवहार से बचाएगा। उनकी क्षमता के विकास के अवसर जुटाएगा। उन्हें सहभागी बनाएगा और उन्हें सेवा करने का अवसर देकर उनके जीवन में गुणात्मक परिवर्तन करेगा। यह नीति कुछ विस्तृत सिद्धांतों पर आधारित है।

यह नीति जीवन चक्र को एक निरन्तरता में देखती है जिसमें 60 वर्ष से अधिक उम्र की स्थिति इस जीवन का एक अभिन्न भाग है। इस नीति के अनुसार साठेत्तर जीवन पराधीनता के जीवन की शूरूआत नहीं है दरअसल 60 वर्ष के बाद का जीवन यह स्थिति है जहाँ लोगों के पास एक सक्रिय रचनात्मक उत्पादक एवं संतुष्ट जीवन हेतु कई रास्ते होंगे और ढेर सारे अवसर भी। इस प्रकार महत्वपूर्ण यह है कि बुजुर्गों का न केवल ध्यान रखा जाए ताकि उनसे सक्रिय एवं उत्पादनशील सहयोग लिया जाए।

यह नीति उस समाज को महत्व देती है जिसमें हर उम्र के लोग एकीकृत होकर रहेंगे। यह पीढ़ियों के बीच के संबंध को मजबूत बनाएगी। उनमें परस्पर संबंधों का आदान प्रदान होगा। युवाओं एवं वृद्धों के बीच के बंधन को दृढ़ बनाया जाएगा। इस नीति का एक औपचारिक एवं अनौपचारिक सामाजिक सहयोग व्यवस्था बनाने की बात निहित है। इससे परिवारों में वृद्धों की देखभाल की क्षमता बढ़ेगी। बूढ़े लोग अपने परिवारों में रह सकेंगे।

यह नीति मानती है कि बूढ़े लोग भी लाभदायक है। ये परिवार में और उससे बाहर महत्वपूर्ण सेवा दे सकता है। ये महज वस्तुओं एवं सेवाओं के उपभोक्ता ही नहीं अपितु उनके उत्पादक भी है। उन्हें समुचित पर अवसर एवं सुविधाएँ प्रदान करना चाहिए ताकि वे प्रभावी ढंग से परिवार समुदाय का सम्राट के कम पा सके।

इस नीति के अंदर यह दृढ़ विश्वास व्यक्त किया गया है कि बुजुर्गों को अधिकार देने से उन्हें अपने जीवन पर बेहतर नियंत्रण मिलेगा। अपने जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर निर्णय ले सकेंगे। साथ ही विकास प्रक्रिया से संबंधित अन्य बातों पर भी वे बराबरी में हिस्सा लेंगे। निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी बढ़ चढ़कर भागीदारी अनिवार्य है क्योंकि निर्वाचन-मंडल में 12 प्रतिशत भाग उन्हीं का है और यह अनुपात आगामी वर्षों में बढ़ने वाला है।

इस नीति के अनुसार राज्य को बजट में इनके लिए अधिक धन का प्रवधान करना होगा। ग्रामीण एवं शहरी गरीबों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होगी। हालाँकि सिर्फ राज्य के लिए न तो वह संभव है और न ही ऐच्छिक कि वह इस राष्ट्रीय नीति के लक्ष्यों को अकेले पूरा करें। अत: सभ्य समाज के हरेक व्यक्ति परिवार, समुदाय एवं संस्थान को भागीदार बनकर हाथ बटाना पड़ेगा।

वृद्ध व्यक्तियों के लिए (खासकर महिलाओं के लिए) सामाजिक एवं सामुदायिक सेवा के विस्तार पर बल दिया गया है, इन सेवाओं की पहुँच एवं उपयोग को विस्तृत बनाने के लिए सामाजिक- संस्कृतिक, आर्थिक तथा शारीरिक बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इन  सेवाओं को ग्राह्कोन्मूखी एवं व्यवहार सुलभ बनाया जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों, जहाँ वृद्ध व्यक्तियों की कुल आबादी का तीन-चौथाई हिस्सा निवास करता है इन सेवाओं को उचित विकास के लिए विशेष प्रयास की जरूरत है।

मध्यस्थता के मुख्य क्षेत्र एवं कार्य योजना

आर्थिक सुरक्षा

वृद्धावस्था में आर्थिक सुरक्षा की गंभीर चिंता रहती है। यह देखते हुए कि इस आबादी (1993-94) का एक तिहाई हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे और करीब एक तिहाई उससे ऊपर किन्तु निम्न आय वर्ग में है, हम कह सकते हैं कि 60 वर्ष से ऊपर की दो तिहाई आबादी आर्थिक रूप से कमजोर है। अत: वृद्धावस्था में एक स्तर की आर्थिक सुरक्षा के लक्ष्य को उच्च प्राथमिकता दी जाएगी। विभिन्न आय वर्ग के लोगों की सुरक्षा हेतु नीतिगत साधन विकसित किए जाएंगे।

गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बूढ़े लोगों के लिए वृद्धावस्था पेंशन मददगार साबित होती है। इस योजना का विस्तार किया जायेगा। जनवरी सन 1997 को आधार मानकर 27.6 लाख (2.76मिलियन) लोगों को मिलने वाली यह सहायता अब गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली कुल वृद्धजनों को मिलेगी। साथ ही लोगों के चयन एवं पेंशन वितरण संबंधी अनियमितता को दूर अनिवार्य होगा। एक उचित अन्तराल पर मासिक पेंशन का संशोधन जरूरी होगा ताकि मुद्रास्फीति का बुरा असर वास्तविक क्रय क्षमता पर नहीं पड़े। साथ ही गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 60 वर्ष से अधिक के सभी लोगों तक सर्वजनिक वितरण पहुंचेगी।

सरकारी, अर्द्ध सरकारी एवं उद्योग में कार्यरत लोगों को उनकी भविष्य निधि में संचित राशि पर अच्छी रकम मिलनी चाहिए। इसके लिए इस निधि की राशि का विवेकपूर्ण एवं सुरक्षित निवेश अनिवार्य है। इससे संबंधित मामलों पर सावधानीपूर्वक विचार होगा। पेंशन, भविष्य निधि ग्रेच्यूटी एवं अवकाश संबंधी अन्य लाभों का शीघ्र निपटारा सुनिश्चित किया जाएगा जिससे सेवा निवृत लोगों को प्रशासनिक खामियों की वजह से कठिनाई नहीं झेलनी पड़े। अनावश्यक विलंब के लिए जिम्मेदारी तय की जाएगी। सेवा निवृत व्यक्तियों की शिकायत पर शीघ्र उचित एवं संवेदनशील तरीके से सुनवाई होगी। पति की मृत्यु के बाद विधवाओं को मिलने वाली राशियों से संबंधित निपटान पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

वित्तीय सुरक्षा योजनाओं में पेंशन का नाम प्राय सबसे ऊपर है। इसके आधार को और विस्तृत करने की आवश्यकता है। पेंशन योजना को निजी एवं सर्वजनिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि गैर-सरकारी संस्थानों में तनख्वाह पाने वाले एवं स्वरोजगार में लगे लोगों के लिए सुदृढ़ता से लागू करना अनिवार्य होगा। इसमें मालिकों द्वारा सहयोग का प्रावधान भी होगा। पेंशन योजना संबंधी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात है पूर्ण सुरक्षा, लचीलापन, नकदीकरण एवं अधिकतम लाभ। एक सशक्त नियंत्रक प्राधिकरण की कठोर निगरानी में यह पेंशन निधि कार्य करेगी। यह प्राधिकरण निवेश का प्रतिमान बनाएगी और सशक्त सुरक्षा कवच प्रदान करेगी।

वृद्धावस्था में आवागमन पर में आवश्यक सेवा एवं चिकित्सा तथा देखभाल पर होने वाले खर्च बहुत बढ़ जाते हैं। अतएव वृद्धों की वित्तीय समस्या को कम करने के लिए कर प्रणाली को संवेदनशील बनाया जाएगा। वरिष्ठ नागरिकों की संस्थाएँ उनके लिए उच्च ‘स्टैंडर्ड डिडक्शन’ की मांग कर रही है। सेवा निवृत हो चुके बहुत लोगों लिए नियोक्ता की तरफ से चिकित्सकीय सुविधा का प्रावधान खत्म हो जाता है। अत: घर पर या अस्पताल में उनके उपचार पर होने वाले खर्च पर वार्षिक छूट की मांग की जा रही है। वृद्ध माता-पिता के साथ रहने वाले बेटे या बेटियों को उनकी आमदनी तथा माता-पिता के स्वास्थय उपचार पर आने वाले खर्च पर कर से छूट की मांग उठ रही है। कर में छूट हेतु इनके अतिरिक्त अन्य प्रस्तावों पर भी विचार किया जाएगा।

शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बचत की दीर्घकालीन योजनाओं को बढ़ावा दिया जाएगा। इसमें निवेशकों को यह विश्वास दिलाना अनिवार्य होगा कि नियत अवधि के बाद जो रकम उन्हें मिलेगी वह मुद्रा के अवमूल्यन के बावजूद उनकी क्रय शक्ति पर बुरा असर नहीं पड़ने देगी। सेवारत लोंगो को प्रेरित किया जाएगा कि वे अपने सक्रिय वर्षो में बचत करें ताकि वृद्धावस्था में उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिले।

सेवा निवृति पूर्व परामर्श के कार्यक्रमों को बढ़ाना एवं सहायता दिया जाएगा।

सेवा निवृति के बाद भी अर्थोपार्जन में लोगों की रुचि बनी रहनी चाहिए। उन्हें रोजगार से संबंधित मार्गदर्शन, प्रशिक्षण एवं अनुकूलन तथा सहायता देने वाली संस्थाओं की मदद की जाएगी। गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा वृद्धजनोंके अर्थोपार्जन के लिए शुरू किए गए कार्यक्रमों को प्रोत्साहन किया जाएगा। अधिक आयु होने की वजह से इन लोगों की साख की सीमा, विपणन के अवसर इत्यादि घट जाते हैं। परंतु इन विसंगतियों को दूर किया जाएगा। संरचनात्मक समायोजन संबंधी नीतियों का कुछ क्षेत्र के लोगों पर अधिक खराब असर पड़ सकता है। यह विशेषकर घरेलू एवं लघु उद्योगों में कार्यरत लोगों पर दिख सकता है। परन्तु उसके हित के रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत वैसे निराधार माता-पिताओं के अधिकार को मान्यता दी गई है जिनके बच्चों की की आमदनी पर्याप्त है। दी हिन्दू एडिप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956’ के तहत भी माता- पिता का यह अधिकार सुरक्षित है। हिमाचल प्रदेश की विधान सभा से ‘हिमाचल प्रदेश मेंटेनेंस  ऑफ़ पेरेंट्स एंड डिपेंडेंट बिल, 1996’ पास किया। इसका उद्देश्य सरल कार्यप्रणाली बनाना, त्वरित समाधान करना, मामलों की कार्यकारी प्रणाली स्थापित करना तथा अधिकारों एवं परिस्थितियों को सम्पूर्णता से परिभाषित करना था। महाराष्ट्र सरकार भी इसी नक्शे कदम पर एक बिल बना चुकी है। अन्य राज्य भी इस तरह के क़ानून बनाने को प्रेरित किए जायेंगे जिससे इस तरह जीवन निर्वाह करने में अक्षम वृद्ध माता-पिता गहन तिरस्कार एवं एकाकीपन से बच जाए।

स्वास्थय की देख-भाल एवं पोषण

आयु बढ़ने के साथ बूढ़े लोगों को स्वास्थ्य एवं उससे संबंधित समस्याओं से जूझना पड़ता है। उनमें से कुछ जटिल एवं जड़ीयायी होती है। ऐसे में विकलांगता का भय बना रहता है और निरंतर देख-भाव की आवश्यकता होती है। परिणामता स्वावलंबन की समाप्ति हो सकती है। स्वास्थय संबंधी खासकर कार्य करने के क्षमता घटाने वाली समस्याओं की स्थिति में घर पर लम्बी अवधि तक उपचार एवं देख-रेख की आवश्यकता पड़ती है।

बूढ़े लोगों की स्वास्थ्य सम्बंधी आवश्यकताओं को उच्च प्राथमिकता दी जाएगी। सस्ती एवं सुचारू स्वास्थय सेवा का लक्ष्य रखा जाएगा। इससे गरीबों को विशेष रियायत दी जाएगी एवं अन्य लोगों के लिए शुल्क की विभिन्न श्रेणियों बनायीं जाएगी। जन स्वास्थ्य सेवा, स्वास्थ्य बिमा ट्रस्ट एवं खैराती संस्थानों द्वारा बिना लाभ दी जाने वाली सेवा तथा निजी स्वास्थ्य सेवाओं का एक विवेकपूर्ण समन्वय अनिवार्य होगा। इनमें से पहले के लिए सरकार का अधिकतम सहयोग अनिवार्य होगा। दूसरी कोटि के लिए सरकार का बढ़ावा जरूरी है। तीसरी श्रेणी की सेवा के उत्थान के लिए कुछ सहयोग, रियायत एवं छूट की आवश्यकता होगी जबकि चौथी श्रेणी की सेवा को कुछ नियंत्रित रखकर फायदेमंद बनाया जा सकता है और यह नियंत्रण निजी सेवा प्रदान करने वाली कुछ संस्थाओं के संगठन में निहित होना चाहिए।

जन स्वास्थ्य सेवा का आधार प्राथमिक स्वास्थय सेवा तंत्र होगा। इसे मजबूत एवं वृद्ध लोगों की स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं के अनुकूल बनाया जाएगा। जन स्वास्थय सेवाओं के अंतर्गत बीमारी की रोकथाम एवं उसका निवारण स्वास्थय लाभ तथा पुनर्वास का आधार दृढ़ एवं विस्तृत बनाया जाएगा। द्वितीय एवं तृतीय स्तर के स्वास्थय सेवा केन्द्रों में जराचिकित्सा (वयोवृद्ध की चिकित्सा) की व्यवस्था की जाएगी। इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक व्यय की आवश्यकता होगी। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में इन सेवाओं का उचित वितरण करना होगा। इन सेवाओं का उच्च स्तरीय प्रबंधन एवं आबंटन सुनिश्चित करना अनिवार्य है।

विभिन्न आय वर्ग के लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य बीमा के विकास को उच्च प्राथमिकता देनी होगी। इसके अंतर्गत विभीन्न प्रकार की निवेश योजना एवं लाभ का प्रावधान होगा। निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए बनी योजनाओं पर सरकारी रियायतें होगी। स्वास्थय बीमा के आधार को विस्तृत करने के लिए तथा सुलभ बनाने के लिए रियायत एवं छूट दी जाएगी।

निर्धनतम वृद्ध नागरिकों के लिए अस्पतालों में नि: शुल्क विस्तार दवाइयां एवं उपचार की व्यवस्था के लिए ट्रस्टों (न्यासों) खेराती संस्थानों एवं स्वैच्छिक संस्थाओं को अनुदान कर में राहत तथा रियायती दरों पर जमीन के रूप में सहायता एवं बढ़ावा दिया जाएगा। इन जगहों पर अन्य लोगों के सेवार्थ उचित शुल्क देना होगा।

विगत वर्षों में निजी चिकित्सकीय सेवा का विस्तार हुआ है। अब आधुनिकतम चिकित्सकीय सुविधा खर्च साध्य हो गया है। जिन अस्पतालों को भूमि एवं अन्य सुविधायें बाजार – दर से कम मूल्य पर दी जाती हैं। उनके प्रबंधकों को निर्देश दिया जाएगा कि वे वृद्ध मरीजों को रियायत दें। निजी पेशे में लगे सामान्य चिकित्सकों को जराचिकित्सा में अनुकूलन का अवसर दिया जाएगा।

सार्वजनिक अस्पतालों को ऐसा निर्देश दिया जाएगा कि वहाँ जाने वाले वृद्ध मरीजों को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़े। उपचार एवं विभिन्न परीक्षणों के लिए उन्हें विभिन्न काउंटरों पर नहीं  जाना पड़े। प्रयास यह होगा की नियत दिनों में सुविधाजनक समय पर ऐसे मरीजों के लिए अगल काउंटर बने। जराचिकित्सा वार्ड भी बनाए जाएंगे।

प्राथमिक माध्यमिक एवं उच्च स्वास्थय सेवा में संलग्न चिकित्सकीय एवं पारा – चिकित्सकीय कर्मचारियों के लिए वृद्ध लोगों की स्वास्थय सेवा हेतु प्रशिक्षण एवं अनुकूलन कार्यक्रम चलाया जाएगा। चिकित्सा महाविद्यालयों में जराचिकित्सा के विशेष पाठयक्रम बनाए जाएंगे। उपचार्य प्रशिक्षण के अंतर्गत वयोवृद्ध की सेवा का पाठ दिया जाएगा। दूरी, सहचर का अभाव एवं यातायात की असुविधा वृद्धजनों को स्वास्थय सेवा की पहुँच से परे रखती है। जन स्वास्थय केंद्र पर पहुँचने में आने वाली बाधा को दूर करने हेतु खैराती संस्थानों के लिए मोबाइल स्वास्थय सेवा, विशेष शिविर एवं एम्बुलेंस सेवा का प्रावधान किया जाएगा। ये सुविधाएँ लाभ के लिए कार्यरत अस्पतालों को नहीं मिलेंगी। अस्पतालों को प्रोत्साहित किया जाएगा कि वे एक पृथक ‘कल्याण कोष’ बनायें जिसमें निर्धन वृद्धों के नि: शुल्क उपचार एवं दवाइयों के लिए चंदा एवं अनुदान स्वीकार किए जा सके।

चिरकालिक बीमारी से ग्रस्त बहुत से बूढ़े लोगों का आश्रय नहीं प्राप्त है। उनके लिए आश्रमों की आवश्यकता है। ऐसे आश्रमों को सरकारी सहायता, सर्वजनिक दान एवं स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा सहयोग दिया जाएगा। गंभीर बीमारी से ग्रस्त, लंबी अवधि तक सर्वजनिक अस्पतालों में असहाय रहने वाले वृद्धजनों की देख-रेख हेतु भी इन आश्रमों की आवश्यकता है।

वृद्धजनों द्वारा खुद की देखभाल के संबंध में निर्देश पुस्तिका बनाई जाएगी। वयोवृद्धों की सेवा में जुटी संस्थानों द्वारा उनकी छपाई एवं वितरण का कार्य होगा। इसमें सरकार सहयोग करेगी। ऐसे लोगों के स्वास्थ्य एवं परिचर्चा संबंधित सुगम गाइड का निर्माण एवं वितरण उन लोगों के लिए भी किया जाएगा जो परिवारों में देखभाल का जिम्मा लेते हैं।

वृद्धावस्था में पोषण संबंधी जानकारी देने वाले माध्यमों को बूढ़े लोगों एवं उनके परिवार जनों  के बीच पहूँचाया जाएगा। क्या खाया जाए, क्या नहीं.......?  इस बात की सूचना भी दी जाएगी। विभिन्न क्षेत्र के लोगों के स्वास्थय एवं स्वाद को ध्यान में रखते हुए आहार व्यवस्था बनाई जाएगी। ये पारिवारिक एवं सामूदायिक पसंद के अनुरूप होंगे और आसपास में उपलब्ध सब्जियों, अन्न एवं फलों से बनने वाले ये आहार महंगे भी नहीं होंगे।

स्वास्थय वृद्धावस्था की परिकल्पना को बढ़ावा दिया जाएगा। वृद्धजनों एवं उनके परिवारों को इस बात की शिक्षा दी जाएगी कि महज आयु का बढ़ना बीमारी को न्यौता देना नहीं है और न ही बुढ़ापे की कोई खास अवस्था में स्वास्थय का द्वारा जो ऐसा अनिवार्य है। इसके विपरीत अब बीमारियों की रोकथाम एवं उचित समय पर निदान से लोग अधिक आयु से भी अभी काफी स्वस्थ रह सकते है और विकलांगता से बच सकते हैं।

स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यकर्मों को दृढ़ता से लागू किया जाएगा। देश के कोने- कोने में लोगों तक इसे पहूँचाने के लिए जन माध्यम लोक माध्यम तथा संचार के अन्य साधनों का उपयोग किया जाएगा। युवाओं एवं मध्यावस्था के लोगों को मद्देनजर रखते हुए ऐसे कार्यक्रमों का विकास किया जाएगा जिनमें उन्हें सचेत किया जाएगा कि प्रारंभिक जीवन की गलत जीवन – शैली का प्रभाव किस तरह बाद में हानिकारक हो सकता है। पूरी जिन्दगी स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक संदेश दिया जाएगा। संतुलित आहार शारीरिक व्यायाम नियमित आदतें, तनाव में कमी नियमित चिकित्सकीय परामर्श फुर्सत एवं मनोरंजन हेतु समय तथा शौकिया कार्यों के महत्व बताए जाएंगे। योग, ध्यान एवं विश्राम के तरीके विकसित किए जायेंगे और उन्हें संचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा समाज के भिन्न वर्गों में पहूंचाया जाएंगा।

मनोचिकित्सा सेवा का आधार विस्तृत एवं दृढ़ बनाया जाएगा। मनोविकार से पीड़ित वृद्ध लोगों की देखभाल एवं उपचार के लिए उनके परिवारजनों को परामर्श एवं सूचना संबंधी सेवाएँ उपलब्ध करायी जायेंगी।

सरकार के प्रयासों को पूर्णतया सफल बनाने के लिए  गैर - सरकारी संस्थाओं को प्रेरित किया जाएगा। उन्हें अनुदान दिया जाएगा। उनेक कर्मचारियों को प्रशिक्षित एवं अनुकूलित किया जाएगा। उनको चल स्वास्थ्य सेवा, दिनभर की देख-रेख एवं अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए रियायत एवं छूट दी जायेंगी।

आवास

आवास मानव की मौलिक आवश्यकता है। विभिन्न आय-वर्ग के लोगों के लिए घरों की संख्या में वृद्धि की जाएगी। निम्न आय वर्ग के शहरी एवं ग्रामीण लोगों के लिए बनी आवास योजना में बूढ़े लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण रहेगा। आबंटन में यह आरक्षण घरों एवं गृह निर्माण हेतु भूमि दोनों के लिए इसमें शामिल होंगी। रोजगार में लगे लोगों को प्रेरित किया जाएगा कि वे कमाने के दिनों में ही आवास व्यवस्था में निवेश करें ताकि वृद्धावस्था में उन्हें आवास की समस्या नहीं हो। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए गृह निर्माणार्थ शहरी भूमि का त्वरित विकास करना होगा। जन सुविधाओं तथा संचार माध्यमों का समयवद्ध प्रावधान करना होगा। उचित दर पर ऋण की उपलब्धि एवं उसकी किस्तों के सुलभ भुगतान की व्यवस्था करनी होगी। इसके अतिरिक्त करों में राहत तथा निर्माण का समयवद्ध कार्यक्रम तय करना होगा। आवास विकास योजना में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों का सम्मिलित प्रयास अपेक्षित है। इसके अलावा आवास विकास समितियों जन सुविधाओं हेतु बने प्राधिकरणों, आवास हेतु वित्तीय संस्थानों और विनिर्माण एवं विकास क्षेत्र में लगे निजी संस्थानों की भागदारी भी जरूरी है। पर खरीदने एवं बड़ी मरम्मत के लिए बूढ़े लोगों के आसान किस्तों पर ऋण उपलब्ध होगा।

आवासीय कालोनियों को बूढ़े लोगों की जीवन-शैली के अनुरूप बनाना होगा। इसका ध्यान रखना होगा कि उनके आवागमन में कोई बाधा नहीं पड़े। शापिंग कॉम्प्लेक्स, सामुदायिक भवन, बागीचे उनके लिए सुगम होने चाहिए। उनके के लिए अन्य सेवाओं को सुरक्षित एवं सुलभ होना अनिवार्य है। बूढ़े लोगों के लिए एक बहूउद्देशीय केंद्र भी अनिवार्य है जहाँ वे आपस में मिलजुल सकें और अन्य आवश्यकताएं पूरी कर सकें। अत: अनिवार्य होगा की सभी आवास कालोनियों में ऐसे केन्द्रों के लिए जगह बनायी जाए। परंतु इन कालोनियों में बूढ़े लोगों को अलग-थलग रखना अनुचित होगा। इससे समुदाय के अन्य लोगों से उनका मेल-जोल घटेगा। तीन-चार मंजिलों वाले ‘लिफ्ट’ रहित मकान तो ऐसे लोगों की परेशानी बढ़ा देते है। लोग घरों के अंतर सिमटकर रह जाते हैं और एकाकीपन का शिकार हो जाते है। और विभिन्न सेवाओं से वंचित रह जाते हैं। अत: भूमि- तल पर बने ‘फ्लैटों’ के आंबटन में बूढ़े लोगों का प्राथमिकता दी जाएगीं।

छोटे-छोटे फ्लैटों वाले सामूहिक आवास का निर्माण किया जाएगा। वृद्ध लोगों के लिए बनने वाले इन आवासों में भोजन, लौंड्री, मनोरंजन एवं विश्राम के लिए सामुहिक व्यवस्था की जाएगी। अन्य सामुदायिक  एवं सांस्कृतिक कार्य, चिकित्सा एवं मनोरंजन केंद्र निकट ही बनाए जाएंगे। पार्क भी बनाए जाएंगे।

वास्तुकारों तथा आवास प्रबंध एवं नगर योजना में संतान लोगो के शिक्षण, प्रशिक्षण एवं अनुकूलन में बूढ़े लोगों के आरामदेह एवं सुरक्षित जीवन की आवश्यकता पर विशेष पाठ्य – सामग्री होगी।

दुर्घटना से बचाव संबंधी तथ्यों की जानकारी बूढ़े लोगों एवं उनके परिवारजनों को उपलब्ध करवाई जाएगी। वृद्धावस्था में बीमारी एवं शारीरिक क्षमता के ह्रास के मद्देनजर सूरक्षा के अतिरिक्त सुरक्षा के अतिरिक्त उपाय भी सुझाए जाएंगे।

 

ध्वनि एवं अन्य प्रदूषणों के बुरा असर बच्चों, वृद्धों एवं रोगियों पर अधिक पड़ता है। इसे नियंत्रित रखने के लिए नियम बनाए जाएंगे एवं कठोरता से उन्हें लागू किया जाएगा।

नागरिक प्राधिकरणों एवं जनोपयोगी सेवाओं के लिए बनी संस्थाओं से यह अपेक्षित होगा कि वे सर्वप्रथम बूढ़े लोगों की शिकायतों का निपटारा करें। इनके लिए दिए जाने वाली शुल्कों की भुगतान व्यवस्था सरल बनायी जाएगी। सम्पत्ति के हस्तांतरण, परिवर्तन, सम्पत्ति कर एवं अन्य मामलों में तंग करने एवं दुर्व्यवहार पर नियंत्रण किया जाएगा।

शिक्षा

बूढ़े लोगों की शिक्षण, प्रशिक्षण एवं सूचना संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति की जाएगी। असल में अब तक इन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। अत: इन लोगों की जिंदगी से संबंधित सूचना एवं शिक्षण सामग्री का विकास किया जाएगा और उसे जन- माध्यमों एवं अनौपचारिक संचार प्रणालियों द्वारा जन-जन में फैलाया जाएगा।

शिक्षण, प्रशिक्षित एवं अनुकूलन के अवसर में वृद्ध लोगों के साथ यदि कोई भेद-भाव हुआ तो उसे दूर किया जाएगा। शिक्षा कार्यक्रमों की निरंतरता को प्रोत्साहित किया जाएगा। उनके लिए सहायता दी जाएगी। इन कार्यक्रमों के अंतर्गत रोजगार-विकास, अवकाश का रचनात्मक उपयोग, कला संस्कृति एवं समाजिक परम्पराओं की समझ-बूझ जैसी बातों का समावेश होगा। इनके अतिरिक्त सामुदायिक एवं कल्याणकारी कार्यों को संपादित करने के तरीके भी बताए जायेंगे। संबंधित पाठ्य-सामग्री के निर्माण में मुक्त विश्वविद्यालयों का सहयोग लिया जाएगा। इसमें दूरवर्ती शिक्षण तकनीक का इस्तेमाल होगा। विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों, विभिन्न शोध संस्थानों तथा संस्कृतिक केन्द्रों में बूढ़े लोगों के प्रवेश को सरल बनाया जाएगा।

विधिवत एवं अनौपचारिक दोनों ही शिक्षा की सभी स्तरों पर बने जाने वाले पाठयक्रम में उन सामग्रियों का समावेश होगा जो दो पीढ़ियों के बीच के बंधन को तथा आपसी सहयोग को मजबूत बनाएगी। शैक्षणिक संस्थानों एवं वृद्ध लोगों के बीच वार्ता का संबंध कायम किया जाएगा। इस प्रकार विज्ञान, कला पर्यावरण, सामाजिक एवं संस्कृतिक, धरोहर, खेल, व्यवसायिक एवं अन्य ज्ञान से परिपूर्ण बूढ़े लोग बच्चों एवं युवाओं के साथ परस्पर संबंध बना सकेंगे। विद्यालयों को प्रोत्साहन एवं सहयोग दिया जाएगा ताकि वे वृद्ध लोगों के साथ अन्योन्याश्रय संबंध बनाने के लिए नियमित कार्यक्रम बनाते रहें, वरिष्ठ नागरिक केंद्र को संचालित करने में मदद करें तथा ऐसे लोगों में सक्रियता बनाए रखें।

हर उग्र के लोगों, सभी परिवारों एवं समुदायों को बुढ़ापे की प्रक्रिया से संबंधित सूचनाएं दी जाएगी। जीवन चक्र के विभिन्न चरणों पर लोगों की बदलती भूमिका उनके दायित्व तक परस्पर संबंधो पर चर्चा होगी। घर के अंदर एवं बाहर होने वाले वृद्ध लोगों के योगदान को मीडिया एवं अन्य मंचों से प्रचरित किया जाएगा तथा उनकी नकारात्मक छवि, उनके संबंध में दुष्प्रचारित मिथक एवं घिसी-पिटी बातों को गलत साबित किया जाएगा।

कल्याण कार्य

कल्याणकारी कार्यक्रम की प्राथमिकता होगी ऐसे नि: सहाय वृद्धों की पहचान को गरीब, विकलांग, रोगी अथवा जटिल रोग से ग्रस्त है और जिन्हें परिवार को सहयोग भी प्राप्त नहीं है। ऐसे लोगों को प्राथमिकता के आधार पर कल्याणकारी सेवाएँ की जाएगी। कल्याणकारी नीति के अंतर्गत संस्थानिक देखभाल को तब अपनाया जाएगा जब उनको वृद्धाश्रम में रहने के अलावा कोई चारा न हो।

बूढ़े लोगों एवं उनके परिवारजनों को कठिन परिस्थिति से जूझने में सक्षम बनाने के लिए स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा दी जाने वाली गैर संस्थागत सेवाओं को प्रोत्साहन एवं सहयोग दिया जाएगा। आज यह अनिवार्य हो गया है क्योंकी परिवार में देखभाल के लिए पूरा समय कोई नहीं दे पाता है। दरअसल परिवारों का आकार छोटा हो गया तथा महिलाएँ भी बाहर काम करती है। सहायक सेवाएँ, घर में देखभाल की जिम्मेदारी को बाँटकर लोगों को कुछ राहत देगी।

वृद्धाश्रम के निर्माण एवं रख-रखाव के लिए स्वैच्छिक संस्थानों को सहायक अनुदान दिए जायेंगे। गरीबी के लिए बनने वाले इन आश्रमों पर विशेष रियायत दी जाएगी। यह जरूरी है कि ये आश्रम निवास हेतु अपनी जीवंतता बनाए रखे। इनके निवासियों का बाहरी दुनिया से संपर्क बना रहे। जीवन के इस मोड़ में खड़े बूढ़े लोगों के सामूहिक जीवन की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाए जाने वाले वृद्धाश्रमों की रूपरेखा बनाने में विशेषज्ञों की राय लेने के लिए गैर-सरकारी संस्थाओं को प्रेरित किया जाएगा। इसमें उपभोक्ताओं की हैसियत का ध्यान रखा जाएगा। ऐसे आश्रमों में सेवा का एक न्यूनतम स्तर कायम किया जाएगा और उनके कर्मचरियों के लिए प्रशिक्षण एवं अनुकूलन का प्रावधान किया जाएगा।

स्वैच्छिक संस्थाओं को बहु उद्देशीय नागरिकों केन्द्रों को खोलने के लिए प्रोत्साहन एवं सहयोग मिलेगा उन्हें दिवा देखभाल (डे केयर) तथा संबंधित सेवा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। वे विकलांगता से लड़ने वाले उपकरण न केवल उन लोगों तक पहूँचायेंगे बल्कि उनके प्रयोग-विधि भी सिखायेंगे। इन सब के अलावा कुछ समय के लिए लोगों के घर जाकर मित्रवत उनकी सेवा भी की जाएँगी। इसमें समाजिक कार्यकर्ताओं का सहयोग अपेक्षित है। खुद पर आश्रित बूढ़े दंपतियों एवं अन्य लोगों के लिए ‘हेल्पलाइन’ तथा टेलीफोन पर उपलब्ध सेवा को बढ़ावा मिलेगा। उन्हें दोस्तों रिश्तेदारों एवं पड़ोसियों से संपर्क बनाए रखने में पूरी मदद की जाएगी। स्वैच्छिक संस्थाओं को इस बात के लिए बढ़ावा एवं सहयोग मिलेगा कि वे ऐसे लोगों को अस्पताल, शापिंग, कॉम्प्लेक्स एवं अन्य स्थानों पर ले जाने में सहयोग करें। बूढ़े लोगों को भी पड़ोस में अपने अनौपचारिक समूह बनाने के लिए प्रेरित किया जाएगा। इस तरह सामाजिक गपशप, मनोरंजन एवं अन्य गतिविधियों से संबंधित उनकी आवश्यकताएं पूर्ण होगी। गांवों अथवा पड़ोसों के वर्गों के लिए वरिष्ठ नागरिकों का मंच बनाने को प्रोत्साहित किया जाएगा।

बूढ़े लोगों के लिए एक कल्याण कोष बनाया जाएगा। इसमें सरकार, नियमित क्षेत्र ट्रस्ट, खैराती संस्थान, व्यक्ति विशेष एवं अन्य सहयोग करेंगे। इस निधि में योगदान पर कर में राहत मिलेगी। राज्यों द्वारा ऐसे कोषों की स्थापना अपेक्षित है।

कल्याणकारी कार्यो के लिए कई प्रकार की व्यवस्थाओं की आश्यकता महसूस की गई है। सरकारी, स्वैच्छिक एवं निजी तीनों क्षेत्रों की सेवा आवश्यक है। इसमें निजी क्षेत्र के सेवा उन लोगों के लिए है जिनके पास साधन है और जिन्हें उच्च स्तरीय देखभाल चाहिए।

जीवन एवं सम्पती की सुरक्षा

बूढ़े लोग अपराधी तत्वों के सहज निशाने बन गए है। वे फर्जी लेन-देन के शिकार भी बन जाते हैं। अपने मालिकाना अधिकारों को छोड़ने के लिए घरों के अंदर भी उनके परिवार वाले उन्हें शारीरिक एवं मानसिक यातना देते हैं। उत्तराधिकार विक्रय एवं भोगाधिकार जैसे अधिकार भी कोई बार विधवाओं से उनके अपने बच्चे एवं संबंधी छीन लेते हैं अत: यह जरूरी है कि बूढ़े लोगों को सुरक्षा प्राप्त हो। ऐसे लोगों को पारिवारिक हिंसा से बचाने के लिए भारतीय दंड सहिता के किये जाने वाले विशेष प्रावधान पर विचार होगा और ऐसे मामलों के शीघ्र निपटान के लिए एक प्रणाली बनाई जाएँगी। किरायेदारी के विधानों की पूर्णसमीक्षा होगी ताकि बेदखल बूढ़े लोगों को उनका अधिकार तुरंत वापस मिल सके।

वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए उनके संगठनों एवं स्वैच्छिक संस्थानों को सहायता दी जाएगी। इसके लिए हेल्पलाइन सेवा, कानूनी सलाह एवं अन्य उपाय किए जायेंगे।

पुलिस को यह निर्देश होगा कि वह बूढ़े दंपतियों एवं अकेले रहने वाले बूढ़े लोगों पर मित्रवत निगरानी रखे तथा उन्हें पड़ोसियों के संगठनों के संपर्क रखना महत्वपूर्ण है। इसकी जानकारी एवं ऐसा करने की सलाह बूढ़े लोगों को दी जाएगी। उन्हें अनधिकृत लोगों के प्रवेश रोकने के उपाय बताए जायेंगे। घरेलू नौकर रखने से पहले बरती जाने वाली सावधानियों पर सुझाव दिए जायेंगे। घर की देख – रेख एवं मरम्मत के लिए आने वाले लोगों के संबंध में तथा फेरीवालों के संबंध में भी सावधान किया जाएगा। रूपये – पैसे एवं कीमती सामानों की हिफाजत के लिए सुझाव दिए जायेंगे।

कार्य के अन्य क्षेत्र

कार्य के अनके ऐसे क्षेत्र है जिनमें सरकार का सकारात्मक रूख जरूरी है ताकि सरकारी नितियां एवं कार्यक्रम बूढ़े लोगों के संवेदनशील हों। इनमें प्रशासन द्वारा पहचान – पत्र जारी करना, सभी प्रकार के यातायात में भाड़े में छूट, स्थानीय सार्वजनिक यातायात में वृद्धों के लिएजगह का आरक्षण (प्राथमिकता में) सार्वजनिक यातायात की गाड़ियों में सुलभ प्रवेश एवं निर्गमन के लिए आवश्यक परिवर्तन; जेब्रा क्रासिंग पर ट्रैफिक नियमों का कठोरता से पालन, ताकि बूढ़े लोग आसानी से सड़क पार कर सके, गैस एवं टेलीफोन कनेक्शन में तथा मरम्मत के कामों में वृद्धों को प्राथमिकता, उनके सहज आवागमन के लिए अवरोधों में कमी, अवकाश एवं मनोरंजन, कला एवं संस्कृति एवं पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थानों पर प्रवेश शुल्क दर में कमी जैसे मामले है।

फर्जी लेन-देन ठगी एवं अन्य मामलों में बूढ़े लोगों की शिकायतें का शीघ्र निपटारा उन्हें बहुत हद तक राहत दिलाएगा। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बनी प्रणाली को सुचारू बनाया जाएगा।

राष्ट्रीय वृद्धाजन दिवस, पर वृद्धजनों से संबंधित मुददों पर प्रकाश डाला जाएगा। सन 2000 को ‘राष्ट्रीय वृद्धजन वर्ष’ घोषित किया गया था। विभिन्न संस्थाओं की सहायता से उस वर्ष गतिविधियों की योजना बनाई गई एवं उनका कार्यान्वयन किया गया।

केंद्र एवं राज्य सरकारों तथा अन्य संस्थाओं द्वारा वृद्धों को दी गई सुविधाओं, राहत एवं छूटों को पुस्तकों के रूप में संकलित किया जाएगा। उन्हें बराबर अन्तराल पर संशोधन किया जाएगा तथा विस्तृत प्रचार-प्रसार लोगों की संस्थाओं को उपलब्ध करवाया जाएगा।

गैर - सरकारी संस्थान

सरकार अकेले बूढ़े लोगों की हर आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकती है और निजी क्षेत्र में संस्थान आबादी के सिर्फ एक छोटे संपन्न वर्ग ध्यान रखते है। इसलिए इस दिशा में सरकार के प्रयासों को पूर्ण बनाने में गैर-सरकारी संगठनों (एन जी ओ) की भूमिका महत्वपूर्ण है। हमारी राष्ट्रीय नीति भी इस बात को मानती है। ये गैर सरकारी संगठन वस्तुत: लोगों को कम कीमत पर सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं।

स्वैच्छिक प्रयासों को बढ़ावा दिया जाएगा। उन्हें बड़े पैमाने पर सहायता दी जाएगी। राज्य के अंदर और कई राज्यों के स्वैच्छिक प्रयासों को वर्तमान असमानता को दूर किया जाएगा। गैर-सरकारी संगठनों के साथ बुढ़ापे से संबंधित मामले पर एवं ऐसे लोगों के सेवार्थ द्विपक्षीय वार्ता निरंतर जारी रहेगी। विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों का एक तंत्र बनाया जाएगा। लोगों के प्रशिक्षण एवं अनुकूलन के अवसर बढ़ाए जाएंगे। सरल कार्यप्रणाली पारदर्शिता दायित्व तथा स्वैच्छिक संस्थाओं को समय पर अनुदान सेवा में सुधार लायेंगे। सहायक अनुदान देने की नीति संस्थानों को प्रेरित करेगी कि वे अपना संसाधन भी जुटाए। इस प्रकार वे लंबे समय तक सेवा प्रदान करने के लिए मात्र सरकारी अनुदान पर निर्भर नहीं रहेंगे।

न्यासी खैराती संस्थानों, धार्मिक संस्थानों एवं अन्य दान कर्ताओं को प्रेरित किया जाएगा कि वे अपने दान का क्षेत्र विस्तृत करने वृद्धों को सेवाएँ प्रदान करें। इसके लिए उन्हें बुढ़ापे से संबंधित मामलों में शामिल किया जाएगा।

बूढ़े लोगों को संगठित होकर अपनी वरिष्ठ साथियों की सहायता करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसमें उनकी व्यवसायिक सूझ-बूझ, प्रवीणता एवं सबकों का इस्तेमाल होगा। उनका के advocacy  के जन – मत एवं संसाधन जुटाने के एवं सामुदायिक कार्यों के संपादन के मामलों में सहायता दी जाएगी।

स्वैच्छिक कार्यक्रमों के संचालन के लिए सहायता दी जाएगी जिससे बूढ़े लोगों की भागीदारी बढ़ेगी। वे सामुदायिक क्रियाकलापों में भाग ले सकेंगे तथा लोगों की समस्याओं का हल ढूढ़ सकेंगे। वयोवृद्धों से निपटने के लिए स्वयं सेवकों को प्रशिक्षण एवं अनुकूलन का अवसर दया जाएगा। उन्हें इस क्षेत्र में होने वाले विकासों  से अवगत रखा जाएगा ताकि वे सक्रिय बुढ़ापे को बढ़ावा दे सकें। घर की चारदीवारों में कैद बुजुर्गों-खासकर वृद्ध एवं कमजोर महिलाओं का अकेलापन खत्म करने के लिए स्वयंसेवकों को प्रोत्साहन एवं सहयोग दिया जाएगा।

मजदूर एवं मालिकों के संघो तथा, अन्य व्यवसायिक संस्थानों से आग्रह किया जाएगा कि वे अपने सदस्यों के लिए वृद्धावस्था के मुददे पर संवेदनशील कार्यक्रमों का आयोजन करें। साथ ही सेवा-निवृत लोगों के लिए विभिन्न सेवाओं का आयोजन करें तथा उन्हें बढ़ावा दें।

संभावना का विकास

राष्ट्रीय नीति यह मानती है कि 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की जिन्दगी एक ऐसी विशाल मानव संपदा है जिसका उपयोग अभी तक नहीं किया गया है। अत: इस अपार संभावना को साकार करने के अवसर बनाए जाएंगे। ऐसे लोगों को इस लायक बनाया जाएगा कि वे उपयुक्त कार्य चुन सकें।

घरों से बूढ़े लोग खासकर महिलाएँ बहुत उपयोगी काम करते है। परन्तु उनकी प्रशंसा नहीं होती। इसलिए यह प्रयास किया जाएगा कि घरों के सदस्य बूढ़े लोगों के योगदान को सराहें। उनकी अहमियत समझे। विशेषकर जब महिलाएँ भी घर से बाहर काम करती है तब यह जरूरी हो जाता है। संचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा बूढ़े लोगों के लिए विशेष कार्यक्रम बनाए जाएंगे ताकि वे अपने ज्ञान को आधुनिक एवं उच्च कोटि का बना सकें। इन कार्यक्रमों की सहायता से वे वर्तमान संदर्भ में परम्पराओं का समावेश कर सकेंगे तथा अपनी सामाजिक एवं सांस्कृतिक विरासत को पोते-पोतियों तक प्रभावी ढंग से संप्रेषित कर सकेंगे।

परिवार

भारत में परिवार आज भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्था है। यह बूढ़े लोगों की समाजिक सुरक्षा का सबसे ठोस अनौपचारिक प्रबंध है। बूढ़े लोगों के लिए जब स्वतंत्र जीवनयापन कठिन हो जाता है तो उनमें अधिकांश अपने एक या अधिक बच्चों के साथ रहने लगते है। साथ रहने की यह व्यवस्था उन्हें सबसे अधिक भाती है। ये भावात्मक रूप से भी अधिक संतुष्ट रहते हैं। अत: यह जरूरी है कि पारिवारिक सहयोग की परंपरा बनी रहे और परिवारों को अपने इस दायित्व के निर्वाह के लिए बाहरी सहायता भी मिले।

पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम बनाए जाएंगे। इनके जीवन युवाओं को दो पीढ़ियों के बीच के संबंधों को दृढ़ बनाने की आवश्यकता एवं अनिवार्यता के प्रति संवेदनशील बनाया जाएगा। संतानों को उनके कर्तव्यों की आश्यकता एवं उसे निरंतर बनाए रखने की बात इन कार्यक्रमों के माध्यम से बतायी जाएगी। देख-भाल एवं परस्पर लगाव के मूल्यों का संवर्धन किया जाएगा। इसके लिए सामाजिक व्यवस्था को इस रह ढालना होगा कि वृद्ध माता-पिता की देखभाल में विवाहित बेटियाँ भी सहजता से हाथ बंटा सके। आज के बदलते परिवेश में जब लोगों के सिर्फ एक या दो बच्चे होते हैं या फिर सिर्फ बेटियाँ होती है यह अनिवार्य हो जाता है। आज जबकि बेटियाँ भी पुश्तैनी सम्पती में बराबर का अधिकार रखती है। उन्हें भी माता-पिता की देखभाल में बेटों का हाथ बटाना चाहिए। इस बात का ज्ञान विशेषकर उनके ससुराल वालों में होना जरूरी है और फिर माता-पिता के प्रति बेटियों का भावनात्मक लगाव का ध्यान रखना ससुराल वालों का भी दायित्व बनता है।

माता-पिता के साथ रहने के लिए बच्चों को विभिन्न प्रोत्साहन दिए जाएंगे। उन्हें कर में राहत चिकित्सकीय व्यय में छूट तथा घरों के आबंटन में प्राथमिकता दी जाएगी। लोगों को प्रेरित किया जाएगा कि वे अपने कमाई के दिनों में ही लंबी अवधि की बचत योजनाओं तथा स्वास्थ्य बीमा में निवेश करें ताकि बाद में वे परिवार पर वित्तीय बोझ नहीं बन जाए। बूढ़े लोगों के घर पर या उनके समुदाय में जाकर सेवा प्रदान करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों को भी प्रोत्साहन एवं सहयोग दिया जाएगा। बूढ़े लोगों का लघु-आवधि के लिए अन्यत्र ठहरने का प्रबंध किया जाएगा ताकि उनके परिवारजनों को कुछ अवकाश मिले। परिवार के आन्तरिक तनाव को दूर करने के लिए परामर्श प्रक्रिया को भी मजबूत बनाया जाएगा।

अनुसंधान

वृद्धों से संबंधित विस्तृत आंकड़े आज महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इसलिए वृद्धावस्था पर अधिक अनुसंधान  की आवश्यकता होगी। विश्वविद्यालयों, चिकित्सा – महाविद्यालयों एवं शोध संस्थानों को वृद्धों से संबंधित अध्ययन एवं जराचिकित्सा केंद्र खोलने की लिए सहायता दी जाएगी। निगमित संस्थानों, बैंकों, न्यासों एवं धर्मार्थ बने संस्थानों से आग्रह किया जाएगा कि वे विश्वविद्यालयों एवं चिकित्सा – महाविद्यालयों में इन शास्त्रों की पढ़ाई के लिए पद सृर्जित करें। बुढ़ापे पर शोध परियोजना चलाने के लिए शैक्षिक संस्थानों को वित्तीय सहयोग दिया जाएगा। सेवा-निवृत बैज्ञानिकों को सुविधाएँ दी जाएंगी ताकि उनके ज्ञान का उपयोग पुन: किया जा सके।

शोध पर एक अंतशैक्षणिक समन्वय समिति बनाई जाएगी। आंकड़ो को संग्रहित करने वाली संस्थाओं से आग्रह किया जाएगा कि वे 603 वर्ष एवं उससे ऊपर आयु के लोगों की एक अलग श्रेणी बनायें। ‘जेराटोलौजिस्ट’ के पेशेवर संगठनों को सहायता दी जाएगी ताकि वे शोध कार्य को मजबूत बनाने में सहायक हो तथा उनसे निकलने वाले तथ्यों को प्रसारित करने में मदद करें। ये द्विपक्षीय वार्ता, विचार विनिमय, वाद-विवाद एवं सूचना के आदान-प्रदान के लिए एक मंच भी उपलब्ध करायेंगे।

शोध, प्रशिक्षण एवं प्रलेखन के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान की आवश्यकता पर बल दिया गया है। देश के विभिन्न भागों में संसाधन केन्द्रों को स्थापित करने के लिए सहायता दी जाएगी।

श्रम शक्ति का प्रशिक्षण

सरकार की नीति के अनुसार प्रशिक्षित श्रम-शक्ति बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए जराचिकित्सा के विशेष अध्यायन के लिए चिकित्सा महाविद्यालयों को सहायता दी जाएगी। नर्सिंग एवं अर्द्ध चिकित्सकीय कर्मचारियों के प्रशिक्षण संस्थानों को चाहिए कि वे अपने शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम में जराचिकित्सा से संबंधित परिचर्चा पर विशेष पाठ्यक्रम का समावेश करें। कर्मचारीयों के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोला जाएगा जहाँ उन्हें इस तरह की सेवा के लिए अनुकूल बनाया जाएगा। इसके अलावा पाठ्य सामग्री एवं पाठयक्रम विकास के लिए भी सहायता दी जाएगी। ‘स्कूल ऑफ सोशल वर्क’ एवं विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों को वृद्धों से संबंधित मामलों पर अधिक ध्यान देने, सेवार्थ आयोजनों को पाठ्यक्रम में शामिल करने और सकारात्मक मध्यस्थता की आवश्यकता है। गैर सरकारी संस्थानों में कार्यरत लोगों को बूढ़े लोगों की सेवा के लिए प्रशिक्षण एवं अनुकूलन के इए अवसर एवं सहयोग दिया जाएगा। प्रशिक्षकों के आदान-प्रदान की व्यवस्था भी की जाएगी।

विभिन्न स्तर के विधायी, न्यायिक एवं कार्यकारी प्रभागों के लिए वृद्धावस्था से संबंधित सूग्रह्या  कार्यक्रम बनाने के लिए और उसके विकास के लिए सहायता दी जाएगी।

संचार माध्यम

बूढ़े लोगों की बदलती परिस्थिति, उससे उठते सवाल एवं संबंधित कार्य क्षेत्रों की जानकरी को जन- मानस तक पंहुचाने के लिए संचार माध्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण है। हमारी राष्ट्रीय नीति इसे स्वीकार करती है। ये माध्यम वृद्धावस्था में सक्रिय जीवन की धारणा को बढ़ावा दे सकते हैं। साथ ही जिन्दगी के इस पड़ाव से संबंधित रूढ़ियों एवं गलत छवि को दूर करने में सहायक होगें। ये पीढ़ियों के बीच के बंधन को दृढ़ बनाने में सहायक होंगे। ये पीढ़ियों के बीच के बंधन को दृढ़ बनाने में सहायक होंगे। वृद्धावस्था की प्रक्रिया की अच्छी समझ एवं उससे उत्पन्न समस्याओं को दूर करने के उपाय से संबंधित शैक्षणिक सामग्री जुटाने में भी इन माध्यमों का योगदान होगा। इससे परिवार एवं समुदाय के लोग लाभान्वित होंगे।

इस नीति का लक्ष्य है बुढ़ापे के मसले पर जन संचार माध्यमों के साथ – साथ अनौपचारिक एवं पारंपरिक संचार माध्यमों का सहयोग प्राप्त करना। इसके लिए यह अनिवार्य होगा की इन माध्यमों में कार्यरत लोगों को सूचना प्राप्त करने की पूरी सुविधा हो। इस प्रकार उनके पास अपने निजी स्रोतों तथा वस्तुस्थिति की जानकारी ही नहीं बल्कि सूचना के अन्य स्रोत भी होंगे। उन्हें बुढ़ापे से संबंधित अनुकूलन कार्यक्रमों में भाग लेने की सुविधा दी जाएगी। साथ ही इस क्षेत्र में सेवारत लोगों के साथ उनके परस्पर बातचीत के अवसर बढ़ाए जाएंगे।

कार्यान्वयन

बूढ़े लोगों से संबंधित राष्ट्रीय नीति के विस्तृत प्रसार के लिए एक कार्य योजना बनाई जाएगी ताकि इस नीति की मूल बातें सदैव लोगों की नजर में बनी रहे।

यह नीति वरिष्ठ नागरिकों के जीवन में परिवर्तन तब ही कर सकती है जब इसका कार्यान्वयन हो। यद्यपि इस मामले में सरकार एवं इसके मुख्य अंगों का मूल दायित्व बनता हैं देखना यह है कि जनसाधारण एवं अन्य संस्थान किस प्रकार अपना सहयोग देकर बूढ़े लोगों की भलाई करते हैं। परन्तु यह तय है कि सबका मिला-जुला प्रयास बहुत हद तक एक मानवोचित समाज का र्माण करेगा जिसमें बूढ़े लोगों को न्यायोचित स्थान मिलेगा। इस संबंध में बूढ़े लोगों को शीर्ष संगठनों का विशेष दायित्व बनता है कि वे इस नीति के कार्यान्वयन के लिए बने कार्यक्रमों में ऊर्जा का संचार करें, जनमत संग्रह करें तथा उन पर एक दबाव बनाए रखें। उन्हें इस सबका निरीक्षण भी करना होगा।

समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ही इस नीति के कार्यान्वयन से संबंधित सभी मामलों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए मुख्य कड़ी (नोडल मंत्रालय) का कम करेगी। एक पृथक “वृद्धजन ब्यूरो” बनाया जाएगा। इस नीति के कार्यान्वयन संबंधित मामलों के समन्वय एवं इसके विकास के निरीक्षण के लिए एक अंतर-मंत्रिमंडलीय समिति बनाई जाएगी। राज्यों को प्रेरित किया जएगा कि वे बूढ़े लोगों के लिए अलग निदेशालय बनाए तथा समन्वयन एवं निरीक्षण की एक प्रणाली का निर्माण करें।

प्रत्येक मंत्रालय अपने संबंधित मामलों के कार्यान्वयन के लिए पंचवर्षीय एवं वार्षिक कार्य योजनाएँ बनाएगा। इन योजनाओं में उन प्रयासों का उल्लेख होगा जो यह सुनिश्चित करेंगे की सामान्य एवं वृद्ध लोगों तक पहुंचे। एक नियत समय- सीमा के लिए लक्ष्य निर्धारित किये जायेंगे। प्रत्येक कार्य के संपादन के लिए उत्तरदायित्व तय किया जाएगा। कार्यान्वयन के लिए आवश्यक बजट का प्रावधान योजना आयोग एवं वित्त-मंत्रालय द्वारा किया जाएगा। पूरे वर्ष की अवधि में किए गए विकास का लेखा जोखा संबंधित मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में होगा।

प्रत्येक तीन वर्ष में राष्ट्रीय नीति के कार्यन्वयन पर ‘नोडल’ मंत्रालय द्वारा विस्तृत समीक्षा तैयार की जाएगी। यह एक सर्वजनिक दस्तावेज होगा इसे तैयार करने में गैर-सरकारी सदस्य भी भाग लेंगे। एक राष्ट्रीय सम्मेलन में इसकी विवेचना की जाएगी। राज्य सरकारों एवं संघ राज्य क्षेत्रों से भी आग्रह किया जाएगा कि इस प्रकार की कार्यवाही करें।

“राष्ट्रीय वृद्धजन परिषद” नामक एक       स्वायत्त संस्था बनाई जाएगी जो उनसे संबंधित मामलों के समन्वय एवं प्रोत्साहित का कार्य करेगी। सामाजिक न्याय और अधिकार मंत्रालय के मंत्री इस परिषद की अध्यक्षता करेंगे। इस परिषद में संबंधित केन्द्रीय मंत्रालयों एवं योजना आयोग के प्रतिनिधि रहेंगे। इसमें पांच राज्यों को बारी – बारी से प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। गैर – सरकारी सदस्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। वे गैर सरकारी संगठनों शैक्षिक निकायों संचार माध्यमों तथा विभिन्न क्षेत्र में वृद्धावस्था पर कार्य करने वाले विशेषज्ञों में से चुने गए प्रतिनिधि होंगे।

‘नेशनल एसोसिएशन ऑफ़ ओल्डर पर्सन्स’ (एन ए ओ पी एस) नामक एक पंजीकृत स्वायत्त संस्थान स्थापित किया जाएगा। यह वृद्धजनों की गतिविधियों को विस्तृत बनाएगा, उनके हक़ की बातें करेगा। उनकी भलाई के लिए कार्यक्रम बनाएगा और उन्हें बढ़ावा देगा। इसके साथ ही बूढ़े लोगों से संबधित सभी मामलों पर सरकार को सलाह देगा। इस संगठन का कार्यालय राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला तीनों स्तरों पर होगा। यह अपने पदाधिकारी स्वयं चुनेगा। राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के कार्यालयों को स्थापित करने के लिए सरकार वित्तीय सहायता देगी। जिला स्तर के कार्यालयों को स्थापित करने के लिए इस संगठन को स्वयं संसाधन जुटाना होगा। इसके लिए सदस्यता शुल्क, चंदा एवं अन्य मान्य तरीके अपनाए जा सकते हैं। वित्तीय सहायता आवर्ती एवं अनावर्ती दोनों प्रकार के प्रशासनिक व्यय के लिए 15 वर्षों तक दी जाएगी और यह आशा की जाती है कि उसके बाद यह संगठन आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर दी जाएगी।

पंचायती राज व्यवस्थाओं को भी प्रेरित किया जाएगी कि वे इस राष्ट्रीय नीति के कार्यान्वयन में भाग लें। बूढ़े लोगों से संबंधित स्थानीय समस्याओं का समाधान करें। उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखे और उनके लिए विभिन्न कार्यक्रमों का संपादन करें। इस कार्य के लिए विभिन्न मंच बनेंगे जिन पर बूढ़े लोगों की चिंताओं एवं उनके समाधान के लिए किए जाने वाले प्रयासों पर चर्चा होगी। यह प्रयास किया जाएगा कि ऐसे मंच पंचायत, ब्लॉक एवं जिला स्तर पर बने। उनमें महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा। पंचायतों द्वारा योजनाएँ बनाई जाएगी जिनके अंतर्गत बूढ़े लोग अपनी प्रतिभा एवं कौशल का विकास कर सकेंगे और स्थानीय स्तर पर उनका उपयोग कर सकेंगे। ग्राम पंचायतों की सामाजिक न्याय समितियों का सहयोग प्राप्त करना भी इन प्रयासों में शामिल होगा। ये समितियां इस नीति के सफल बनाने के लिए विभिन्न उपाय सुझाएंगी।

विभिन्न स्तरों पर इस नीति के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर लोक प्रशासन के विशेषज्ञों का सहयोग लिया जाएगा। वे इस नीति के कार्यान्वयन, समन्वय एवं निरीक्षण के लिए बनने वाले संगठनात्मक ढांचे का विवरण तैयार करेगें।

स्त्रोत: सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 3/27/2023



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