अरहर चना मसूर की उकठा अवरोधी प्रजातियां कौन-कौन सी है यह कहां से प्राप्त हो सकती है?
अरहर उपास-120, चना अवरोधी, उदय, मसूर के-75 विकास खण्ड स्तर तथा न्याय पंचायत स्तर पर स्थापित राजकीय कृषि बीज भण्डार एवं सहकारिता विभाग के बीज भण्डार तथा क्रय-विक्रय समितियों के माध्यम से।
जैव उर्वरक एजेटो-बैक्टर, राइजोबियम कल्चर एवं पीऋएस0बी0 कहां से प्राप्त कर सकते है इसके प्रयोग की विधि क्या हैं ?
तीनों जैव उर्वरक राष्ट्रीय उर्वरक संस्थान, गाजियाबाद एवं कृषि विभाग की जैब उर्वरक प्रयोगशालाओं से प्राप्त कर सकते हैं। इनका उपयोग बीज उपचार एवं मृदा उपचार के रुप में किया जा सकता है। एक पैकिट 10 किलोग्राम बीज के लिये पर्याप्त होता है। पानी के साथ लैप जैसे बनाकर बीज पर हाथ धीरे-धीरे मल देते है तथा छाये में सुखाकर बीज की बुवाई कर देना चाहिए।
फली छेदक कीट का नियंत्रण कैसे किया जा सकता हैं ?
एन0पी0बी0 300 से 500 एल0ई0 कल्चर प्रति हैक्टेयर अथवा इण्डोसल्फन 35 ई0सी0 1.25 लीटर प्रति हैक्टैयर अथवा डाईमेकान 259 मिली0 प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करके नियंत्रण किया जा सकता है।
आई0पी0एम0 क्या होता है तथा इसके क्या लाभ हैं ?
कीट एवं व्याधियों का रासायनिक कीट/रोग नाशकों के साथ-साथ जैब कीट नाशकों द्वारा आर्थिक क्षति स्तर से ऊपर हो जाने पर ही नियंत्रण करना ही आई0पी0एम0 कहलाता हैं।
दलहनी फसलों हेतु जैविक नियंत्रण कैसे कर सकते हैं? एन0पी0बी0 क्या होता है और कहां से प्राप्त कर सकते हैं ?
जैविक नियंत्रण एन0पी0बी0, बी0टी0, नीमतेल, ट्राइकोडरमा तथा मित्र कीट के प्रयोग से कर सकते हैं। एन0पी0वी0 न्यूक्लियर पालीहैड्रासिस वायरस है जो उल्लियों द्वारा तैयार किया जाता है। यह भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर, आई0पी0एम0 लैम, वाराणसी, मथुरा, बरेली, आजमगढ़, हरदोई, सैनी (कौशाम्बी), उरई (जालौन) आदि केन्द्रों से तथा कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
कीट/रोग नियंत्रण हेतु अनुदान की सुविधायें कहां से प्राप्त की जा सकती हैं ?
विकास खण्ड स्तर पर स्थापित कृषि रक्षा इकाइयों तथा सहकारिता विभाग के साधन सहकारी समितियों के गोदाम तथा एग्रो केन्द्रों द्वारा।
वन रोज जानवरों द्वारा दलहनी फसलों के बचाव हेतु क्या व्यवस्था हैं ?
केवल जिलाधिकारी से अनुमति लेकर उन्हें मार सकते हैं। फसलों के बचाव हेतु गोबर पानी का घोल बनाकर पत्तियों पर छिड़काव करके तथा धोखा मानव आकृति बनाकर खेत में खड़ा करके।
चना में सिंचाई कब और कितनी करें ?
पहली सिंचाई फूल आने के पहले 45 से 60 दिन के फसल पर तथा दूसरी सिंचाई दाना बनते समय। कुल 02 सिंचाईयां की जा सकती है।
मटर की फसल में सिंचाई का उपयुक्त समय क्या हैं ?
फूल आने के बाद पहली सिंचाई तथा दूसरी सिंचाई दाना बनते समय कनी चाहिए।
क्या चने में डी0ए0पी0 का छिड़काव किया जा सकता हैं ?
फूल आने से पहले डाई अमोनियम फास्फेट की 2 प्रतिशत घोल का छिड़काव किया जा सकता हैं।
दलहनी फसलों में भरपूर उपज नहीं मिल पाती है, वानस्पतिक वृद्धि अधिक होने से फलियां कम बनी है क्या किया जाय ?
मृदा परीक्षण के आधार पर नत्रजन की मात्रा खेत में डाली जाय। आवश्यकतानुसार ही सिंचाई की व्यवस्था करें।
ऊसरी क्षेत्र में दलहनी फसलों में भरपूर उपज नहीं मिल पाती है, वानस्पतिक वृद्धि कम होने से फलियां कम बनती है क्या किया जाय ?
चना की उपयुक्त प्रजाति करनाल चना-1 को प्रयोग में लायें।
मृदा परीक्षण कराने के क्या लाभ हैं तथा इसकी सुविधा कहां से प्राप्त की जा सकती हैं ?
संतुलित उर्वरक प्रयोग से उत्पादन में वृद्धि प्राप्त की जा सकती है और धन की बचत हो सकती है।
मृदा स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
मृदा में विकार से बचा जा सकता है। जनपदीय एवं मण्डलीय भूमि परीक्षण प्रयोगशालाओं तथा सचल मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं द्वारा।
मसूर में सिंचाई कब-कब की जायें ?
पहली सिंचाई फूल आने से पूर्व तथा दूसरी सिंचाई आवश्यकतानुसार फली बनने के समय।
राजमा की कीट एवं व्याधियों से सुरक्षित रखने हेतु क्या करें ?
बीज शोधन हेतु थीरम या वाविस्टीन 3 ग्राम प्रतिकिलो बीज में मिलाकर तथा मोजेक नियंत्रण हेतु इन्डोसल्फान नामक रसायन की 1.25 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर दवा आवश्यक पानी में घोल कर छिड़काव कर के फलस सुरक्षित रख सकते है। मौजेक का वाहक कीट भुनगा हैं जिसका नियंत्रण आवश्यक है।
क्या राष्ट्रीय दलहन विकास योजना के अन्तर्गत मेरा जनपद चयनित हैं ?
कुल 49 जनपद चयनित हैं। जिले के जिला कृषि अधिकारी से जानकारी की जा सकती है।
राष्ट्रीय दलहन विकास योजना के अन्तर्गत कौन-कौन सी सुविधायें अनुमान्य हैं?
बीडर बीज क्रय, बीज उत्पादन, खण्ड प्रदर्शन, आई0पी0एम0 प्रदर्शन, कृषि यंत्र, कृषि रक्षा उपकरण, प्रशिक्षण, बखारी क्रय, कीट नाशक रसायन क्रय, राइजोवियम कल्चर क्रय आदि मदों पर सुविधा अनुमन्य हैं। जिला कृषि अधिकारी से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं।
स्रोत: कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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