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झारखंड में अम्लीय भूमि की समस्या एवं निदान

भूमिका

भारत वर्ष में 49 मिलियन हेक्टेयर भूमि अम्लीय प्रकृति की है और इनमें से 26 मीलियन हेक्टेयर भूमि का पी.एच. मान 5.5 से कम है एवं शेष 23 मीलियन हेक्टेयर भूमि का पी.एच. मान 5.6 से 6.5 के बीच है।

आम्लिक मिट्टियों में पैदावार एवं उर्वरकों की दक्षता बढ़ाने के लिए मिट्टी की अम्लीयता का सुधार चूना तत्व डालकर किया जाता है। जिस खेत की मिट्टी का पी.एच. मान 5.5 से कम हों, ऐसे मिट्टियों में खासकर दलहनी, तेलहनी एवं मक्का जैसे फसलों की सफल पैदावार के लिए चूना तत्व जैसे – बेसिक स्लैग/चूना/डोलोमाईट का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है।

झारखंड के 22 लाख हे. खेती योग्य भूमि में से 10 लाख हेक्टेयर मिट्टी का पी.एच.मान 5.5 से कम पाया गया है। जिन जिलों में इनकी अधिकता 50 प्रतिशत से अधिक भूमि में पाया गया, इसे तालिका-1 में दर्शाया गया है। ऐसी मिट्टियों में उपलब्ध स्फूर (फ़ॉस्फेट) की मात्रा भी कम होती है, जिससे फसल की उत्पादकता में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

पूर्वी भारत के बोकारो, जमशेदपुर (झारखंड), भिलाई (मध्यप्रदेश), राउरकेला (उड़ीसा), दुर्गापुर तथा बर्नपुर (पं. बंगाल) में इस्पात सयंत्र है। इनके द्वारा काफी मात्रा में स्टील उत्पादन होता है। यहाँ प्रति 1000 किलोग्राम स्टील के साथ 200-250 ग्राम बेसिक स्लैग का अवशिष्ट निकलता है। स्थानीय स्तर पर सुलभ बेसिक स्लैग के उचित उपयोग एवं प्रबंधन से अम्लीय मिट्टी में सुधार लाया जा सकता है।

बेसिक स्लैग में आमतौर पर 35-40 प्रतिशत कैल्शियम आक्साईड तथा 2 से 3 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है, जिससे अम्लीय मिट्टी की फसल पैदावार में बहुत लाभ पहुँचता है। झारखंड की मिट्टी में फास्फोरस तथा कैल्शियम की भी कमी पाई गई है जिसे बेसिक स्लैग के प्रयोग से दूर किया जा सकता है तथा फसल उत्पादन में वृद्धि लाई जा सकती है।

तालिका 1: 50 प्रतिशत से अधिक आम्लिक भूमि वाले जिलें एवं जिलों में उपलब्ध स्फूर की स्थिति

जिला

खेती योग्य भूमि

’00 हेक्टेयर

आम्लिक मिट्टियाँ

(<5.5 पी.एच.)

’00 हेक्टेयर

प्रतिशत आम्लिक भूमि

उपलब्ध स्फूर (फ़ॉस्फेट) की कमी (%)

बोकारो

1635

1136

69.5

66.0

धनबाद

1391

834

60.0

68.8

पूर्वी सिंहभूम

1744

1259

72.7

88.7

गिरिडीह

2953

1657

56.1

79.0

गुमला

4147

2878

69.4

80.4

हजारीबाग

2434

1283

52.7

57.8

जामताड़ा

1375

884

64.3

73.1

लोहरदगा

954

683

71.6

15.6

राँची

5241

3836

73.2

40.0

सराईकेला

1449

972

67.1

94.9

सिमडेगा

2930

2144

73.2

90.5

पश्चिमी सिंहभूम

3821

2808

73.5

95.3

बेसिक स्लैग के गुण

बेसिक स्लैग इस्पात उद्योग का एक अवशिष्ट है जो डबल सिलिकेट एवं फ़ॉस्फेट ऑफ़ लाइम है। बेसिक स्लैग को चूर्ण के रूप में मिट्टी की अम्लीयता को दूर करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसके उपयोग के लिए बेसिक स्लैग में निम्नलिखित गुणों का होना जरूरी है:

· बेसिक स्लैग का चूर्ण 80 मेस वाली चलनी से पार होना चाहिए, ताकि इसे मिट्टी में आसानी से मिलाया जा सकें।

· इसमें कैल्सियम आक्साईड की मात्रा 35 से 40 प्रतिशत अवश्य होना चाहिए।

· लोहा तथा दूसरे तत्वों जैसे – निकेल, टाईटेनियम एवं क्रोमियम इत्यादि की मात्रा कम से कम होना चाहिए ताकि इसके व्यवहार से मिट्टी के गुण में प्रतिकूल असर नहीं पड़े तथा पर्यावरण को क्षति भी नहीं पहुँचे।

बेसिक स्लैग का व्यवहार कैसे किया जाए?

अम्लीय मिट्टी में चूना, डोलोमाईट तथा बेसिक स्लैग के व्यवहार से फसलों की उत्पादकता बढ़ती है तथा मिट्टी के भौतिक,रासायनिक तथा जैविक गुणों में सुधार होता है।

अनुसंधान से यह पाया गया है कि मात्र 2-5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बेसिक स्लैग की मात्रा को प्रतिवर्ष बरसात के मौसम में बुआई के समय पंक्तियों में डालना लाभकारी हैं। क्योंकि चूना तत्व कम घुलनशील होते है, इसलिए बारीक पाउडर के रूप में बीज के नीचे लाइनों में डाल कर फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है। साथ-साथ जैविक खाद एवं रासायनिक उर्वरक की अनुशंसित मात्रा का व्यवहार किया जाना चाहिए। लेकिन इसे प्रत्येक वर्ष डालना होता है, जब तक भूमि का पी.एच. मान लगभग 6.0 तक न पहुँच जाए। खरीफ फसलों में यदि किसी कारणवश बेसिक स्लैग का उपयोग नहीं किया गया हो, तो रबी फसलों में बुआई के समय मिट्टी की अम्लीयता के आधार पर बेसिक स्लैग का व्यवहार किया जा सकता है।

बेसिक स्लैग का फसलों की पैदावार पर असर

चूने के रूप में बेसिक स्लैग के साथ फसलों में संतुलित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग से उपज में वृद्धि पाया गया है। तालिका 2 को देखने से स्पष्ट होता है कि बेसिक स्लैग के साथ संतुलित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग करने से मटर (173-200 प्रतिशत) एवं चना (95-150 प्रतिशत) में सर्वाधिक उपज में वृद्धि पाई गई है। साधारणतया यह वृद्धि विभिन्न फसलों में 15 से 200 प्रतिशत तक देखी गई है।

तालिका 2: बेसिक स्लैग के साथ संतुलित उर्वरक के प्रयोग से उपज में वृद्धि

फसल

उत्पादन में वृद्धि

(प्रतिशत)

अभ्युक्ति

मक्का

25-50

बेसिक स्लैग के साथ गोबर खाद या कम्पोस्ट के व्यवहार करने से लाभ अधिक होता है।

चना

95-150

मूंगफली

15-20

गेहूँ

18-27

मटर

173-200

सरसों

30-40

गेहूँ

30-35

अत: अम्लीय भूमि में बेसिक स्लैग के सही प्रयोग से कृषि उपज में बढ़ोतरी की जा सकती है। जहाँ भूमि का पी.एच. मान 5.5 या इससे नीचे हो, वहाँ बेसिक स्लैग की माँग की सही मात्रा को मिट्टी परीक्षण के द्वारा निर्धारित मात्रा का हर साल बरसात के समय बुआई के साथ पंक्तियों में डालने से कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी और भूमि की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। इससे मिट्टी के अम्लीयता में कमी आएगी तथा फ़ॉस्फोरस की उपलब्ध मात्रा में वृद्धि होगी। झारखंड के 10 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य अम्लीय भूमि में रासायनिक खादों के साथ बेसिक स्लैग डालकर यदि उचित प्रबंधन किया जाए तो प्रदेश में खाद्यान्न उत्पादन को लगभग 10 लाख टन प्रतिवर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।

स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार

अंतिम बार संशोधित : 10/3/2019



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