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मध्य प्रदेश की जैविक कृषि नीति 2011

मध्य प्रदेश की जैविक कृषि नीति 2011

प्रस्तावना

1.1 मध्यप्रदेश को देश में सर्वाधिक प्रमाणित जैविक कृषि क्षेत्र होने का गौरव प्राप्त है। प्रदेश जैविक खेती की अकूत संभावनाओं से भरा है। राज्य की अर्थव्यवस्था के समग्र विकास में कृषि के महत्व को प्रतिपादित करने हेतु, मध्यप्रदेश शासन ने अनेक प्रभावी कदम उठाये हैं। राज्य की कृषि, अनेक कृषि एवं गैर कृषि गतिविधियों का वृहद मिश्रण है, जो उस पर निर्भर विभिन्न संस्थाओं एवं व्यक्तियों की जीविका का आधार है। जैविक खेती राज्य कृषि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

राज्य की प्रतिबद्धता

2.1 कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने हेतु, राज्य सरकार वचनबद्ध है । इसके अंतर्गत संसाधन प्रबंधन, तकनीकी विकास एवं व्यापक प्रसार, उत्पादन वृद्धि हेतु प्रभावी अनुसंधान द्वारा देश के प्रगतिशील राज्यों के समकक्ष उत्तरोत्तर बढ़ती वृद्धि दर प्राप्त करना आदि इन विभिन्न मुद्दों को ध्यान में रख जैविक कृषि की रणनीति तैयार की गयी है।

2.2 प्रस्तावित जैविक कृषि नीति प्राथमिक उत्पादकों जैसे कृषक एवं उपभोक्ताओं को जैविक उत्पादनों की संपूर्ण श्रृंखला को विकसित करने हेतु उपयुक्त वातावरण निर्मित करने के लिए संकल्पित है। यह नीति उत्पादन से आहार तक के सिद्धांत को समाहित कर सभी के लिए स्वास्थ्यवर्धक भोजन की प्रचुर उपलब्धता आश्वस्त करती है।

2.3 प्रस्तावित नीति, जैविक कृषि को वर्तमान की अनेक ज्वलंत समस्याओं जैसे भूमण्डलीय जलवायु परिवर्तन की विभीषिका, उत्पादन मूल्य की तीव्र वृद्धि एवं रासायनिक इनपुट की उत्तरोत्तर बढ़ती कीमतें आदि जैसी समस्याओं जो लघु एवं सीमांत कृषकों के समक्ष है, के लिये एक उपयुक्त अवसर प्रस्तुत करती है। यह नीति, प्राथमिक उत्पादन कार्यकलापों में व्यस्त ग्रामीण समुदाय को दीर्घावधि अवसर प्रदान करने एवं उद्यमों को भी कृषि क्षेत्र में मूल्य संवर्धन का भागीदार बनाती है।

2.4 जैविक कृषि व्यवहारिक दृष्टिकोण तथा उपयुक्त युक्तियुक्त रणनीति के माध्यम से जैविक उत्पादों को बाजार में बिकने वाले कम मूल्य वाले फार्म उत्पादों से उच्च मूल्य पर बिकने वाले उत्पाद में परिवर्तित करने हेतु एक समग्र प्रयास है। इसके साथ-साथ वेल्यू चेन भी विकसित बाबत् भी सोचा गया है।

विजन

मध्यप्रदेश जैविक कृषि के क्षेत्र में एक विकसित एवं अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित हो, जहाँ कृषक समुदाय स्थायी जीविकोपार्जन, प्रदूषण मुक्त खाद्य सामग्री, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, सतही जल एवं भू-गर्भजल की क्षतिपूर्ति कर ग्रामों में ही नये रोजगार के अवसर उत्पन्न करने का मार्ग प्रशस्त करे।

नीतिगत लक्ष्य

4.1 जलवायु परिवर्तन की विभीषिका एवं वैश्वीकरण का कृषि उत्पादों पर पड़ते प्रभाव को कम करने तथा इस हेतु उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि लाने के लिये नीति का क्रियान्वयन किया जायेगा। ऐसा करते समय सुदूर पिछड़े क्षेत्रों के कृषक समुदायों के हितों को दृष्टिगत रखा जायेगा।

4.2 दीर्घावधि

कृषि – पारस्थितिक तंत्र प्रबंधन के द्वारा अक्षय पर्यावरण को प्राप्त कर प्रमुख योजनायें जैसे मृदा-जैविक कार्बन भण्डारण में वृद्धि एवं उसका अनुमापन, मृदा स्वास्थ्य को समुन्नत करना, भू-जल-प्रदूषण विशेषकर हानिकारक रसायनों को कम करना तथा जैव विविधता में वृद्धि करना है।

4.3 मध्यावधि

वर्तमान कृषि प्रणाली में कृषि निवेश पर आय में वृद्धि करने हेतु एक ओर कृषि लागत न्यायोचित करना तथा दूसरी ओर बाजार आधारित प्रक्रियाओं को अपनाकर नकद आय में वृद्धि कर खेती को लाभ का व्यवसाय बनाना।

4.4 अल्पावधि

क्षमतावान्, व्यवसायिक मानव संसाधन तथा संस्थाओं के विकास द्वारा, प्रमुखतः लघु एवं सीमान्त कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर परिवारों के लिए तकनीकी एवं बाजार सुरक्षा को आवश्यकतानुसार विकास कर उचित वातावरण निर्मित करना, उपयुक्त अधोसरंचना को तैयार करना, जैविक उत्पादन प्रक्रियाओं हेतु आवश्यक गुणवत्ता युक्त आदानों की उपलब्धता को सुनिश्चित करना, जैविक अपशिष्टों का समुचित उपयोग कर वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोत विकसित करना।

जैविक कृषि

5.1 परिभाषाएँ

5.1.1 नेशनल प्रोग्राम ऑन आर्गेनिक प्रोडक्शन के अनुसार जैविक कृषि एवं कृषि प्रणाली एक प्रबंध है, जो एक पारिस्थितिकी तंत्र को तैयार करता है, जिसमें कृत्रिम बाह्य आदान जैसे रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशकों के बिना उपयोग सस्टेनेबल उत्पादन प्राप्त किया जाता है।

5.2 संभावित क्षेत्र

5.2.1 समस्त धान्य फसलें, सब्जियाँ, फल, मसालें, सुगंधित एवं औषधीय फसलें जो न्यूनतम रासायनिक इनपुट का उपयोग कर उगाई जाती है। इन क्षेत्रों को प्राथमिकता के आधार पर प्रस्तावित नीति की परिधि में रखा जाएगा।

5.2.2 वह क्षेत्र जिसमें प्रमुख फसलें जैसे सोयाबीन, गेंहू, दलहन, कपास, फल एवं सब्जी आदि जो वर्तमान में रासायनिक इनपुट का प्रयोग करके उगाई जा रही हैं।

5.2.3 वन आधारित उत्पादन एवं उनसे बनी वस्तुएं : संस्थाएं जो वन आधारित एवं उनसे बनी वस्तुओं के लिए उत्तरदायी है, उन्हे त्वरित रुप से बाजार उपलब्धता की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना तथा अनुपयोगी क्षमता के समुचित उपयोग को प्राथमिकता देना।

5.2.4 सभी पशु एवं वनस्पति जनित कृषि उत्पादन आदान जैसे कम्पोस्ट खाद, नगरीय मल की विघटित खाद, सूक्ष्म जैविक तरल खाद, जैव उर्वरक, जैव कीटनाशक, फफूद नाशक, पाप एवं सूक्ष्म जीव जनित हार्मोन्स एवं एन्जाइम जो जैविक कृषि क्षेत्र के विधिसम्मत् जैविक मानकों के अनुरुप है, वे नीति के कार्यक्षेत्र में प्रमुख अंग रहेंगे।

5.3 परिदृश्य

5.3.1 स्वतः जैविक क्षेत्र :- प्रदेश में अनेक क्षेत्र रासायनिक एवं बाह्य आदानों

के उपयोग रहित क्षेत्र है। नीति का मुख्य उद्देश्य जैविक मानकों द्वारा ऐसे क्षेत्रों को विधिसम्मत् प्रोत्साहित एवं प्रमाणित करना है, जहां ऐसे निषिद्ध आदान, प्राथमिक उत्पादकों एवं कृषकों द्वारा कम से कम उपयोग किये गये हो।

संभावित क्षेत्रों की पहचान : प्रदेश मे कई जिले, ग्राम, विकासखण्ड एवं ग्राम पंचायतें ऐसी है जो राज्य औसत से 50 से 60 प्रतिशत कम बाह्य आदान, जैसे रसायनिक उर्वरक, कृषि रसायन आदि का उपयोग करते है, ऐसे क्षेत्रों को प्राथमिकता के आधार पर लक्षित किया जायेगा। अधिकांशतः जनजातीय जिले/विकासखण्ड जैसे मण्डला, डिण्डौरी, बैतूल, झाबुआ, अलीराजपुर आदि जैविक कृषि के विकास के लिए अनुकूल है।

5.3.1.1 संस्थागत् क्षेत्र :- राज्य शासन के विभाग, जैसे किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग एवं पशुपालन विभाग के प्रक्षेत्र, राज्य बीज प्रक्षेत्र, कृषि विकास केन्द्र प्रक्षेत्र, राज्य उद्यानिकी प्रक्षेत्र, रेशम उत्पादन प्रक्षेत्र, मत्स्य उत्पादन प्रक्षेत्र, राज्य कृषि विश्वविद्यालय प्रक्षेत्र पर जैविक कृषि की विविध विधाओं पर प्रशिक्षण, शिक्षण, अनुसंधान एवं विकास के कार्यक्रम किये जाएगें। इन प्रक्षेत्रों के साथ-साथ प्रगतिशील कृषकों के खेतों पर जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए जैविक कृषि प्रदर्शन आयोजित किये जायेगें जिससे कृषकों को यह विश्वास दिलाया जा सके कि जैविक खेती से उत्पादन ओर आय में कमी नहीं होगी।

5.3.1.2 अधिसूचित जैविक क्षेत्र : -राज्य के पास प्राकृतिक चारागाहों, प्राकृतिक उपवनों, सुदूर जनजातीय जिलों में अप्रदूषित कृषि भूमि का वृहद् क्षेत्र तथा नर्मदा घाटी के क्षेत्र उपलब्ध हैं, ऐसे क्षेत्रों को भविष्य में अधिसूचित किये जाने पर विचार किया जाएगा।

5.3.1.3 नान टिंबर फारेस्ट प्रोड्यूस औषधीय एवं सुगंधित वनस्पतिः

गैर काष्ट वन उत्पाद, औषधीय एवं सुगंधित पौधे जो प्राकृतिक उपवनों में स्थानीय जनजाति के लोगों द्वारा उगाये जाते है, उन लोगों को इन उत्पादों से संबंधित अनूठी परंपरागत तकनीक का ज्ञान हैं। प्रस्तावित नीति में जनजातियों के पास उपलब्ध इस ज्ञान तथा संसाधन का क्रमबद्ध एवं वैज्ञानिक सारणीकरण किया जायेगा।

5.3.1.4 जैविक एवं नैसर्गिक रंग :- राज्य के प्राकृतिक एवं घने वनों में प्रचुर मात्रा में पलाश, रोहिणी इत्यादि के पुष्प उपलब्ध है। पुष्पों के अतिरिक्त कंद, मूल, फल, वनस्पति आदि की वन संपदा भी जैविक कृषि नीति के अन्तर्गत समयानुकूल लाभ वृद्धि के अवसर प्रदान करेगी। इनका क्रमबद्ध एवं वैज्ञानिक प्रसंस्करण आवश्यक है, जिससे इन्हें जैविक प्रमाणीकरण द्वारा उच्च मूल्यों पर विक्रय किया जा सके।

5.3.1.5 पशुजन्य उत्पादः- पशुजन्य उत्पादों जैसे दूध अभी भी उत्पादों की मुख्य सूची में सम्मिलित नही किये जाते है। ऐसे उत्पादों को उत्पादन की मुख्य धारा में लाकर इस नीति के अंतर्गत प्राथमिक उत्पादकों को लाभान्वित किया जायेगा।

5.3.2 जैविक कृषि हेतु सद्प्रयासः- किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने के प्रयास किये जा रहे है। प्रारंभिक प्रयासों से जैविक तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी के अंगीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ है। नीति, ऐसे प्रयासों को नवीन उत्साह एवं क्रमबद्ध तथा सुनियोजित क्रियाशीलता के साथ अनवरत रखेगी।

5.3.2.1 सिंचित एवं अधिक रसायन उपयोग करने वाले क्षेत्र :- प्रदेश के ऐसे क्षेत्र जहॉ सिंचित रकबा है तथा अधिक उत्पादन लिया जाता है व रसायनिक उर्वरकों तथा कृषि रसायनों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है जैसेनर्मदा के किनारे के क्षेत्र इन क्षेत्रों को चिन्हांकित कर प्रारंभिक तौर पर कृषक के कुल रकबे में से कुछ क्षेत्र में जैविक कृषि को प्रोत्साहित किया जाएगा।

5.3.2.2 न्यून बाह्य आदान क्षेत्रों की पहचानः- सुदूर पिछड़े अंचलों में नैसर्गिक जैविक क्षेत्रों के अतिरिक्त, जनजातीय अंचल, वनांचल एवं अल्प-उत्पादन क्षमता वाले क्षेत्र, नवीन जैविक नीति के दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इन क्षेत्रों में जहाँ रासायनिक मूल के बाह्य आदानों का उपयोग राज्य औसत से कम होता है, ये अंचल ग्राम, ग्राम पंचायतों, विकासखण्ड एवं जिला जैसे मंडला, डिन्डौरी, झाबुआ, अलीराजपुर आदि नीति के अंतर्गत जैविक क्षेत्र के विस्तार हेतु एक और अवसर प्रदान करते है । इन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जायेगी।

5.3.2.3 महत्वपूर्ण जैविक उत्पादों की मूल्य श्रृंखला का विकासः- प्रस्तुत जैविक कृषि नीति एक श्रृंखलाबद्ध, उत्पादन से विपणन तक की व्यवस्था प्रतिपादित करती है। यह नीति प्राथमिक उत्पादकों की संस्थाओं का गठन जैसे प्रोड्यूसर कम्पनियाँ, उत्पादन संघ एवं सहकारी समितियों के रूप में कर राज्य में स्थित बड़ी संस्थाओं से बराबरी के स्तर पर कार्य करने को प्रोत्साहित करेगी।

5.3.2.4 जैविक उत्पाद विपणन केन्द्रों का विकासः- विपणन केन्द्रों के आसपास के क्षेत्र को विपणन केन्द्रों से संबद्ध कर एक जैविक परिधि वृत की अवधारणा का विकास किया जाएगा। इस तरह की परिधि में आने वाले जैविक उत्पादों के क्षेत्रीय केन्द्रों का संचालन एवं प्रबंधन प्राथमिक उत्पादक संस्थाओं, जैविक आदान उत्पादकों, विपणन कर्ताओं, प्रसंस्करण कर्ताओं, व्यापार एवं उद्योग से जुड़ी संस्थाओं जैसे सहकारी विपणन संस्थाओं, विपणन संघ, म.प्र. राज्य कृषि उद्योग विकास निगम तथा म.प्र. राज्य कृषि विपणन बोर्ड आदि के द्वारा किया जायेगा। जैविक उत्पादन के ये क्षेत्रीय केन्द्र इस नीति का महत्वपूर्ण भाग होगें एवं एकल खिड़की के रूप में जैविक उत्पाद सामग्री के उत्पादन एवं विपणन के कार्य कलापों का केन्द्र बिन्दु होंगे।

5.3.3 सुरक्षित एवं अक्षय कृषि हेतु जैविक कृषिः- इन्टरनेशल फेडरेशन फार आर्गेनिक एग्रीकल्चर मूवमेंट के द्वारा जैविक कृषि के 4 प्रमुख सिद्धांत स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी, स्वच्छता एवं सावधानी प्रस्तावित किये गये है। ये सिद्धान्त सुरक्षित एवं अक्षय कृषि हेतु सर्वोत्तम मानक माने जाते रहे हैं। रासायनिक उर्वरकों का बढ़ता उपयोग, हानिकारक कीटनाशकों का अनियमित उपयोग, अनुवांशिक संवर्धित तकनीक से विकसित प्रमुख फसलों की प्रजातियों, अस्तित्व नाशी क्रिया कलाप जैसे -पादपावशेषों को जलाना, यांत्रिकता एवं रसायनिकता से मृदा जीव एवं वनस्पति को भस्म करना, सड़न योग्य पदार्थों की उपलब्धता कम करना, कटाई यंत्रों से भूसा जैसे पशु भोज की उपलब्धता नष्ट करना आदि हतोत्साहित किया जाएगा। नीति इन सभी प्रकृति एवं मानव विरोधी कार्यकलापों एवं रूग्ण व्यवस्था पर अंकुश लगाने का प्रयास करेगी तथा इनको पर्यावरण के हित में क्रमबद्ध एवं वैज्ञानिक तरीका प्रदान करेगी | नीति का प्रयास है कि ऐसे क्षेत्रों में राजकीय तथा अराजकीय हस्तक्षेप, जागृति एवं योग्यता विकास तथा अनुसंधान एवं विकास के नवीन आयाम, गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टिस हेतु प्रोत्साहित करेगी।

5.3.4 उच्च बाजार हेतु जैविक कृषिः- पिछले दशकों में कृषि बाजार में प्रमाणित जैविक उत्पाद की अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, नवीन जैविक कृषि नीति इस क्षेत्र में उच्च प्राथमिकता के साथ लघु एवं सीमान्त प्राथमिक उत्पादकों एवं जैविक कृषको को अधिक से अधिक लाभार्जन के अवसर प्रदान करेगी।

5.3.5 कार्बन बाजार हेतु जैविक कृषि

5.3.5.1 भूमि में मृदा कार्बनिक पदार्थ की वृध्दि करना अति आवश्यक है। जीवन्त मृदा के कार्य पशु एवं पौधों के अवशेषों के सड़ने, गलने से बने पदार्थों के मिश्रण से संपादित होते है मृदा में ही कार्बनिक पदार्थों के पुनर्चकीकरण को प्रोत्साहित किया जाएगा।

5.3.5.2 जैविक तकनीकों में फसल चक के महत्व को देखते हुए जैव विविधता स्थापित करने के लिए जीवों को आवश्यक तत्व जैसे- आवास, प्रजनन, पोषण आदि सुगमता से प्राप्त होते है। जैविक कृषि में संश्लेषित् कृषि रसायनों का उपयोग सर्वथा निषेध किया जायेगा।

5.3.5.3 नीति के अंतर्गत कार्बन शोषण के मापन, अनुश्रवण, अंकेक्षण एवं प्रमाणीकरण हेतु एक व्यवहारिक प्रक्रिया स्थापित की जाएगी।

5.3.6 प्रसंस्करण उद्योगों के लिए जैविक कृषिः- इस नीति के अंतर्गत जैविक भोजन, खाद्य एवं प्रसंस्करित या डिब्बा बंद उत्पादों का विशेष रूप से उल्लेख अत्यावश्यक है, क्योंकि जैविक उत्पाद की व्यापक बाजार मांग को देखते हुए यह नीति प्राथमिक उत्पादकों, प्रसंस्करण उद्योगों एवं व्यापार जगत के लिए वांछित अवसर प्रदान करेगी।

अनिवार्यतायें

6.1 जैविक प्रमाणीकरणः- प्रमाणीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें पंजीकृत प्रमाणीकरण संस्थाऐं, लिखित में यह प्रमाणित करती है कि खाद्य पदार्थ या खाद्य नियंत्रण प्रणाली जैविक कृषि उत्पादन सिद्धांतों के अनुरूप है इस हेतु कटाई पूर्व, कटाई उपरांत प्रक्रियाओ का पूर्व निरीक्षण आवश्यक है। प्रदेश में स्थापित जैविक प्रमाणीकरण संस्था राष्ट्रीय एवं अन्र्तराष्ट्रीय मापदण्डों को दृष्टिगत रखते हुए जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण हेतु कार्यवाही करेगी, जिससे जैविक के नाम पर गैर जैविक उत्पादों के प्रवेश की संभावनाएँ न रहें।

6.2 राज्य स्तरीय संस्थाऐं:- नीति के क्रियान्वयन से राज्य स्तरीय प्रमाणीकरण संस्था का सुदृढ़ीकरण संभव हो सकेगा, जो प्रदेश में जैविक खेती का मार्गदर्शन एवं वैधानिक प्रमाणीकरण का कार्य करेगी। इस नीति के क्रियान्वयन से राष्ट्रीय एवं अंर्तराष्ट्रीय स्तर की आवश्यकताओं एवं भावी चुनौतियों का सामना किया जाना संभव होगा। वर्तमान स्थिति में नीति क्रियान्वयन हेतु प्रशिक्षित मानव संसाधन को चिन्हित करना एवं उसको इस योजना से जोड़ा जायेगा साथ ही यह नीति आदानों एवं उत्पादों की गुणवता बनाये रखने हेतु एक राज्य स्तरीय प्रयोगशाला स्थापित कर उपयुक्त सेवायें उपलब्ध कराने हेतु आवश्यक व्यवस्थायें करेगी।

6.3 उत्पादक समूह का प्रमाणीकरण:- उत्पादन समूह जो एक ही उत्पादन प्रणाली को अपनाते है इनका प्रमाणीकरण एक प्रबंधन एवं विपणन संस्था के द्वारा किया जा सकेगा। ऐसी फसलें जिनका कि उत्पादन एक समूह के द्वारा जो कि एक भौगोलिक क्षेत्र में स्थित हो, किया गया हो उनका सामूहिक प्रमाणीकरण किया जा सकेगा। उत्पादक समूह का अपने सभी उत्पादक सदस्यों की उत्पादन प्रक्रिया पर आंतरिक नियंत्रण होगा एवं उन्हें संपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया का ब्यौरा रखना होगा, ताकि जैविक प्रमाणीकरण के नियमों का पालन किया जा सके। उत्पादक समूह द्वारा अपने उत्पाद का एकत्रीकरण कर प्रसंस्करण, वितरण एवं विपणन करना होगा। नई जैविक कृषि नीति के द्वारा उत्पादों के प्रमाणीकरण, व्यय में कमी, उत्पादों की गुणवत्ता, विभिन्न मानकों में वृद्धि पूरी सावधानी एवं जिम्मेदारी से किया जा सकेगा।

6.3.1 आंतरिक नियंत्रण प्रणाली:- यह वह प्रणाली है जिसके द्वारा पंजीकृत सदस्यों का निश्चित समय पर निरीक्षण कर उत्पादन प्रक्रिया, उत्पादों, उनका भण्डारण, प्रसंस्करण, विपणन आदि का संपूर्ण सूचीबद्ध प्रक्रियाओं एवं मानक स्तरों के अनुरूप निरीक्षण एवं दस्तावेजीकरण कर बाह्य मान्य प्रमाणीकरण संस्था को वार्षिक अंकेक्षण हेतु उपलब्ध करवाती है। आंतरिक नियत्रंण प्रणाली सदस्यों, कृषकों को खरीदी, बिक्री एवं प्रशिक्षण के प्रत्येक बिन्दु पर मार्गदर्शन भी देती है। यह नीति सभी संबंधित संस्थाओं को एक मंच प्रदान करेगी, जिससे जैविक खेती का प्रचार-प्रसार एवं क्रियान्वयन संभव हो सकेगा एवं प्रबंधक के रुप में ये संस्थाएँ उत्पादकों को उच्चस्तरीय सेवाएं प्रदान कर सकेगी।

6.3.2 मान्यता प्राप्त प्रमाणित प्रबंधक, निरीक्षक एवं अंकेक्षको की व्यावसायिक सेवाऐं:- वृहद स्तर पर जैविक नीति के क्रियान्वयन हेतु यह आवश्यक है कि सभी संभावित माध्यमों को समुचित रुप से दोहन किया जाये इसके लिये ये आवश्यक है कि मानकीकरण की सेवाएं उच्च स्तरीय एवं विश्वसनीय हो ताकि प्रमाणीकरण भी प्रभावी हो, जिससे उत्पाद की वैधानिकता पर प्रश्नचिन्ह न लगे? इस नीति का मुख्य उद्देश्य यह भी है कि ग्रामीण युवा जो कि सुशिक्षित/ स्नातक/ स्नातकोत्तर हो वो प्रमाणीकरण एवं जैविक खेती में निपुण हो जाये, ताकि इस नीति के प्रचार–प्रसार एवं इच्छुक उत्पादकों को दिशा-निर्देश दे सके या उत्पादन में तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान कर सकें। नीति से वर्तमान प्रसार एवं प्रबंधन नीति को भी नई दिशा दी जा सकेगी। इससे स्थानीय ग्रामीण युवाओं को रोजगार मिल सकेगा एवं उन्हें स्वतंत्र या सामूहिक रुप से व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक, जैविक कृषि का विशेषज्ञ बनाने में मदद प्राप्त होगी।

6.4 सहभागी गारंटी पद्धतिः- सहभागी गारंटी पद्धति एक स्थानीय समूह (5 या अधिक कृषको के समूह) की स्वनियंत्रित सहयोग प्रणाली है, जो गुणवत्ता सुनिश्चितता मापक भारतीय कार्बनिक परिषद द्वारा अपना मार्का लगाने के लिए स्वीकृति प्रदान करती है जिसमे कि गुणवत्ता का उल्लेख रहता है। इन्टरनेशनल फेडरेशन आफ आर्गेनिक एग्रीकल्चर मूवमेन्ट द्वारा सहभागी गारंटी पद्धति को परिभाषित किया है। इस प्रकार यह सहभागिता गारंटी की पद्धति है। यह प्रमाणीकरण सहभागियों की सक्रिय भागीदारी तथा विश्वसनीयता के आधार पर तथा सामाजिक सूचना तंत्र पर आधारित है।

6.5 सहभागी गारंटी पद्धति के अंतर्गत ग्राम स्तर पर एक स्थायी समिति का गठन किया जाकर प्रमाणीकरण की कार्यवाही की जाना सुनिश्चित किया जाएगा।

6.6 राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मानक स्तरों की समानताः- अंतर्राष्ट्रीय मानक स्तरों के अनुरूप जैविक उत्पादन प्रारंभ होने से वास्तविक लाभ की प्राप्ति हो सकेगी। प्रस्तुत नीति में इसका ध्यान रखते हुए अपीडा ,जो देश की प्रमाणीकरण संस्थाओं को मान्यता प्रदान करने वाली संस्था है के मानको का पालन किया जायेगा।

जैविक आदान

जैविक खेती के मुख्य आदानों जैसे मृदा एवं पोषक पौध तत्व प्रदायक, जैविक कीटनाशक बीजों की किस्में, उन्नत तकनीक आदि है जो जैविक खेती क सिद्धांत के अंतर्गत आते हैं। मिट्टी में रसायनों के दुष्प्रभाव कम करने तथा जैविक खेती हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करने हेतु आवश्यक उपाय किये जायेंगे। गुणवत्ता नियंत्रण, पेकिंग, कीमत निर्धारण तथा यथा स्थान उपलब्ध कराने की प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण आयाम है जिसे राज्य स्तर पर संवैधानिक प्रावधानों, प्रक्रियाओं एवं संस्थानों की आवश्यकता है। नीति के तहत जैविक खेती के लिये जैविक आदानों को तैयार किये जाने संबंधी दिशा-निर्देश एवं नियंत्रण आदेश का प्रावधान किया जायेगा।

7.1 जैविक ऊर्जा तथा जैविक आदानों का सहयोजनः- जैव ऊर्जा विशेषकर गोबर गैस ऊर्जा के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता का खाद भी प्रदाय करते हैं। नीति से कम से कम घरेलू ऊर्जा के लिये गोबर गैस–बायोगैस के विकास के साथ-साथ जैव एकत्रीकरण व जैविक खादों को अधिक गुणवत्तायुक्त बनाया जा सकता है। प्रदेश के पास पर्याप्त तकनीकी एवं ज्ञान है जिसके द्वारा इस दोहरे उद्देश्य की पूर्ति की जा सकती है साथ ही वातावरण को प्रदूषणमुक्त रखा जा सकता है।

7.2 सुदूर अंचलों में बायो गैस उत्पादक कम्पनियों का गठन एवं प्रोत्साहन:- नीति बायो ऊर्जा व जैविक आदान उत्पादन को आर्थिक रूप से सक्षम एवं व्यापारिक स्तर पर लाभकारी बनाने व स्थायित्व प्रदाय करने में ग्रामीण युवाओं, प्राथमिक जैविक उत्पादकों, सी.बी.ओ. सी.एस.ओ. प्राईवेट एवं सहकारी उत्पादक कम्पनियों को प्रोत्साहित करने का प्रयास करेगी एवं इन संस्थाओं को अनुकूल वातावरण निर्माण करने, आवश्यक मार्गदर्शन एवं सहायता देने के लिए एक प्रक्रिया का निर्धारण भी करेगी। ये उत्पादन के साथ-साथ ग्रामीण युवाओं के लिये रोजगार के स्थायी अवसर भी प्रदान करने में सहायक होगी। राज्य शासन बायो गैस उत्पादक कम्पनियों को प्रोत्साहित करेगी।

7.3 शहरी जैविक कचरे की व्यवस्थाः- नीति सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से जन सहभागिता को आगे बढ़ाते हुये पब्लिक प्राईवेट सामुदायिक भागीदारी के तहत काम कर सकेंगी। शहरी क्षेत्रों की परीधि में स्थित ग्रामीण क्षेत्र जो कि कृषि योग्य क्षेत्रों से अलग-थलग हो गये हैं, जिनकी जैविक खेती में भागीदारी अधिकतम हो सकती है। इसका खेती के लिये उपयोग करने से रासायनिक खादों एवं दवाओं के कुप्रभाव कम किया जा सकेगा जिससे उस क्षेत्र के प्रदूषण को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी। नगरीय तथा ग्रामीण कचरे को बायोडिग्रेडेबिल तथा नान बायोडिग्रेडेबिल कचरे के रूप में पृथक-पृथक कर जैविक खाद बनाने की यूनिटें नगरीय प्रशासन तथा ग्रामीण पंचायत विभाग द्वारा स्थापित किये जाने की कार्यवाही की जायेगी। तैयार किये जाने वाले जैविक खाद को कृषि विभाग के माध्यम से कृषकों को उपलब्ध कराया जाएगा।

7.4 कार्बन व्यापार हेतु संरचना एवं संभावनाओं का विकासः- अभी भी जैविक तत्वों की उपस्थिति नापने के लिए हमारे पास उपयुक्त तकनीक नही है। नीति, उपरोक्त संदर्भ में अनुसंधान एवं विकास में संलग्न संस्थाओं को प्रोत्साहित करने में सहायक सिद्ध होगी। सबसे महत्वपूर्ण जैव ऊर्जा जो कि कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त होती है वह उत्पन्न होने वाली ग्रीन हाउस गैसों को रोकने में एवं कार्बन उत्सर्जन को कम कर भूमि एवं वनस्पति में शोषण करने का सफल प्रयास कर सकेगी। इस प्रकार शोषित कार्बन को सर्टीफाईड एमीशन रिडक्शन में परिवर्तित कर कार्बन के अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय का मार्ग प्रशस्त होगा। इसके फलस्वरूप सर्टीफाईड एमीशन रिडक्शन से प्राप्त आय राज्य में एक कार्बन फंड की स्थापना करने में सहायक होगा, जो भविष्य में इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के उपयोग में निवेश किया जा सकेगा। अतः राज्य के ऊपर इसके निवेश के भार में कमी लायी जा सकेगी।

7.5 गौवंश आधारित ग्रामीण अर्थ व्यवस्थाः- वैदिक काल से ही गाय का कृषि प्रणाली में माता के रूप में स्थान रहा है। नीति, आर्थिक दृष्टिकोण से राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अक्षय विकास की ओर अग्रसर करने में सहायक सिद्ध होगी। इस नीति के अंतर्गत राज्य में गौ वंश पर अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करते हुए नवीन तकनीकों के माध्यम से गौ वंश की गुणवत्ता, संवर्धन एवं गौ पालन को बढ़ावा देगी। विशेषकर लघु एवं सीमांन्त कृषकों को गौ पालन की और आकर्षित करने में सहायक होगी। इसके साथ-साथ निम्न आय वर्गीय लोगों के लिये रोजगार लाभदायी होकर आय के वैकल्पिक साधन प्रदाय करेगी, जिसके लिये पशुपालन विभाग को नई योजनायें विकसित करने की आवश्यकता होगी। प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में गौवंश आधारित आदर्श गौशालाएँ विकसित करने हेतु कार्यवाही की जाएगी। इन गौशालाओं को आस-पास के ग्रामों में जैविक कृषि विकसित करने के प्रयासों में जुड़ने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा।

7.6 शुष्क डेरियां:- शुष्क डेरियां जैव उर्जा, जैविक खाद एवं इसी तरह के अन्य उत्पादों के उत्पादन का एक अच्छा स्त्रोत बन सकता है। जिससे बड़ी संख्या में भूमिहीनों, महिलाओं, ग्रामीण युवकों, कृषि श्रमिकों एवं छोटे पशुपालकों को सार्थक रोजगार एवं स्थायी आजीविका प्राप्त हो सकेगी। कृषि में पशुधन को सम्मिलित करने के उद्देश्य से किसान कल्याण तथा कृषि विभाग तथा पशुपालन विभाग द्वारा एक समग्र परियोजना लागू की जाएगी।

7.7 गोबर गैस का शुद्धीकरण, बॉटलिंग एवं घरेलू ईंधन के रूप में उपयोगः- गोबर गैस में उपस्थित हाईड्रोजन सल्फाइड गैस को जल वाष्प रहित करने के पश्चात् इसका वाटलिंग कर आवश्यकतानुसार दूरस्थ स्थानों पर सरलता से उपलब्ध कराने हेतु प्रयास किये जायेंगे। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में हो सकता है। यह प्रक्रिया न सिर्फ रोजगार उपलब्ध करायेगी बल्कि अन्य स्थानों पर ईधन आवश्यकता को पूरा करने में सहायक होगी, साथ ही कार्बन एवं अन्य हानिकारक गैसों के उत्सर्जन में कमी कर सर्टीफाईड एमीशन रिडक्शन में परिवर्तित करने में सहायता प्राप्त होगी।

7.8 ऊर्जा उत्पादन:- दुग्ध उत्पादक समितियों के गठन से अनुत्पादक पशुओं से प्राप्त उत्सर्जित गोबर एवं मूत्र का उपयोग गुणवत्तायुक्त खादों के उत्पादन में किया जा सकता है साथ ही ये वैकल्पिक उर्जा के भी अच्छे स्त्रोत हो सकते है। गोबर की उपलब्धता के अनुसार गोबर गैस संयत्रों से वैकल्पिक उर्जा प्राप्त करने में भी सहायता मिलेगी, जिसके लिये उचित आकार एवं प्रकार के गोबर गैस संयत्रों का निर्माण किया जा सकता है। यह भी संभावना तलाशी जा सकती है कि छोटे शीतगृह गोबर गैस प्लांट से ऊर्जा प्राप्त कर संचालित किये जा सकते है।

पोषक तत्वों युक्त खादों की गुणवत्ता एवं मानक स्तरः- गोबर एवं अन्य जैविक खादों के मानक स्तर को निर्धारित करने के लिये अनुसंधान प्रणाली विकसित करना अनिवार्य होगा। इस प्रकार व्यवसायिक स्तर पर संचालित गतिविधियों को प्रोत्साहित कर गौ आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सकेगा।

7.9 ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार व उद्यमिता के अवसरः- ग्रामीण युवाओं को रोजगार एवं उद्यमिता से जोड़ना नीति का मुख्य लक्ष्य होगा। ग्रामीण व्यवसाय केन्द्र की योजना के माध्यम से जैविक आदानों के उत्पादन, प्रमाणीकरण एवं विपणन द्वारा ग्रामीण युवकों को व्यवसाय के अवसर उपलब्ध कराने हेतु नीति हर संभव प्रोत्साहन देगी।

7.10 ग्रामीण युवाओं हेतु जैविक आदान उपक्रमः- ग्रामीण युवाओं को जैविक आदानों के निर्माण हेतु प्रोत्साहित करना आवश्यक है, जिसके लिये उन्हें जैविक आदान, उत्पादन एवं विपणन से संबंधित पर्याप्त प्रशिक्षण एवं व्यवसाय हेतु अवसर प्रदान किये जायेंगे। गाँवों में जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया को सम्पूर्ण स्वच्छता मिशन से जोड़ा जाएगा।

7.11 उत्पाद गुणवत्ता नियंत्रण हेतु सुविधायें:- जैविक इनपुट तथा उत्पाद की गुणवत्ता कृषकों के लिए एक समस्या बनी हुई है। गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु नीति में वैधानिक प्रावधानों के तहत आवश्यक कार्यवाही की जाएगी। कॉमन क्वालिटी एश्योरेंस सुविधा प्रदायकों को प्रशिक्षित किया जा सकता है। जैविक आदानों एवं उत्पादों की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए राज्य सरकार द्वारा एक राज्य स्तरीय प्रयोगशाला स्थापित की जायेगी।

प्रमाणित जैविक उत्पादों को उच्च मूल्य वाले ब्रांड्स में बदलना

8.1 जैविक उत्पादों के उच्च मूल्य हेतु प्रमाणीकरणः- राज्य स्तर पर जैविक पदार्थों की गुणवत्ता हेतु निर्धारित मानक स्तर के अनुरूप प्रमाणीकरण की व्यवस्था का विकास सहभागी गारंटी पद्धति एवं अन्य प्रणालियों के अंतर्गत किया जाएगा। जिसके अनुसार कृषक जैविक उत्पादनों को वस्तु के स्थान पर उच्च मूल्य के ब्रांड्स में विक्रय कर सकेंगे। मानक स्तर की गुणवत्ता के साथ प्रमाणित किया जाएगा जो कि औपचारिक एवं विधिसम्मत ब्रांड लोगो जैसे इंडिया आर्गेनिक आदि के समरूप हो।

राज्य जैविक कृषि मिशन

9.1 नई जैविक कृषि नीति मिशन की भावना के रूप में क्रियान्वित की जायेगी एवं इसके लिए राज्य जैविक कृषि मिशन स्थापित किया जाएगा। यह मिशन संरक्षक संस्थान के रूप में कार्य करते हुए नीति के तहत जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये किये जाने वाले समस्त प्रयासों को संस्थागत स्वरूप प्रदान करेगा। मिशन हेतु मंत्रिमंडलीय समिति गठित की जायेगी। सुचारू संचालन हेतु पूर्णकालिक मिशन संचालक के रूप में अनुभवी विशेषज्ञ को पदस्थ किया जाएगा, जिसका चयन शासकीय अथवा अशासकीय संस्थानों से किया जाएगा। वर्तमान में प्रदेश में स्थापित संस्थान जैसे कि म.प्र. राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था, राज्य जैविक मिशन के अधीन कार्य करेगें। मिशन वृहद आधारभूत अधोसंरचना एवं नीति में परिभाषित क्रियाकलापों को एक ही निकाय से क्रियान्वित करेगा। जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने में कार्यरत व्यक्तियों, निजी तथा स्वैच्छिक संगठनों का सहयोग अनुसंधान तथा कृषकों, स्वयंसेवी संगठनों तथा विभागीय अधिकारियों के प्रशिक्षण हेतु प्राप्त किया जाएगा।

9.2 जैविक मिशन में जैविक कृषि के विशेषज्ञों का एक दल होगा, जो जैविक कृषि नीति का क्रियान्वयन कराने हेतु पूर्ण रूप से सक्षम होगा। मिशन द्वारा राज्य के समस्त जिलों, ब्लाक, एवं समूहों को चिन्हित कर कार्य प्रारम्भ करेगा। राज्य स्तरीय जैविक मिशन के तहत नीति के आयामों अन्तर्गत एक ऐसे स्वस्थ्य और उर्जावान वातावरण का निर्माण करेगा जिसके माध्यम से जैविक उत्पादकों को प्रोत्साहित करने के लिए जिला स्तर और राज्य स्तर पर प्रतियोगिताओं का आयोजन, संस्थागत पुरूस्कार उत्पादकों के लिए राज्य स्तरीय राष्ट्रीय स्तर तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की कान्फेस, सेमिनार, सिमपोजियम वर्कशाप जैसे कार्यक्रम तथा अध्ययन भ्रमण और जैविक हाट का आयोजन जैविक खेती से सम्बद्ध समस्त संवर्गों के मानव संसाधन के लिए किया जाएगा। इन गतिविधियों की क्रियाशीलता सुनिश्चित करने के लिए तीन माह की अवधि में मिशन द्वारा एक उद्देश्यपरक समग्र, ऑरगेनोग्राम, संभावनाशील क्षेत्र, भौगौलिक विस्तार, मुख्य–मुख्य गतिविधियाँ, क्रियान्वयन की रणनीति संसाधनों का युक्तीयुक्तकरण नियोजन, बजट संबंधी प्रावधान, वित्तीय विकल्प, कार्य योजना दस्तावेज तैयार किया जाकर सक्षम प्राधिकारियों के समक्ष अनुमोदन हेतु प्रस्तुत किया जाना होगा।

जैविक उत्पादक संस्थानों का विकास

10.1 संपर्क एवं समन्वयः- नीति प्राथमिक उत्पादकों को उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन आदि प्रक्रिया से जुड़े अवांछित तत्वों से मुक्त रखने का प्रयास कर जैविक उत्पादों के निर्माताओं हेतु एक संस्थान की स्थापना कर तत्सम्बन्धी ज्ञान वृद्धि एवं आर्थिक समन्वय स्थापित कर व्यवसायिक सम्भावनाओं को बढ़ावा देगी एवं उत्पादन से विपणन तक के सभी हितधारकों के मध्य समन्वय स्थापित करने हेतु आपसी संपर्क में वृद्धि को प्रोत्साहित करेगी।

10.2 प्राथमिक जैविक उत्पादकों के साथ समन्वय स्थापित करनाः- नीति, हाल ही में खुदरा व्यापार प्रबंधन के क्षेत्र में हुए विकास को ध्यान में रखते हुए जैविक उत्पादन प्रक्रिया में संगठित क्षेत्रो एवं बड़े व्यवसाईयों की रूचि को बढ़ाने का प्रयास करेगी। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु एक मानक गुणवत्ता युक्त एकत्रीकरण, छटाई, पेकिंग तथा अन्य प्रसंस्करण प्रक्रिया के लिए सामूहिक सहकारी संगठन की आवश्यकता है जो उत्पादों को उच्च स्तरीय बाजारों तक पहुँचाने में सक्षम हो। नीति के तहत जैविक उत्पादकों का संगठन स्थापित कर प्राथमिक एवं अन्तिम कड़ी के रूप में मजबूती प्रदान की जाएगी।

10.3 स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के बाजारों से संपर्क एवं समन्वयः- जैविक उत्पादन एवं विपणन की प्रक्रिया में विपणन के उच्चतम स्तर पर पहुँचने हेतु कई तरह की गतिविधियॉ आवश्यक है विशेषकर सामूहिक रूप से जैविक उत्पादों का विपणन किया जाना आवश्यक हो। इसके लिए जैविक उत्पादक जो कि इस प्रक्रिया के प्रारंभिक छोर पर उत्पादन का कार्य करते है का चयन एवं उन्हें विपणन में भागीदार बनाया जाकर मूल्य श्रृंखला से जोड़कर यथोचित रूप से लाभान्वित करना है। मध्यप्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड जैविक उत्पादों के विपणन हेतु मंडियों में अलग से स्थान उपलब्ध करवाएगा, जिसमें पारम्परिक उत्पादों का जैविक उत्पादों के साथ संविलियन जो कि वैधानिक रूप से जैविक मानकों के अंतर्गत निषेध है। साथ ही प्रदेश की मण्डियों को संपूर्ण प्रदेश में जैविक उत्पादों की विपणन सेवायें उपलब्ध कराने हेतु निर्देशित किया जाएगा। मण्डियों में ऐसी व्यवस्था की जाएगी, जिससे कि जैविक उत्पादों के प्रति केताओं को आकर्षित किया जा सके।

10.4 तकनीकी व्यवस्था हेतु समन्वयः- जैविक खेती तकनीकी केद्रित विषय है। नीति तकनीकि आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विधिवत वैज्ञानिक, जैविक कृषि प्रणाली विकसित करने हेतु प्राथमिक उत्पादकों एवं अनुसंधान एवं विकास के मध्य सामंजस्य स्थापित करेगी।

10.5 वित्तीय समन्वयः- जैविक कृषि के वृहद स्तर की गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र से नवीन निवेश की आवश्यकता प्रतिपादित करती है। इस हेतु विभिन्न वित्तीय संस्थानों जैसे सहकारी बैंको, राष्ट्रीयकृत बैंको, क्षेत्रीय ग्रामीण बैकों, लघु वित्तीय संस्थानों, नाबार्ड आदि का प्राथमिक उत्पादकों के साथ समन्वय अत्यावश्यक है। इस प्रकार निश्चित वित्तीय अनुबंधों के द्वारा जैविक उत्पादकों की संस्थाओं को तेजी से विकसित करने में प्रोत्साहन प्राप्त होगा।

जैविक कृषि विकास हेतु शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था

11.1 जैविक कृषि विकास केन्द्र:-

प्रथमतः प्रदेश के दोनों कृषि विश्वविद्यालयों तथा एक पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय में शिक्षण, अनुसंधान एवं विस्तार हेतु नवीन जैविक कृषि विकास केन्द्रों की स्थापना की जायेगी। भविष्य में आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुये प्रदेश में जैविक कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना के संबंध में विचार किया जा सकेगा।

अल्पकालिक पाठ्यक्रमों हेतु स्थानीय, क्षेत्रीय, एवं राज्य स्तरीय सुविधाओं का विकासः- कार्यक्षमता निर्माण की आवश्यकता को देखते हुए स्थानीय क्षेत्रीय, एवं राज्य स्तरीय सुविधाओं का निर्माण किया जाएगा जिससे अल्पकालीन पाठ्यक्रमों के द्वारा कौशल निर्माण किया जा सके । कृषि विज्ञान केन्द्र एवं किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के कृषक क्षमता उन्न्यन केन्द्र जैविक कृषि विकास कार्यक्रम को बढ़ावा देने का काम करेगें ताकि ग्रामीण नवयुवक जैविक कृषि को मुख्य आर्थिक गतिविधि के रूप में अपने व्यवसाय में जोड़ सके।

11.2 कार्यक्षमता निर्माण की आवश्यकता का आंकलनः- नीति के तहत हितधारकों के प्रत्येक स्तर पर कार्य क्षमता, आंकलन एवं विश्लेषण विशेषज्ञों द्वारा किया जाएगा ताकि उनमें कौशल का वर्तमान स्तर ज्ञात कर प्रशिक्षण की आवश्यकता अनुसार कार्यक्षमता वृद्धि कर विशेषज्ञों एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों का एक संवर्ग तैयार किया जा सकेगा। खेती के संबंध में देशी जानकारी एवं कृषकों द्वारा अपने स्तर पर किये गये नये प्रयासों जो जैविक खेती को प्रोत्साहित करने एवं उत्पादकता बढ़ाने में सहायक हो उन्हें वैधानिक मान्यता प्रदान कर ऐसी जानकारी तथा प्रयासों को प्रोत्साहित किया जायेगा।

11.3 निरंतर सलाह एवं मार्गदर्शनः- जैविक कृषि नीति के अंतर्गत व्यवसायिक प्रशिक्षण केंद्रो, अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के विशेषज्ञों, सलाहकारों द्वारा नवीन जैविक परियोजनाओं के प्रारंभिक चरण मे हितधारकों को निरन्तर जानकारी, सलाह एवं मार्गदर्शन प्रदान करेगें। नीति के अंतर्गत प्रस्तावित राज्य जैविक मिशन आवश्यकता अनुसार विशिष्ट सलाहकारों की सेवाओं को समय-समय पर ले सकेगें। कृषकों को जैविक कृषि की जानकारी प्रदाय कर उन्हें जैविक खेती अपनाने हेतु सतत् प्रोत्साहित किया जायेगा।

11.4 ऑन लाइन समाधान हेतु प्रावधानः- इस हेतु राज्य सरकार, राज्य ऑर्गेनिक मिशन के नाम से एक वेबसाइट का निर्माण कर, कृषकों को तत्-सम्बन्धी समस्त आंकड़े एवं ज्ञान उपलब्ध कराई जाएगी। जैविक खेती करने वाले कृषकों की जानकारी तैयार की जाने वाली वेबसाइट में प्रदर्शित की जायेगी।

11.5 जैविक कृषि हेतु अत्याधुनिक एवं उच्च स्तरीय शिक्षण अनुसंधान एवं विकास हेतु सुविधाओं की स्थापना

11.5.1 भविष्य में जैविक कृषि को उच्च स्तरीय शिक्षण एवं अनुसंधान की आवश्यकता है। वर्तमान में प्रदेश में स्थापित दो कृषि विश्वविद्यालयों एवं एक पशु चिकित्सा महाविद्यालय में जैविक कृषि का एक नवीन विभाग स्थापित कर अनुसंधान, विस्तार एवं शिक्षण की कार्यवाही प्रारम्भ की जाएगी तथा जैविक खेती में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया जाएगा।

11.5.2 नीति के तहत शालेय शिक्षण के अन्तर्गत जैविक खेती को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए जिसके लिए माध्यमिक शिक्षा मण्डल द्वारा अपने पाठ्यक्रम में जैविक कृषि के शिक्षण का कार्य प्रारम्भ करने हेतु कार्यवाही करेगा।

प्रयासों का अधिकतम सहयोजन

12.1 नीति सार्वजनिक, निजी एवं जनभागीदारी आधारित व्यवस्था के माध्यम से जैविक कृषि को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सतत विकास हेतु एक अत्यन्त उपयुक्त प्रोद्यौगिकी के रूप में मान्य करती है। इस नीति के तहत राज्य किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग, मध्यप्रदेश राज्य कृषक आयोग तथा समस्त सम्बद्ध विभाग जैसेः- ग्रामीण विकास विभाग, जनसम्पर्क, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण, पशुपालन, वन, शहरी विकास, जल संसाधन, उर्जा, वित्त एवं स्कूल शिक्षा आदि विभागों में सामन्जस्य स्थापित करेगा, जिसमें कि शासकीय, अशासकीय संस्थाओं की हिस्सेदारी सुनिश्चित करते हुए इस दिशा में किये गये प्रयासों का अधिकतम सहयोजन किया जायेगा।

12.2 राज्य जैविक कृषि मिशन जैविक कृषि से संबंधित समस्त योजनाओं की अद्यतन सूचनाओं का संकलन कर एक दस्तावेज के माध्यम से समस्त हितधारकों को उपलब्ध करायेगा। राज्य द्वारा संचालित योजनाओं के अतिरिक्त राष्ट्रीय योजनाएँ जैसे राष्ट्रीय जैविक कार्यक्रम, विशिष्ट परियोजनाएँ जैसे राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय शुष्क क्षेत्रीय परियोजना आदि द्वारा आवश्यक संसाधन प्रदाय किये जा सकते है।

12.3 सामूहिक उत्तरदायी समूह एक आदर्श साख प्रदाय करने हेतु एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है। जो कि लघु एवं सीमान्त उत्पादकों की गारंटी आवश्यकता का उत्तम समाधान है।नावार्ड द्वारा प्रवर्तित जैविक कृषि विकास की प्रायोगिक परियोजना को अन्य सघन जैविक क्षेत्रों में विस्तारित किया जाएगा। 12.4 कृषक कल्याण एवं कृषि विकास विभाग जैविक एवं अक्षय कृषि विकास की अपनी पूर्व में संचालित योजनाओं को नवीन उत्साह के साथ अधिक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित कर प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करेगा

उपभोक्ता जागरूकता

उपभोक्ताओं के संरक्षण व वातावरण के प्रति विश्वास, जन स्वास्थ्य व देखभाल को स्थायित्व देने में नीति स्वास्थ्य व सावधानी के सिद्धांतों का एकीकरण करेगी। यह नीति इस बात पर अधिक जोर देगी कि उपभोक्ताओं में जैविक उत्पादों के प्रति जागरूकता तथा अधिक से अधिक जैविक उत्पादों का उपभोग करे।। राज्य सरकार इलेक्ट्रानिक एवं प्रिंट मीडिया को इस बात के लिये प्रोत्साहित करेगी कि वह जैविक खेती के महत्व एवं उपयोगिता का जनता के बीच प्रचार-प्रसार करे।

स्त्रोत: कृषि विभाग, मध्य प्रदेश सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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