जनजातीय क्षेत्रों में ज्ञान प्रणाली एवं परिवार आधारित कृषि प्रबंधन जनजातीय क्षेत्रों में विशिष्ट स्वदेशी संस्कृति है, परंतु भौगोलिक परिस्थिति के कारण इन क्षेत्रों का विकास एवं यहाँ के लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में अपेक्षाकृत कम सुधार हुआ है। इन क्षेत्रों में स्थानीय कृषि ही आजीविका की प्रमुख धूरी है।
बुनियादी ढांचे की कमी, कठिन परिस्थिति, मौसम की अनियमितता एवं कृषि पर निर्भरता के दृष्टिगत इन क्षेत्रों में आजीविका के नए श्रोत विकसित करने की जरूरत है। जनजातीय क्षेत्रों में कृषि से जुड़ी स्थानीय ज्ञान प्रणाली अच्छी तरह से विकसित है जो प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और टिकाऊ उपयोग के माध्यम से प्राकृतिक पर्यावरण के प्रबंधन के मुद्दे को संबोधित करती है। इसके अलावा मोटे अनाज, जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, सांवा, आदि एवं पारंपरिक सब्जियाँ कम उत्पादकता के साथ जनजातीय क्षेत्रों में उगाई जाती है। संतुलित आर्थिक विकास के लिए यह जरूरी है कि इन क्षेत्रों का विकास कृषि एवं परिवार आधारित मॉडल पर किया जाए।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने एक पहल की है जिससे देश के 125 जिलों, जहां जनजातियों की जनसंख्या 25 प्रतिशत या उससे अधिक है, में कृषि विकास को गति प्रदान करने हेतु क्षमता (जनजातीय क्षेत्रों में ज्ञान प्रणाली एवं परिवार आधारित कृषि प्रबंधन) नामक कार्यक्रम कृषि उद्यम आधारित विकास की एक व्यापक रणनीति के साथ कार्यान्वित किया जाएगा।
जनजातीय क्षेत्रों के स्थानीय ज्ञान प्रणाली का उपयोग करते हुये कृषि विकास
मुख्य गतिविधियां
वर्ष 2019-20 तक 125 जिलों में, जहां जनजातियों की जनसंख्या 25 प्रतिशत या उससे अधिक है, कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया जाएगा।
इस कार्यक्रम को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों में ट्रइबल सब प्लान के अंतर्गत उपलब्ध धनराशि (100 करोड़ रुपये) को संकलित कर कार्यान्वित किया जाएगा।
कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा उचित प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सभी संस्थानों द्वारा तकनीकी प्रदान की जाएगी। इसके अलावा, यह कार्यक्रम जिला स्तर पर काम कर रहे विकास विभागों के कार्यक्रमों के साथ मिल कर लागू किया जाएगा। कृषि निवेशों का प्रयोग, कृषि में मशीनीकरण, नए तकनीकों को अपनाना और संस्थागत लिंकेज का विकास इन क्षेत्रों में अपेक्षानुसार नहीं हुआ है। इन परिस्थितियों के दृष्टिगत, वैज्ञानिक रूप से संस्तुत नयी तकनीकी को बढ़ावा देकर लोगों की जीविका सुधारने पर बल दिया जाएगा। फसल उत्पादन के साथ संबन्धित कार्य जैसे मछली उत्पादन एवं पशुपालन कार्यक्रम के अभिन्न अंग होंगे जिससे उत्पादकों को परिवार का पोषण सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी एवं इसको बाजार से जोड़ कर जीविका सुरक्षा भी होगी।
इन क्षेत्रों में ऐसे बहुत से पौधे पारंपरिक रूप से उगाये जाते हैं जो आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं हैं परंतु औषधीय गुणों से भरपूर हैं। इस तरह की विविधता भी समाप्ति की ओर है, इसलिए कार्यक्रम में ऐसे विशिष्ट फसलों एवं प्रजातियों को चिन्हित कर शोध एवं प्रसार कार्य में बढ़ावा दिया जाएगा तथा जैव विविधता को आजीविका के श्रोत के रूप में विकसित करने का प्रयास होगा।
अंतिम बार संशोधित : 9/27/2024
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