चावल दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक है। वर्ष 2016-17 में भारत में 44.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र पर चावल की खेती की गई, जिससे कुल उत्पादन 1060 लाख टन प्राप्त हुआ। जिसका वैश्विक स्तर पर 28 प्रतिशत क्षेत्र में एवं 22 प्रतिशत उत्पादन में योगदान है। हमारे देश में धान रोपाई मुख्यत: हाथ से की जाती है। इसमें कुल उत्पादन लागत का लगभग 54 प्रतिशत हिस्सा मजदूरी में खर्च हो जाता है। हाथ से रोपाई करने का काम बहुत मुश्किल एवं थकाने वाला होता है। हाध से धान रोपाई करने में श्रम की अधिक आवश्यकता होती है, जिससे मजदूरी भी तुलनात्मक रूप से अधिक हो जाती है। मुख्यत: महिला श्रमिक कीचड़ वाले खेतों में धूप और वर्षा में झुककर रोपाई कार्य करती है। साथ ही श्रमिकों की अनुपलब्धता तथा प्रतिकूल मौसम के दौरान इनकी दक्षता में कमी देखी गई है। अत: यह महसूस किया गया है कि कम लागत पर बेहतर और तेजी से कार्य करने वाली रोपाई मशीनों का विकास एवं उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। इसके लिए धान रोपाई मशीन एक अच्छा उपाय है।
धान रोपाई यंत्र से की गई रोपाई से 10-15 प्रतिशत अधिक फसल उपज प्राप्त होती है। धान रोपाई के परंपरागत तरीकों में बीज को नर्सरी में बोया जाता है। पौधे को धीरे से निकाल कर साफ़ करके गुच्छा बनाकर मचाई की गई मिट्टी में रोपा जाता है। आज के समय में खेती मजदूरों के फैक्ट्रियों एवं दूसरे कामों में जाने कारण रोपाई के समय में मजदूरों की उपलब्धता में काफी कमी आई है। नई तकनीक और किसानी काम में विकास के कारण हाथ रोपाई की जगह अब धान रोपाई मशीन (पेडी ट्रांसप्लाटनर) ले रही है। मशीन से रोपाई करने के लिए एक विशेष प्रकार की पौध तैयार करनी पड़ती है। इसके लिए पहला कदम चटाई नुमा नर्सरी तैयार करना होता है जो कि अच्छे परिणाम के लिए बहुत जरूरी है। मशीन द्वारा एक एकड़ खेत में रोपाई करने के लिए आमतौर पर 15 से 20 किग्रा. बीज की मात्रा काफी है। वहीं हाथ से रोपाई करने में 30 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।
पौध सतह बैड को समतल भूमि में बनाना चाहिए तथा साथ-साथ मेढ़/नाली भी बनाते हैं जिससे सिंचाई करने में आसानी रहती है। नर्सरी सतह (बैड) को पूर्ण रूप से समतल व सख्त होना आवश्यक है। सतह की चौड़ाई 1.2 मीटर रख सकते है, जिससे दो फ्रेम आसानी से बिछा सके। एक हेक्टेयर में रोपाई करने के लिए नर्सरी बैड का क्षेत्रफल 100 वर्ग मीटर पर्याप्त है। मशीनी रोपाई में 1 एकड़ की बुवाई करने के लिए 1.2 मी. चौड़ा और 10 मी. लंबा दो बीज की क्यारी लगती है। जो की परंपरागत विधि का 1/10 वा हिस्सा है। इसमें लगभग 400 चटाईनुमा आयताकार फ्रेम (50 x 21 सेमी. लकड़ी अथवा लोहे की प्लेट) उपयुक्त होता है। फ्रेम उपलब्ध न होने पर समतल भूमि में पालीथीन बिछाकर 1 इंच मोटी मिट्टी में पौध उगाई जा सकती है। जिसे रोपाई के समय मशीन की ट्रे के आकार में काटा जा सकता है।
मशीन से धान की रोपाई के लिए खेत की उथली मचाई (पडलिंग) करना आवश्यक है। जिससे चटाईनुमा पौध की सुचारू रूप से रोपाई की जा सके। इस विधि से पौध की जड़े आसानी से मिट्टी को पकड़ लेती है तथा उनकी वृद्धि भी अच्छी होती है। खेत की मचाई करने के लिए भुरभुरा होने वाली नमी की अवस्था में बखर या मिट्टी पलट हल से अच्छी तरह जोतना चाहिए। जुताई करने के बाद खेत को समतल करना चाहिए व साथ-साथ खेत के चारों तरफ मेड भी बनाई जाए। उसके बाद खेत को पानी से भरकर उसमें कम से कम 50मिमी. (2 इंच) पानी का स्तर 24 घंटे तक बनाए रखना चाहिए जिससे मिट्टी पूर्ण रूप से संतृप्त हो जाए। तत्पश्चात पडलर, पावर टिलर या ट्रैक्टर चलित रोटावेटर का प्रयोग करें और इसको एक बार खेत की अधिकतम लम्बाई की दिशा में एवं एक बार तिरछे में अच्छी तरह चलाएं। जिससे मिट्टी व पानी अच्छी तरह से मिल जाए एवं खरपतवार आदि भी नष्ट हो जाए। रोटवेटर में एल टाइप की ब्लेड का उपयोग करना चाहिए इस प्रकार की ब्लेड से अच्छी गुणवत्ता प्राप्त होती है। रोटवाटोर की कार्य क्षमता 0.25 से 0.35 हेक्टेयर/घंटा तथा कार्य दक्षता 75 से 80 प्रतिशत होती है। ट्रैक्टर चालित रोटावेटर की कीमत 80000 से 120000 रूपये तक होती है। ध्यान रखे कि मचाई 50-100 मिमी. (2 से 4 इंच) से अधिक न करें। मचाई करने के बाद मिट्टी के कणों को स्थिर होने के लिए 24-36 घंटे या आवश्यकतानुसार छोड़ दें, जिससे उपरी सतह हल्की सख्त हो जाए। धान रोपाई के समय खेत में 50 मिमी. (2 इंच) पानी होना चाहिए।
चटाईनुमा पौध को ठीक से उठा के बिना टूटे हुए मशीन की प्लेट में रखे। पौध को प्लेट में रखने के पूर्व पौध दबाने की रॉड को हटा लिया जाता है और पौध रखने के बाद रॉड को पुन: वहीं लगा दिया जाता है। खेत के अंदर मेड के चारों ओर मशीन की चौड़ाई की जगह को छोड़कर पूर्व पश्चिम दिशा में मशीन द्वारा धान की रोपाई करनी चाहिए। अंत में चारों ओर रोपाई करके मशीन को खेत से भार करना चाहिए। पौध प्लेट में पौध जब आधी रह जाए तो प्लेट को पुन: भर दिया जाना चाहिए, जिससे पौध से पौध की दूरी एक समान बनी रहे। चटाईनुमा पौधे को प्लेट पर आसानी से सरकते हुए प्रवेश कराना चाहिए। यदि पौध प्लेट में अधिक समय तक रखी हो तो उसे प्लेट से निकाल लेना चाहिए। प्लेट में चिपकी हुई मिट्टी को साफ़ कर देना चाहिए ताकि पौध को पुन: प्लेट में आसानी से रखा जा सके। स्टील फिंगर की चिपकी हुई मिट्टी को साफ़ कर पानी से धो देना चाहिए।
आज कल बाजार में स्वचलित एवं मानव चलित रोपाई यंत्र उपलब्ध है। स्वचलित रोपाई यंत्र के दो मॉडल है, जो कि बैठ कर एवं पीछे चलने वाले प्रकार में उपलब्ध है। मानव चलित रोपाई यंत्र 4 कतारों में धान की रोपाई करता है। इस मशीन की कार्य क्षमता 0.08 से 0.1 हेक्टेयर/घंटा तथा कार्य दक्षता 80 प्रतिशत होती है। बाजार में इस मशीन की कीमत लगभग 10000 रूपये है। स्वचलित सवार होकर चलाए जाने वाले रोपाई यंत्र में डीजल या पेट्रोल इंजन लगा होता है। यह 6 से 8 कतारों में धान की रोपाई करता है। इसमें कतारों से कतारों के बीच की दूरी 238 मिमी. होती है तथा पौध से पौध की दूरी 100 से 120 मिमी. के बीच समायोजित कर सकते है। इसके द्वारा एक दिन में एक हेक्टेयर खेत की रोपाई की जा सकती है। इसकों चलाने के लिए एक प्रचालक तथा दो सहायक श्रमिकों की आवश्यकता होती है। स्वचलित रोपाई यंत्र के कार्य दक्षता 80 प्रतिशत से भी ज्यादा है। यह मशीन कार्य क्षमता के हिसाब से अलग-अलग दामों में उपलब्ध है। यह मशीन विभिन्न निर्माताओं द्वारा 2 लाख से 10 लाख की कीमत में उपलब्ध है। पौध का उपयुक्त घनत्व प्राप्त करने के लिए धान रोपाई हेतु मशीन उपयोगी सिद्ध हुई है। इस मशीन का उपयोग करने से प्रति हेक्टेयर कार्य घंटे में 75-80 प्रतिशत श्रम की बचत होती है तथा हाथ से रोपाई की तुलना में 50 प्रतिशत लागत में कमी आती है। यांत्रिक धान रोपाई से पौध एक निश्चित स्थान पर लगते है जिससे पौध की बढ़वार अच्छी होती है तथा उपज भी अधिक प्राप्त होती है। साथ ही कोनो वीडर से भी निंदाई की जा सकती है।
धान की यांत्रिक रोपाई के लिए चटाईनुमा नर्सरी की जरूरत होती है। धान रोपाई यंत्र द्वारा अच्छी रोपाई मुख्य रूप से चटाईनुमा पुँध की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। अत: अच्छी चटाईनुमा पौध तैयार करना आवश्यक है ताकि आसानी से रोपाई यंत्र की ट्रे में रखी जा सके। बीज को एक प्रतिशत नमक के घोल (एक से दो चम्मच प्रति लीटर पानी) में डालें जिससे खराब बीज पानी के उपर तैरने लगता है और फिर उसे छानकर बाहर निकाल लें। फिर बोरी को 24 घंटे तक पानी में डुबोकर रखें। उसके बाद बोरी को हल्का गर्म और छाया वाली जगह में रखें तथा उसके ऊपर पुआल को 24 घंटे के लिए ढंक दें। जब बीज अंकुरित हो जाए और जड़ का शुरूआती भाग दिखें तब रोपाई के लिए बीज तैयार है। जड़ को लंबा नहीं होने देना चाहिए नहीं तो वह बोरी से बाहर आकर एक-दूसरे से उलझ जायेंगे। आमतौर पर गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट 1:3 के अनुपात में मिट्टी में मिलाया जाता है। अगर चिकनी मिट्टी हो तो इसमें एक भाग रेत को एक भाग गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट में तीन भाग मिट्टी के साथ अच्छी तरह मिलाया जाता है। इस मिश्रण में घास, फसल अवशेष, कंकड़, पत्थर आदि नहीं रहना चाहिए। जब पौध में 18-23 दिनों में 3-4 पत्तियाँ आ जाती हैं, तब धान रोपाई यंत्र से रोपाई की जानी चाहिए। धान रोपाई यंत्र से रोपाई के लिए पौध की लंबाई, तने की मोटाई, पौध की उम्र इत्यादि को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस भाग में जनवरी-फरवरी के बागों के कार्य की जानकार...
इस भाग में अंतर्वर्ती फसलोत्पादन से दोगुना फायदा क...
इस पृष्ठ में अगस्त माह के कृषि कार्य की जानकारी दी...
इस पृष्ठ में केंद्रीय सरकार की उस योजना का उल्लेख ...