गाजर घास को कांग्रेस घास, चटक चांदनी, कड़वी घास आदि नामों से भी जाना जाता है। आज भारत में यह खरपतवार न केवल किसानों के लिये अपितु मानव, पशुओं, पर्यावरण एवं जैव-विविधता के लिये एक बड़ा खतरा बनती जा रही है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस ‘है। पहले गाजरघास को केवल अकृषित क्षेत्रों की ही खरपतवार माना जाता था पर अब यह हर प्रकार की फसलों, उद्यानों एवं वनों की भी एक भीषण समस्या है।
सघन कृषि प्रणाली के चलते रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग करने से, मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर होने वाले घातक परिणाम किसी से छिपे नहीं हैं। भूमि की उर्वरा शक्ति में लगातार गिरावट आती जा रही है। रसायनिक खादों द्वारा पर्यावरण एवं मानव पर होने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुये जैविक खादों का महत्व बढ़ रहा है। गाजरघास से जैविक खाद बनाकर हम पर्यावरण सुरक्षा करते हुए धनोपार्जन भी कर सकते हैं। निंदाई कर हम जहां एक तरफ खेतों से गाजरघास एवं अन्य खरपतवारों को निकाल कर फसल की सुरक्षा करते हैं, वहीं इन उखाड़ी हुई खरपतवारों से वैज्ञानिक विधि अपना कर अच्छा जैविक खाद प्राप्त कर सकते है जिसे फसलों में डालकर पैदावार बढ़ाई जा सकती है।
सर्वेक्षण में पाया गया है कि कृषक गाजरघास से कम्पोस्ट बनाने में इसलिये डरते हैं कि अगर गाजरघास कम्पोस्ट का प्रयोग करेंगे तो खेतों में और अधिक गाजरघास हो जायेगी। कुछ किसानों के गाजरघास से अवैज्ञानिक तरीकों से कम्पोस्ट बनाने के कारण यह भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है। सर्वेक्षण में पाया गया कि जब कुछ कृषकों ने फूलों युक्त गाजरघास से “नाडेप विधि द्वारा कम्पोस्ट बना कर उपयोग की तो उनके खेतों में अधिक गाजरघास हो गई। इसी प्रकार गाँवों में गोबर से खाद खुले हुये टाकों या गढ्डों में बनाते हैं। जब फूलों युक्त गाजरघास को खुले गढ्डों में गोबर के साथ डाला गया ता भी इस खाद का उपयोग करने पर खेतों में अधिक गाजरघास का प्रकोप हो गया। इस निदेशालय में किये गये अनुसंधानों में पाया गया कि नाडेप' या खुले गढ्डों या टाकों में फूलों युक्त गाजरघास से खाद बनाने पर इसके अतिसूक्ष्म बीज नष्ट नहीं हो पाते हैं। एक अध्ययन में से बनी हुई केवल 300 ग्राम खाद में ही 50 0 तक गाजरघास के पौधे अंकुरित होना पाये गये। इन्हीं कारणों से भाई गाजरघास से कम्पोस्ट बनाने में डरते हैं। पर अगर वैज्ञानिक विधि से गाजरघास से कम्पोस्ट बनाई जाये तो यह एक सुरक्षित कम्पोस्ट है।
गाजरघास से सरदी-नरमी के प्रतिस्प असंवेदनशील बीजों में शषुप्तावस्था न होने के कारण एक ही समय में फूल युक्त और फूल| विहीन गाजरघास के पौधे खेतों में दृष्टिगोचर होते हैं। अतः निदाई करते समय फूलयुक्त पौधों का उखाड़ना भी अपरिहार्य हो जाता हैं। फिर भी किसान भाइयों को गाजरघास को कम्पोस्ट बनाने में उपयोग करने के लिये हर संभव प्रयास करने चाहियें कि वो उसे ऐसे समय उखाड़ें जब फूलों की मात्रा कम हो। जितनी छोटी अवस्था में गाजरधास को उखाड़ेंगे उतना ही अधिक अच्छा कंपोस्ट बनेगा और उतनी ही फसल की उत्पादकता बढ़ेगी।
5 से 6 माह बाद भी गढ्डे से कम्पोस्ट निकालने पर आपको प्रतीत हो सकता है कि बड़े मोटे तने वाली गाजर घास अच्छे प्रकार से गली नहीं है। पर वास्तव में यह गल चुकी होती है। इस कम्पोस्ट को गढ्डे से बाहर निकालकर छायादार जगह में फैलाकर सुखा लें। हवा लगते ही यह नम। एवं गीली कम्पोस्ट शीघ्र सूखने लगती है। थोड़ा सूख जाने पर इसका ढेर कर लें। यदि अभी भी गाजरघास के रेशे युक्त तने मिलते हैं तो इसका ढेर को लाठी या मुगदर से पीट दें। जिन किसान भाईयों के पास बैल या ट्रेक्टर हैं, वे इन्हें इसके ढेर पर थोड़ी देर चला दें। ऐसा करने पर गाजरघास के मोटे रेशे युक्त तने टूट कर बारीक हो जायेंगे जिससे और अधिक कम्पोस्ट प्राप्त होगी।
इस कम्पोस्ट को 2-2 से.मी. छिद्रों वाली जाली से छान लेना चाहिये। जाली के ऊपर बचे ठूठों के कचड़े को अलग कर देना चाहिये। कृषक द्वारा स्वयं के उपयोग के लिये बनाये कम्पोस्ट को बिना छाने भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इस प्रकार प्राप्त कम्पोस्ट को छाया में सुखाकर प्लास्टिक, जूट या अन्य प्रकार के बड़े या छोटे थैलों में भरकर पैकिंग कर दें। व्यक्ति/कृषक गाजरघास के कम्पोस्ट बनाने को व्यवसायिक रूप में करना चाहते हैं तो किचिन गार्डन उपयोग के लिये 1,2,3,5 किलो के पैकेट और व्यवसायिक सब्जियों, फसलों या बागवानी में उपयोग के लिये 25 से 50 कि.ग्राम के बड़े पैकेट बना सकते हैं।
तक तुलनात्मक अध्ययन में यह पाया गया कि गाजरघास से बनी कम्पोस्ट में मुख्य पोषक तत्वों की मात्रा गोबर से दुगनी और केंचुआ खाद के लगभग होती है। अत: गाजरघास से कम्पोस्ट बनाना इसके उपयोग का एक अच्छा विकल्प है।
जैविक खाद का प्रकार |
प्रतिशत(%)में |
||||
N |
P |
K |
ca |
mg |
|
गाजरघास खाद |
1.05 |
10.84 |
1.11 |
0.90 |
0.55 |
केंचुआ खाद |
1.61 |
0.68 |
1.31 |
0.65 |
0.43 |
गोबर खाद |
0.45 |
0.30 |
0.54 |
0.59 |
0.28 |
गाजरघास से कम्पोस्ट तैयार करते समय निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिये।
इस संबंध में और अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें
डॉ. ए.आर. शमा निदेशक, खरपतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय, महाराजपुर, जबलपुर - 482 004 (म.प्र.) फोन : 91-761-2353101, 2353001 फेक्स : +91-761-2353129
लेखकः डॉ. सुशील कुमार एवं डॉ. शोभा सोंधिया
स्त्रोत : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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