आज की सघन खेती के युग में भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने के लिए प्राकृतिक खादों में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद मुख्य है। कम्पोस्ट बनाने के लिए फसलों के अवशेष, पशुशाला का कूड़ा-करकट व गोबर को गड्ढे में गलाया व सड़ाया जाता है। इस प्रक्रिया में ज्यादा समय लगता है तथा पोषक तत्वों का भी नुकसान होता है। साधारण कम्पोस्टिंग प्रक्रिया में ज्यादा समय लगने के कारण पयार्वरण भी दूषित होता है। पिछले कुछ सालों से कम्पोस्ट बनाने की एक नई विधि विकसित की गई है जिसमें केंचुआ का प्रयोग किया जाता है। इसे केंचुआ खाद या वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। केंचुआ खाद प्लास्टिक, शीसा, पत्थर के अलावा किसी भी चीज जैसे कूड़ा-करकट, फसल-अवशेष, गोब्त, जूट से सड़े हुआ बोरे आदि से बड़ी आसानी से बनाया जा सकता है।
केंचुआ भूमि में नापना महत्वपूर्ण योगदान भूमि सुधारक के रूप में देता है। इनकी क्रियाशीलता मिट्टी में स्वतः भूमि में पाये जाते थे तथा वर्षा के समय भूमि पर देखे जाते थे। परन्तु आधुनिक खेती में अधिक रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों के लगातार प्रयोग से केंचुओं की संख्या में भारी कमी आई है। जिस से भूमि केंचुए नहीं पाए जाते। इससे यह स्पष्ट होता है कि मिट्टी अब अपनी उर्वरा शक्ति खो रही है।
केंचुआ मिट्टी में पाए जाने वाले जीवों में सबसे प्रमुख है। ये अपन आहार के रूप में मिट्टी तथा कच्चे जीवांश को निगलकर अपनी पाचन नलिका से गुजरते हैं जिससे वह महीन कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाते हैं और अपने शरीर से बाहर छोटी-छोटी कास्टिंग्स के रूप में निकालते हैं। इसी कम्पोस्ट को केंचुआ खाद या वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है। केंचुओं के उपयोग से व्यापारिक स्तर पर खेत पर ही कम्पोस्ट बनाया जाना संभव है। इस विधि द्वारा कम्पोस्ट मात्र 45 से 75 दिनों में तैयार हो जाता है। यह खाद बहुत ही प्रभावशाली होती है तथा इससे पौधों के लिए सभी पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं तथा पौधे इनको तुरंत ग्रहण कर लेते हैं।
विश्व के विभिन्न भागों में 4500 प्रजातियाँ बतायी जा चुकी है। आज केंचुए की कुछ ऐसी प्रजातियाँ विकसित कर ली गई हैं जिनको पाकर किसान प्रतिदिन के कूड़ा-करकट को एक अच्छी खाद वर्मी कम्पोस्ट में बदल सकते हैं। दो प्रजातियाँ सबसे उपयोगी पायी गई जिनका नाम ऐसिनिया फोटिडा (लाल केंचुआ) तथा युड्रीलय युजीनी (भूरा गुलाबी केंचुआ) है।
केंचुओं की खाद एक उच्च पौष्टिक तत्व वाली खाद होती है। केंचुआ खाद से नाइट्रोजन (1.2 से 1.8%), फास्फोरस(0.4 से 0.६%) तथा पोटाश (1.5 से 1.8%) के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व भी उपलब्ध होते हैं। केंचुए की गतिविधियों से निकलने वाला अवशिष्ट पदार्थ प्राकृतिक तत्व से मिश्रित होने के कारण यह खाद अधिक उपजाऊ हो जाती है।
केंचुआ खाद बनाने की विधि बहुत ही सरल तथा सस्ती है। इससे बेरोजगार नवयुवक काफी पैसा कम सकते हैं।
औद्योगिक स्तर पर केंचुआ खाद तैयार करने की निम्नलिखित दो विधियाँ हैं।
चूँकि मोड्यूलर विधि में एक बना हुआ बक्सा खरीदने की जरूरत पड़ती है अतः यह विधि खर्चीली होने के कारण आम किसानों के लिए उपयोगी नहीं है। विन्डरोज विधि कीफायती होने के कारण अधिक लोकप्रिय है जिसका वर्णन नीचे किया गया है।
केंचुआ धूप सहन नहीं कर सकते अतः सबसे पहले 5 फूट चौड़ा व 20 फूट लंबा बाँस या लकड़ी का छप्पर खड़ा करते हैं तथा खपड़ा अथवा पुआल से छत बना दिया जाता है। इसकी उंचाई इतनी होनी चाहिए कि आदमी आराम से पानी दे सके। इस झोपड़ी के नीचे वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जाता है ताकि धूप एवं बरसात के पानी से बचाया जा सके। स्थान के चुनाव के समय यह ध्यान देना चाहिए कि वहां पर बरसात का पानी इकट्ठा न हो। अतः हमेशा ऊँची जमीन का चुनाव करना चाहिए।
जैविक पदार्थ जैसे गोबर, कूड़ा करकट, पौधों का अवशेष तथा घास फूस, हरी पत्ती आदि से पहले शीशा, पोलोथिन, पत्थर आदि, अगर हो तो चुनकर अलग कर लेना चाहिए। उसके बाद छोटा-छोटा टुकड़ा कर देना चाहिए। सब्जियों के अवशेष कूड़ा करकट आदि को गोबर के साथ मिलाने के बाद 10 से 15 दिन तक अलग जगह पर आंशिक विघटन के लिए छोड़ दिया जाता है। गोबर एवं अन्य पदार्थों का अनुपात बराबर होना चाहिए। आंशिक विघटन के बाद वर्मी कम्पोस्ट यूनिट में इसे पयोग किया जाता है।
शेड के नीचे जमीन को समतल बनाकर इसे भिंगोकर सड़ने वाला पदार्थ रखा जाता है।
पहली सतह, धीरे-चीरे सड़ने वाले पदार्थों जैसे-नारियल के छिलके, केले के पत्ते या छोटे टुकड़ों में कटे बांस से तैयार किया जाता है। इस सतह की मोटाई लगभग 3 से 4 इंच होना आवश्यक है। इस सतह को बेड कहा जाता है। कठिन समय पर केंचुआ इसे घर के रूप में इस्तेमाल करता है।
दूसरी सतह भी करीब 3 से 4 इंच मोटी होती है जो कि बेडिंग पदार्थ के ऊपर बिछायी जाती है। इस सतह में मुख्यतः आधा सड़े हुए गोबर का इस्तेमाल किया जाता है ताकि सड़ने के समय पदार्थ में ज्यादा गर्मी पैदा नहीं हो। अगर इस पदार्थ में नमी की कमी हो तो हर सतह में पानी का छिड़काव् करना आवश्यक है।
दूसरी सतह के ऊपर केंचुओं को हल्के से रखा जाता है। एक वर्ग मीटर जगह के लिए 250 केंचुओं की जरूरत है। केंचुओं को छोड़ने के पश्चात बहुत जल्दी या दूसरी सतह के नीचे घुस जाते हैं क्योंकि ये अपने को बाहर में खुला रखना पसंद नहीं करते हैं।
छोटे टुकड़ों में कटा हुआ हरा या सुखा जैविक पदार्थ एवं गोबर आधा-आधा हिस्सा (50:50) में मिलाकर आखिरी सतह में दिया जाता है। यह सतह तकरीबन 4 से 5 इंच मोटी होती है। इस तरह ढेर की ऊंचाई करीब 1.0 से 1.5 फुट हो जाती है।
आखिरी सतह को पूरी क्यारी के लंबाई के बराबर जुट के कपड़े से ढक दिया जाता है। पूरे ढेर को ढंकना आवश्यक है। जूट का फटा हुआ बोरा इस काम में इस्तेमाल किया जा सकता है।
बोरे के ऊपर नियमित रूप से पानी का छिड़काव् आवश्यक है। नमी लगभग 60% बनी रहनी चाहिए।
जब केंचुआ तैयार हो जाए तो इसमें पानी का छिड़काव बंद का देना चाहिए तथा उसे सूखने देना चाहिए। इसके बाद ऊपर में आधा सड़े हुए गोबर की एक पतली परत देनी चाहिए। सारे केंचुए इस परत में आ जाते हैं। तत्पश्चात इन केंचुओं को ऊपर की परत समेत इकट्ठा कर लेते हैं। मोटी छलनी से छानकर भी केंचुआ को अलग किया जा सकता है।
ऊपर के दो स्तर केंचुआ खाद के रूप में इकट्ठा कर लिए जाते हैं। बेड को सुरक्षित रखा जाता है तथा पुराने बेड के ऊपर दूसरी खेप की तैयारी पुनः पहले चरण से शुरू कर देनी चाहिए।
इस खाद को छाया में सुखाकर इसकी नमी कम कर दी जाता है। इससे यह रखने योग्य हो जाता है। सूखने के पश्चात खाद को बोरे में एक साल की अवधि तक के लिए रखा जा सकता है।
केंचुआ खाद का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि खेत में किसी तरह की रासायनिक खाद तथा किसी प्रकार की दवा का इस्तेमाल न हो।
केंचुओं द्वारा कचरे का कम्पोस्ट में परिवर्तित होने के साथ-साथ केंचुओं की संख्या पहले से कम से दो गुनी हो जाती है। इस प्रक्रिया को लगातार करने से पूरे वर्ष कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है। औद्योगिक स्तर पर इसे तैयार करने से एक चक्र में उत्पादक को लगभग 10,000 रूपये का लाभ होता है।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 7/25/2021
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