कृषि वैज्ञानिकों ने जैविक व जीवांश खादों को रासायनिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में खोज लिया है जो कि सामान्यतया सस्ते और पर्यावरण की दृष्टि से उपयुक्त पाए गए है| जीवांश खादों को पशुओं के मूत्र व गोबर, कूड़ा-कचरा, अनाज की भूसी, राख, फसलों एवं फलों के अवशेष इत्यादि को सड़ा गलाकर तैयार किया जाता है| कूड़ा-कचरा को सड़ाने गलाने में प्राथमिक योगदान केंचुओं को होने के कारण| इन्हें किसान का मित्र भी कहा जाता है| केंचुए जैविक पदार्थों का भोजन करते हैं और मल के रूप में केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) प्रदान करते हैं जो जैविक एंव जीवांश खादों की सूची में महत्वपूर्ण खाद है| शोध कार्यों से यह साबित हो चूका है कि व्यर्थ पदार्थ, भूसा, अनाज के दाने, खरपतवार एवं शहरी पदार्थ इत्यादि के एक तिहाई गोबर एवं पशुओं में मल मूत्र तथा बायो गैस स्लरी के साथ मिलाकर अच्छी प्रजाति के केंचुओं दारा बहुत ही उत्तम और पोषक तत्वों से परिपूर्ण केंचुआ खाद बनाई जा सकती है| इसी के साथ इसमें केंचुआ स्राव भी होता है जो पौधों की वृद्धि में लाभदायक होता है| इस खाद को फलों, सब्जियों, कंद, अनाज, जड़ी-बूटी व फूलों की खेती के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है| मृदा उर्वरकता को बढ़ाने के साथ-साथ उपज में वृद्धि एवं गुणवत्ता प्रदान करने में वर्मीकम्पोस्ट या केंचुआ खाद के महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| उत्तम किस्म की केंचुआ खाद, गंध रहित होने के साथ-साथ वातावरण के अनुकूल होती है जो किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं फैलाती यह खाद 1, 2, 5, 10 एवं 50 किलो के थैलों में उपलब्ध हो सकती है और इसकी कीमत 5-20 रूपये प्रति किलोग्राम तक की दर से प्राप्त की जा सकती है| इस तरह से यह एक लाभदायक व्यवसाय भी सिद्ध हो सकता है| इन केंचुओं से प्राप्त प्रोटीन को मुर्गी, मछली व पशु पालन उद्योगों में पौष्टिक आहार के रूप में भी प्रयोग किया जा रहा है| इसमें 50-75% प्रोटीन व 7-10% वसा के अलावा कैल्शियम, फास्फोरस एवं अन्य खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में विद्यमान होते हैं जो अन्य स्रोतों की तुलना में काफी सस्ते होते हैं| इस तरह से किसानों एवं बागवानी के साथ-साथ व्यापारियों के लिए भी यह तकनीक काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है| केंचुओं की प्रमुख प्रजातियों को को दर्शाया गया है|
केंचुओं की प्रमुख प्रजातियाँ
क्र. सं. |
प्रजातियाँ |
उपयोगिता |
1 |
आईसीनिया फीटीडा, आईसीनिया हाटरेनिन्सस व लुम्ब्रीकस रुबेलस, युड्रीलस यूजेनी |
ठंढे वातारण के लिए उपयुक्त |
2 |
पैरियोनिक्स ईक्सकैवट्स, युड्रीलस यूजेनी |
गर्म वातावरण के लिए उपयुक्त |
3 |
डैन्ड्रोबीना रूबीडा |
घोड़े की लीद व पेपर स्लज के लिए उपयुक्त |
केंचुओं को प्रभावित करने वाले कारक
10. कम्पोस्ट गड्ढे को भरने एवं केंचुआ डालने के बाद मल्चिंग आवश्यक होती है|
11. चीटियों के आक्रमण से बचाव के लिए हींग (10 ग्राम) का पानी (1 लीटर) में घोल बनाकर क्यारी के चारों तरफ छिड़काव करने से लाभदायक परिणाम प्राप्त होते हैं|
वर्मीकम्पोस्ट एवं देशी खाद के तुलनात्मक अध्ययन से ज्ञात होता है कि देशी खाद की तुलना में केंचुआ खाद अधिक गुणवत्ता व उपयोगी है जिसे सारणी में दर्शाया गया है|
क्र.स. |
विवरण |
केंचुआ खाद |
देशी खाद |
1 |
पी. एच. मान (7.0-7.5) |
7.2 |
7.2 |
2 |
विद्युत चालकता (डेसीसाइमेन्स/मीटर) |
1.32 |
0.22 |
3 |
पोषक तत्वों की कुल मात्रा (%) |
|
|
|
क) नाइट्रोजन (0.5-1.5) |
0.85 |
0.42 |
|
ख) फोस्फोरस (0.4-1.2) |
0.62 |
0.42 |
|
ग) पोटाश (0.4-0.7) |
0.45 |
0.12 |
|
घ) कैल्शियम |
0.53 |
0.56 |
|
ङ) मैगनीशियम |
0.21 |
0.18 |
|
च) सल्फर (गंधक) |
0.35 |
0.23 |
|
छ) जिंक (पी पी एम) |
467 |
132 |
|
ज) मैगजीन (पी पी एम) |
250 |
175 |
|
झ) तम्बा (पी पी एम) |
26 |
22 |
|
ञ) लोहा (पी पी एम) |
|
|
4 |
उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा (पी पी एम) |
380 |
250 |
|
क) नाइट्रोजन ख) फोस्फोरस ग) पोटाश घ) जिंक (डी टी पी ए) ङ) मैगजीन (डी टी पी ए) च) तम्बा (डी टी पी ए) छ) लोहा (डी टी पी ए) |
397 156 1355 120 140 0.9 3.8 |
310 48 1024 25 110 0.5 3.5 |
5 |
कार्बन: नाइट्रोजन अनुपात |
12:1 |
15:1 |
केंचुआ खाद की विशेषताएं
केंचुआ खाद के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक इत्यादि विशेष गुणों के आधार पर यह साबित हो चूका है कि कृषि एवं बागवानी में इसका उपयोग अत्यंत लाभकारी है| साधारण कम्पोस्ट एवं देशी खाद की तुलना में भी असाधारण अंतर पाया गया है| दानेदार प्रकृति के कारण यह खाद भूमि में वायु संचार एवं जलधार क्षमता में वृद्धि करती है| इसमें पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा के साथ-साथ अनेक पदार्थों जैसे एन्जाइम, हारमोन, अन्य जैव सक्रिय यौगिक विटामिन एवं एमिनोअम्ल इत्यादि उपलब्ध होते हैं जो पौधों की अच्छी वृद्धि के साथ-साथ उत्तम गुणों वाले उत्पाद के लिए आशातीत सहयोग प्रदान करते हैं| केंचुआ खाद के लगातार प्रयोग से मिट्टी के भौतक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में भी सुधार होता है जो अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक है| इसके उपयोग से सूक्ष्म जीवाणुओं में भी वृद्धि होती है|
केंचुआ खाद तैयार करने के लिए मुख्य रूप से दो विधियों का प्रयोग किया जाता है जो निम्नलिखित है:
अ) इंडोर (भीतरी) विधि: इस विधि में किसी भी पक्के छत, छप्पर या पेड़ पौधों की छाया में कार्बनिक पदार्थ के ढेर जैसे फलों तथा सब्जियों के अवशेष, भूसा, दाने तथा फलियों के छिलके, पशुओं के मलमूत्र एवं खरपतवार इत्यादि द्वारा केंचुआ खाद का उत्पादन छोटे स्तर पर किया जा सकता है| इस ढेर पर पानी छिड़कने के उपरांत केंचुओं को डाल दिया जाता है| ये केंचुए कार्बनिक पदार्थ को खाते रहते हैं और मल त्याग करके केंचुआ खाद तैयार करते हैं| इस विधि के लिए आदर्श केंचुआ खाद इकाई का निर्माण आवश्यक होता है| प्लास्टिक द्वारा निर्मित इकाई का भी प्रयोग सफलतापूर्वक कर सकते हैं| इस इकाई से निकलने वाला स्राव, जो पोषक तत्वों, हर्मोंन एवं एन्जाइम तथा जीवाणुओं से परिपूर्ण होता है, को पर्णीय छिड़काव के लिए प्रयोग में लाया जाता अहि|
आ) आउटडोर (बाहरी) विधि: इसे खुले स्थानों में खाद बनाने की विधि के नाम से जानते हिना विधि प्रायः अपने बगीचे या खेत में ही बड़े स्तर पर खाद तैयार करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है| कम ध्यान देकर भी इस विधि द्वारा छोटे स्तर (3-10 टन), माध्यम स्तर (120 टन) तथा बड़े स्तर (2600 टन) पर प्रतिवर्ष केंचुआ खाद तैयार की जा सकती है| इस विधि में लागत कम आती है| इसमें मुख्यतया दो विधियाँ प्रयोग में लाई जाती है जो निम्नलिखित हैं:
क) यथास्थान केंचुआ पालन
फसल काटने के बाद खाली खेत में एक फुट ऊँची मेढ़ बनाकर एक क्यारी तैयार की जाती है| खेत से प्राप्त सड़े गले पते, डंडल, जड़ें, फलों इत्यादि को गोबर के साथ 1:1 के अनुपात में मिलाकर इस क्यारी में भर दिया जाता है| उचित नमी (60-75%) बनाये रखने के लिए समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है| जब कार्बनिक पदार्थ 15-20 दिन के बाद थोड़ा सड़ने-गलने लगता है तब इसमें केंचुए दाल दिए जाते हैं| केंचुओं की क्रियाशीलता के द्वारा 3-4 माह में इनकी संख्या काफी बढ़ जाती है और साथ केंचुआ खाद भी तैयार हो जाती है| यदि केंचुओं की वर्मी प्रोटीन या अन्य जगह प्रयोग की आवश्यकता न हो तो इन्हे खाद सहित खेत में प्रयोग किया जाता है जिससे खेत की उर्वरा शक्ति एवं उपजाऊ शक्ति में बढ़ोतरी होती है| यदि केंचुओं की आवश्कता हो तो इन्हें अलग करके अन्य जगह प्रयोग किया जा सकता है|
ख) खुले मैदान में केंचुआ पालन
इस विधि के अंतर्गत छायादार जगह पर इच्छित लम्बाई और चौड़ाई की 2 फुट ऊँची मेढ़ बनाकर क्यारी तयारी की जाती है| इस क्यारी में वानस्पतिक पदार्थों एवं गोबर इत्यादि को भर दिया जाता है और समय-समय पर पानी का छिड़काव करके 10-15 दिन के बाद केंचुओं को इसमें मिला दिया जाता है| यह किसानों के लिए केंचुआ खाद बनाने का एक सस्ता एवं आसान तरीका है| इस विधि द्वारा न्यूनतम ध्यान देकर भी अच्छी खाद तैयार की जा सकती है|
केंचुआ खाद बनाने के लिए कार्यसूची
क्र.सं. |
दिवस |
कार्य |
1 |
1-5 दिन |
स्थान का चयन, मिट्टी से कंकड़ –पत्थर निकालना, क्यारी तैयार करना (2.0 मीटर लम्बी, 1.5 मीटर चौड़ी एवं 10 मीटर ऊँची ईंट की हवादार दीवार जिस पर पक्के/कच्चे छत की व्यवस्था हो), मिट्टी, ईंट के टुकड़े व रेत के तह लगाना| |
2 |
6-7 दिन |
जैव एंव कार्बनिक पदार्थों की व्यवस्था करना, गड्ढे में भरना एवं पानी का छिड़काव करना| |
3 |
8 दिन |
क्यारी में केंचुए डालना एवं नमी बनाये रखने के लिए मल्चिंग करना| |
4 |
20 दिन |
केंचुए डालने के 12 दिन के बाद पल्टाई करना एवं डेढ़ फुट तक गोबर एवं अन्य जौविक पदार्थ डालना| |
5 |
6-63 दिन |
क्यारी में 60-75% नमी बनाये रखने के लिए पानी का लगातार छिड़काव करना व उचित तापक्रम को बनाए रखना| |
6 |
58-60 दिन |
बफर क्यारी (कार्बनिक पदार्थ सहित) को तैयार करना| |
7 |
62-63 दिन |
केंचुए चुनकर बफर बैड में डालना | |
8 |
63 दिन |
क्यारी में पानी छिड़काव बंद करना| |
9 |
63-68 दिन |
क्यारी की 2-3 बार पलटाई करना| |
10 |
68-69 दिन |
केंचुआ खाद को अलग करना या छानना |
11 |
68-79 दिन |
केंचुआ खाद की पैकिंग एन विपणन करना| |
केंचुआ खाद को छानना या अलग करना|
यदि तैयार केंचुआ खाद को अलग करने में विलम्ब किया जात है तो केंचुओं की मृत्यु होने लगती है और परिणामस्वरूप चींटियों का आक्रमण भी बढ़ जाता है| अतः इन्हें शीघ्र अलग करके ताजे (15-20 दिन पुराना) गोबर/कम्पोस्ट में दोबारा डाल देना चाहिए| इसे छानने या अलग करते समय अंडे या कुकन या छोटे शिशुओं का विशेष ध्यान रखा जाता है| केंचुआ खाद को निकालने के लिए 15-20 दिन पूर्व पानी का छिड़काव बदं कर दिया जाता और मल्चिंग हटा कर हल्की पलटाई कर दी जाती है| फलस्वरूप खाद में नमी की मात्रा कम होने लगती है जिससे केंचुए निचले स्तर पर चले जाते हैं| ऊपर से खाद व कूकन को निकाल लिया जाता है| चूँकि केंचुए रौशनी से दूर अंधेरे में रहना पसंद करते हैं इसलिए इनको खाद से अलग करना और भी आसान हो जाता है| इस तरह ऊपर से खाद को थोड़ा हिलाने और केंचुए नीचे चले जाते हैं औइर खाद केंचुआ मुक्त हो जाती है| केंचुओं व कुकन को अलग करने के लिए जाली का भी प्रयोग कर सकते हैं|
केंचुआ खाद का प्रयोग
केंचुआ स्त्राव (गाढ़ा घोल)
केंचुओं की संख्या अत्यधिक होती है, का गाढ़ा घोल केंचुआ स्त्राव कहलाता है| केंचुआ स्त्राव में वे पोषक तत्व एवं अन्य पदार्थ विद्यमान होते हैं जो केंचुआ खाद में होते हैं| अतः यह ऐसा तरल पदार्थ है जो छिड़काव के रूप में सभी प्रकार के फसलों के लिए किया जा सकता है| इस केंचुआ स्त्राव को 7 गुणा पानी में मिलाकर छिड़काव करने से फसल की अच्छी वृद्धि तथा उत्तम स्वास्थ्य के साथ-साथ कीटाणुओं का प्रकोप भी कम होता है|
केंचुआ स्त्राव तैयार करने की विधि
सामग्रीः प्लास्टिक ड्रम (200 लीटर क्षमता वाला), केंचुआ खाद एवं जीवित केंचुए, मिट्टी या प्लास्टिक का ड्रम या घड़ा, स्टैंड, पानी, नल, कंक्रीट, रेत व बाल्टी इत्यादि|
विधि: नल लगे ड्रग को स्टैंड के ऊपर रखें| इसमें केंचुआ खाद व केंचुए ऊपर तक भरें और लगभग 6 इंच स्थान खाली रखें| मिट्टी के घड़े के पेंदें में छेद करके धागा डालें और पानी भरें और ड्रम के ऊपर एक फ्रेम की सहायता से रखें, जिससे घड़े में भरा हुआ पानी बूंद-बूंद टपकता रहे| नल अंत तक बंद रखें| इस प्रक्रिया को 72 घंटे तक करें| ड्रम में एकत्रित स्त्राव को नल/टोंटी क सहायता से निकालें और प्रयोग करें| अंतः में ड्रम में उपस्थित जीवित केंचुओं को खाद सहित गड्ढे में डाल दें जहाँ वे पुनः वृद्धि करने लगेंगे|
स्रोत: मृदा एवं जल प्रबंधन विभाग, औद्यानिकी एवं वानिकी विश्विद्यालय; सोनल
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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