वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए इस विधि में क्षेत्र का आकार (area) आवश्यकतानुसार रखा जाता है किन्तु मध्यम वर्ग के किसानों के लिए 100 वर्गमीटर क्षेत्र पर्याप्त रहता है। अच्छी गुणवत्ता की केंचुआ खाद बनाने के लिए सीमेन्ट तथा इटों से पक्की क्यारियां (Vermi-beds) बनाई जाती हैं। प्रत्येक क्यारी की लम्बाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर एवं ऊँचाई 30 से 50 सेमी0 रखते हैं। 100 वर्गमीटर क्षेत्र में इस प्रकार की लगभग 90 क्यारियां बनाइ र् जा सकती है। क्यारियों को तेज धूप व वर्षा से बचाने और केंचुओं के तीव्र प्रजनन के लिए अंधेरा रखने हेतु छप्पर और चारों ओर टटि्टयों से हरे नेट से ढकना अत्यन्त आवश्यक है।
क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियाँ घास,सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनशील कार्बनिक पदार्थों का चुनाव करते हैं। इन पदार्थों को क्यारियों में भरने से पहले ढ़रे बनाकर 15 से 20 दिन तक सड़ने के लिए रखा जाना आवश्यक है। सड़ने के लिए रखे गये कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण में पानी छिड़क कर ढेऱ को छोड़ दिया जाता है। 15 से 20 दिन बाद कचरा अधगले रूप (Partially decomposed ) में आ जाता है। ऐसा कचरा केंचुओं के लिए बहुत ही अच्छा भोजन माना गया है। अधगले कचरे को क्यारियों में 50 से.मी. ऊँचाई तक भर दिया जाता है। कचरा भरने के 3-4 दिन बाद पत्तियों की क्यारी में केंचुऐं छोड़ दिए जाते हैं और पानी छिड़क कर प्रत्येक क्यारी को गीली बोरियो से ढक देते है। एक टन कचरे से 0.6 से 0.7 टन केंचुआ खाद प्राप्त हो जाती है।
इस विधि में चुने गये स्थान पर 12’x12’x2.5’(लम्बाई x चौड़ाई x ऊँचाई) का गड्ढा बनाया जाता है। इस गड्ढे को ईंट की दीवारों से 4 बराबर भागों में बांट दिया जाता है। इस प्रकार कुल 4 क्यारियां बन जाती हैं। प्रत्येक क्यारी का आकार लगभग 5.5’ x 5.5’ x 2.5’ होता है। बीच की विभाजक दीवार मजबूती के लिए दो ईंटों (9 इंच) की बनाई जाती है। विभाजक दीवारों में समान दूरी पर हवा व केंचुओं के आने जाने के लिए छिद्र छोड़ जाते हैं। इस प्रकार की क्यारियों की संख्या आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है।
इस विधि में प्रत्येक क्यारी को एक के बाद एक भरते हैं अर्थात पहले एक महीने तक पहला गड्ढा भरते हैं पूरा गड्ढा भर जाने के बाद पानी छिड़क कर काले पॉलीथिन से ढक देते हैं ताकि कचरे के विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हो जाये। इसके बाद दूसरे गड्ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। दूसरे माह जब दूसरा गड्ढा भर जाता है तब ढक देते हैं और कचरा तीसरे गड्ढे में भरना आरम्भ कर देते हैं। इस समय तक पहले गड्ढे का कचरा अधगले रूप में आ जाता है। एक दो दिन बाद जब पहले गड्ढे में गर्मी (heat) कम हो जाती है तब उसमें लगभग 5 किग्रा0 (5000) केंचुए छोड़ देते हैं। इसके बाद गड्ढे को सूखी घास अथवा बोरियों से ढक देते हैं। कचरे में गीलापन बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार पानी छिड़कते रहते है। इस प्रकार 3 माह बाद जब तीसरा गड्ढा कचरे से भर जाता है तब इसे भी पानी से भिगो कर ढक देते हैं और चौथे को गड्ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। धीरे-धीरे जब दूसरे गड्ढे की गर्मी कम हो जाती है तब उसमें पहले गड्ढे से केंचुए विभाजक दीवार में बने छिद्रों से अपने आप प्रवेश कर जाते हैं और उसमें भी केंचुआ खाद बनना आरम्भ हो जाती है। इस प्रकार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्ढे भर जाते हैं। इस समय तक पहले गड्ढे में जिसे भरे हुए तीन माह हो चुके हैं केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) बनकर तैयार हो जाती है। इस गड्ढे के सारे केंचुए दूसरे एवं तीसरे गड्ढे में धीरे-धीरे बीच की दीवारों में बने छिद्रों द्वारा प्रवेश कर जाते हैं। अब पहले गड्ढे से खाद निकालने की प्रक्रिया आरम्भ की जा सकती है। खाद निकालने के बाद उसमें पुन: कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। इस विधि में एक वर्ष में प्रत्यके गड्ढे में एक बार में लगभग 10 कुन्तल कचरा भरा जाता है जिससे एक बार में 7 कुन्तल खाद (70 प्रतिशत) बनकर तैयार होती है। इस प्रकार एक वर्ष में चार गड्ढों से तीन चक्रों में कुल 84 कुन्तल खाद (4x3x7) प्राप्त होती है। इसके अलावा एक वर्ष में एक गड्ढे से 25 किग्रा0 और 4 गड्ढों से कुल 100 किग्रा0 केंचुए भी प्राप्त होते हैं।
केंचुआ खाद बनाने हेतु चरणबद्ध निम्न प्रक्रिया अपनाते हैं।
चरण-1
कार्बनिक अवशिष्ट/ कचरे में से पत्थर,काँच,प्लास्टिक, सिरेमिक तथा धातुओं को अलग करके कार्बनिक कचरे के बड़े ढ़ेलों को तोड़कर ढेर बनाया जाता है। |
चरण–2
मोटे कार्बनिक अवशिष्टों जैसे पत्तियों का कूड़ा, पौधों के तने, गन्ने की भूसी/खोयी को 2-4 इन्च आकार के छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। इससे खाद बनने में कम समय लगता है। |
चरण–3
कचरे में से दुर्गन्ध हटाने तथा अवाँछित जीवों को खत्म करने के लिए कचरे को एक फुट मोटी सतह के रुप में फुलाकर धूप में सुखाया जाता है। |
चरण–4
अवशिष्ट को गाय के गोबर में मिलाकर एक माह तक सड़ाने हेतु गड्डों में डाल दिया जाता है। उचित नमी बनाने हेतु रोज पानी का छिड़काव किया जाता है। |
चरण–5
केंचुआ खाद बनाने के लिए सर्वप्रथम फर्श पर बालू की 1 इन्च मोटी पर्त बिछाकर उसके ऊपर 3-4 इन्च मोटाई में फसल का अवशिष्ट/मोटे पदार्थों की पर्त बिछाते हैं। पुन: इसके ऊपर चरण-4 से प्राप्त पदार्थों की 18 इन्च मोटी पर्त इस प्रकार बिछाते हैं कि इसकी चौड़ाई 40-45 इन्च बन जाती है। बेड की लम्बाई को छप्पर में उपलब्ध जगह के आधार पर रखते हैं। इस प्रकार 10 फिट लम्बाई की बेड में लगभग 500 कि.ग्रा. कार्बनिक अवशिष्ट समाहित हो जाता है। बेड को अर्धवृत्त प्रकार का रखते हैं जिससे केंचुए को घूमने के लिए पर्याप्त स्थान तथा बेड में हवा का प्रबंधन संभव हो सके। इस 17 प्रकार बेड बनाने के बाद उचित नमी बनाये रखने के लिए पानी का छिड़काव करते रहते है तत्पश्चात इसे 2-3 दिनों के लिए छोड़ देते हैं। |
चरण–6
जब बेड के सभी भागों में तापमान सामान्य हो जाये तब इसमें लगभग 5000 केंचुए / 500 0ग्रा0 अवशिष्ट की दर से केंचुआ तथा कोकून का मिश्रण बेड की एक तरफ से इस प्रकार डालते हैं कि यह लम्बाई में एक तरफ से पूरे बेड तक पहुँच जाये। |
चरण–7
सम्पूर्ण बेड को बारीक / कटे हुए अवशिष्ट की 3-4 इन्च मोटी पर्त से ढकते हैं, अनुकूल परिस्थितयों में केंचुए पूरे बेड पर अपने आप फलै जाते हैं। ज्यादातर केंचुए बेड में 2-3 इन्च गहराई पर रहकर कार्बनिक पदार्थों का भक्षण कर उत्सर्जन करते रहते हैं। |
चरण–8
अनुकूल आर्द्रता, तापक्रम तथा हवामय परिस्थितयोंमें 25-30 दिनों के उपरान्त बडै की ऊपरी सतह पर 3-4 इन्च मोटी केंचुआ खाद एकत्र हो जाती हैं। इसे अलग करने के लिए बेड की बाहरी आवरण सतह को एक तरफ से हटाते हैं। ऐसा करने पर जब केंचुए बेड में गहराई में चले जाते हैं तब केंचुआ खाद को बडे से आसानी से अलग कर तत्पश्चात बेड को पुनः पूर्व की भाँति महीन कचरे से ढक कर पर्याप्त आर्द्रता बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव कर देते हैं। |
चरण–9
लगभग 5-7 दिनों में केंचुआ खाद की 4-6 इन्च मोटी एक और पर्त तैयार हो जाती है। इसे भी पूर्व में चरण-8 की भाँति अलग कर लेते हैं तथा बेड में फिर पर्याप्त आर्द्रता बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव किया जाता है। |
चरण–10
तदोपरान्त हर 5-7 दिनोंके अन्तराल में अनुकूल परिस्थतियों में पुन: केंचुआ खाद की 4-6 इन्च मोटी पर्त बनती है जिसे पूर्व में चरण-9 की भाँति अलग कर लिया जाता है। इस प्रकार 40-45 दिनोंमें लगभग 80-85 प्रतिशत केंचुआ खाद एकत्र कर ली जाती है। |
चरण–11
अन्त में कुछ केचुआ खाद केंचुओं तथा केचुए के अण्डों (कोकूनद) सहित एक छोटे से ढेर के रुप में बच जाती है। इसे दूसरे चक्र में केचुए के संरोप के रुप में प्रयुक्त कर लेते हैं। इस प्रकार लगातार केंचुआखाद उत्पादन के लिए इस प्रि क्रया को दोहराते रहते हैं। |
चरण–12
एकत्र की गयी केंचुआ खाद से केंचुए के अण्डों अव्यस्क केंचुओं तथा केंचुए द्वारा नहीं खाये गये पदार्थों को 3-4 से.मी. आकार की छलनी से छान कर अलग कर लेते हैं। |
चरण–13
अतिरिक्त नमी हटाने के लिए छनी हुई केचुआ खाद को पक्के फर्श पर फैला देते हैं। तथा जब नमी लगभग 30-40 प्रतिशत तक रह जाती है तो इसे एकत्र कर लेते हैं। |
चरण–14
केंचुआ खाद को प्लास्टिक/एच0 डी0 पी0 ई0 थैले में सील करके पैक किया जाता है ताकि इसमें नमी कम न हो। |
वर्मीकम्पोस्ट बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें
कम समय में अच्छी गुणवत्ता वाली वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए निम्न बातोंपर विशेष ध्यान देना अति आवश्यक है ।
1. वर्मी बेडों में केंचुआ छोड़ने से पूर्व कच्चे माल (गोबर व आवश्यक कचराद्) का आंशिक विच्छेदन (Partial decomposition) जिसमें 15 से 20 दिन का समय लगता है करना अति आवश्यक है।
2. आंशिक विच्छेदन की पहचान के लिए ढेऱ में गहराई तक हाथ डालने पर गर्मीं महसूस नहीं होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में कचरे की नमीं की अवस्था में पलटाई करने से आंशिक विच्छेदन हो जाता है।
3. वर्मी बेडों में भरे गये कचरे में कम्पोस्ट तैयार होने तक 30 से 40 प्रतिशतनमी बनाये रखें। कचरें में नमीं कम या अधिक होने पर केंचुए ठीक तरह से कार्य नही करतें।
4. वर्मीवेडों में कचरे का तापमान 20 से 27 डिग्री सेल्सियस रहना अत्यन्त आवश्यक है। वर्मीबेडों पर तेज धूप न पड़ने दें। तेज धूप पड़ने से कचरे का तापमान अधिक हो जाता है परिणामस्वरूप केंचुए तली में चले जाते हैं अथवा अक्रियाशील रह कर अन्ततः मर जाते हैं।
5. वर्मीबेड में ताजे गोबर का उपयोग कदापि न करें। ताजे गोबर में गर्मी (Heat) अधिक होने के कारण केंचुए मर जाते हैं अतः उपयोग से पहले ताजे गोबर को 4व 5 दिन तक ठण्डा अवश्य होने दें।
6. केंचुआखाद तैयार करने हेतु कार्बि नक कचरे में गोबर की मात्रा कम से कम 20 प्रतिशत अवश्य होनी चाहिए।
7. कांग्रेस घास को फूल आने से पूर्व गाय के गोबर में मिला कर कार्बनिकपदार्थ के रूप में आंशिक विच्छेदन कर प्रयोग करने से अच्छी केंचुआ खाद प्राप्त होती है।
8. कचरे का पी. एच. उदासीन (7.0 के आसपास) रहने पर केंचुए तेजी से कार्य करते हैं अतः वर्मीकम्पोस्टिंग के दौरान कचरे का पी. एच. उदासीन बनाये रखे। इसके लिए कचरा भरते समय उसमें राख (ash) अवश्य मिलाएं।
9. केंचुआ खाद बनाने के दौरान किसी भी तरह के कीटनाशकों का उपयोग न करें।
10. खाद की पलटाई या तैयार कम्पोस्ट को एकत्र करते समय खुरपी या फावडे़ का प्रयोग कदापि न करें।
स्त्रोत : डॉ. डी कुमार एवं डॉ. धर्म सिंह, जगत सिंह द्वारा लिखित,इंडिया वॉटर पोर्टल,राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र,गाजियाबाद
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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