मधुमक्खी क्लोनियों की उत्पादकता संबंधित वनस्पतियां, मौसम की दशाओं व मधुमक्खियों की क्लोनियों के प्रबंध पर निर्भर है। शहद उत्पादन के मौसम के दौरान तथा इसका मौसम न होने पर, दोनों ही स्थितियों में मधुमक्खियों की क्लोनियों का प्रबंध उच्च कालोनी उत्पादकता प्राप्त करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मधुमक्खी पालन संबंधी उपकरण भी वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन के बहुत महत्वपूर्ण घटक हैं, अतः इनकी अच्छी गुणवत्ता व इनके उचित उपयोग से क्लोनियों के निष्पादन में अत्यधिक सुधार होता है। उपरोक्त में से कुछ तथ्यों पर नीचे चर्चा की गई है।
यदि छत्ते और फ्रेम निर्धारित मानक आयामों व गुणवत्ता वाले न हों तो मधुमक्खियों की क्लोनियों का प्रबंध अपर्याप्त और कठिन हो जाता है। अतः यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पंजीकृत मधुमक्खी उपकरण निर्माता द्वारा निर्मित व आपूर्त किए गए छत्तों की गुणवत्ता की जांच मधुमक्खी पालन, वन विभाग अथवा वानिकी और राज्य के बागवानी तथा कृषि विभाग के विशेषज्ञों के एक दल द्वारा नियमित रूप से और जल्दी-जल्दी की जाए। मानक छत्तों के उपयोग से किसानों व मधुमक्खी पालकों को आसानी होती है और इसके परिणामस्वरूप क्लोनियों का बेहतर प्रगुणन होता है। मानक गुणवत्तापूर्ण श्रेष्ठ छत्तों से नाशकजीवों के आक्रमण में कमी आती है क्योंकि नाशकजीवों के प्रवेश के लिए छत्ते के किसी भी भाग में न तो कोई अंतराल रहता है और न ही दरारें होती हैं।
किसी मधुमक्खी पालन शाला में सभी मधुमक्खी क्लोनियों का निष्पादन वृद्धि व उत्पादकता के संदर्भ में एक समान नहीं होता है। अतः क्लोनियों के विद्यमान स्टॉक की छंटाई करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, ताकि उन क्लोनियों को चुना जा सके जिनसे अधिक शहद उत्पन्न हुआ है, ज्यादा छत्ते बने हैं, अधिक मधुमक्खी झुण्डों का पालन हुआ है, मधुमक्खियों के रोगों तथा शत्रुओं की अपेक्षाकृत कम समस्याएं सामने आई हैं तथा पिछले वर्ष की तुलना में मधुमक्खियों के उड़ जाने की कम घटनाएं हुई हैं।
मधुमक्खी पालकों के लिए क्लोनियों की संख्या का उतना महत्व नहीं है जितना महत्व इनसे प्राप्त होने वाले पदार्थ का है। हमें मधुमक्खी पालकों को इस तथ्य से अवगत कराना होगा कि बड़ी संख्या में निर्बल या औसत शक्ति की क्लोनियाँ रखने के बजाय उन्हें सशक्त क्लोनियाँ रखनी चाहिए, ताकि वे उच्च उत्पादकता ले सकें। सशक्त क्लोनियों में अपेक्षाकृत मधुमक्खियों की अधिक संख्या होती है जिसके परिणामस्वरूप शहद का अधिक उत्पादन होता है। इसके अलावा सशक्त क्लोनियों की चोरी से तो सुरक्षा होती ही है, ये मधुमक्खियों का उनके शत्रुओं से भी बचाव करती हैं।
शहद के प्रमुख प्रवाह के दौरान मधुमक्खियों की क्लोनियों में अतिरिक्त नैक्टर और पराग होता है। इससे मधुमक्खियों की क्लोनियों में अधिक मधुमक्खियां पल सकती हैं। जिन क्लोनियों में 10 से अधिक मधुमक्खी फ्रेम होते हैं उनमें अधिक स्थान बनाने के लिए एक सुपर चैम्बर उपलब्ध कराया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से रानी एक्सक्लूडर को ब्रूड तथा सुपर चैम्बरों के बीच रखा जाना चाहिए, ताकि सुपर चैम्बर से ब्रूड-मुक्त शहद के छत्ते प्राप्त किए जा सकें । तथापि, हमारे अधिकांश मधुमक्खी पालक ब्रूड तथा सुपर चैम्बरों के बीच रानी एक्सक्लूडर का उपयोग नहीं करते हैं जिसके कारण सुपर चैम्बर में मधुमक्खी के छत्तों में ब्रूड भी हो सकते हैं। हमारे मधुमक्खी पालक इस प्रकार के छत्तों से शहद तो प्राप्त कर लेते हैं लेकिन शहद निकालने की प्रक्रिया के दौरान ब्रूड मक्खियों के मर जाने के कारण मधुमक्खियों की संख्या कम हो जाती है। अतः गुणवत्तापूर्ण रानी एक्सक्लूडर की उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा उनके उपयोग को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है।
क्लोनियों की संख्या बढ़ाने के लिए अधिकांश मधुमक्खी पालक अपनी क्लोनियों को विभाजित कर देते हैं। यह तकनीक बहुत आसान है लेकिन इस परिणामस्वरूप स्टॉक का अनियंत्रित या आंशिक रूप से नियंत्रित प्रगुणन होता है। बेहतर निष्पादन देने वाली तथापि घटिया निष्पादन देने वाली नर मधुमक्खियों और रोग के प्रति संवेदनशील क्लोनियों में भी ये नर मधुमक्खियां नई पाली गई रानी मधुमक्खियों का निषेचन कर देती हैं। मधुमक्खी क्लोनियों के तेजी से विकास के लिए विभाजन की परंपरागत विधियों के स्थान पर छोटे मधुमक्खी पालन केन्द्रों में चयनशील विभाजन को अपनाया जाना चाहिए तथा उच्च शहद उत्पादन लेने वाले रोगों के प्रति प्रतिरोधी/सहिष्णु मक्खियों के प्रजनन के लिए चुनी हुई क्लोनियों से बड़े पैमाने पर रानी मधुमक्खियों के पालन की विधि अपनाई जानी चाहिए।
सामान्य रूप से कार्यशील स्वस्थ क्लोनियों का प्रबंध रोग या नाशकजीवों से संक्रमित क्लोनियों के प्रबंध से पर्याप्त भिन्न है लेकिन यह तभी संभव है जब रोगी क्लोनियों को चिह्नित व विलगित कर लिया गया हो। मधुमक्खियों की कुटकियों व रोगों के तेजी से फैलने के कारण हमारे मधुमक्खी पालकों को काफी नुकसान होता है क्योंकि वे यह सामान्य दिशानिर्देश नहीं अपनाते हैं। मधुमक्खियों के रोगों व शत्रुओं के प्रसार को कम करने में यह पहलू महत्वपूर्ण है, अतः प्रशिक्षण कार्यक्रमों में रसायनों के उपयोग से बचने पर बल दिया जाना चाहिए।
हरियाणा में मधुमक्खी पालकों को किसी बड़े क्षेत्र में वर्षभर मधुमक्खियों के लिए इतनी वनस्पतियां उपलब्ध नहीं होती हैं कि वे शहद का उच्च उत्पादन ले सकें और क्लोनियों की भी वृद्धि होती रहे। इससे विभिन्न समयावधियों पर मधुमक्खी क्लोनियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने या प्रवासन की आवश्यकता होती है। राज्य में या राज्य के बाहर यह प्रवासन मधुमक्खी क्लोनियों का उचित रूप से पैक बंद करके किया जाना चाहिए। यदि छत्तों में प्रवेश द्वार को खुला रखकर प्रवासन किया जाता है तो स्वस्थ व रोगी अथवा कुटकियों से संक्रमित क्लोनियाँ आपस में मिल जाती हैं। इससे मधुमक्खियों के रोगों व कुटकियों के प्रसार को बढ़ावा मिलता है। गर्मियों के मौसम में क्लोनियों के परिवहन के दौरान मधुमक्खियां न मरे इससे बचने के लिए क्लोनियों में ऊपर की ओर यात्रा पटल तथा प्रवेश द्वारों पर तार की जाली लगाई जानी चाहिए।
यदि समय पर देखभाल न की जाए तो झुण्ड बनने के कारण मधुमक्खियों को बहुत नुकसान होता है। कम से कम झुण्ड बनाने की प्रवृत्ति के साथ क्लोनियों में रानी मधुमक्खी का पालन तथा पकड़े गए झुण्डों से रानियों को न एकत्र करने से इस नुकसान को कम किया जा सकता है। हरियाणा के मधुमक्खी पालकों को, विशेष रूप से सरसों की फसल के मौसम के दौरान मधुमक्खियों के झुण्ड की समस्या का सामना करना पड़ता है। इससे मधुमक्खियों के शत्रुओं व रोगों के अप्रभावित/असंक्रमित क्षेत्रों में फैलने की संभावना रहती है। अतः मधुमक्खी पालकों को झुण्डों का प्रबंध करने के अपने उपाय अपनाने की बजाय चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सुझाए गए सुरक्षात्मक उपायों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
पकड़े गए झुण्डों से मधुमक्खी पालन से प्राप्त होने वाला लाभ बढ़ जाता है लेकिन इन पकड़े गए झुण्डों की कुछ दिनों तक निगरानी की जानी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये झुण्ड नाशकजीवों और रोगों से मुक्त हैं।
चोरी पर नियंत्रण न केवल मधुमक्खियों के नुकसान से बचने के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि इससे चोरों द्वारा फैलने वाले कुटकियों और रोगों से भी बचाव होता है। कमजोर क्लोनियाँ चोरी होने पर रोगों व नाशकजीवों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।
हरियाणा तथा इसके आस-पास के राज्यों में कई मधुमक्खी पालक मधुमक्खी क्लोनियों में खुले में भोजन उपलब्ध कराते हैं। हालांकि यह मधुमक्खियों को भोजन देने की आसान व त्वरित विधि है लेकिन यह अत्यंत वैज्ञानिक है और इससे मधुमक्खी पालन शाला व इसके आस-पास की अन्य मधुमक्खी पालन शालाओं में कुटकियां तथा रोग फैल सकते हैं।
क्लोनियों से उच्चतर उत्पादकता लेने के लिए मधुमक्खी क्लोनियों को शहद प्रवाह का मुख्य मौसम शुरू होने से ही अत्यंत सशक्त होना चाहिए। इसके लिए शहद का मौसम न होने पर क्लोनियों का बेहतर प्रबंध करना जरूरी हो जाता है। भोजन उपलब्ध कराने या कालोनी प्रबंध के किसी भी दिशानिर्देश की उपेक्षा करने से क्लोनियाँ और भी कमजोर हो जाती हैं और इस प्रकार वे चोरी तथा नाशीजीव संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। पराग की कमी की अवधि के दौरान मधुमक्खी झुण्ड के पालन के लिए पराग के स्वादिष्ट तथा प्रभावी विकल्प के विकास से शहद का मौसम न होने के दौरान भी क्लोनियों को सशक्त बनाए रखने में सहायता मिलती है।
निर्यात किए जाने के लिए शहद के गुणवत्तापूर्ण प्राचलों को पूरा करने के लिए यह जरूरी है। कि शहद एंटीबायोटिक्स, रसायनों, नाशकजीवनाशियों से मुक्त हो और उसमें कोई मिलावट न हो। इसके लिए अच्छी तरह पके हुए शहद को निकालने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसे दो-आयामी दृष्टिकोण अपनाकर प्राप्त किया जा सकता है। इसके अंतर्गत मधुमक्खी पालकों को शिक्षित करने, प्रशिक्षण देने व प्रोत्साहित करने के अलावा रोगों तथा शत्रुओं से मुक्त मधुमक्खियों के लिए प्रभावी गैर-रासायनिक नियंत्रण उपायों को विकसित करने की जरूरत है। अनेक मधुमक्खी पालक ऐसे रसायनों व उपचार की विधियों का उपयोग कर रहे हैं जिनकी सिफारिश नहीं की जा सकती है। अतः हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रमों में मधुमक्खी पालकों को इन मुद्दों का प्रशिक्षण देने पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए । गुणवत्तापूर्ण पका हुआ शहद उत्पन्न करने पर प्रीमियम दाम दिए जाने से अन्य मधुमक्खी पालकों को भी इस अभियान में जोड़ने में सहायता मिलेगी। प्राप्त किया गया गुणवत्तापूर्ण शहद भी यदि अस्वच्छ तथा मिलावट पात्रों में रखा जाता है तो उसकी गुणवत्ता कम हो जाती है। अतः सस्ती कीमत पर खाद्य श्रेणी के प्लास्टिक के पात्रों के उपलब्ध होने पर शहद की गुणवत्ता को बरकरार रखा जा सकता है।
चूंकि किसी मधुमक्खी कालोनी की उत्पादकता मुख्यतः उसकी प्रमुख रानी की गुणवत्ता पर निर्भर करती है, इसलिए रानी मक्खियों को सर्वश्रेष्ठ निष्पादन देने वाले स्टॉक से लिया जाना चाहिए। कुछ प्रगतिशील मधुमक्खी पालक ऐसा कर रहे हैं। तथापि, केवल चुनी हुई नर मधुमक्खियों की क्लोनियों से इन रानी मधुमक्खियों का युग्मन कराया जाना चाहिए, ताकि नव विकसित रानी मधुमक्खियों से सर्वाधिक लाभ उठाया जा सके। प्रगतिशील मधुमक्खी पालकों के लिए चलाए जाने वाले प्रगत प्रशिक्षणों में इस पहलू के महत्व, इसकी तर्कसंगतता व इससे संबंधित दिशानिर्देशों को शामिल किया जाना चाहिए।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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