हरियाणा में मधुमक्खी पालन में 4 लाख मधुमक्खी कालोनियां बनाए रखने की क्षमता है, बशर्ते कि उस विविधतापूर्ण पुष्पीय संसाधनों का पूरी तरह उपयोग किया जाए जो इस राज्य में विद्यमान हैं। अतः इस दिशा में अनुसंधान, प्रशिक्षण व विस्तार कार्यक्रमों में नीति स्तर पर बड़े बदलाव की आवश्यकता है। इस दस्तावेज में वैज्ञानिक तथा तकनीकी कार्य योजना को लागू करने के लिए यह सुझाव दिया जाता है कि निम्न नीति स्तर की सिफारिशों पर विचार किया जाना चाहिए।
हरियाणा राज्य में मधुमक्खी पालन उद्योग के विस्तार के लिए अगले 5 वर्षों की अवधि में मधुमक्खी की कालोनियों की संख्या वितरित किए जाने हेतु वर्तमान 2.5 लाख की तुलना में दोगुनी की जानी चाहिए। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राज्य के सभी क्षेत्रों में एक मिशन आधारित कार्यक्रम (लक्ष्य अभिमुख तथा समयबद्ध) आरंभ किया जाना चाहिए। इसके लिए इन सभी विस्तार केन्द्रों को किसानों को प्रशिक्षित करने तथा मधुमक्खी कालोनियों के प्रगुणन/वितरण के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा तथा तकनीकी रूप से सक्षम पर्याप्त मानव शक्ति उपलब्ध कराई जानी चाहिए। प्रत्येक विस्तार केन्द्र में प्रति वर्ष 20,000 से 30,000 मधुमक्खी कालोनियां उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा जाना चाहिए क्योंकि यह लक्ष्य प्राप्त करना संभव है।
भारत सरकार की नई नीति के अनुसार कृषि के वाणिज्यीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी है। हमारे राज्य में मधुमक्खियों से संबंधित वनस्पतिक संसाधनों में बहुत विविधता है, अतः यहां खेती संबंधी अन्य गतिविधियों के समान इसके वाणिज्यीकरण की अधिक संभावना है। मधुमक्खी पालन उद्योग के वाणिज्यीकरण के माध्यम से ही राष्ट्रीय स्तर पर 10 लाख मिलियन तथा हरियाणा राज्य में 4 लाख मधुमक्खी कालोनियों को रखने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए विविध प्रकार के पराग एवं पुष्प रस की आवश्यकता होगी जो वर्तमान में उपलब्ध है किन्तु मधुमक्खी पालन के वाणिज्यीकरण के न होने पर यह व्यर्थ चला जाएगा। वर्तमान में मधुक्खी पालन या मधु उद्योग से संबंधित डाबर, झंडू, पंतजलि, कश्मीर एपेरीज़ आदि जैसे केवल कुछ व्यापार घराने हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर शहद के प्रसंस्करण व विपणन के प्राथमिक कार्य में शामिल हैं। इन बड़ी कंपनियों के पास पर्याप्त संसाधन हैं तथा उन्हें विविध प्रकार के छत्ता उत्पाद (शहद, मधुमक्खी का मोम, पराग, प्रापलिस, रॉयल जैली व मधुमक्खी का विष) उत्पन्न करने तथा अपने-अपने मधुमक्खी उद्यान स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इस प्रकार की कंपनियों को मधुमक्खी उद्योग के उत्थान एवं आधुनिकीकरण हेतु हरियाणा राज्य में आमंत्रित किया जाना चाहिए तथा सक्रिय उद्यमियों को पूरा प्रोत्साहन व प्रेरणा दी जानी चाहिए।
हरियाणा में मधुमक्खी पालन के विविधीकरण की अपार संभावना विद्यमान है। ऐसा मधुमक्खी छत्ता उत्पादों नामतः पराग, प्रापलिस, रॉयल जैली व मधुमक्खी के विष के उत्पादन; शहद तथा मूल्यवर्धित छत्ता उत्पादों के वितरण; परागण के उद्देश्य से मधुमक्खियों के उपयोग, पैकबंद मधुमक्खियां विकसित करने, रानी मक्खी का व्यापार करने; मधुमक्खी पालन से संबंधित उपकरणों व औजारों का विनिर्माण करने आदि हेतु अनेक पूर्ण उद्योगों में विविधीकरण लाकर किया जा सकता है। हरियाणा सरकार को मधुमक्खी पालन से प्राप्त होने वाले उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के साथ-साथ शहद के निर्यात की संभावनाओं पर विचार करना चाहिए।
हरियाणा के अधिकांश मधुमक्खी पालक मधुमक्खी पालन की अवैज्ञानिक विधियां अपना रहे हैं। कालोनियों के बीच में न्यूनतम दूरी रखने, सुपर के स्थान पर एकल कोष्ठ में कालोनियां बनाए रखने, रानी एक्सक्लूडर का उपयोग न करने, कोई भी आयाम रखते हुए छत्तों के लिए घटिया लकड़ी का उपयोग करने, एकल कोष्ठ की कालोनियों के प्रवासन, प्रवासनशील मधुमक्खी शालाओं के बीच सुरक्षित दूरी न रखने, ब्रूड छत्तों से शहद निकालने, विलगनशील फ्लोर बोर्ड के स्थान पर स्थिर फ्लोर बोर्ड लगाने, भीतरी आवरण का उपयोग न करने, खुले में भरण आदि जैसी कुछ वे अवैज्ञानिक विधियां हैं जो वर्तमान में हमारे मधुमक्खी पालकों के बीच अब बहुत ही सामान्य हैं। इन विधियों को अपनाने से न केवल शहद का उत्पादन कम होता है बल्कि इनके परिणामस्वरूप मधुमक्खियों के रोग व कुटकियां भी तेजी से फैलते हैं। यदि इस अवसर पर वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन को नहीं अपनाया जाता है तो राज्य में इस क्षेत्र में और प्रगति प्राप्त करना अत्यंत कठिन हो जाएगा। एक ही स्थान पर कालोनियों की भीड़ जुटाने को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। दो मधुमक्खी शालाओं के बीच कम से कम पांच कि.मी. की दूरी होनी चाहिए। मधुमक्खी पालकों के बीच यह जागरूकता सृजित करने की आवश्यकता है कि बड़ी संख्या में निर्बल या औसत शक्ति की कालोनियां रखने के बजाय वे सशक्त कालोनियां रखें।
हरियाणा में इस्तेमाल होने वाले अधिकांश मधुमक्खी छत्ते मानक स्तर के नहीं हैं और इनके सभी घटकों में मानक नहीं बनाए रखे गए हैं। अधिकांश मधुमक्खी पालक आंतरिक आवरण व सुपर का उपयोग नहीं करते हैं। इससे शहद में मिलावट व उच्च नमी आने के साथ-साथ कई अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। अधिकांश मामलों में मानक लकड़ी का भी छत्तों के निर्माण के लिए उपयोग नहीं होता है जिसके परिणामस्वरूप इनमें एक साल के अंदर ही दरारें पड़ जाती हैं। राज्य सरकार की नोडल एजेंसी को यूरोपीय मधुमक्खियों के लिए मधुमक्खी पालकों द्वारा मानक छत्तों का उपयोग करने के बारे में सुनिश्चित करना होगा।
सामान्यतः मधुमक्खियां हरियाणा राज्य में एक आंतरिक रूप से विभिन्न कृषि जलवायु वाले मौसम में अलग-अलग मौसमों में सक्रिय रूप से भ्रमण करती हैं। इस तथ्य का उपयोग शहद उत्पादन के लिए मधुमक्खियों की कालोनियों के आंतरिक प्रवासन के लिए किया जा सकता है तथा इसका लाभ कालोनियों के प्रगुणन व फसलों के परागण में भी उठाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त फसल क्रम या फसल पद्धतियों को भी लम्बी अवधि में मधुमक्खियों को मंडराने हेतु उचित वातावरण उपलब्ध कराने के लिए संशोधित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मधुमक्खी कालोनियों के प्रवासन के लिए मधुमक्खी पालकों को वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। प्रवासन के दौरान सरकारी एजेंसी द्वारा अनुज्ञय/पहचान कार्ड जारी किए जा सकते हैं ताकि मधुमक्खी पालक पंजीकृत किए जा सकें और कोई पुलिस वाला या चुंगी विभाग से संबंधित व्यक्ति मधुमक्खी कालोनियों के प्रवासन के दौरान बाधा न उत्पन्न कर सके।
हाल के वर्षों में परंपरागत कृषि में आने वाली समस्याओं जैसे फसल के नाशकजीवों, रोगों, नाशकजीवनाशियों के हानिकारक प्रभावों आदि के कारण जैविक खेती पर अधिक बल दिया जा रहा है। जैविक खेती का अर्थ मात्र नाशकजीवनाशियों का उपयोग न करना ही नहीं है बल्कि इसमें अनेक कृषि आधारित विधियां भी शामिल हैं। इनमें मधुमक्खी पालन, डेरी प्रबंध, केंचुए की खाद बनाना, मछली पालन, बायोगैस उत्पादन आदि जैसे उद्यम भी शामिल हैं। उत्तर भारत में किए गए हाल के अध्ययन में यह देखा गया कि मधुमक्खी पालन तथा केंचुए की खाद बनाने जैसे उद्यम डेरी पालन व मछली पालन आदि की तुलना में जैविक खेती के क्षेत्र में अधिक योगदान दे सकते हैं। अतः हरियाणा में प्रमुख कृषि बागवानी व वन आधारित उद्योग के रूप में जैविक मधुमक्खी पालन पर विशेष बल देने की आवश्यकता है।
हरियाणा में शहद उद्योग किसानों तथा मधुमक्खी पालकों की आमदनी का प्रमुख प्रेत बन सकता है और इसके साथ ही विदेशी मुद्रा कमाने की दिशा में भी इसका बड़ा योगदान हो सकता है। बशर्ते कि इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा किया जाए। शहद के अतिरिक्त अन्य छत्ता उत्पादों जैसे मधुमक्खी के मोम, मधुमक्खी विष, रॉयल जैली, प्रापलिस व पराग पर अधिक बल दिया जाना चाहिए, ताकि इस राज्य में जैविक मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दिया जा सके।
वर्तमान में मधुमक्खी पालक वन क्षेत्र में या सरकार के स्वामित्व की फार्म भूमि पर अपनी मधुमक्खी कालोनियां नहीं रख सकते हैं। यह सुझाव है कि ऐसे कुछ मधुमक्खी उद्यान होने चाहिए जहां मधुमक्खी पालक मधु मौसम के दौरान और इसके साथ ही इसकी कमी या अभाव की अवधि के दौरान अपनी मधुमक्खी कालोनियों को रख सकें।
केवल एकाधिकारी निजी व्यापार घरानों के होने, सुचारू बाजार व्यवस्था व सरकारी सहायता की कमी, शहद के बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव, मधुमक्खी पालकों के उत्पादों के लिए कम मूल्य, वैश्विक स्तर पर भारतीय शहद की मांग का कम होना तथा घरेलू फुटकर बाजारों में शहद के उच्च मूल्य होना ऐसे पहलू हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। निम्न मूल्य के/नकली शहद के अनियंत्रित आयात से न केवल हमारा अपना मधुमक्खी उद्योग प्रभावित हो रहा है बल्कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक भी है। शहद का केवल औषधियों में या औषधि के रूप में उपयोग किए जाने जैसी गलत धारणाओं व शहद का उच्च मूल्य इसकी घरेलू स्तर पर कम खपत होने के कुछ प्रमुख कारण हैं। सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाला शहद कम मूल्य पर निर्यात किया जाता है। इसके अलावा हमारे मधुमक्खी पालक गरीब हैं तथा शहद को या उसके उत्पादों को भंडारित करने की उनके पास पर्याप्त क्षमता नहीं है, पूंजी की कमी है व ज्ञान की भी बहुत कमी है। ये ऐसे कारक हैं जिनसे हमारे अधिकांश मधुमक्खी पालक लाभप्रद मूल्य पर अपने उत्पादों को बाजार में नहीं बेच पाते हैं। राज्य सरकार को फसल के पूर्वानुमान, उत्पाद की खरीद, प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन, विज्ञापन, जागरूकता, शहद तथा अन्य छत्ता उत्पादों के मूल्यों व बिक्री जैसे पहलुओं पर व्यापक सहायता प्रदान करने के लिए उचित प्रणाली तैयार करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त सरकार को शहद तथा किसी भी अन्य छत्ता उत्पाद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना चाहिए, ताकि मधुमक्खी पालकों के हितों की रक्षा की जा सके।
राज्य में शहद के प्रसंस्करण व पैकेजिंग की कोई उचित सुविधा नहीं है। किसी को भी छोटे थैलों में शहद उपलब्ध नहीं हो पाता है। हरियाणा कृषि उद्योग निगम (एचएआईसी) लिमिटेड द्वारा मुरथल, सोनीपत में लगाया गया शहद प्रसंस्करण संयंत्र अब भी उचित रूप से कार्य नहीं कर रहा है। किसानों से उनके शहद के प्रसंस्करण के लिए प्रति कि.ग्रा. 5 रुपये लिए जाते हैं लेकिन इस संबंध में भी मधुमक्खी पालकों की प्रतिक्रिया बहुत धीमी है। राज्य सरकार को अनुदानित दरों पर मधुमक्खी पालकों के शहद के प्रसंस्करण की संभावना तलाशनी चाहिए। एक शहद प्रसंस्करण नीति बनाने की आवश्यकता है तथा इसमें राज्य के परिचालनहीन प्रसंस्करण संयंत्रों का किस प्रकार उपयोग किया जाए, यह निर्धारित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त किसानों की मांग को पूरा करने के लिए शहद के प्रसंस्करण व पैकबंदी के लिए और अधिक सुविधाएं समेकित मधुमक्खी पालन विकास केन्द्र (आईबीडीसी), राम नगर, कुरुक्षेत्र में सृजित की जानी चाहिए।
भारतीय शहद में अत्यधिक मिलावट के कारण व इसका आयात करने वाले देशों की मिलावटों के प्रति शून्य सहिष्णुता नीति के कारण इसके निर्यात को बहुत क्षति हुई है। इससे शहद के विपणन से संबंधित अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं तथा निर्यात के लिए शहद की खेपों को प्रतिबंधित करना पड़ा है। इसके अतिरिक्त नियंत्रण संबंधी उपायों को अपनाने के लिए जो धनराशि खर्च की गई थी वह भी बर्बाद चली गई। मिलावट के विश्लेषण के लिए राज्य में मधुमक्खी पालकों के लाभ हेतु एक केन्द्रीकृत शहद परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित करना बहुत जरूरी है। वर्तमान में हमारे पास शहद के लिए तीन विभिन्न मानक हैं, नामतः –
(प) खाद्य संदूषण बचाव हेतु विनियमनकारी प्राधिकरण (पीएफए) जो अब भारत का खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण कहलाता है,
(पप) कृषि उपज श्रेणीकरण व विपणन (एग्मार्क) तथा
(पपप) भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस)। चूंकि हमें शहद के निर्यात के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों को अपनाना होता है, अतः हरियाणा राज्य/देश में मधुपालन उद्योग के हितों की रक्षा के लिए हमें इस कमी को तत्काल दूर करना होगा।
मधुमक्खियों के रोग तथा कुटकियों द्वारा होने वाली क्षति हरियाणा में मधुमक्खी पालन के विकास की दृष्टि से चिंता का एक प्रमुख विषय है। इन सुविधाओं के अभाव में गलत पहचान/निदान होते हैं जिससे मधुमक्खी पालन उद्योग में रसायनों का अविवेकपूर्ण उपयोग या दुरुपयोग होता है। प्रयोगात्मक मधुमक्खी रोगविज्ञान के क्षेत्र में विशेष काम न होने, फील्ड में विशेषज्ञतापूर्ण मानव संसाधन की कमी तथा किसी प्रकार की नैदानिक प्रयोगशाला का न होना मधुमक्खी पालन वैज्ञानिकों तथा विकास कर्मियों के लिए ऐसी बाधा सिद्ध हो रहे हैं जिसके कारण इस बड़ी समस्या को हल नहीं किया जा पा रहा है। मधुमक्खी के छत्तों में स्वच्छता सुधारने व मधुमक्खियों की बीमारियों को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। इस दृष्टि से राज्य में कम से कम एक रोग निदानी प्रयोगशाला के तत्काल स्थापित किए जाने की जरूरत है।
अब इस तथ्य को प्रमाणित करने के अनेक प्रमाण मौजूद हैं कि मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाले विभिन्न उत्पाद जैसे शहद, मधुमक्खी का मोम, पराग, प्रापलिस, रॉयल जैली तथा मधुमक्खी के विष मनुष्यों के अनेक रोगों का उपचार करने व उन्हें ठीक करने में बहुत लाभदायक सिद्ध होते हैं। इन रोगों तथा कष्टों में साधारण से लेकर जटिल घाव व कैंसर जैसे जटिल रोग भी शामिल हैं। पूर्वी यूरोप तथा चीन में अब कई 40-50 बिस्तर वाले ऐसे अस्पताल हैं जहां विभिन्न मानवीय रोगों तथा विकारों को केवल मधुमक्खी उत्पादों से ही ठीक किया जाता है। पश्चिमी विश्व भी अब कुछ ऐसे रोगों के लिए विकल्प के रूप में मधु चिकित्सा पर गंभीर रूप से विचार कर रहा है जो वर्तमान में ऐलोपेथी चिकित्सा द्वारा ठीक/उपचारित किए जाते हैं। योग के समान मधु चिकित्सा का भी उदय भारत में ही हुआ था लेकिन इसका अभी वैज्ञानिक रूप से दोहन नहीं हुआ है। यही उचित समय है। जब स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय को भारतीय चिकित्सा की वैकल्पिक प्रणाली के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में मधुचिकित्सा को शामिल करना चाहिए तथा इसे बढ़ावा देने के लिए इसमें रूचि रखने वाले सभी संगठनों को आवश्यक सहायता प्रदान की जानी चाहिए। हरियाणा सरकार द्वारा मानवता के कल्याण हेतु अनेक मानवीय रोगों के उपचार हेतु मधुचिकित्सा का उपयोग करने के क्षेत्र में नेतृत्व प्रदान किया जाना चाहिए।
वर्तमान में हरियाणा राज्य में ए.मेलिफेरा सब्जियों, तिलहनी फसलों, फलों, चारा फसलों व अन्य विविध फसलों का उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। तथापि, वर्तमान वर्षों में अनेक कारणों से भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य भागों के समान हरियाणा राज्य में भी परागकों की संख्या में कमी आई है। अतः हरित लेखाकरण सहित विभिन्न विधियों के माध्यम से इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त आस-पास के राज्यों के पैटर्न पर हरियाणा राज्य में भी फसल परागण की प्रबंधित विधियां लागू की जानी चाहिए। मधुमक्खी पालन तथा नाशकजीवनाशी, दोनों ही आधुनिक कृषि के अनिवार्य निवेश हैं। नाशकजीवनाशियों का उपयोग भी अपरिहार्य है लेकिन इसे फसलों पर उनकी पुष्पन की अवधि के दौरान न छिड़कते हुए इनके अविवेकपूर्ण उपयोग से बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त कई कीटों के लिए इस्तेमाल होने वाले एक ही नाशकजीवनाशी के उपयोग से बचना चाहिए। केवल चयनित तथा अपेक्षाकृत पर्यावरण की दृष्टि के अनुकूल नाशकजीवनाशियों का भी उपयोग किया जाना चाहिए। यदि संभव हो तो नाशकजीवनाशियों का उपयोग प्रातःकाल जल्दी अथवा शाम के समय देर से किया जाना चाहिए ताकि इसके कारण मधुमक्खियों की मृत्यु न हो।
गुणवत्तापूर्ण रानी मक्खियों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए उनका चुने हुए नर मक्खियों से नियंत्रित युग्मन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यह उद्देश्य प्राप्त करने के लिए मधुमक्खी वैज्ञानिकों/प्रजनकों को मधुमक्खी रानियों के कृत्रिम गर्भाधान का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। प्रशासनिक सुधार
हमारे मधुमक्खी पालकों को अनेक प्रशासनिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे, आयकर तथा वैट जैसे विभिन्न कर, परिवहन में कठिनाइयां/ट्रेड यूनियनों का एकाधिकार, ऋण प्राप्त करने में कठिनाइयां, प्रभावी बीमा नीति का न होना, वन विभागों से जुड़ी नीतियां, गैर-पंजीकृत व गैर लेबलीकृत औषधियों की मधुमक्खी पालन उद्योग में उपयोग हेतु खुलेआम उपलब्धता व बिक्री, प्रभावी पंजीकृत रसायनों/औषधियों की उपलब्धता आदि। इन समस्याओं को दूर करके राज्य में गांधी जी के कुटीर उद्योग के स्वप्न को साकार किया जा सकता है।
हरियाणा में वर्तमान में शहद तथा मधुमक्खी पालन उपकरणों पर कर लगाया जाता है। राज्य में उत्पन्न शहद की मात्रा इसके अपने उत्पादन से परिलक्षित नहीं होती है क्योंकि इसे पंजाब आदि जैसे पड़ोसी राज्यों में बेच दिया जाता है। यह सुझाव दिया जाता है कि मधुमक्खी पालन को भी कृषि गतिविधि ही माना जाए तथा उपरोक्त कर को तत्काल समाप्त किया जाए।
राष्ट्रीय स्तर पर केवीआईसी तथा कृषि मंत्रालय समय-समय पर मधुमक्खी पालन के विकास के लिए परिदृश्य योजनाएं तैयार करते हैं लेकिन इनमें प्रमुख बाधा मधुमक्खी पालन प्रौद्योगिकी के उत्थान हेतु वांछित वित्तीय सहायता के रूप में सामने आती है क्योंकि यह पर्याप्त मात्रा में प्राप्त नहीं होती है जबकि समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए इसका होना बहुत जरूरी है। ये दोनों ही संगठन मधुमक्खियों के कालोनियों के प्रगुणन व उनके वितरण प्रशिक्षण; शहद के विपणन; मधुमक्खी पालन उपकरणों पर सहायता प्रदान करने तथा छत्ता उत्पादों के विविधीकरण को अपनी प्रमुख गतिविधियां मानते हुए इन पर कार्य करते हैं। मधुमक्खी पालन विकास संबंधी कार्यक्रमों के लिए वांछित वित्तीय संसाधनों के संबंध में हरियाणा राज्य में भी ऐसी ही स्थिति है। राज्य के बजट में ऐसा विशेष प्रावधान किया जाना चाहिए जिससे मधुमक्खी पालन उद्योग में लगने वाले निवेशों, आपूर्तियों तथा प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। इसके अतिरिक्त वांछित शहद उत्पादन व परागण संबंधी गतिविधियों के लिए उचित संख्या में मधुमक्खी की कालोनियां तैयार करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भली प्रकार प्रशिक्षित वैज्ञानिक तथा अनुभवी स्टाफ की आवश्यकता होगी। अन्यथा प्रदान की जाने वाली अधिकांश निधि का उपयोग नहीं हो पाएगा।
वर्तमान में हमारे देश में मधुमक्खी पालन अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम में एक दर्जन से अधिक संगठन कार्यरत हैं। इनमें से दो प्रमुख संगठन हैं - केवीआईसी तथा कृषि मंत्रालय, भारत सरकार इन दोनों संगठनों की ही भिन्न प्राथमिकताएं हैं तथा देश में मधुमक्खी पालन उद्योग के प्रवर्धन व विकास में इनके द्वारा किए जाने वाले कार्य अलग-अलग हैं तथा इन दोनों के बीच उचित समन्वयन की कमी है। उदाहरण के लिए केवीआईसी मधुपालन उद्योग को ग्रामीण समाज के कमजोर वर्ग के लिए छत्ता उत्पादों (विशेष रूप से शहद और मधुमक्खी के मोम) के उत्पादन व बिक्री के माध्यम से खेत से इतर रोजगार सृजित करने तथा आय के एक साधन के रूप में मानता है। दूसरी ओर कृषि मंत्रालय, भारत सरकार मधुमक्खियों की परागण संबंधी गतिविधियों के माध्यम से कृषि फसलों की उत्पादकता बढ़ाने पर मुख्यतः ध्यान देता है। अब यह भली प्रकार प्रलेखित हो चुका है कि अधिक व अच्छा शहद देने वाली मधुमक्खी कालोनी फसलों के लिए बेहतर परागक भी सिद्ध हो सकती है तथा ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। यही स्थिति हरियाणा राज्य में भी विद्यमान है जहां मधुमक्खी पालन संबंधी विकास के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल अनुसंधान एवं विकास संस्थाओं व सरकारी संगठनों के बीच पर्याप्त ताल-मेल नहीं है।
अतः यह महत्वपूर्ण है कि नीतिकारों तथा योजनाकारों को प्रेरित करने के लिए अल्पावधि का एक विशेष पाठ्यक्रम (5-7 दिनों का) डिज़ाइन किया जाए जिसमें उन्हें मधुमक्खियों तथा मधुमक्खी पालकों द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका, समाज के कमजोर वर्गों में टिकाऊ आजीविका प्रदान करने व निर्धनता को दूर करने में इस उद्यम की भूमिका के बारे में उचित रूप से शिक्षित किया जा सके। शहद प्रसंस्करण, शहद को बोतल बंद करने व विपणन जैसी सामान्य सुविधाओं के लिए स्वयं सहायता समूह गठित किए जाने चाहिए। शहद के वाणिज्यिक उत्पादन तथा मधुमक्खी पालन विकास के लिए एक वृहत भावी दिशा नीति तैयार करने की आवश्यकता है जो राज्य में विद्यमान जैव विविधता तथा अन्य उपलब्ध संसाधनों पर आधारित हों।
मधुमक्खी पालन कृषि विज्ञान की अन्य शाखाओं जैसे फसलों की खेती, बागवानी, पशुधन, रेशम पालन आदि की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक विशेषज्ञतापूर्ण, वैज्ञानिक तथा तकनीकी गतिविधि है। मधुमक्खी के छत्तों में 60,000 से अधिक मधुमक्खियां होती हैं जो अपने सामाजिक जीवन में प्रकृति में उपलब्ध पराग व पुष्प रस का सूक्ष्म रूप से परिवर्तन करती हैं और इस प्रकार मानवता के उपयोग के लिए विविध प्रकार के मधुमक्खी उत्पाद उत्पन्न करती हैं। मधुमक्खी कालोनी को और अधिक उत्पादक बनाने के लिए मधुमक्खी पालकों द्वारा इनकी विशेष देखभाल करने, इनका प्रबंध करने व इनमें वांछित फेर-बदल करने की आवश्यकता है। किसानों को मधुमक्खी कालोनियां वितरित करने की वर्तमान नीति के साथ-साथ खाद्य संसाधनों के संदर्भ में उनके प्रबंध हेतु पर्याप्त अनुवर्ती कार्रवाई करने व इन छत्तों में कालोनियों में अजैविक व जैविक प्रतिकूल स्थितियां उत्पन्न होने से इनमें से मधुमक्खियां उड़ जाती हैं। ऐसा अनुमान है कि वर्तमान में हरियाणा में मौजूद 2.5 लाख मधुमक्खी कालोनियों में से बड़ी संख्या में केवल खाली छत्ते हैं क्योंकि घटिया प्रबंध के कारण मधुमक्खियां उन्हें छोड़कर चली गई हैं। अतः भली प्रकार प्रशिक्षित मधुमक्खी पालन विस्तार स्टाफ के नेटवर्क की आवश्यकता है ताकि मधुमक्खी कालोनियों के व्यवहार तथा शक्ति की निगरानी की जा सके क्योंकि इस उद्योग को खेती की अन्य गतिविधियों की तुलना में अधिक गहन विस्तार सेवाओं की जरूरत पड़ती है। मधुमक्खी पालन को एक गैर महत्वपूर्ण गौण गतिविधि माना जाता है। अतः मधुमक्खी पालन संबंधी कार्यों की देखभाल करने के लिए अकुशल तथा अवांछित स्टाफ को नियुक्त किया जाता है तथा इनमें से अनेक कार्मिकों को मधुमक्खी पालन का न तो कोई ज्ञान होता है और न ही उन्हें इसका प्रशिक्षण दिया जाता है। अतः मधुमक्खी कालोनियों के प्रबंध तथा उचित निगरानी के लिए मधुमक्खी पालन विस्तार में प्रशिक्षित तथा कुशल विशेषज्ञों का एक संवर्ग सृजित करने की जरूरत है। अन्यथा विकास एजेंसियों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले मधुमक्खी पालन संबंधी अन्य सभी निवेश बर्बाद हो जाने की संभावना है। अनुभवी मधुमक्खी पालक श्रेष्ठ विस्तार एजेंटों के रूप में कार्य कर सकते हैं तथा उनकी सेवाओं के उपयोग के लिए उचित क्रियाविधि विकसित करने की आवश्यकता है।
हरियाणा राज्य में मधुमक्खियों के ज्ञान को अद्यतन बनाने, वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन को बढावा देने तथा मधुमक्खी पालन विकास में और विकास हेतु फीडबैक प्राप्त करने के लिए जल्दी-जल्दी मधुमक्खी पालन पर कार्यशालाएं व प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। इस दृष्टि से मधुमक्खी पालक अपनी समस्याओं को मधुमक्खी पालक विशेषज्ञों के समक्ष रखते हुए उनका तत्काल हल प्राप्त करने के लिए एक मंच प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त वे इन कार्यशालाओं व प्रशिक्षण कार्यक्रमों में मधुमक्खी पालन में विकसित नवीनतम तकनीकी विकासों के बारे में भी चर्चा कर सकते हैं।
राज्य में तेजी से फल-फूल रहे वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन की हाल की समस्या इस क्षेत्र में विशेषज्ञतापूर्ण प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी है। इसके लिए प्रशिक्षण अभिमुख सभी सुविधाओं से लैस संस्थान भी नहीं हैं। राज्य स्तर के ऐसे प्रशिक्षण केन्द्रों की तत्काल आवश्यकता है जहां योग्यता प्राप्त, विशेषज्ञतापूर्ण व अनुभवी मधुमक्खी पालन से जुड़े व्यवसायविद हों। इस प्रकार के केन्द्रों में सैद्धांतिक तथा प्रयोगात्मक, दोनों प्रकार का प्रशिक्षण देने के लिए पूरी-पूरी वांछित बुनियादी ढांचा संबंधी व अन्य सुविधाएं होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त उन्हें न केवल नए मधुमक्खी पालकों का प्रशिक्षण उपलब्ध कराना चाहिए, बल्कि राज्य के प्रगतिशील मधुमक्खी पालकों व विस्तार कर्मियों को भी प्रगत प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए। मधुमक्खी पालन पर योजनाएं बनाते समय सरकार को इस पहलू का ध्यान रखना चाहिए। मधुमक्खी पालन के लाभ के बारे में जन समुदायों के बीच जागरूकता अभियान शुरू करने की भी आवश्यकता है।
हरियाणा राज्य में यद्यपि आवश्यकता आधारित व स्थान विशिष्ट मधुमक्खी पालन की उचित प्रौद्योगिकियां विद्यमान प्रौद्योगिकियों के मूल्यांकन व परिशोधन के माध्यम से विकसित की गई हैं। लेकिन प्राथमिक हितधारकों के बीच इन प्रौद्योगिकियों व तकनीकों के बड़े पैमाने पर प्रचार–प्रसार के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए हैं। मधुमक्खी पालन में प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करने तथा किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए एक संवर्ग सृजित करने की आवश्यकता है। पहले पहलू के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, कृषि तथा वन विभाग तथा अन्य संबंधित एजेंसियों को उपयुक्त व उचित पाठ्यक्रम डिजाइन करने के लिए भली प्रकार सुसज्जित किया जाना चाहिए। मधुमक्खी पालन में किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए केवीआईसी, राज्य विभागों के आंचलिक विस्तार केन्द्रों, स्वयं सेवी संगठनों व व्यवसायविद मधुमक्खी पालकों को शामिल किया जाना चाहिए तथा उन्हें पर्याप्त सुविधाएं व सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
मधुमक्खियों व मधुमक्खी पालन द्वारा परिस्थिति विज्ञानी, पोषणिक, स्वास्थ्य व पारिस्थितिक सुरक्षा के क्षेत्र में उपलब्ध कराए जाने वाले प्रत्यक्ष व परोक्ष मूल्य का अक्सर पर्याप्त आकलन नहीं किया जाता है। वास्तव में यह एक निर्धनों के लिए, लिंग विशेष तथा पर्यावरण के प्रति अनुकूल गतिविधि है जिसे राष्ट्रीय तथा राज्य, दोनों स्तर पर पर्याप्त रूप से उचित स्थान नहीं दिया गया है। इसकी बजाय मधुमक्खी पालन को एक गैर-महत्वपूर्ण गौण गतिविधि माना जाता है जिसे कृषि, बागवानी, वानिकी या राज्य के उद्योग विभागों से सम्बद्ध कर दिया जाता है।
विकसित देशों में मधुमक्खी पालन उद्योग की कई बिलियन डॉलर कीमत है क्योंकि इससे न केवल फसल उत्पादकता में योगदान होता है बल्कि जैव विविधता का भी संरक्षण होता है। मधुमक्खी पालन उद्योग के इन लाभों को ध्यान में रखते हुए इस गतिविधि को विशेष स्वतंत्र दर्जा देने की जरूरत है। एशिया के अन्य विकासशील देशों जैसे नेपाल, थाईलैंड, इंडोनेशिया में इस उद्योग को विशेष दर्जा दिया जा चुका है तथा इसे सीधे-सीधे सम्राट महामहिम/प्रधानमंत्री के प्राथमिकता से जुड़े कार्यक्रमों के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है। केन्द्र सरकार को इस पर विशेष बल देना चाहिए तथा जैसा कि बाघ बचाओ परियोजना तथा आप्रेशन फ्लड (डेरी उद्योग से संबंधित) के मामले में किया गया है, वैसा ही मधुमक्खी पालन के मामले में करते हुए इससे संबंधित राष्ट्रीय परियोजनाओं को आरंभ किया जाना चाहिए। इस मामले में भी मधुमक्खी पालन पर विशेष बल देते हुए तथा सामान्य व्यक्ति के लिए उपयोगी उद्योग आधारित उद्यम के रूप में मानते हुए। हरियाणा को भी इस क्षेत्र में देश का नेतृत्व प्रदान करना चाहिए।
इन पहलों से राज्य में मधु क्रांति लाने की संभावना प्रबल हो जाती है।
हरियाणा राज्य में महिलाएं कार्यशील कृषि से जुड़ी जनसंख्या का 50 प्रतिशत से अधिक भाग हैं और कृषि के क्षेत्र में उनका योगदान इससे भी अधिक है। लेकिन उन्हें खेती से संबंधित निर्णय लेने, योजना बनाने/प्रबंध करने/आमदनी में भागेदारी करने आदि जैसे मामलों में उचित महत्व नहीं दिया जाता है। अतः प्रशिक्षण, उनकी परंपरागत प्रतिभा को मान्यता प्रदान करने के लिए उन्हें शिक्षित करने की बहुत जरूरत है, ताकि हरियाणा राज्य में मधुमक्खी पालन में उनके योगदान को सुधारते हुए शहद व अन्य छत्ता उत्पादों के उत्पादन में वृद्धि की जा सके।
यद्यपि मधुमक्खी पालन को बहुत तीव्र गति से अपनाया जा रहा है तथा इसकी गहन क्षमता के कारण कृषि के विविधीकरण के एक लाभदायक घटक के रूप में इसका महत्व बहुत बढ़ रहा है। लेकिन फिर भी शैक्षणिक संस्थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों) में तथा सरकारी स्तर पर इसे उचित मान्यता नहीं प्रदान की जा रही है। जब तक मधुमक्खी पालन को एक महत्वपूर्ण विषय मानते हुए सबल नहीं बनाया जाएगा, मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में प्रगति सीमित रहेगी तथा यह वांछित लक्ष्यों व अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाएगा।
क्षमता निर्माण किसी उद्योग या उद्यम, जिसमें मधुमक्खी पालन भी शामिल है, की वृद्धि व विकास के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है। तथापि, वर्तमान में शैक्षणिक समुदायों, संस्थाओं व निजी क्षेत्र के संगठनों की मधुमक्खी पालन, फसल उत्पादकता व टिकाऊ कृषि के संबंध में क्षमता निर्माण के बारे में अपनी-अपनी सोच है। इसलिए विभिन्न लक्षित समूहों व हितधारकों जैसे शैक्षणिक समुदाय, विस्तार कर्मियों, किसानों, सेवा प्रदानकर्ताओं आदि के प्रशिक्षण हेतु उचित माड्यूल विकसित करने के साथ-साथ मानकीकृत पाठ्यक्रम तैयार करने व उसका प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है।
भारत में मधुमक्खी पालन विकास के लिए नियोजन कार्यनीतियों की एक प्रमुख समस्या सटीक वैज्ञानिक डेटाबेस की कमी है। मधुमक्खी पालन में शामिल विभिन्न राष्ट्रीय संगठन तथा अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम इसकी क्षमता, वर्तमान स्थिति व भारत में मधुमक्खी पालन उद्योग की भावी संभावनाओं के बारे में अलग-अलग और विरोधाभाषी आंकड़े प्रस्तुत करते हैं। इसी प्रकार, हरियाणा में भी मधुमक्खी पालन पर वैज्ञानिक डेटाबेस विकसित करने की आवश्यकता है जो वैज्ञानिकों, कृषि कर्मियों, मधुमक्खी पालकों, योजनाकारों व नीति निर्माताओं के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
मधुमक्खीपालन के विकास में प्रमुख बाधाएं एवं कार्यनीतियां
हरियाणा में मधुमक्खी पालन की वर्तमान स्थिति और क्षमता का मूल्यांकन करने से यह पता चलता है कि राज्य में मधुमक्खी पालन विकास की वास्तव में बहुत संभावना है तथा इसे आधुनिक वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन की कर्मभूमि के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। इस क्षेत्र में तेजी से प्रगति के लिए निम्नलिखित कार्यनीतियां अपनाने की आवश्यकता है -
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2023
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