उपभोक्ताओं में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के कारण स्वास्थ्य से भरपूर खाद्य पदार्थ विकसित एवं विकासशील देशों में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। आज का उपभोक्ता उन खाद्य पदार्थों में ज्यादा रूचि दिखा रहा है जिनके सेवन से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को फायदा होता है तथा रोगों की संभावना को कम करने एवं सम्पूर्ण स्वास्थ्य की वृद्धि में लाभकारी होते हैं। हाल ही के वर्षों में हुए बाजार सम्बन्धी सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ है कि हमारे देश में मूल्यवर्धित खाद्य उत्पाद एवं स्वास्थ्य में सुधार लाने वाले खाद्य पदार्थों की बाजार में निरन्तर माँग बढ़ रही है। एवं इनसे आर्थिक लाभ कमाने की बहुत संभावनाएं हैं। इसका मुख्य कारण सभी की जीवन शैली में तेजी से होने वाला प्रदूषण के कारण उपजी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। शायद यही कारण है कि उपभोक्ता मंहगे होने के बावजूद भी स्वास्थ्य से भरपूर कार्यात्मक (फंक्शनल) खाद्य पदार्थों को प्रमुखता से खरीद रहा है।
कार्यात्मक खाद्य पदार्थों को यदि परिभाषित करें तो कहा जा सकता है कि कार्यात्मक खाद्य पदार्थ “वे खाद्य पदार्थ हैं जिनमें पारम्परिक रूप से उपस्थित पोषक तत्वों के साथ साथ स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने वाले तत्व भी उपस्थित होते हैं। कार्यात्मक खाद्य पदार्थों को कभी-कभी डिजाइनर मेडीफूड्स आदि भी कहा जाता है। कार्यात्मक खाद्य पदार्थों के अन्तर्गत प्रीबायोटिक्स एक छोटा किन्तु तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है। बीसवी सदी की शुरूआत में ‘पाश्चर संस्थान' के नोबेल पुरस्कार विजेता एली मेकनी कॉफ ने योघर्ट (दही) में उपस्थित बैक्टीरिया का अच्छे स्वास्थ्य एवं दीर्घायु से सम्बन्ध बताया था। उनके कथित स्वास्थ्य लाभों के कारण, पिछले दो दशकों से प्रोबायोटिक बैक्टीरिया का दही एवं किण्वित दूध में बहुत तेजी से उपयोग किया गया। सामान्यतया प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थों में लैक्टोबेसिलाई (खासकर लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस) एवं बिफिडोबैक्टीरिया जिन्हें प्रायः बिफिडस भी कहा जाता है, का उपयोग किया गया।
कार्यात्मक खाद्य पदार्थों के क्षेत्र में प्रमुख विकास मनुष्य की आंतों में स्वास्थ्य के लिए लाभदायी सूक्ष्म जीवाणुओं को बढ़ावा देने वाले प्रिबायोटिक्स एवं प्रोबायोटिक्स से सम्बन्धित है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों में यह प्रमाणित हुआ कि यदि मनुष्य की आंतों में स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं के उचित स्तर को बनाए रखा जाए तो इससे जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) सम्बन्धी एवं कैंसर से भी बचाव हो सकता है। इसके साथ-साथ प्रोबायोटिक्स अतिसारीय (डायरिया) असहिष्णुता (इन्टॉलेरेन्स) एवं सीरम कॉलेस्टेरॉल में भी सहायक हैं। अध्ययन से यह प्रमाणित हो चुका है कि भोजन में प्रिबायोटिक्स की मात्रा बढ़ाकर मनुष्य की आंतों में स्वास्थ्यप्रद बैक्टीरिया के स्तर को बढ़ाया जा सकता है। कुछ ऐसे खाद्य उत्पाद भी हैं जिनमें प्राकृतिक रूप से प्रिबायोटिक्स उपस्थित होते हैं और वे प्रीबायोटिक्स के कार्यात्मक प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होते हैं। जब प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में प्रिबायोटिक्स एवं प्रोबायोटिक्स दोनों उपस्थित होते हैं तो उन्हें सिनबायोटिक कहा जाता है।
आज का उपभोक्ता स्वास्थ्य के लिए पूरी तरह से उपयुक्त खाद्य पदार्थों की आपूर्ति चाहता है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया, लैक्टिक एसिड हाइड्रोजन पराक्साइड एवं बैक्टेरियोसिन नामक जैव परिरक्षक उत्पन्न करता है जिनका प्रयोग खाद्य पदार्थों में रोगजनक (पैथोजेनिक) एवं विकृति (स्वायलेज) उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया की वृद्धि को कम करने के लिए भी किया जाता है। उदाहरणार्थ नाइसिन नामक बैक्टेरियोसिन का प्रयोग लगभग 48 देशों में संसाधित पनीर, डेयरी करने के लिए खाद्य योजक के रूप में किया जाता है।
प्रोबायोटिक्स प्रदान करने के लिए प्रायः किण्वित खाद्य पदार्थ ही उपयुक्त हैं किन्तु यह शिशु फार्मूला, फल सम्बन्धी पेय पदार्थ, मट्ठापेय एवं स्वादिष्ट (फ्लेवर्ड) दूध में भी मौजूद हो सकता है। खाद्य, विशेषरूप से डेयरी उत्पाद मानव जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) में प्रोबायोटिक बैक्टीरिया प्रदान करने के लिए एक आदर्श खाद्य वाहक माना जाता है। भण्डारण के दौरान अलग-अलग खाद्य पदार्थों में प्रीबायोटिक्स की व्यवहार्यता (वाइबिलिटी) भी भिन्न-भिन्न देखी गयी है।
डेयरी उत्पादों में एलर्जी कारकों की उपस्थिति एवं उनके भण्डारण के लिए कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की आवश्यकता के साथ-साथ नए विशिष्ट एवं विभिन्न स्वादयुक्त खाद्य पदार्थों की बढ़ती हुई मांग की आपूर्ति के कारण, गैर-डेयरी प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थों का विकास शुरू हो रहा है। इसके साथ ही लैक्टोज असहिष्णुता एवं दूध में कोलेस्ट्रोल की किण्वित डेयरी उत्पादों में उपस्थित भी गैर-डेयरी प्रोबायोटिक उत्पादों के प्रचलन के कारण हैं। हाल ही के वर्षों में कार्यात्मक खाद्य पदार्थों को विकसित करने के लिए अनाजों के उपयोग पर भी शोध किए जा रहे हैं। काफी लम्बे समय से ही एशिया एवं अफ्रीका में अनाज को लैक्टिक एसिड से किण्वन कर पेय, दलिया आदि बनाये जाते रहे हैं। अनाज में मूल रूप से घुलनशील खाद्य रेशे जैसे - बीटा ग्लूकोज, अरैबिनोजायलन, कुछ कार्बोहाइड्रेट्स जैसे- ओलिगोसै कैराइड्स गैलैक्टी एवं फ्रक्टो-ओलिगोसैकैराइड्स और प्रतिरोधी स्टार्च होते हैं। जिनका उपयोग प्रिबायोटिक के रूप में किया जा सकता है। लैक्टिक एसिड किण्वन विभिन्न अनाजों में पोषक तत्वों के साथ-साथ उनकी पाचकता भी बढ़ाता है। अध्ययनों में देखा गया है कि लैक्टिक एसिड किण्वन से कुछ अनाजों जैसे मक्का, ज्वार, रागी में फाइटिक एसिड एवं टैनिन की मात्रा कम हुई है साथ ही प्रोटीन की शरीर में उपलब्धता में भी सुधार हुआ है। साथ ही अध्ययनों में, अनाजों के मिश्रण के लैक्टिक एसिड किण्वन से राइबोफ्लेविन, थायमिन, नायसिन (बी विटामिन्स) एवं लायसिन अमीनो अम्ल की मात्रा में भी वृद्धि देखी गयी है। लैक्टोबैसिलाई बैक्टीरिया एवं खमीर के साथ बाजरा में किण्वन के बाद खनिज लवणों की उपलब्धता में भी वृद्धि पायी गयी। इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए सीफेट में गैर डेयरी आधारित प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थों पर शोध की शुरूआत हुई है। इसके लिए शुरूआती परीक्षणों में लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस (एन सी डी सी 14 एवं एन सी डी सी 16, जिन्हें राष्ट्रीय डेयरी शोध संस्थान, करनाल से खरीदा गया था) का प्रयोग करके बिना खाद्य योज्य (एडिटिव) के 1 प्रतिशत बैक्टीरियल कल्चर एवं 10 प्रतिशत आटे के मिश्रण से अनाज आधारित गैर डेयरी प्रोबायोटिक पेय बनाए गए। आटे का मिश्रण बनाने के लिए, 7 प्रतिशत अंकुरित गेहूं का आटा, 0.45 प्रतिशत आटे की भूसी (चोकर), 2.5 प्रतिशत जई का आटा लिया गया। आसुत जल में इस आटे के मिश्रण को मिलाकर, 8 घण्टे के लिए 37 डिग्री सेल्सियस पर रखकर प्रोबायोटिक पेय पदार्थ बनाया गया। इन शुरूआती अध्ययनों में देखा गया कि लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस (एन सी डी सी 14) अनाज आधारित प्रोबायोटिक पेय पदार्थ बनाने के लिए ज्यादा उपयुक्त है। इस तरह से बने हुए गैर डेयरी अनाजों पर आधारित प्रोबायोटिक पेय पदार्थ में अम्लता 0.0348 प्रतिशत एवं प्रीबायोटिक नम्बर 10x10 सी.एफ.यू. प्रति मि.ली. थी।
एक अन्य अध्ययन में अंकुरित गेहूं आधारित प्रोबायोटिक पेय पदार्थ बनाने के लिए प्रयुक्त आटा मिश्रण के विभिन्न घटकों के अनुकूलन के लिए विस्तृत अध्ययन किया गया। खाद्य योजक के साथ लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस (एच सी डी सी 14) का उपयोग करते हुए, इस अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला कि अनाज आधारित प्रोबायोटिक पेय पदार्थ बनाने के लिए अंकुरित गेहूं का आटा, जई का आटा, गेहूं के आटे का चोकर (भूसी) और खाद्य योजक की मात्रा क्रमशः 5.42, 6.0, 0.87 एवं 0.6 ग्राम प्रति 100 मिली. आसुत जल उपयुक्त होगा। साथ ही यदि इसमें आसुत जल के स्थान पर फलों का रस या सोया दूध एवं उपयुक्त मात्रा में चीनी मिलाकर अंकुरित गेहूं के आटे, चोकर व उपर्युक्त लिखित सामग्री मिलाकर प्रोबायोटिक पेय पदार्थ बनाए जाए तो और भी स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्यप्रद होगा।
स्त्रोत :सीफेट न्यूजलेटर,लुधियाना,मृदुला डी.,मोनिका शर्मा एवं आर.के. गुप्ता खाद्यान्न एवं तिलहन प्रसंस्करण प्रभाग, सीफेट लुधियाना
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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