सिचाई की विभिन्न विधियों में टपक या बूंद-बूंद सिंचाई, माइक्रोस्प्रिंकलर, माइक्रोजैट आदि कुछ आधुनिक सिंचाई विधियाँ हैं, परन्तु फलदार बगीचों में टपक सिंचाई अंत्यत लाभकारी सिद्ध हुई है। टपक या बूंद-बूंद सिंचाई एक ऐसी सिंचाई विधि है जिसमें पानी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में, कम अंतराल पर, प्लास्टिक की नालियों द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुँचाया जाता है। परम्परागत सतही सिंचाई द्वारा जल का उचित उपयोग नहीं हो पाता, क्योंकि अधिकतर पानी, जोकि पौधों को मिलना चाहिए, जमीन में रिस कर या वाष्पीकरण द्वारा व्यर्थ चला जाता है। अतः उपलब्ध जल का सही रिसाव कम हो कम हो और अधिक से अधिक पानी पौधे को उपलब्ध हो पाए। सिंचाई विधियों के अंतर्गत जल उपयोग क्षमता के आंकड़े सारणी में दर्शाये गए हैं।
विभिन्न सिंचाई विधियों में अतर्गत जल उपयोग क्षमता (%)
सिंचाई क्षमता |
विधियाँ |
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परम्परागत सतही सिंचाई |
स्प्रिंकलर |
टपक सिंचाई, |
स्रोत से पौधे तक जल पहुँच क्षमता |
40-50 (नहर सिंचाई द्वारा) |
100 |
100 |
पौधे में जल देने की क्षमता |
60-70 |
70-80 |
90 |
औसतन क्षमता |
30-35 |
50-60 |
80-90 |
कम दवाब और नियंत्रण के साथ सीधे फसलों की जड़ में उनकी आवश्यतानुसार पानी देना ही टपक सिंचाई है।टपक सिंचाई के माध्यम से पौधों को उर्वरक आपूर्ति करने की प्रक्रिया फर्टिगेशन कहलाती है, जो कि पोषक तत्वों की लिचिग व वाष्पीकरण नुकसान पर अंकुश लगाकर सही समय पर उपयुक्त फसल पोषण प्रदान करती है।
टपक सिंचाई पद्धति की मुख्य विशेषताएं
टपक सिंचाई के लाभ
टपक सिंचाई संयत्र-घटक व कार्य पद्धति
टपक संयंत्र के प्रमुख भाग निम्नानुसार है
सैंड फिल्टर: सैंड फिल्टर का ढक्कन खोलकर बैकवॉश चालू करने के बाद फिल्टर के अंदर हाथ से रेत को अच्छे से तोड़ना चाहिए। फिल्टर से आनेवाला पानी ढक्कन से बाहर निकलने दें। हाथ से रेत साफ करते समय अंदर के काले रंग के फिल्टर एलिमेंट्स को धक्का नहीं लगना चाहिए। इससे रेत के स्क्रीन फिल्टर में जाने की आंशका रहती है। इस दौरान बाईपास वॉल्व द्वारा पानी का प्रवाह नहीं निकले। सैंड फिल्टर में आधा भाग रेत होना चाहिए। रेत के मात्रा कम होने पुनः नयी रेत फिल्टर पर अंकित लेबल (निशान) तक भरना चाहिए। सैंड फिल्टर की रेत नदी-नाले की रेत न होकर विशिष्ट पद्धति से बनी निश्चित आकार की नुकीली रेत है। इस रेत से पानी रिसते समय कचरा रेत में अटक जाता है। साधारण रेत से यह प्रक्रिया नहीं होती । इसलिए सैंड फिल्टर में कभी भी नदी-नाले की रेत का इस्तेमाल न करें।
स्क्रीन फिल्टर: सैंड फिल्टर द्वारा नहीं छनने वाला बारीक़ कचरा स्क्रीन फिल्टर की जाली में अटकता है। धीरे-धीरे इस कचरे के जमा होने से जाली पर एक परत बन जाती है। इससे जाली के कार्य में रुकावट पैदा होती है। जाली साफ करने से पहले दोनों तरफ के रबर सील निकाल कर, साफ करने के पश्चात फिर से जाली के ऊपर ठीक से फिट करना चाहिए। अन्यथा पानी के दबाव से बिना छना पानी आगे निकल सकता है।
रसायन और खाद देने के साधन: टपक सिंचाई द्वारा रासायनिक खादों का प्रयोग वेंचुरी, फर्टिलाइजर टैंक व फर्टिलाइजर पम्प के माध्यम से किया जा सकता है।
वेंचुरी: यह दाब के अंतर पर चलने वाला यंत्र है। रासायनिक प्रक्रिया के समय खाद और रसायन इसके द्वारा उचित ढंग से प्रदान किये जा सकते हैं। इस पद्धति से तरल पदार्थ पानी में उचित गति से डाले जा सकते हैं। इसके द्वारा 60 से 70 लीटर प्रति घंटे की गति से खाद दे सकते हैं।
फर्टिलाइजर टैंक: इस टैंक में तरल खाद भर कर दाब नियंत्रण से रासायनिक द्रव्य और खाद तुरंत संयत्र के अदंर छोड़ सकते हैं।
मेनलाइन: यह पम्प से सबमेन तक पानी पहुँचाने के लिए उपयोग में लायी जाती है। कुंए का पानी मेनलाइन की सहायता से सबमेन तक पहुँचाया जाता है। मेनलाइन में पी.वी. सी./एच. डी.पी. ई. पाइप का उपयोग किया जाता है।
सबमेन: मेनलाइन का पानी सबमेन द्वारा लेटरल तक पहुँचाया जाता है। सबमेन के लिए पी.वी. सी/एच.डी.पी.ई. पाइप का उपयोग किया जाता है। सबमेन जमीन के अंदर कम से कम डेढ़ से दो फीट की गहराई पर रखते हैं। दबाव और प्रवाह और गति नियंत्रित करने के लिए सबमें के शुरुआत में कंट्रोल वॉल्व और अंत में फ्लश वॉल्व जुड़ा रहता है।
वॉल्व: पानी का प्रवाह और दाब नियंत्रित करने के लिए सबमेन के आगे वॉल्व लगाये जाते हैं। सबमेन के शुरू में ‘एअर रिलीज व वैक्यूम रिलीज वॉल्व लगाना जरुरी है। अन्यथा पम्प बंद करने के बाद हवा के साथ मिट्टी के अंदर खिंचे जाने से ड्रिपर्स लगाया जाता है। लेटरल्स एल.एल.डी.पी.ई. से बनाये जाते हैं।
एमीर्ट्स/ड्रिपर्स: यह टपक सिंचाई का प्रमुख अंग है। ऑनलाइन/इनलाइन ड्रिपर्स का प्रति घंटा प्रवाह और संख्या फसल की पानी की अधिकतम जरूरत के अनुसार निश्चित किया जाता है। उबड-खाबड़ (उतार-चढ़ाव वाली) जमीन पर प्रेशर कॉम्पेनसेटिंग ड्रिपर्स लगाने की सलाह दी जाती है।
मिनी स्प्रिंकलर /जेट्स : एक्स्टेंशन टूयूब की सहायता से इन्हें पॉलीटूयूब के ऊपर लगाया जा सकता है।
टपक सिंचाई संयंत्रों की नित्य देखभाल
आने वाले समय में वर्षा पर आधारित फल उत्पादन बहुत मुश्किल होता जा रहा है। दिन प्रतिदिन उर्वरकों की बढ़ती कीमतें तथा सख्त वातावरण के नियम जल तथा उर्वरकों के कुशल उपयोग की तरफ इशारा कर रहे हैं। इसलिए किसानों के पास फर्टिगेशन ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। टपक सिंचाई के साथ पुर्णतः घुलनशील उर्वरकों के उपयोग से उत्पादन में कई गुणा वृद्धि हुई है लेकिन आमतौर पर उर्वरक परम्परागत उर्वरकों की तुलना में 10 गुणा से भी अधिक महंगे हैं। इसके अलावा सरकार ने भी पूर्णरूप से घुलनशील उर्वरकों पर कोई सहायिकी नहीं दी है। इसलिए सरकार को यह रणनीति तैयार करनी चाहिय जिससे किसानों को सस्ते दामों में ये उर्वरक उपलब्ध हो सके तथा जगह-जगह जागरूकता शिविर का आयोजन करना चाहिए जिससे किसान नई तकनीकों को अपनाए। इसके अलावा फर्टिगेशन का महत्व भी दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जिनका अलग-अलग फलदार पौधों के हिसाब से सही मानकीकरण करना जरुरी है।
स्रोत: मृदा एवं जल प्रबंधन विभाग, औद्यानिकी एवं वानिकी विश्विद्यालय; सोलन
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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