लहसुन लिलिएसी परिवार का बल्बनुमा व बाराहमासी पौधा है। इस पौधे के बल्ब को मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। कई भारतीय व्यंजनों का आदर्श घटक लहसुन प्याज की तरह तेज सुगंध व तीखा स्वाद वाला है एवं भोजन व दवाओं में इसके व्यापक उपयोग के कारण इसका व्यवसायिक महत्व है। दक्षिणी यूरोपीय एवं एशियाई व्यंजनों में लहसुन बल्ब करी, सूप, टमाटर सॉस व सलाद का स्वाद बढ़ाने के लिए काटकर या पीसकर प्रयोग किए जाते हैं। मध्य एशिया इसका मुख्य मूल है व भूमध्य क्षेत्र दूसरा मूल है। लहसुन के बल्ब भूमिगत विकसित होते हैं एवं काफी छोटे फॉकों से मिलकर बने होते हैं जो एक पतली सफेद या गुलाबी परत से घिरे होते हैं। इन बल्ब को काफी लंबे समय तक रखा जा सकता है साथ ही खराब हैंडलिंग व दूर के परिवहन को भी ये झेल सकते हैं।
पुराने समय से लहसुन का उपयोग बहुत सारी बीमारियों के उपचार में किया गया है। संस्कृत रिकार्ड में इसका उपयोग लगभग 5000 साल पहले दर्ज है जबकि चीन में इसका उपयोग कम से कम 3000 साल पहले से किया जा रहा है। लहसुन, बहुत सी बीमारियां जैसे उच्च रक्तचाप, सिर दर्द, कीड़े के काटने व ट्यूमर में एक कारगर उपाय है। द्वितीय विश्व युद्ध में लहसुन का उपयोग एंटीसेप्टिक के रूप में गेंग्रीन की रोकथाम में किया गया था।
इसका सबसे महत्वपूर्ण उपयोग संक्रमण, कैंसर व हृदय बीमारियों की रोकथाम में है। भारत में इसकी दो विशिष्ट प्रजातियां है - फवारी एवं रॉयल गडी। इसके अलावा कुछ स्थानीय प्रजातियां जैसे गोदावरी, स्वेता, मद्रासी, तबीटी, क्रियोल एवं जामनगर भी भारत के विभिन्न हिस्सों में उगायी जाती हैं। भारत सरकार ने राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान और विकास फाउंडेशन द्वारा विकसित किस्में जैसे एग्रीफाउंड व्हाइट, यमुना सफेद एवं यमुना सफेद-2 को अधिसूचित किया है।
खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ.ए.ओ) के अनुसार, लहसुन का सबसे बड़ा उत्पादक देश चीन है एवं इसके बाद भारत, दक्षिणी कोरिया, अमेरिका, मिस्र एवं स्पेन हैं। वर्ष 2002 में लहसुन का विश्व उत्पादन 12, 234, 225 मीट्रिक टन था जिसमें भारत का योगदान 5,00,000 मीट्रिक टन था । भारत में लहसुन के उत्पादन की गणना तालिका 1 में दी गयी है।
भारत में मध्यप्रदेश प्रमुख लहसुन उत्पादक राज्य है। इसके बाद गुजरात, उड़ीसा, राजस्थान, महाराष्ट्र व अन्य राज्य हैं। पंजाब लगभग 14,000 मीट्रिक टन लहसुन उत्पादित करता है एवं इसकी सबसे ज्यादा उपज 12.5 मीट्रिक टन/हेक्टेयर है।
निर्यातक देश हैं। इन देशों में बड़े फांके वाला लहसुन (40-60 मि.मी. व्यास का बल्ब जिसमें 10-15 फांके होते हैं) पैदा किया जाता है जिसकी मांग काफी ज्यादा है। जी-282 व एग्रीफांउड पर्वती किस्मों में लहसुन बल्ब बड़े आकार के होते हैं। इन किस्मों की खेती मध्यप्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा एवं पंजाब राज्यों में बढ़ रही है।
लहसुन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं फॉस्फोरस का मुख्य स्रोत है। ताजा छिले हुए लहसुन की संरचना तालिका 2 में दी गयी है।
लहसुन की प्रजातियां, मृदा व मौसम पर निर्भर करते हुए लहसुन की फसल बुवाई के 130-150 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब भूमि से
वर्ष | क्षेत्र (हेक्टेयर) | उत्पादन (मीट्रिक टन) |
2000 | 1,24,600 | 5,24,600 |
2001 | 1,20,000 | 496,800 |
2002 | 1,14,808 | 5,00,000 |
2003 | 1,11,500 | 4,57,000 |
2004 | 1,38,900 | 6,91,100 |
2005 | 1,44,100 | 6,46,600 |
2006 | 1,34,900 | 5,98,200 |
2007 | 1,59,200 | 7,76,300 |
2008 | 2,06,120 | 10,68,500 |
2009 | 1,66,210 | 8,31,100 |
2010 | 1,64,860 | 8,33,970 |
ऊपर लहसुन आंशिक रूप से शुष्क हो जाता है व जमीन की ओर झुकने लगता है तब यह कटाई के लिए तैयार है। इसके बल्ब को पूरी तरह से सुखाने के लिए लगभग एक हफ्ते तक खेत में इसे क्यूरिंग के लिए रखा जाता है। सूर्य की तेज रोशनी से बचाव के लिए बल्ब को इनके पत्तों से ढक कर रखा जाता है। सुखाने के बाद, पौधों को छोटे बंडलों में बांध कर बॉस की लकड़ियों या रस्सी पर लटकाकर भंडारित किया जाता है। भंडारण या विपरण से पहले, क्यूरिंग किये हुये लहसुन की छटाई व ग्रेडिंग की जाती है। टूटे हुए, चोट लगे हुए, रोगग्रस्त व खोखले बल्ब को अलग कर दिया जाता है। छटाई व ग्रेडिंग का मुख्य उद्देश्य विपणन में अच्छा मूल्य प्राप्त करना है।
तालिका 2: ताजी छिली लहसुन की संरचना
पांषक तत्व | मान्ना % |
---|---|
नमी | 62.80 |
प्रोटीन | 6.30 |
वसा | 0.10 |
खनिज लवण | 1.00 |
खाद्य रेशे | 0.80 |
कार्बोहाइड्रेट्स | 29.00 |
कैल्शियम | 0.03 |
फॉस्फोरस | 0.31 |
लौह तत्व | 0.001 |
निकोटिनिक अम्ल (मिग्रा./100 ग्रा) | 0.40 |
विटामिन सी (मिग्रा./100 ग्रा) | 13.00 |
भारत में घरेलू उपभोग के लिए लहसुन बल्ब को खुले जालीदार जूट बैग में रखा जाता है। आंध्र प्रदेश में लहसुन को 90 किग्रा की पैकिंग में रखा जाता है। कर्नाटक व अन्य लहसुन उत्पादित राज्यों में लहसुन को 40-60, किग्रा की पैकिंग में रखा जाता है। लहसुन ग्रेडिंग व पैकिंग नियम, 18 किग्रा, 25 किग्रा व 50 किग्रा के आकार की पैकिंग प्रदान करता है। निर्यात के लिए 18 किग्रा व 25 किग्रा की पैकिंग, छिद्रित दस प्लाई वाले गतों के डिब्बों में की जाती है। बहुत से विकसित देशों में प्लास्टिक के बुने हुए बैग या नाइलोन की जाली वाले बैग लहसुन बल्ब की पैकेजिंग के लिए सामान्यतः प्रयोग किये जाते हैं। इनके कई लाभ हैं जैसे भंडारण के दौरान नुकसान में कमी एवं विपणन के लिए आकर्षक पैकेजिंग
लहसुन बल्ब व लहसुन के प्रसंस्कृत उत्पाद का भंडारण इसकी भंडारण अवधि बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण है। अच्छी तरह से क्यूरिंग किये हुए लहसुन के बल्ब को साधारण हवादार कमरे में लंबे समय के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। पतियों के साथ भी लहसुन को अच्छे हवादार कमरे में लटकाकर भंडारित किया जा सकता है। यद्यपि यह व्यवसायिक स्तर पर संभव नहीं है क्योंकि इसमें ज्यादा स्थान की आवश्यकता होती है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है। कि 0.6 डिग्री सेल्सियस से 0' सेल्सियस और 80 प्रतिशत या कम सापेक्ष आर्द्रता पर लहसुन को कम से कम 6-7 महीनों के लिए भंडारित किया जा सकता है। उच्च तापमान (26.4-32° सेल्सियस) पर लहसुन को एक महीने या कम समय के लिए भंडारित कर सकते हैं। मध्यवर्ती तापमान (4.4 से 18.2 डिग्री सेल्सियस के बीच) अवांछनीय है क्योंकि इससे शीघ्र अंकुरण, उच्च सापेक्ष आर्द्रता होती है जिसके कारण सड़न व फफूदी लगनी शुरू हो जाती है।
कटाई उपरान्त बीमारियों का रासायनिक नियंत्रणः
भंडारण व विपणन के समय, लहसुन की महत्वपूर्ण बीमारियां ब्लू मोल्ड रॉट, बल्ब की क्षति, एस्परजिलस रॉट, फ्यूसेरियम रॉट, शुष्क रॉट एवं ग्रे मोल्ड रॉट हैं। सबसे ज्यादा प्रचलित बीमारी ब्लू मोल्ड रॉट है जिसमें लहसुन में घाव बन जाते हैं। बल्ब की क्षति के बाद वाली अवस्थाओं में इसके फांके मुलायम, स्पंजी एवं पेनिसिलियम प्रजाति के पाउडरी स्पोरों से ढक जाते हैं। शुष्क रॉट से संक्रमित फांके अंकुरित नहीं होते हैं। खेतों में दवाईयां जैसे बोरडेक्स मिश्रण, फर्बम, जिनेब एवं नबम का छिड़काव शुष्क रॉट को कुशलतापूर्वक रोकने में प्रभावशाली है। भंडारित लहसुन में व्हीट कर्ल माइट को नियंत्रित करने के लिए मिथाइल ब्रोमाइड की धूनी 32 ग्राम/मीटर' के अनुसार 2 घंटों के लिए 21"सेल्सियस तापमान पर करनी चाहिए।
अंकुरण के कारण भंडारण के समय लहसुन के बल्ब के वजन में काफी गिरावट आती है। कई शोधकर्ताओं ने आयोनाइजिंग विकिरण रेडियेशन के प्रभाव से इन नुकसानों में कमी को साबित किया है। कटाई के 30 दिन बाद, लहसुन के बल्ब को कोबाल्ट-60 की 50 ग्रे मात्रा से उपचारित करने पर भंडारण के समय अंकुरण व वजन घटने में कमी आती है।
कई व्यंजनों में ताजे लहसुन के उपयोग के अलावा, लहसुन से विभिन्न प्रकार के प्रसंस्कृत उत्पाद बनाये जाते हैं। इसके प्रसंस्करण की कई विधियों को मानकीकृत किया गया है।
साफ किये हुए लहसुन की फॉके तोड़कर इसका छिलका उतारा जाता है। तत्पश्चात् एक समान पेस्ट प्राप्त करने के लिए इसे सावधानी पूर्वक उबाला जाता है। आकर्षक स्वरूप व अच्छी भंडारण क्षमता के लिए 0.1% सल्फर डाइ-ऑक्साइड, 15% सोडियम क्लोराइड एवं 0.05% एसकॉर्बिक अम्ल मिलाया जा सकता है। पेस्ट को 70, 80 या 90 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 15 मिनट के लिए ऊष्मा द्वारा प्रसंस्कृत कर सकते हैं। यह उत्पाद 25" सेल्सियस तापमान पर कम से कम छ: महीनों के लिए सुरक्षित व स्थिर रहता है।
अच्छे से मसले हुए लहसुन को भाप में पकाकर इसका तेल प्राप्त किया जाता है। नमी से मुक्त लहसुन से 0.46-0.57 प्रतिशत तक तेल की उपज होती है जिससे यह काफी महंगा हो जाता है। लहसुन के तेल का विशिष्ट घनत्व एवं अपवर्तक सूचकांक 25 सेल्सियस तापमान पर क्रमशः 1.091-1.098 एवं 1.5740-1.5820 है। तालिका 3 में लहसुन के वाष्पशील घटक दिये गये हैं।
तालिका 3
डाइ, मिथाइल सल्फाइड | डाइ एलील डाइ सल्फाइड |
डाइ एलील सल्फाइड | एलील प्रोपाइल डाइ सल्फाइड |
मिथाइल एलील सल्फाइड | मिथाइल एलील डाइ सल्फाइड |
डाइ मिथाइल डाइ सल्फाइड | मिथाइल प्रोपाइल डाइ सल्फाइड |
डाइ प्रोपाइल डाइ सल्फाइड | डाइमिथाइल ट्राइ सल्फाइड |
सल्फर डाइ आक्साइड | डाइ एलाल ट्राइ सल्फाइड |
डाइ-एलील | मिथाइल एलील ट्राइ सल्फाइड |
लहसुन के आसवित तेल का मुख्य घटक डाइ-एलील डाइ सल्फाइड है। आमतौर पर लहसुन के तेल में वनस्पति तेल मिलाकर इसके तेल के कैप्सूल बनाये जाते हैं। इसमें लहसुन की तीखी गंध आती है व इसे खाद्य पदार्थों में फ्लेवर एजेंट के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
पूरे कटे हुए लहसुन को सिरका, ब्राइन या वनस्पति तेल या इनके मिश्रण में मिलाया जाता है। लहसुन का उच्च गुणवत्ता वाला अचार बनाने के लिए पैकिंग करने से पहले पारंपरिक तरीके या माइक्रोवेब द्वारा ब्लांचिग करना बहुत जरूरी है। इससे एंजाइम एलीनेज को निष्क्रिय करके तीखा स्वाद व हरा रंग दूर किया जा सकता है।
लहसुन की नमी निकालने से कुल वजन में कमी, भंडारण स्थान की बचत एवं परिवहन होने वाले सामान में आसानी होती है। मुख्यतः लहसुन को सुखाकर स्लाइस, क्यूब्स एवं पाउडर बनाया जाता है। स्थिर अवस्था में लहसुन पाउडर की रासायनिक संरचना ताजा लहसुन की रासायनिक संरचना जैसी होती है।
भारतीय मानक विनिर्देश ब्यूरो आई एस 5452 में निर्जलित लहसुन के नमूने के परीक्षण तरीकों का प्रावधान डाइ-एलील मिथाइल एलील ट्राइ सल्फाइड है। इसके अनुसार, शुष्क लहसुन सफेद से क्रीमी रंग का हो सकता है।
लहसुन | आवश्यकता(प्रतिशत भार ) |
---|---|
नमी,अधिकतम | 5 .0 |
कुल खनिज लवण,अधिकतम | 6 .5 |
अम्ल में अघुलनशील खनिज लवण,अधिकतम | 0.5 |
बाहिरी पदार्थ,अधिकतम | 3.0 |
पाउहर रूप में इसमें गोशिपां पा दाने नहीं बनने चाहिए। पह तीखी गंध वाला, दुर्गध से मुक्त होना पाहिए। चार घंटे तक पानी में रखने के बाद इसे अच्छी गुणवत्ता बाले कच्चे, ताजे छिले हुए, कटे हुए या अच्छे से पिसे हुए लहसुन की तरह पुनर्गठित होना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन का अंतर्राष्ट्रीय मानक आइ.एस.ओ. 5550 (1981), निर्जीलित लहसुन के बिभिन्न वाणिज्यिक रूप पर लागू होता है। बाह्रौ पद्मार्थों का कुल अनुपात 0.5 प्रतिशत (भार/भार) से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लहसुन के स्लाइस, रिस, फलेक्स, टुकड़ों के लिए नमी 8 प्रतिशत (भार/भार) से कम होनी चाहिए, लहसुन पाउडर के लिए 6 प्रतिशत से कम, शुष्क आधार पर कुल खनिज लवण 5.5 प्रतिशत से कम, शुष्क आधार पर अन्त में अधुलनशील खनिज लवण 0.5 प्रतिशत से कम होने चाहिए। आई.एस.ओ. में सैंपलिंग, परीक्षण, रि-हाइड्रेशन (पुनर्योजन), संवेदी विश्लेषण, पैकेजिंग,भंडारण, व परिवहन मै सम्मिलित हैं।
अमेरिकन डिहाइड्रेटेज़ एनियन एंड गार्तिक एसोसियेशन (ए-डी.ओ.जी.ए.) ने मी लढ्सुन के विभिन्न निर्जशित उत्पादों का विवरण दिया है। आकार के आधार पर विभिन्न निर्जलित उत्पाद स्लाइस्ड, चॉप्ड, मिन्स्ड, पिसे हुए, दानेदार व पाउडर उत्पाद आदि हैं।
स्त्रोत : सीफेट न्यूजलेटर, लुधियाना(देविन्द्र ढींगरा', इंदु कार्की एवं संगीता चोपड़ा 'कृषि अभियांत्रिकी प्रभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली तकनीकी हस्तांतरण प्रभाग, सीफेट लुधियाना)
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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