नियमित विपणन भारत में सबसे प्रमुख कृषि विपणन स्वरूप है। विस्तार अधिकारियों को एक विशिष्ट विनियमित बाजार में किसानों के अधिकार और कर्तव्यों से परिचित होना चाहिए। इसलिए, भारत में विनियमित विपणन प्रणाली के कामकाज का एक संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है।
विपणन माल को उत्पादन के स्थान से उपभागे के स्थान तक आगे बकरने के लिए दृष्टि से माल को आगे बढ़ाने में शामिल गतिविधियों की एक श्रृंखला को आवृत करता है। यह एक कृषि उत्पाद को खेत से उपभोक्ता के पास पहुँचाने में शामिल सभी सेवाओं को आवृत करता है। ऐसा करने में, उत्पादन की योजना बनाना, फसल उगाना और कटाई, ग्रेडिंग, पैकिंग परिवहन, भंडारण, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण, वितरण,विज्ञापन और बिक्री आदि कई गतिविधियां परस्पर जुड़ी हुई हैं।
उच्च विपणन लागत, अनधिकृत कटाई और विभिन्न कदाचारों के प्रसार जैसी परिस्थितियों ने देश के विभिन्न राज्यों में कृषि विपणन के नियमन के लिए प्रेरित किया। एक विनियमित बाजार का उद्देश्य उपज की सही तुलाई, किसानों को शीघ्र भुगतान और बिचौलियों द्वारा किसानों के शोषण का परिहार सुनिश्चित करना है। विनियमित बाजार, वह बाजार है जिसका लक्ष्य अस्वस्थ और बेईमान प्रथाओं के उन्मूलन,विपणन लागत को कम करने और बाजार में निर्माता-विक्रेता को सुविधाएं प्रदान करना है। कृषि उत्पादों के विपणन को विनियमित करने के लिए बनाया गया विधायी उपाय मूल रूप से विनियमित बाजारों की स्थापना पर केंद्रित है।
मैनचेस्टर की कपड़ा मिलों के लिए उचित मूल्य पर शुद्ध कपास की आपूर्ति उपलब्ध करने के लिए ब्रिटिश शासकों की चिंता से बाजार के नियमन की जरूरत उत्पन्न हुई। पहला विनियमित करंजिया कपास बाजार हैदराबाद रेजीडेंसी आदेश के अंतर्गत 1886 में स्थापित किया गया था। पहला कानून 1897 का बेरार कपास और अनाज बाजार अधिनियम था। 1897 अधिनियम देश के अन्य भागों में कानून के लिए उदाहरण कानून बन गया। तत्कालीन बंबई सरकार 1927 में कपास बाजार अधिनियम को अधिनियमित करने वाली पहली सरकार थी। यह देश का पहला कानून था, जिसमें उचित बाजार प्रथाओं को विकसित करने के दृ ष्टिकोण से बाजार को विनियमित करने का प्रयास किया गया। भारत में कृषि विपणन की समस्याओं को दूर करने के लिए, 1928 में कृषि पर रॉयल आयोग और 1931 में केंद्रीय बैंकिंग जांच समिति ने खाद्य एवं कृषि मंत्रालय के अंतर्गत विपणन एवं निरीक्षण निदेशालय की स्थापना की सिफारिश की।
केन्द्रीय विपणन विभाग के समकक्ष रूप में राज्यों में विपणन विभाग स्थापित किए गए थे। विभिन्न राज्यों के राज्य (विपणन) विभागों की संरचना राज्य में अंतर है, और उनकी स्थिति में भी कृषि विभाग के अंतर्गत एक प्रकोष्ठ से एक संपूर्ण विभाग तक की भिन्नता है। हालांकि, अब सभी राज्यों में किसानों की विपणन की समस्याओं की देखभाल के लिए एक विपणन विभाग/प्रकोष्ठ है। ये राज्य कृषि विपणन बोर्ड के बाजारों के नियमन को संभालते हैं और राज्य स्तर पर विनियमित बाजारों के कामकाज में समन्वय के लिए एक प्रभावी स्तर बनाते हैं। राज्य में राज्य कृषि विपणन बोर्ड की स्थापना के बाद बाजार विनियमन योजना ने गति प्राप्त की।
बाजार विनियमन के मुख्य अधिनियम, कृषि उत्पाद बाजार विनियमन अधिनियम को राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। 7100 से अधिक विनियमित बाजारों का एक नेटवर्क लगभग 28000 ग्रामीण प्राथमिक बाजारों की देश के विपणन प्रणाली सेवाओं को विनियमित करता है। शुरू में बाजार विनियमन का उद्देश्य किसानों के लिए अपनी उपज की सही तुलाई, शीघ्र भुगतान सुनिश्चित करना और बिचौलियों के हाथों उन्हें शोषण से बचाना था। हालांकि, बाजार मूल रूप से बिचौलियों के चंगुल में फँसकर उनके शोषण से किसानों की रक्षा करने के लिए बने थे, लेकिन इन्होंने बाजार की शक्तियों की मुक्त कार्यवाही को रोककर किसानों के हितों को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
एपीएमसी नियमन के अंतर्गत, कोई निर्यातक या प्रसंस्कारक किसानों से सीधे खरीदारी नहीं कर सकता है, इस प्रकार कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण और निर्यात हतोत्साहित होते हैं। केवल राज्य सरकार ही बाजार तैयार कर सकती है, जिससे निजी क्षेत्र को बाजारों की स्थापना और विपणन के बुनियादी ढांचे में निवेश से रोका जाता है। विनियमित बाजारों की स्थापना पारंपरिक विपणन प्रणाली की समस्याओं को दूर करने में काफी हद तक सक्षम होगी। हालांकि, गांवों में बिक्री के मामले में ये समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं। राज्यों में कृषि विपणन में आने वाली बाधाओं के कुछ स्पष्ट उदाहरण हैं- बाजार शुल्क, विकास उपकर में भिन्नता, कमीशन शुल्क की उच्च दर, बिक्री कर, प्रवेश कर लगाना और बुनियादी सुविधाओं की कमी। कृषि विपणन राज्य का विषय है, अतएव भारत में एक साझा बाजार विकसित करने के लिए इन सभी समस्याओं/बाधाओं को सभी राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों के ठोस प्रयास के साथ उपयुक्त सुधार के उपायों के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिए।
2003 के बाद से, भारत सरकारने भारत के कृषि विपणन में कई सुधार आरंभ किए हैं कुछ दूसरे आरंभ होने की प्रक्रिया में हैं। भारत सरकार ने, एक प्रमुख पहल के रूप में, कृषि उपज विपणन (नियमन एवं विकास) अधिनियम, 2003 नामक एक मॉडल अधिनियम बनाया है। सभी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र मॉडल एक्ट के अनुसार अपेक्षित सुधार करने के लिए, अपने संबंधित राज्य एपीएमआर अधिनियमों में संशोधन करने के लिए सहमत हो गए हैं। मॉडल अधिनियम की मुख्य विशेषताएं हैं- निजी/सहकारी क्षेत्र में बाजार की स्थापना करना, बाजार शुल्क का उदारीकरण, अनुबंध कृषि को प्रोत्साहित करना तथा प्रत्येक राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश में एक ग्रेडिंग और मानकीकरण ब्यूरो की स्थापना सहित प्रत्यक्ष विपणन और ग्रेडिंग और मानकीकरण को बढ़ावा देना। इन सुधारों से इस क्षेत्र के लिए निजी निवेश को आकर्षित करने, एक एकीकृत पूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने, और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने में काफी मदद मिलेगी। एक साझा बाजार के माध्यम से मुक्त व्यापार और कृषि जिंसों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने से किसानों को उनकी उपज के लिए सबसे अच्छा संभव मूल्य दिलाने, कीमतों में स्थिरता लाने और कमी वाले क्षेत्रों में उचित मूल्य पर माल की उपलब्धता सुनिश्चित करना संभव होगा। इससे संसाधनों की प्राप्ति के आधार पर क्षेत्रीय विशेषज्ञता को बढ़ावा मिलेगा, जिससे उत्पादन प्रक्रिया की दक्षता में वृद्धि होगी।
भारत में एक साझा बाजार विकसित करने के लिए, कुछ सुधार उपायों पहले ही शुरू किए गए हैं, जबकि कुछ अन्य आरंभ किए जाने की प्रक्रिया में हैं।
स्रोत: राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज), कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय,भारत सरकार का संगठन
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस पृष्ठ में अनुबंध कृषि की जानकारी दी गयी है I
इस भाग में कृषि क्षेत्र में ऋण एवं विपणन में सहायत...
इस अध्याय में कृषि विस्तार में मार्केट फोकस लाना क...
इस पृष्ठ में आईटी - आधारित बाजार सूचना प्रणाली की ...