विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (2007) के अनुसार विश्व में बकरियों की संख्या लगभग 85 करोड़ 2 लाख और 20 हजार है। इसमें से लगभग 13.5 करोड़ बकरियां भारत में पाई जाती हैं, जो विश्व का लगभग 14. 76 प्रतिशत है और ये देश की जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान करती हैं। भारत में बकरी पालन गरीब किसानों के लिए और कम क्षेत्र में भी इसे आसानी से रखा जा सकता है। ग्रामीण व भूमिहीन किसान बकरी पालन करके अतिरिक्त आमदनी कर सकते हैं बकरियां चारे के अलावा जंगली झाड़ियाँ, पत्तियां बड़े चाव से खाती है तथा ये तापमान की विषम परिस्थितियों में भी अपने आप को ढाल लेती हैं।
किसानों के लिए बकरी एक बहुमुखी एवं बहुउद्देशीय पशु है। यह भारत में गरीब आदमी की गाय व यूरोप में शिशुओं की नर्स के रूप में जानी जाती है। बदलते वातावरण बढ़ती हुए जनसंख्या व घटते हुए संसाधनों को देखते हुए बकरी भविष्य के पशु के रूप में ग्रामीण अंचल में उपयुक्त साबित हो सकती है। गाय – भैंस की बढ़ती हुई कीमत की तुलना में बकरी की कीमत अत्यधिक कम है। भविष्य में बकरी पालन ग्रामीण अंचलों में रोजगार का अच्छा विकल्प हो सकता है।
मानव पोषण में इसका योगदान अद्वितीय है। बकरी का दूध फेफड़े के घावों व गले का पीड़ा को दूर करता है। यह पेट के शीतलता प्रदान करता है। यह दूध एक सम्पूर्ण आहार है तथा मानव में ऐसी बीमारियाँ, जिनमें खून में प्लेटलेट्स की संख्या घट जाती है, के उपचार के लिए रामबाण होता है। बकरी का दूध डेंगू के मरीजों के लिए प्राकृतिक उपचार है। इसमें खनिज पदार्थ जैसे आयरन, कैल्शियम, फॉस्फोरस और मैग्नीशियम भी पाए जाते हैं एवं प्लाज्मा कोलेस्ट्रोल का संतुलन बनाये रखता है। बकरियां के दूध में सिलिनियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह खून का थक्का बनने की क्रियाओं को भी नियंत्रित करता है। यह एंटीऑक्सीडेंट की तरह भी कार्य करता है व टी – कोशिका व इंटरलूकिन की वृद्धि भी प्रभावित करता है।
बकरी के दूध में मुख्यतः वसा, प्रोटीन, लेक्टोज तथा खनिज लवण का अनुपात विभिन्न प्रजातियों में अलग – अलग होता है –
बकरी का दूध का पाचन मनुष्य में अधिक आसानी से होता है। बकरी के दूध में केसीन प्रोटीन के कारण दही नरम बनता है। वसा के ग्लोब्यूल का आकार छोटा तथा एग्लूटिनीन नहीं पाया जाता है तथा माध्यम व छोटे चेन के फैटी ऐसिड पाए जाते हैं। इसके कारण बकरी का दूध गाय व भैंस के दूध से अधिक सुपाच्य होता है। साथ ही बकरी के दूध में औषधीय गुण अत्यधिक पाए जाते हैं, क्योंकि बकरी जगंल में चरने के दौरान विभिन्न प्रकार के पेड़ – पौधों की पत्तियों का भी सेवन करती है। इस वजह से अधिक औषधीय गुण आ जाते हैं।
भारत में इस समय 13.5 करोड़ से अधिक बकरियां है। यह संख्या किसी भी अन्य देश की तुलना में सर्वाधिक है। इनसे हमें मांस, दूध, चमड़ा, खाद इत्यादि प्राप्त होता है। बकरी का मांस उपभोक्ताओं के बीच काफी लोकप्रिय है, क्योंकि अन्य पशुओं की तरह बकरियों के मांस के साथ कोई धार्मिक मान्यता नहीं जुड़ी है। अधिक मांग तथा कम उत्पादन का कारण बकरी का मांस मंहगा मिलता है। इसके मांस को चिवान कहते हैं और यह बहुत ही पुष्टिकर होता है। इसमें 19 – 21 प्रतिशत,वसा 3 – 6.5 प्रतिशत तथा रख एक प्रतिशत होती है। प्रोटीन की मात्रा भैंस, भेड़ व सुअर के मांस से अधिक होती है।
पनीर, चीज, योगहार्ट, घी, खोआ, श्रीखंड, छेना, संदेश, रसगुल्ला, दही, पनीर, आइसक्रीम व दूध पाउडर इत्यादि व्यंजन दूध से बनाये जा सकते हैं। बकरी का दूध बच्चों को पिलाने के लिहाज से बहुत उपयोगी होता है।
बकरियों की विभिन्न प्रजातियों, जैसे पश्मीना, चुगू, चंगथानी आदि जोकि पवर्तीय क्षेत्रों में पायी जाती हैं, से श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली ऊन प्राप्त की जा सकती हैं। पश्मीना बकरी से सर्वोत्तम प्रकार की ऊन प्राप्त किया जाता है और यह बहुत ही गर्म व बहुमूल्य होता है कई बकरियों की प्रजातियों में बड़े – बड़े बाल पाए जाते हैं, उनके बालों का उपयोग कालीन, चटाई व दरी बनाने में किया जाता है।
बकरियों से चमड़ा, हड्डियाँ, सींग तथा अन्य उपयोगी उत्पादों की प्राप्ति होती है। इससे सिद्ध होता है कि बकरी पालन न केवल जीते जी बल्कि मरने के बाद भी मनूश्याओं के लिए उपयोगी सिद्ध हो रहा है।
बकरी के गोबर की लेड़ी कहते हैं, जो की खाद के रूप में अधिक उपयोगी होती है। बकरियां चरते समय बंजर भूमि को भी वहां पर लेड़ी करके उपजाऊ बना सकती है।
बकरी को भविष्य का पशु कहते हैं। इसका दूध अत्यधिक फायदेमंद होता है तो मांस उत्पादन में कोई धार्मिक समस्या सामने नहीं आती है। कम लागत से अधिक उत्पादन को संभावना बनी रहती है।
एशिया में मांस के उत्पादन के क्षेत्र में 6 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है, जबकि भारत में यह वृद्धि 3 – 4 प्रतिशत तक है। मांस उत्पादन में वृद्धि के लिए बकरियां काफी उपयोगी में वृद्धि के लिए बकरियां काफी उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं।
बकरी के बारे में यह कहा जा सकता है कि भविष्य में न केवल भारत में बल्कि विश्व में पशुपालन उद्योग की एक महत्वपूर्ण कड़ी बन जाएगी। इसके लिए बकरी के अनुसंधान कार्यों में तेजी लेन की आवश्यकता है। मथुरा स्थित भाकृअनुप – केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, फरह मथूरा इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रहा है। बकरी पालन से विश्व के प्रत्येक व्यक्ति तक कम लागत में न केवल दूध, मांस एवं इनके उत्पादों को पहुँचाया जा सकता है। बल्कि बकरी पालन से विदेशी मुद्रा मुद्रा भी अर्जित की जा सकती है।
बकरी पालन से करोड़ों की आमदनी होती है। इसकी ग्रंथियों से प्राप्त जीवनदायी औषधियां बनाई जा रही हैं। हारमोंस को रासायनिक संश्लेषण से तैयार नहीं किया जा सकता है। अत: बकरियों से आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। बूचड़खानों से बकरियों के विभिन्न अंगों, उपोत्पादों को इकट्ठा करके निम्न औषधियां प्राप्त की जा सकती है।
बकरी के उपोत्पादों से प्राप्त औषधियां और जैव रसायन
देश में बकरियों को दूध, मांस एवं अन्य उत्पादों के लिए उपयोग में लाया जाता है। इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने के कारण भी इनकी अधिक उपयोगिता सिद्ध हो रही है। बकरियां देश की अर्थव्यवस्था में निम्नलिखित तरीके से योगदान कर सकती हैं –
लेखन: चेतना गंगवार, एस.पी.सिंह, रविरंजन और अनुज कुमार सिंह
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