भेड़ ग्रामीण अर्थव्यस्था एवं सामाजिक संरचना से जुड़ा है। इससे हमें मांस, दूध, ऊन, जैविक खाद तथा अन्य उपयोगी सामग्री मिलती है। इनके पालन-पोषण से भेड़ पालकों को अनेक फायदें हैं। अतः निम्नलिखित बातों पर उचित ध्यान देना चाहिए-
प्रजनन एवं नस्लः अच्छी नस्लों की देशी, विदेशी एवं संकर प्रजातियों का चुनाव अपने उद्देश्य के अनुसार करनी चाहिए।
भेड़ में प्रायः 12-48 घंटे का रतिकाल होता है। इस काल में ही औसतन 20-30 घंटे के अन्दर पाल दिलवाना चाहिए। रति चक्र प्रायः 12-24 दिनों का होता है ।
महीन ऊन बच्चों के लिए उपयोगी है तथा मोटे ऊन दरी तथा कालीन के लिए अच्छे माने गये हैं। गर्मी तथा बरसात के पहले ही इनके शरीर से ऊन की कटाई कर लेनी चाहिए। शरीर पर ऊन रहने से गर्मी तथा बरसात का बुरा प्रभाव पड़ता है। जाड़ा जाने के पहले ही ऊन की कटाई कर लेनी चाहिए। जाड़े में स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर के वजन का लगभग 40-50 प्रतिशत मांस के रूप मे प्राप्त होता है।
सुबह 7 से 10 बजे तथा शाम 3-6 बजे के बीच में भेड़ों को चराना तथा दोपहर में आराम देना चाहिए। गाभिन भेड़ को 250-300 ग्राम दाना प्रति भेड़ सुबह या शाम में देना चाहिए।
भेड़ के बच्चे को पैदा होने के बाद तुरंत फेनसा पिलाना चाहिए। इससे पोषण तथा रोग निरोधक शक्ति प्राप्त होती है। दूध सुबह-शाम पिलाना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए के बच्चा भूखा न रह जाये।
समय-समय पर भेड़ों के मल कृमि की जाँच करनी चाहिए और पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार कृमि-नाशक दवा पिलानी चाहिए। चर्म रोगों में चर्मरोग निरोधक दवाई देनी चाहिए।
भेड़ के रहने का स्थान स्वच्छ तथा खुला होना चाहिए। गर्मी, बरसात तथा जाड़ा के मौसम में बचाव होना जरूरी है। पीने के लिए स्वच्छ पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहना चाहिए।
स्त्रोत:
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, काँके, राँची- 834006
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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