आदिकाल से ही दूध मानव भोजन का एक अभिन्न अंग रहा है। प्रकृति ने भी स्तनधारी जीवों को अपने नवजात शिशुओं के पोषण के लिए स्वयं के शरीर से ही स्तनग्रन्थियों द्वारा दुग्ध क्षरण होने की क्षमता दी है। स्तनधारी मादा पशु बच्चा जनते ही दूध उत्पन्न करने लगता है जिसे उपयोग कर नवजात शिशु की वृद्धि सुचारू रूप से होती है किसी वर्ग विशेष के द्वारा उत्पन्न दूध उस वर्ग के नवजात बच्चे के पोषण के लिए अधिक पोषक एवं महत्वपूर्ण होता है। फिर भी कुछ वर्गो के स्तनधारियों में दुग्ध उत्पादन उनके स्वयं के बच्चों की आवश्यकता से कही अधिक होता है। इसी दूध को मानव अपने लिए उपयोग में लेता रहता है।
किसी भी आहार की पोषण क्षमता उसमें उपस्थित निम्नलिखित गुणों से आंकी जा सकती है।
(1) अमुक आहार पोषण के लिए कितनी ऊर्जा प्रदान करता है।
(2) आहार में शरीर के लिए आवश्यक तत्व जैसे की वसा अम्ल, एमिनो अम्ल, खनिज लवण एवं विटामिन्स कितनी मात्रा में मौजूद?
(3) आहार से प्राप्त तत्व कितनी मात्रा में पचनशील एवं शरीर द्वारा आसानी से ग्रहण किए जा सकते है।
(4) अमुक आहार से कितने नुकसानदायक एवं अन्य तत्वों की उपयोगिता में बाधक हो सकते है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है की एक अच्छा आहार वह हा जो कि स्वास्थ्य को ठीक रखने तथा बीमारी से बचाने की शक्ति एक प्राणी को दे सके।
दूध एक ऐसा भोजन है जिसमें समस्त पदार्थ पर्याप्त तथा उचित मात्रा में पाए जाते है इन्ही सबके विश्लेष्ण के लिए यह इकाई तैयार की गई है।
इस इकाई का मुख्य उद्देश्य पाठको को यह बताना है की मानव पोषण में दूध एवं दूध से बने पदार्थो का क्या महत्व है। चूँकि यह तभी संभव हो सकेगा की पाठको को यह पता हो की एक मनुष्य के भोजन में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व होने चाहिए और कौन-कौन से पदार्थ इनकी पूर्ति कर सकते है। इन्ही सब जानकारियों के लिए इस इकाई में यह प्रयन्त किया गया है की पाठक समझ सके की एक संतुलित आहार के लिए उसमें कितनी ऊर्जा, प्रोटीन एवं अन्य आवश्यक तत्व होने चाहिए तथा दूध एवं दुग्ध पदार्थ इन तत्वों की पूर्ति कितने हद तक कर सकते है।
जैसा की पहले भी बताया जा चुका है कि संपूर्ण आहार वह है जिसमें शरीर को मिलने वाले आवश्यक तत्व जैसे ऊर्जा अम्लीय वसा, अमिनो अम्ल, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण तथा विटामिन्स संतुलित मात्रा में विद्यमान हो, और जिससे शरीर की प्रत्येक क्रिया के लिए आवश्यक तत्व मिल सके, तथा जिसमें स्वास्थ्य को ठीक रखने तथा बीमारी से बचाने की क्षमता हो और चूँकि दूध एक ऐसा भोजन है जिसमें समस्त पदार्थ पर्याप्त तथा उचित मात्रा में विद्यमान होते है, इसलिए इसे लगभग संपूर्ण भोजन कहा जाता है। केवल लोहा एवं तांबा ऐसे खनिज लवण है जिनकी पोषण की दृष्टि से कमी होती है। इनके बारे में विस्तार से वर्णन आगे किया जाएगा। इन सबके अलावा दूध के निम्नलिखित गुणों के आधार पर मानव आहार के लिए इसकी उपयोगिता को आंकते है-
(1) दूध एक स्वादिष्ट तथा रुचिकर खाद्य पदार्थ है। इसमें 80% से अधिक जल होने के कारण पेट भरने से भूख शांत करता है।
(2) दूध तथा दूध के सभी पदार्थ आसानी से पच जाते है।
(3) एक लीटर दूध लगभग 800 कैलोरी ऊर्जा प्रदान करता है।
(4) दूध में सभी तत्व पर्याप्त मात्रा में होने के साथ-साथ ही उनमें आपस में उचित अनुपात अथवा संतुलन रहता है जिससे शरीर द्वारा उनका उपयोग अधिकतम होता है।
(5) दूध में विद्यमान पोषक पदार्थ ऐसी भौतिक अवस्था में मौजूद रहते है जिससे उन्हें पाचन तन्त्र द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है।
(6) दूध एक मृदु तथा हल्का आहार है जिसे नवजात शिशु, बच्चे, प्रौढ़ बूढ़े तथा स्तन पान कराने वाली एवं गर्भवती महिलाएं एवं रोगी भी सुचारू रूप से उपयोग कर सकते है।
(7) दूध में ऐसी प्रोटीन भी अच्छी मात्रा में पाई जाती है जिनसे शरीर को बीमारियों से लड़ने की क्षमता मौजूद होती है।
(8) दूध एवं दूध से बने कुछ पदार्थो जैसे दही एवं योगहर्ट में कुछ ऐसे तत्व होते है जिनके लगातार उपयोग करने से मनुष्यों की औसत आयु बढ़ जाती है।
दूध की खाद्य महत्ता का उपयोग अधिकतम उस समय होता है जब उसको अन्य प्रकार के भोजन के साथ ग्रहण किया जाता है। परीक्षणों से यह सिद्ध किया जा चुका है कि दूध पाने वाले छात्रों के शरीर भार तथा ऊँचाई में अधिक वृद्धि होती है। यह भी पाया गया है की लगातार दूध का उपयोग करने वाले बच्चों का मानसिक विकास भी अधिक होता है।
दूध की आहार के रूप में महत्ता इसी बात से लगाई जा सकती है की नवजात शिशु को यदि लगातार मानव दूध पर लगभग 6 महीने तक रखा जाए तब भी उसकी बढ़वार एवं वृद्धि काफी अच्छी होती है। आजकल लगभग सभी चिकित्सक इसी बात की सलाह नवजात शिशुओं के लिए दे रहे है। हाँ यह जरुर है की उम्र बढ़ने के बाद केवल दूध ही शरीर की पूरी आवश्यकताओं की पूर्ति नही कर पाता है। एक पांच वर्ष के बालक को प्रति दिन आधा लीटर दूध देने से उसकी 25% खाद्य ऊर्जा, 90% कैल्सियम तथा राइबोफलेविन विटामिन, तथा 33% विटामिन एवं विटामिन थाइमिन (बी 1) की पूर्ति होती है। जैसा की पहले भी बताया गया है दूध में लौह, तांबा तथा निकोटिनिक अम्ल की मात्रा आवश्यकता से कम होती है।
दूध के संगठन को दृष्टिगत रखते हुए सुगमता से यह गणना की जा सकती है की किसी वर्ग विशेष मानव को दूध की कितनी मात्रा से इन तत्वों की आपूर्ति की जा सकती है।
उपरोक्त आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु साधारणत: काम में आने वाले एक लीटर दूध से मिलने वाले पोषक अवयवो की मात्रा तालिका नं. 1 में दी गई है।
तालिका 1. सामान्य दूध में उपस्थित विभिन्न अवयवो की मात्रा
पोषक पदार्थ |
मात्रा प्रति किलोग्राम दूध |
जल (ग्राम) |
870 |
कुल ठोस पदार्थ (ग्राम) |
125 |
वसा (ग्राम) |
41 |
लैक्टोज (ग्राम) |
45 |
प्रोटीन (ग्राम) |
32 |
खनिज पदार्थ (ग्राम) |
7 |
कैल्सियम (मिग्राम) |
1490 |
फास्फोरस (मिग्राम) |
960 |
विटामिन ए (इ.यू.) |
1180 |
विटामिन बी 1 (माइक्रोग्राम) |
550 |
रिवोफ़लेविन (माइक्रो ग्राम) |
1670 |
निकोटिनिक अम्ल (माइक्रोग्राम) |
960 |
बायोटिक (माइक्रोग्राम) |
290 |
पैन्टोथेनिक अम्ल (माइक्रोग्राम) |
2020 |
फोलिक अम्ल (माइक्रोग्राम) |
1610 |
विटामिन बी 12 (माइक्रोग्राम) |
1.5 |
विटामिन सी (मिग्राम) |
1.4 |
यदि हम तालिका 1 का अवलोकन तालिका 1 के संदर्भ में करे तो यह पाएंगे की दूध में ऐसे और इतने मात्रा में तत्व है कि वे मानव पोषण की अधिकांश आवश्यकताओं को काफी हद तक कर सकते है यह पाया गया है की दूध एक ऐसा पदार्थ है जो शरीर की आवश्यकता के लिए प्रोटीन, कैल्सियम, फास्फोरस और राइबोफलेविन की अच्छी मात्रा प्रदान कर सकता है।
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अन्वेषणों के आधार पर यह पाया गया है कि यदि दूध की कुल पोषण क्षमता 100 मान ली जाए तब उसका योगदान मानव पोषण में विभिन्न तत्वों के लिए निम्नलिखित अनुपात में होगा।
तालिका 2.
तत्व |
कुल पोषण क्षमता का प्रतिशत |
प्रोटीन |
63.1 |
कैल्सियम |
7.6 |
वसा |
6.2 |
विटामिन बी 2 |
5.0 |
विटामिन बी 12 |
4.0 |
दूध शर्करा |
2.0 |
अन्य तत्वों के लिए |
11.7 |
|
100.0% |
किसी भी खाद्य पदार्थ का पौषनिक मान उसमें विद्यमान विभिन्न अवयवो तथा घटकों के पौषनिक मान पर निर्भर करता है। दूध के पौषनिक मान पर प्रभाव डालने दूध में उपस्थित विभिन्न अवयवो के घटकों की विशिष्ट महत्ता निम्नवत वर्णित है।
जल
दूध में उपस्थित जल का प्रत्यक्ष रूप से कोई पौष्टिक उपयोग दिखाई नही पड़ता है फिर भी दूध में जल की लगभग 80-87% उपस्थिति इसकी उपयोगिता को दर्शाती है। जल जीवन सम्बन्धित समस्त क्रियाओं के ली आवश्यक पदार्थ है। यह एक अच्छा विलायक है जो ठोस पदार्थो को सूक्ष्म कणों के रूप में विलयन अथवा निलम्बन में कायम रखता है। इस प्रकार बिना चबाए हुए पोषक तत्वों को यह सुगमता से उपलब्ध कराता है। इसका दूसरा गुण दूध को तनु करके रखना है। दूध के ठोस पदार्थो का अकेले आहार बहुत अधिक सान्द्र होता है। परन्तु जल की उपस्थिति दूध को काफी स्थूल पदार्थ बना देती है। जिससे पेट भरने के कारण भूख शांत होकर संतुष्टि मिलती है।
दुग्ध वसा
दूध वसा मानव पोषण में काफी कार्य करती है। मुख्य कार्य निम्नवत है।
(1) यह ऊर्जा का एक महत्व पूर्ण श्रोत है।
(2) दूध में पाए जाने वाले आवश्यक वसीय अम्लो का मानव शरीर में काफी उपयोग होता है।
(3) इसमें पाए जाने वाले स्टेराल शरीर के लिए हार्मोन्स बनाते है।
(4) वसा का दिल की बीमारियों से काफी सम्बन्ध पाया गया है।
(5) दूध में उपस्थित कम अणुभार वाली वसीय अमलें पाचन तन्त्र से कैल्सियम के अवशोषण में वृद्धि करती है।
(6) दुग्ध वसा, वसा घुलनशील विटामिन की भी आपूर्ति शरीर को करता है।
(7) दूध की वसा दूध से बनने वाले पदार्थो में हमेशा वांछनीय या अवांछनीय गंध प्रदान करते है।
(8) चूँकि दूध वसा शारीरिक तापमान (37 डिग्री सें.) पर हमेशा फैली हुई दशा में रहती है उस तापक्रम पर उसकी पचनशीलता अन्य किस्म की वसाओं से ज्यादा होती है।
(9) वसा दूध में सूक्ष्म गोलिकाओं के रूप में रहती है। जिसकी वजह से पाचन तंत्रों में किण्वन क्रिया को ज्यादा धरातल क्षेत्र मिलता है इसी वजह से यह जल्दी पच जाती है।
वसा ऊर्जा का अच्छा साधन है। प्रोटीन एवं शर्करा की अपेक्षा दो गुना से ज्यादा ऊर्जा प्रतिग्राम वसा प्राप्त होती है। 5 प्रतिशत वसा वाले एक लीटर दूध से लगभग 450 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। आवश्यक वसीय अम्ल जैसे लिनोलिक अम्ल शरीर द्वारा नही बनाया जा सकता है। इसीलिए आहार में इसकी उपस्थिति आवश्यक है। दूध वसा इसका अच्छा श्रोत है। ये आवश्यक अम्ल शरीर के कई तंत्रों की बनावट के अंग होते है। कई वैज्ञानिकों को तो यहाँ तक कहना है की शरीर के लिए कुल ऊर्जा का 1-3 प्रतिशत आवश्यक वसीय अम्लो द्वारा प्रदान की जानी चाहिए।
दूध वसा में पाए जाने वाला स्टेराल जिसमें कोलेस्ट्राल मुख्य है की भी मानव पोषण में काफी उपयोगिता है। इससे विभिन्न किस्मों के हार्मोन्स बनने में सहायता मिलती है। विटामिन डी की भी संरचना इसी द्वारा होती है। विभिन्न कोशिकाओं की बनावट में भी इसे पाया गया है।
कुछ लोगों ने इस बात को पूरी तरह से मान लिया है कि जहां कही भी आहार में कोलेस्ट्राल है, उससे दिल की बीमारी हो जाती है, चूँकि एथ्रोस्क्लोरेसिस (दिल की एक बीमारी) के समय शिराओं में एकत्रित वसा में कोलेस्ट्राल ज्यादा मात्रा में पाया जाता है इसलिए कुछ वैज्ञानिको के लिए इस निष्कर्ष पर पहुंचना एक स्वाभाविक बात थी। लेकिन इस समस्या का सही हल अभी तक भी नही पाया जा सकता है। इसलिए यह सोचकर की दूध में संतृप्ति वसा अम्ल एवं कोलेस्ट्राल पाए जाते है इसका सेवन नही करना चाहिए। यह गलत बात है चूँकि दूध में कोलेस्ट्राल की मात्रा केवल 12 मिग्रा. प्रतिशत होती है। इसके सेवन से नही डरना चाहिए। यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य बात है कि कोलेस्ट्राल शरीर में भी बनता है इसलिए हम यह सुझाव दे सकते है कि उन व्यक्तियों को जिनको इस सन्दर्भ में कुछ आशंका है उन्हें चाहिए की इस पर बगैर ध्यान दिए हुए कि उनके आहार में कितना कोलेस्ट्राल है, इस पर ज्यादा ध्यान दें की उनके आहार में कुल कितनी ऊर्जा है। ऊर्जा जरूरत से ज्यादा होनी चाहिए।
दुग्ध प्रोटीन
दूध की कुछ पोषण क्षमता में दुग्ध प्रोटीन की पोषण क्षमता का योगदान 63.0 प्रतिशत तक है। इससे यह पता चलता है कि दूध में अच्छी गुणवत्ता वाली ज्यादा प्रोटीन है। किसी भी खाद्य पदार्थ में कुल कितनी प्रोटीन है उतने ज्यादा माने नही रखती जितना कि उस खाद्य पदार्थ में कितनी ऊँची गुणवत्ता वाली प्रोटीन है। ऊँची गुणवत्ता से मतलब होता है कि उसमें कितने आवश्यक एमिनो अम्ल है और उसकी शरीर के लिए उपयोगिता (बायलोजिकल मान) कितनी है? एक अच्छी किस्म की प्रोटीन में सभी आवश्यक एमिनो अम्ल अच्छी मात्रा में होने चाहिए। ऐसा होने पर उसकी बायलोजिकल मान भी अधिक हो जाता है।
दूध की प्रोटीन में ऐसा पाया गया है कि वे सभी आवश्यक एमिनो अम्ल से भरपूर है। ये एमिनो अम्ल शरीर में किसी क्रिया से नही बन पाते। अत: इनका आहार में रहना आवश्यक है। शरीर के लिए 10 एमिनो अम्ल की आवश्यकता होती है और चूँकि अन्य अम्लो के साथ-साथ ये दसो एमिनो अम्ल दूध में प्रचुर मात्रा में पाए जाते है इसलिए दूध के प्रोटीन की गुणवत्ता अच्छी होती है। नीचे दी गई तालिका 3 में इसका पूरा विवरण दिया हुआ है।
तालिका 3. आवश्यक एमिनो अम्ल, उनकी आवश्यकता एवं कुछ खाद्य पदार्थो में उनकी मात्रा
एमिनो अम्ल |
वयस्क मानव की आवश्यकता (मिग्रा.) |
मात्रा मिग्रा./100 ग्राम |
|||
|
|
अंडा |
दूध |
मांस |
मक्का |
आर्जिनिन |
- |
700 |
122 |
1220 |
380 |
हिस्टीडीन |
- |
240 |
72 |
620 |
200 |
थ्रिआनिन |
500 |
560 |
152 |
845 |
300 |
वैलीन |
800 |
790 |
233 |
975 |
425 |
ल्युसिन |
1100 |
1015 |
398 |
1480 |
1200 |
आइसोल्युसिन |
700 |
700 |
221 |
980 |
510 |
लाइसिन |
800 |
690 |
243 |
1630 |
180 |
मिथिओनिन |
1100 |
360 |
93 |
515 |
250 |
फिनाइलएलनिन |
1100 |
640 |
181 |
740 |
400 |
ट्रिप्टोफेन |
250 |
130 |
46 |
300 |
48 |
किसी भी प्रोटीन में कितने आवश्यक एमिनो अम्ल है वह तो उस प्रोटीन की गुणवत्ता को बताते है लेकिन उन सबसे ज्यादा महत्व यह रखता है कि उस प्रोटीन का शरीर कितना उपयोग कर सकती है। इस सबकी जानकारी के लिए दो प्रमुख कारक है जो किसी प्रोटीन की गुणवत्ता को अच्छी प्रकार दर्शा सकते है वे कारक है – (1) बायलोजिकल मात्रा एवं (2) एमिनो अम्ल सूचकांक। जिस प्रोटीन में इनकी मात्रा अधिक होगी वह उतनी ही अच्छी मानी जाएगी। इसी सन्दर्भ में दूध की बायलोजिकल मात्रा एवं एमिनो अम्ल सूचकांक निम्न तालिका नं. 4 में दर्शाए गए है।
तालिका 4. कुछ ख़ास खाद्य पदार्थो के एमिनो अम्ल सूचकांक एवं बायलोजिकल मात्रा
खाद्य पदार्थ |
आवश्यक एमिनो |
बायलोजिकल मात्रा |
|
अम्ल सूचकांक |
आंकी गई |
पाई गई |
|
अंडा (पूरा) |
100 |
97 |
96 |
दूध |
88 |
84 |
90 |
काटेज चीज |
86 |
82 |
- |
केसिन |
88 |
84 |
72 |
लैक्टाल्युमिन |
89 |
85 |
84 |
मांस |
84 |
80 |
76 |
मछली |
80 |
76 |
85 |
जिलेटिन |
25 |
16 |
25 |
मटर |
64 |
58 |
- |
सोयाबीन |
83 |
78 |
75 |
मक्का |
67 |
61 |
62 |
पावरोटी |
64 |
58 |
- |
आटा |
61 |
54 |
52 |
ईस्ट |
83 |
79 |
- |
तालिका नं.3 से साफ़ जाहिर होता है कि दूध प्रोटीन की दृष्टि से सर्वोत्तम आहार है चूँकि ऊपर दी गई सभी मात्राएँ अंडे को एक मूल पदार्थ मानकर निकाली गई है इसलिए अंडे को पूरे नम्बर दिए गये है शेष अन्य पदार्थो की तुलना में दूध प्रोटीन नम्बर एक पोजीशन पर पाई गई है यदि हम तालिका 2 का अवलोकन करे तो पाएंगे कि मक्के में कुछ आवश्यक एमिनो अम्लो की मात्रा दूध से ज्यादा है पर उसका एमिनो अम्ल सूचकांक 67 तथा बायलोजिकल मात्रा केवल 62 है। जबकि दूध में इन मानको की संख्या क्रमश: 88 तथा 90 है। इस प्रकार दूध प्रोटीन की गुणवत्ता अन्य सभी खाद्य पदार्थो से ज्यादा है सिद्ध हो जाता है।
दूध शर्करा
दूध की मुख्य शर्करा लैक्टोज है। इसका मुख्य कार्य भी वसा की तरह ही ऊर्जा शरीर के लिए पैदा करना है। अन्य डाइसैचराइड की तरह बिना ल्गूकोज एवं गैलेक्टोज में टूटे यह आतो द्वारा शरीर में अवशोषित नही हो पाता है। इसलिए यह शीघ्रातिशीघ्र पच नही पाता है और आंतो के आखिरी हिस्सों में आकर शरीर के लिए कई उपयोगी कार्य करता है। इसकी उपयोगिता निम्नवत है:
खनिज पदार्थ
दूध में उपस्थित खनिज पदार्थ शरीर के पोषण में काफी उपयोगी है। इनकी उपयोगिता निम्नवत बिन्दुओं से आंकी जा सकती है।
दूध में सभी प्रमुख खनिज पदार्थ जैसे कैल्सियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, सोडियम, क्लोराइड, पोटैशियम एवं सल्फर शरीर की आवश्यकता के अनुसार अच्छी मात्रा में पाए जाते है। हाँ केवल लोहा जो इस श्रेणी का खनिज है आवश्यकता से कम मात्रा में दूध में पाया जाता है। दूसरी श्रेणी (माइनर) के खनिजों में जिंक, आयोडीन, मैगनीज, फ़्लोरिन, मालीविडिनम एवं कोवाल्ट भी शरीर की आवश्यकता अनुरूप अच्छी मात्रा में दूध में पाए जाते है केवल तांबा को थोड़ी बहुत कमी दूध में पाई जाती है। इसी प्रकार सूक्ष्म श्रेणी के सभी खनिज लवण भी आवश्यकता के अनुरूप ही दूध में पाए जाते है हाँ इतना जरुर है की इनकी मात्रा मानव दूध में गाय के दूध से अधिक होती है।
दूध के विटामिन
विटामिन ऐसे कार्बनिक पदार्थ है जो कि शरीर द्वारा नही बनाए जा सकते है। इसलिए आहार में इनका मिलाया जाना आवश्यक है संयोग वस दूध में सभी आवश्यक विटामिन्स प्रचुर मात्रा में मिलते है। दूध को आहार का एक हिस्सा बनाने पर शरीर की सभी विटामिन की आवश्यकताएं लगभग पूरी हो जाती है।
वसा विलेय तथा जल विलेय विटामिन किसी अन्य खाद्य पदार्थ में इतनी अधिक मात्रा में नही पाए जाते है जितना की दूध में। इसलिए विटामिन की उपस्थिति से दूध के पोषक मान में काफी बढ़ोत्तरी होती है। इनसे न तो शरीर को कोई ऊर्जा मिलती है और न ही शरीर की रचनात्मक इकाईयों में इनका उपयोग होता है। परन्तु शरीर की सामान्य वृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य तथा प्रजनन क्षमता को सुचारू रूप से चलते रहने के लिए इनकी विशेष आवश्यकता होती है। विटामिन विभिन्न उपाचयन की क्रियाओं को नियमित करने में सहयोग देते है। इनके अभाव से शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग लक्षण प्रगट होने लगते है जैसे – रतौधी, रिकेट्स, खून का न जमना, बांझपन स्कर्वी एवं चर्म रोग इत्यादि।
तालिका 5 में दी गई गाय तथा मानव दूध में उपस्थित विटामिन्स की मात्रा एवं शरीर के लिए उनकी आवश्यकता का तुलनात्मक अध्ययन काफी महत्वपूर्ण है।
तालिका 5. गाय एवं मानव के दूध में विटामिन्स की मात्रा
विटामिन मात्रा (मिग्रा.) |
प्रति लीटर दूध आवश्यकता मिग्रा. प्रतिदिन |
|||
|
गाय |
मानव |
बच्चे |
प्रौढ़ |
विटामिन ‘ए’ |
0.4 |
0.60 |
0.4 |
1.00 |
कैरोटीन |
0.20 |
0.40 |
- |
- |
विटामिन डी |
0.0006 |
0.0006 |
0.01 |
0.05 |
विटामिन ई |
0.98 |
6.64 |
3.0 |
10.0 |
थायमिन बी 1 |
0.44 |
0.16 |
0.30 |
1.40 |
राइबोफलेविन बी 2 |
1.75 |
0.36 |
0.40 |
1.60 |
नाइसिन |
0.94 |
1.47 |
6.0 |
18.0 |
पैन्टाथेनिक अम्ल |
3.46 |
1.84 |
2.0 |
- |
विटामिन बी 6 |
0.64 |
0.10 |
0.3 |
2.20 |
बायोटीन |
0.031 |
0.008 |
0.035 |
- |
फोलिक अम्ल |
0.050 |
0.050 |
0.030 |
0.40 |
विटामिन बी 12 |
0.0043 |
0.003 |
0.0005 |
0.003 |
विटामिन सी |
2.1 |
43.0 |
35.0 |
60.0 |
कोलीन |
121.0 |
90.0 |
- |
- |
मायोइनासिटाल |
50.0 |
330.0 |
- |
- |
पैरा एमिनो |
0.10 |
- |
- |
- |
बेनजोइक अम्ल |
|
|
|
|
उपरोक्त तालिका का अध्ययन करने पर पाया जा सकता है कि दूध में लगभग सभी विटामिन इतनी मात्रा में है की प्रयोगशाला में उनकी मात्रा की जांच की जा सकती है। सिवाय विटामिन के जिसकी मात्रा दूध में आसानी से ज्ञात नही की जा सकती है।
वर्षो से मनुष्य विभिन्न प्रकार से उपचारित कर दूध तथा दूध से बने पदार्थो का उपयोग करता आया है। इन उपचारों में सबसे मुख्य उपचार दूध का उपावलना है जिससे की दूध में उपस्थित जीवाणुओं तथा किण्वक नष्ट होकर दूध को संरक्षित कर देते है। इसी काम में औद्योगिक स्तर पर दूध का पास्तुरीकरण निर्जमीकरण किया जाता है। सावधानी पूर्वक पास्तुरीकरण करने से 10 प्रतिशत थायमिन और 20 प्रतिशत एस्कार्बिक अम्ल नष्ट हो जाते है। निर्जमीकरण करने पर संपूर्ण एककार्बिक अम्ल यानि विटामिन सी तथा 50 प्रतिशत विटामिन बी नष्ट हो जाता है। दूध में उपस्थित सिरम प्रोटीन का विकृतिकरण हो जाता है। इसी वजह से इसकी बायलाजिकल मान कम हो जाता है।
दूध एक सम्पूर्ण आहार है क्योंकि उससे शरीर को विभिन्न पोषक तत्व प्राप्त होते है। यथा वसा, ऊर्जा, अमीनों अम्ल, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण तथा विटामिन्स उपस्थित होते है। दूध में उपस्थित अमीनो अम्ल पूरी तरीके से पच जाते है। एक लीटर दूध 800 कैलोरी ऊर्जा प्रदान करता है। विभिन्न अवयवो की उपयोगिता व मानव पोषण में उनकी महत्ता पर इकाई में प्रकाश डाला गया है।
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 3/2/2020
अगस्त माह में बोई जाने वाली फसलों के बारे में जानक...
इस पृष्ठ में उत्पादन बढ़ाने एवं नस्ल सुधार में भ्रू...
अक्टूबर माह में बोई जाने वाली फसलों के बारे में जा...
इस पृष्ठ में कृत्रिम गर्भाधान वरदान क्या है, इसकी ...