অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

बछड़ी व कटड़ी ही आधुनिक डेरी फार्म की नींव

परिचय

गाँव में पशुपालक (अधिकतर) जैसे ही छः माह की आयु की (बछड़ी/कटड़ी) हो जाए उसे दूध आदि पर निर्भर रहना छोड़ देता है, इनको पूरा स्वच्छ एवं ताजा आहार नहीं देता है और दुसरे पशुओं का बचा हुआ आहार देता है जिससे उस उम्र में इसकी बढ़ोत्तरी कम होती है और श्रेणी के बछड़े और बछड़ी अपनी वयस्क अवस्था में देर से पहुंचने हैं एवं मादकता के कम लक्षण दर्शाते हैं। मादा पशु, जिसमें  अनुवांशकीय दोष नहीं है (विशेषकर जन्न अंग दोष जैसा कि डिम्बनली का बंद होना, एक गर्भाशय या बच्चेदानी का न होना आदि) अपने जीवन काल में बच्चा पैदा करने के साथ-साथ दूध में सक्षम होती है। मादा पशु से प्राप्त मादा बच्चे ही आधुनिक डेरी फार्म की नींव है।

बछड़ी व कटड़ी ही आधुनिक डेरी फार्म की नींव के लिए पशुपालक को निम्न बातें अपानानी चाहिए

  1. मादा पशु उसके गर्भकाल के अंतिम दो माह में (वातावरण की दशानुसार) उचित पालन पोषण करना चाहिए क्योंकि इस काल में दिया गया आहार उसके अंदर जीवित बच्चे के स्वस्थ्य एवं बढ़ोत्तरी में सहायक होता है और पशुपालक को भी एक स्वस्थ तथा उचित शारीरिक भार वाला बच्चा मिलेगा।
  2. नवजात बच्चे के जीवन के प्रथम तीन महीने बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि इस काल में अधिकतर छोटे बच्चें रोगग्रस्त होते हैं और मृत्यु दर अधिक होती है। रोग ग्रस्त बच्चे ठीक होने के बाद उसकी शरीरिक वृद्धि नहीं होती है। इसलिए इस काल में नवजात  बच्चे को उसके भार के अनुसार खीस पिलाएं तथा नाभि नली का उचित उपचार करें। जिससे नवजात बच्चे को पेट विकार, नाभि रोग एवं इससे सम्बन्धित अन्य रोग, न लगें।
  3. नवजात बछड़े की शरीरिक बढ़ोत्तरी के लिए अधिक मात्रा में प्रोटीन तथा खनिज लवण भी देने चाहिए। प्रत्येक बढ़ोत्तरी करने वाले  (बछड़ी/कटड़ी) का औसत शारीरिक भार वृद्धि 400-500 ग्राम प्रतिदिन होनी चाहिए। तब ही सही समय पर ये (बछड़ी/कटड़ी) अपने यौवन तथा परिपक्व दशा में पहुंचकर (270 किलोग्राम भार) गर्भाधान करने योग्य होगी। इसलिए पशुपालक को चाहिए कि वह अपने बढ़ोत्तरी कर रहे  (बछड़ी/कटड़ी) को संतुलित आहार के साथ-साथ उसको कम से कम एक किग्रा. दाना (संतुलित) अवश्य खिलाएं। इससे इनकी बढ़ोत्तरी अच्छी होगी एवं पाइका रोग (मिट्टी आदि का खाना) नहीं होगा।
  4. प्रत्येक (बछड़ी/कटड़ी) को समय लिए संक्रामक रोगों से बचाव के टीकाकरण एंव परजीवियों की रोकथाम हेतु दवाइयां देनी चाहिए, जिससे इस उम्र में  शारीरिक वृद्धि ठीक हो सके।
  5. वातावरण की दशा के अनुसार (बछड़ी/कटड़ी) का सही आवास एवं प्रबन्धन होना चाहिए, जिससे उसे किसी प्रकार से कुप्रभाव नहीं पद सके,।
  6. शारीरिक रूप से युवा एवं परिपक्वता में मादकता होने पर लक्षण को जांचकर, गर्भाधान कराना चाहिए। यदि पशुपालक को (बछड़ी/कटड़ी) में किसी प्रकार का जनन अंगीय दोष का पता लगे, इसका उपचार कुशल पशुचिकित्सक द्वारा कराएं।

परिपक्व (बछड़ी/कटड़यां यदि प्राकृतिक तौर पर गर्भाधान नहीं करते हैं तो उनका पशु चिकित्सक विशेषज्ञ द्वारा परिक्षण करवाएं तथा प्रजनन की आधुनिक तकनीकियाँ अपनाकर गाभिन कराएं।

लेखन: एन.एस.सिरोही एवं खजान सिंह

 

स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार

 

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate