गांवों के अधिकतर परिवारों में दुधारू पशु पाले जाते हैं। हालांकि दुधारू पशु पालना एक बात है और स्वच्छ दुग्ध उत्पादन अलग। स्वच्छ दुग्ध उत्पादन से हम दूध को जल्दी खराब होने से बचा सकते हैं जिनका सीधा सम्बन्ध आर्थिक लाभ से है।
स्वच्छ दूध मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होता है, अर्थात इसके सेवन से बीमारी को कोई खतरा नहीं रहता। दूध से फैलने वाली बीमारियों में टी.बी., टाइफाईड, पैरा यइफाईड, अन्डूलेन्टिंग फीवर, पेचिश तथा गैस्ट्रोइन्टेराइटिस प्रमुख हैं। इनमें से कुछ के जीवाणु दुधारू पशु के थन से सीधे आ जाते हैं तथा कुछ दूध मल अथवा मूत्र के प्रदूषण द्वारा तथा कुछ दूध निकालने वाले व्यक्ति द्वारा दूध में आते हैं।
स्वच्छ दूध का अर्थ दूध में बाहरी पदार्थों जैसे धूल, मिट्टी, गोबर, बाल, मक्खी आदि के न होने से ही नहीं बल्कि बीमारी फैलाने वाले एवं जीवाणुओं की अनुपस्थिति से भी होता है। स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए बहुत सी बातें, जैसे स्वच्छ वातावरण व दुग्धशाला, साफ बर्तन, स्वच्छ एवं स्वस्थ पशु, स्वच्छ दूध दुहने का तरीका एवं स्वच्छ दूधिया होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त दूध दवाईयों के बचे अंश, कीटाणुओं आदि की सुरक्षा के लिए प्रयुक्त रसायनों के अवशेष, हारमोन के अवशेष, आदि से भी मुक्त हो।
दूध दुहने का बर्तन स्टेनलेस स्टील का होना अच्छा है। अन्यथा एल्यूमीनियम या गैलवेनाइज्ड शीट का हो। पीतल और तांबे का बर्तन बिल्कुल इस्तेमाल न करें। खुली बाल्टी के स्थान पर गुम्बदाकार छत वाली बाल्टी में दूध दुहना चाहिए, क्योंकि जीवाणु वातावरण, इसमें बाहरी गन्दगी तथा पशु के शरीर के बाल नहीं गिरते। दूध दूहने के लिए साफ बर्तन का उपयोग करना चाहिए। गन्दा बर्तन बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं का मुख्य स्रोत होते हैं। दूध दुहने के पश्चात बर्तन को साबुन/सौड़ा व गर्म पानी से धोना चाहिए। अगर बर्तन राख से साफ करना हो तो बर्तन को दो-तीन बार पानी से अच्छी तरह खंगाल लेना चाहिए। बर्तन को धोकर सुखाना अतिआवश्यक है। साफ बर्तन को पलट कर रखना चाहिए। हो सके तो बर्तन को तेज धूप में कम से कम तीन घंटे अवश्य रखे ताकि वह कीटाणु रहित हो जाए। बर्तन धोने के लिए साफ पानी का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
लेखन: अनुश्री मेश्राम, पुष्पराज शिवहरे, अर्चना वर्मा, ए.के. गुप्ता एवं अजय प्रताप सिंह
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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