मुर्गियों की वृद्धि, शारीरिक विकास और अंडा उत्पादन में पोषक आहार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। खनिज लवणों और विटामिनों का इनके शारीरिक स्वास्थ्य को कायम रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान है। इनकी कमी से शारीरिक विकास कम हो जाता है। तथा मुर्गियों की उत्पादन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। खनिज लवणों की कमी से इन्हें कई प्रकार के रोग भी हो जाते हैं। इन रोगों का कारण जानकर उचित उपचार किया जा सकता है।
खनिज लवण मुर्गियों के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये शरीर के साथ-साथ मुर्गियों की वृद्धि, विकास एवं उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | इनकी कमी से शारीरिक विकास तथा मुर्गियों की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। इसके साथ-साथ खनिज लवणों की कमी से विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं:
मुर्गियों में पाया जाने वाला यह एक महत्वपूर्ण दोष होता है। इसमें मुर्गियां या तो अपने अंडों को अथवा दूसरी मुर्गियों के अंडों को तोड़ती रहती हैं। कैल्शियम की कमी होने पर मुर्गियां इस प्रकार के दोष से ग्रसित होती हैं।
इससे प्रभावित मुर्गियों को कैल्शियम की आधी से एक टिकिया सुबह-शाम देनी चाहिए। प्रभावित मुर्गियों को ऑस्टोकैल्शियम सीरप की आधी से एक चाय चम्मच मात्रा को दिन में 2-3 बार देना चाहिए| मुर्गियों को दाने के साथ –साथ कैल्शियमयुक्त खनिज मिश्रण जैसे कोन्सीमिन,चिलेटेड ऐग्रीमिन फोर्ट, डासमिन, वेस्टमिन गोल्ड इत्यादि में से किसी एक की 25-30 ग्राम मात्रा प्रति 10 कि.ग्रा. दाने में मिलाकर देते रहना चाहिए। प्रभावित मुर्गियों को दाने में सीतुहा, सीप इत्यादि के चूर्ण को देने से लाभ मिलता है। मुर्गियों की इस बुरी आदत को छुड़ाने के लिए प्लास्टिक या चीनी मिट्टी से बने अंडे को मुर्गियों के सामने रखना चाहिए और चोंच मारने पर चोट लगने के कारण मुर्गियां इस आदत को धीरे-धीरे छोड़ देंगी।
खनिज तत्व कैल्शियम की कमी से प्रभावित मुर्गियां पिलपिले एवं मुलायम अंडे देने लगती हैं।अंडों का छिलका पतला एवं लचीला हो जाता है और उनका कोई मूल्य नहीं मिलता है। इसके कारण मुर्गीपालक को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है।
यह मुख्य रूप से अंडे देने वाले मुर्गियों में कैल्शियम की कमी के कारण होता है। इसकी कमी के कारण अंडों का ऊपरी भाग पतला होकर पिलपिला हो जाता है।
प्रभावित मुर्गियों को कैल्शियम की 1/2-1 टिकिया दिन में दो बार देनी चाहिए।ओस्टोकैल्शियम सीरप की 1/2-1 चाय चम्मच की मात्रा दिन में दो बार देनी चाहिए।मुर्गियों के दाने में कैल्शियमयुक्त खनिज मिश्रण जैसे कोन्सीमिन टोटाविट स्टांग डोसमिन, वेस्टमीन गोल्ड इत्यादि की 25-30 ग्राम मात्रा प्रति 10 कि.ग्रा. दाने में मिलाकर देते रहना चाहिए। वेटकाल बी, कॉन्सीटोन की 20-100 मि.ली मात्रा पीने के पानी के साथ प्रति 10 मुर्गियों को देना चाहिए| मुर्गियों में काल-डी रूबरा की 0.5 मि.ली. मात्रा प्रति पक्षी को प्रतिदिन देना लाभदायक होता है।
यह मुर्गियों में होने वाली एक बुरी आदत है। इससे ग्रसित मुर्गियां कभी-कभी दूसरी मुर्गियों के पंखों को, घुटने को, गुदा को तथा अन्य दूसरे भागों को नोचने का काम करती हैं, जिसके कारण मुर्गियां घायल हो जाती हैं। इससे ग्रसित मुर्गियां साथ रहने वाली अन्य दूसरी मुर्गियों को इससे प्रभावित कर देती हैं |
कारण
इसका प्रमुख कारण प्रबंधन में अव्यवस्था है। यह मुख्य रूप से मुर्गियों की अधिक संख्या होने और खाने एवं पानी पीने के लिए बर्तनों की उचित व्यवस्था न होने पर होती है। मुर्गियों को उचित राशन नहीं मिलने तथा पोषक तत्वों की कमी होने या प्रकाश की उचित व्यवस्था न होने पर मुर्गियों में यह बुरी आदत आ जाती है।
उपचार
सबसे पहले प्रभावित मुर्गियों को अलग रखना चाहिए तथा नमक खिलाना चाहिए।प्रभावित मुर्गियों को सोडियम क्लोराइड की आधी टिकिया सुबह-शाम देने से यह आदत छूट जाती है। मुर्गियों के राशन में नमक की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। प्रभावित मुर्गियों की चोंच को काटकर थोड़ा मोटा कर देना चाहिए।मुर्गियों को इससे बचाए रखने के लिए उचित पोषण एवं प्रबंध आवश्यक है। मुर्गियों को काल-डी रूबरा की 10 मि.ली. मात्रा प्रति 100 चूजों को, 20 मि.ली. मात्रा ब्रॉयलरों को तथा 50 मि.ली. मात्रा प्रति 100 मुर्गियों मेंदिन में दो बार देने से लाभ मिलता है।
यह मुर्गियों में विटामिन बी-12, या मैंगनीज की कमी से होने वाली बीमारी होती है | यह रोग मुख्य रूप से तीन से चार महीने की उम्र की मुर्गियों में होता है। रोग से प्रभावित मुर्गियों की टांगें टेढ़ी हो जाती हैं, जिसके कारण वे लंगड़ाने लगती हैं।पैरों में सूजन आ जाती है तथा चलने में दर्द होता है।
उपचार
प्रभावित मुर्गियों को विटामिन-ए, कोन्सीमीन, टोटाविट स्ट्रांग या वेस्टमीन गोल्डकी 25 ग्राम मात्रा प्रति 18 कि.ग्रा. दाने के साथ मिलाकर देनी चाहिए।
मुर्गियों में विटामिन्स की कमी के कारण होने वाले प्रमुख रोग निम्नलिखित हैं:
विटामिन 'ए' की कमी के कारण मुर्गियों को रतौंधी रोग हो जाता है।प्रभावित मुर्गियों को दिखायी नहीं पड़ता है। आंखों में माड़ा पड़ जाता है और आंखें सफेद हो जाती हैं। इस विटामिन की कमी के कारण मुर्गियां सर्दी तथा जुकाम से ग्रसित हो जाती हैं | आंख तथा नाक से पानी बहता रहता है तथा आंख एवं नाक में सूजन आने लगती है | विटामिन 'ए' की कमी से ग्रसित छोटी मुर्गियों को चक्कर आने लगते हैं तथा ये गिर पड़ती हैं। इससे ग्रसित मुर्गियों को भूख कम लगती है। प्रभावित मुर्गियों का शारीरिक विकास रुक जाता है। विटामिन 'ए' की कमी से ग्रसित अंडे देने वाली मुर्गियों के अंडा उत्पादन में रोग के गिरावट आ जाती है। मुर्गियों के गुर्दा एवं मूत्र नलिकाओं में यूरिक एसिड जमा हो जाता है | विटामिन 'ए' की अधिक कमी होने पर मुर्गियों की मृत्यु हो जाती है।
उपचार
रोग के लक्षण
विटामिन बी, की कमी से ग्रसित मुर्गियों के पंख झड़ने लगते हैं। भूख कम हो जाती है, मुर्गियां अत्यधिक कमजोर हो जाती हैं। प्रभावित मुर्गियों की त्वचा खुरदरी हो जाती है तथा पैरों के जोड़ों में सूजन आ जाती है। राइबोफ्लेविन की कमी से प्रभावित मुर्गियों के पंजे टेढ़े हो जाते हैं, जिसे ‘कङ टो' के नाम से जाना जाता है। पैरों में लकवा हो जाता है, जिसके कारण पैर टेढ़े हो जाते हैं तथा पैरालिसिस से ग्रसित हो जाते हैं। इसकी कमी से प्रभावित चूजों की वृद्धि रुक जाती है। विटामिन बी2 की कमी लगातार बने रहने से मुर्गियां चलने-फिरने में असमर्थ हो जाती हैं। एक जगह पड़ी रहती हैं तथा अंत में भूख एवं पानी की कमी के कारण मुर्गियों की मृत्यु हो जाती है।
रोग का उपचार
विटामिन बी2 की कमी से प्रभावित मुर्गियों को विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स की 1/2 से 1 चम्मच मात्रा प्रत्येक मुर्गी को देनी चाहिए। इसकी कमी से ग्रसित मुर्गियों को विसोल-बी की 15-20 मि.ली. मात्रा प्रति 100 मुर्गियों को पानी के साथ देनी चाहिए। साथ ही साथ कान्सीमिन की 25 ग्राम मात्रा को 10 कि.ग्रा. दाने के साथ देते रहना चाहिए।
विटामिन 'डी' की कमी होने पर मुर्गियों का विकास रुक जाता है | चूजों की वृद्धि दर में गिरावट आ जाती है। प्रभावित मुर्गियों के अंडों के छिलके पतले होने लगते हैं।अंडों के उत्पादन में भारी गिरावट आ जाती है। मुर्गियों की हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं।तथा छोटी रह जाती हैं। इसकी कमी से प्रभावित मुर्गियों के पंख बहुत देर से निकलते हैं। विटामिन-डी मुर्गियों के शरीर के विकास में सहायक है।
उपचार
सामान्य रूप में विटामिन 'डी' धूप से मिलता है। अतः धूप का उचित प्रबंधकरना चाहिए। इसकी कमी से ग्रसित मुर्गियों को टी.एम. फोर्ट, विटामिक्स, कान्सीटोन,कान्सीमिन वीटासेप्ट इत्यादि दवाइयां देने से लाभ मिलता है।
इसकी कमी से ग्रसित मुर्गियों में कट लगने पर खून का थक्का बनाने की शक्ति क्षीण हो जाती है, जिसके कारण खून बहता रहता है।
उपचार
प्रभावित मुर्गियों को पोलकॉन की एक ग्राम मात्रा 10 कि.ग्रा. दाने में मिलाकर देते रहना चाहिए। इसकी कमी से ग्रसित मुर्गियों को कैपिलिन ओरल की एक टिकिया प्रतिदिन खिलाने से लाभ मिलता है। खून बहते रहने की अवस्था में क्रोमोस्टेट, स्टाइपलन या रेवीसी इत्यादि में से किसी एक की एक मि.ली. मात्रा की मांस में सूई लगानी चाहिए।
यह मुख्य रूप से 2-3 माह के चूजों को अधिक प्रभावित करता है। विटामिन 'ई' की कमी के कारण चूजों में उन्माद हो जाता है, जिसे उन्मादी चूजे (क्रेजी चिक) कहते हैं | इसकी कमी से ग्रसित चूजे इधर-उधर भागने-दौड़ने लगते हैं तथा लड़खड़ा कर चलते रहते हैं, अंत में गिर पड़ते हैं, आंख बन्द कर बैठे रहते हैं और 24 घंटे के अंदर इनकी मृत्यु हो जाती है।
उपचार
इसकी कमी से ग्रसित मुर्गियों को विटासेप्ट की 0.25 से 0.5 मि.ली. मात्रा की सूई मांस में सप्ताह में एक बार देनी चाहिए। प्रभावित चूजों को पोलकॉन की एक ग्राम मात्रा 10 कि.ग्रा. दाने में मिलाकर खिलाने से लाभ मिलता है। प्रभावित मुर्गियों को कोन्सीटोन लिक्विड पिलाने से भी लाभ मिलता है।
लेखन: के.पी. सिंह और प्रणीता सिंह
अंतिम बार संशोधित : 3/4/2020
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