অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

हस्तचालित औसाई यंत्र

पूर्व स्थिति

श्री दवान खरीम जी मेघालय जिले के एक छोटे किसान हैं। ये सब्जियों के साथ ही अपनी 1.5 एकड़ जमीन पर मुख्यतया धान उगाते हैं। इनकी 50 प्रतिशत जमीन समतल है और 50 प्रतिशत ढलानदार है। पूर्वोत्तर पहाड़ी क्षेत्रों में इसी तरह ‘पर्वतीय खेती’ की जाती है। धान के अच्छे उत्पादन के बावजूद श्री दवान को इससे फायदा नहीं होता था क्योंकि धान की पारम्परिक औसाई में कुछ अशुद्धियां रह जाती हैं और इसलिए बाजार में अच्छे दाम नहीं मिल पाते। तब वैज्ञानिकों की सलाह पर इन्होंने हस्त चालित औसाई यंत्र (हैण्ड ऑपरेटिड विन्नोवर) का प्रयोग किया जिससे औसाई आसान होने के साथ-साथ कमाई भी अच्छी होने लगी।

पारम्परिक औसाई

पारम्परिक धान औसाई में 5-6 मजदूरों की जरूरत होती है। लकड़ी के फट्टों पर 2 या 3 लोग धान फसल को कूटते हैं। फिर बड़े-बड़े टोकरों में धान इकट्ठा करके बांस फ्रेम पर बने प्लेटफार्म पर खड़े होकर एक व्यक्ति सिर के ऊपर इसे उठाकर धान की भूसी साफ करता है। कभी-कभी उस व्यक्ति को हवा के झोंके के लिए बांस के प्लेटफार्म पर लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है। इस कार्य में व्यक्ति को तेज हवा में अपना संतुलन बनाना पड़ता है। धान सफाई की यह क्रिया पूरी तरह हवा पर निर्भर होने के कारण मानसून या बेमौसमी बारिश में पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। इसके अलावा कुछ किसान दरांती, हंसिया, देसी हल, बांस का समतल करने वाला उपकरण और टोकरियों का प्रयोग विभिन्न कृषि कार्यों के लिए करते हैं। पुराने जमाने की इस औसाई तकनीक में धान की गुणवत्ता गिर जाती है, जिससे इसके कम दाम मिलते हैं।

हस्त चालित औसाई यंत्र (हैण्ड ऑपरेटिड विन्नोवर)

पूर्वोत्तर पहाड़ी क्षेत्र के लिए भा.कृ.अनु.प. अनुसंधान केन्द्र, बारापानी ने मेघालय में कुछ किसानों के सामने इसका प्रदर्शन किया ताकि वे सही समय पर धान की औसाई कर सकें। यह यंत्र असल में एक मशीन है। इसमें पंखे के ब्लेड, चेन और स्पोकेट लगे हैं, जिससे कम मेहनत से पंखे को तेज घुमाया जाता है। 29 कि.ग्रा. वजन के इस यंत्र के साथ दुर्घटना से बचाव के लिए फैन गार्ड लगे हैं।

अतिरिक्त कमाई

श्री दवान ने यह मशीन भा.कृ.अनु.प. संस्थान से मात्र 3,000 रु. मूल्य पर खरीदी। उन्होंने धान की दोबारा औसाई करके फर्क महसूस किया। इस बार उन्हें बेहतर गुणवत्ता के चावल के साथ अच्छी कीमत भी मिली। पारम्परिक तरीके से इसकी तुलना करने पर उनके घनिष्ठ मित्रों ने भी इस मशीन का प्रयोग किया। चावल की गुणवत्ता से सभी संतुष्ट थे। कुछ समय पश्चात यह समाचार सुनकर कि हस्तचालित औसाई यंत्र से कमाई बढ़ती है, साथी किसानों का बड़ा समूह उनके पास आया। श्री दवान ने अब यह मशीन किराये पर देनी शुरू कर दी और वर्ष 2011-12 से 100 रु. प्रत्येक प्रयोगकर्ता के हिसाब से इनकी 3,000 से 5,000 रु. की कमाई शुरू हो गयी। पूर्वोत्तर पहाड़ी क्षेत्र में 35 लाख हैक्टर (भारत का कुल 10 प्रतिशत धान उत्पादक क्षेत्र) भूमि पर धान उगाने के कारण इस प्रौद्योगिकी के प्रयोग की अत्यधिक संभावना है। औसतन इस यंत्र की क्षमता 2.5-3.5 क्विंटल/हैक्टर रिकार्ड की गयी।

स्त्रोत : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर) भारत सरकार।

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate