मध्य हिमालयी क्षेत्रों में बंदरों की तादात दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, नतीजन किसान फसलों व अन्य कृषि उत्पादों को बेचने से कतराने लगे हैं जिसके चलते वे रोज़ी रोटी कमाने के लिए नॉकरी या छोटे मोटे ब्यापार पर निर्भर हो चुके हैं। इसी के चलते इस क्षेत्र से पलायन की भी समस्या बढ़ती जा रही है। हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड के मध्य हिमालयी शिवालिक क्षेत्रों में बंदरों के साथ अन्य जंगली जीवों की संख्या में काफी इज़ाफ़ा हुआ है, जिसके चलते कृषि एवं बागवानी पर खासा असर पड़ा है।
किसान व बागवान फसल बोने के बाद बीज तक की कीमत निकलने को मजबूर हो चुके हैं, कारण जंगली जानवर बंदर व जंगली सूअर फसलों को बहुतायत नुकसान करके किसानों को फसल न बोने को मजबूर कर रहे हैं। डॉ विक्रम शर्मा ववाणिज्यक कृषि क्षेत्र में कई वर्षों से शोध एवं प्रसार में लगे हैं, उन्होंने वाणिज्यिक कृषि में कॉफ़ी के पौधों को 1998 में हिमाचल में लाकर उगाने का भी इतिहास रचा है। डॉ शर्मा ने बताया कि बंदरों व सूअरों से लोग काफी चिंतित हूँ तथा किसानों की रोज़ी रोटी के साधन व कृषि जो देश की रीढ़ की हड्डी हैं को किसी भी कीमत पर बचाने के किये कई वर्षों से प्रयासरत हैं, जिसका नतीजा अब सामने आ चुका है। डॉ शर्मा ने बताया कि इन क्षेत्रों के लिए उन्होंने कॉफ़ी के साथ हींग व दालचीनी की ववाणिज्यक खेती चुनी हैं, जो की एक अंतर्राष्ट्रीय मांग की खेती हैं, हींग तथा दालचीनी की मांग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दवाईयों के लिए, भोजन में प्रयोग के लिए, तथा अन्य प्रयोगों के लिए हैं चरम पर हैं।
हींग समशीतोष्ण जलवायु में बहुत ज्यादा उपयोग में लाया जाता है। तथा इसके पौधे को कोई भी जंगली या पालतू जानवर नुकसान नहीं कर पाते अतैव यह पौधा हिमाचल, जम्मू कश्मीर के निचले हिस्सों में,पंजाब के पहाड़ी हिस्सों में,तथा उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में बहुत ही सफलतापूर्वक उगाया जा सकता हैं, जिसके लिए हिमालयी प्रदेशों के किसानों को अब कमर कसनी होगी। हींग एक मध्यम ऊँचाई का पौधा है, इसमें से दूध निकाला जाता है जिसे कुछेक अन्य पदार्थों की मिलावट के साथ बाजार में घरेलु उपयोग के लिए बेचा जाता है तथा शुद्ध हींग को दवाइयों के क्षेत्र में जीवन रक्षक बनाने में प्रयोग लाया जाता है। हींग एक सदाबहार पौधा है तथा साल में दो बार इसमें से दूध के रूप में हींग निकाला जाता है। हींग की खेती में बंदरों का किसी भी प्रकार का नुकसान करना पूर्णतय असंभव है, एतएव हिमाचल, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, तथा यूपी के पहाड़ी हिस्सों पर किसानों को जागरूक करके हींग की खेती करवाई जा सकती है जो एक सामाजिक एवं आर्थिक विकास में किसानों के साथ देश की आर्थिकी को मजबूत करने में एहम भूमिका निभाएगी।
डॉ शर्मा के अनुसार कुछ दिन पहले हमारे सम्माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 'मन की बात' के दौरान हिमाचल के किसानों से बंदरों की समस्या पर चर्चा की जो अपने आप में एक मिसाल कायम करने में पहल की ज्योति साबित हुई। डॉ. विक्रम ने बताया कि उत्तर पूर्वी राज्यों की तर्ज पर उत्तरी भारत के हिमालयी क्षेत्रो के लिए एक उत्थान मंडल का गठन किया जाये, "शिवालिक हिल्स वेस्ट लैंड डेवलपमेंट बोर्ड" की स्थापना की जाये ताकि इन हिमालयी क्षेत्रों के जीवन यापन तथा कृषि व बागवानी क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करके कृषकों की आर्थिकी मजबूत की जा सके।
ज्ञात रहे हिमालयी क्षेत्र में अन्य पारंपरिक फसलों के अलावा कई महत्वपूर्ण फल व सब्जियां उगाई जा सकती हैं परंतु जरुरत है एक नोडल एजेंसी की जो हर वक़्त लोगो को हर संभव सहायता उपलवध करवा सके । डॉ विक्रम शर्मा ने बताया कि हींग की पौध के साथ साथ दालचीनी की भी वाणिज्यक खेती की जा सकती हैं जिसके चलते हिमालयी क्षेत्र के लोग भी पलायन व अन्य समस्याओं से निजात पा सकेंगे। डॉ शर्मा ने कहा कि हींग अभी तक अफगानिस्तान से ही आता है, परंतु जल्द ही हम हिमालयी क्षेत्र को मसाला बागान की तरह विस्तारित किया जायेगा जिसमे प्रदेश एवं कृषि मंत्रालय , वाणिज्य मंत्रालय भारत सरकार की विशेष भूमिका रहेगी ।
ध्यान रहे हिमालयी क्षेत्रो में हींग, कॉफ़ी, तथा दालचीनी के लिए टेक्नीकल शिक्षा का भी प्रबंध किया जायेगा, हर प्रकार से सहायता का आश्वासन देते हुए डॉ शर्मा ने कहा कि मेरी जिंदगी का एक ही मक़सद है हिमालयी क्षेत्र को स्वावलंबी बना कर प्रदूषण मुक्त करना तथा किसानों को अंतरास्ट्रीय स्तर की टेक्नोलॉजी उपलब्ध करवाना।
कॉफ़ी दिन में 24 घंटे जीवन दायनी ऑक्सीजन देती रहती हैं जो एक पर्यावरण मित्र पौधा हैं, इसी के हींग एक भोजन में मसाले के साथ साथ एक बहुत ही अंतर्राष्ट्रीय मांग का पौधा है, जो पर्यावरण को फंफूद मुक्त, बैक्टेरिया मुक्त कर सकता है।
उनके अनुसार बड़े उद्योगों के साथ साथ माइक्रो कृषि उद्योगों को केंद्र सरकार को हिमालयी क्षेत्रों में लगाने के लिए मध्य हिमालय के ग्रामीण इलाकों को चिन्हित करना चाहिये। डॉ. विक्रम ने सभी हिमालयी क्षेत्रवासियों एवं युवाओं से अनुरोध किया कि भटकने के बजाय कृषि, बागवानी एवं वानिकी को उद्योग की तरह अपनाये जिससे आर्थिक स्थिति के साथ साथ सामाजिक जीवन भी मजबूत होगा । हींग की पौध जल्द ही हिमाचल के किसानों को उपलब्ध करवाई जाएगी जिसे किसान अपनी बंजर भूमि में ऊगा कर मिटटी से सोना उगलवा सकते हैं, इन वाणिज्यिक फसलों में तकनीकी ज्ञान के साथ साथ हिमालयी कृषकों के लिए समय समय पर अन्य वाणिज्यिक फसलें भी उपलब्ध होगी जाएगी।
स्त्रोत : डॉ विक्रम शर्मा, निदेशक,कॉफ़ी बोर्ड,वाणिज्य एवं उधोग मंत्रालय, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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