मछलीपालन ने समस्तीपुर सरायरंजन के शहजादापुर गाँव के लोगों की तकदीर बदल दी। यहां का रहन सहन भी बदल गया है। यहां पानी में डूबे खेत में कोई फसल नहीं होती थी। आज यह जमीन धन बरसाने लगी है। 80 एकड जमीन में बने तालाब से सालाना डेढ से दो करोड़ रु पए तक कमाई होती है। मछलीपालन के लिए किसानों ने सहकारी समिति बनाई है। इसमें गाँव के 50 से 37 किसान जुड गए हैं।
2009 से यहां मछलीपालन की शुरुआत हुई थी। मुनाफा देखकर आस-पास के गाँव के लोग भी मछलीपालन करने लगे हैं। विद्यापति डुमदहा चौर और क्योंटा दलिसंहसराय के किसान भी यहां के किसानों से मछलीपालन का गुर सीख कर मछलीपालन करने लगे हैं। साथ ही यहां समेकित (इंटीग्रेटेड) खेती पर भी किसानों का जोर है। मछली के साथ दूध, अंडा, मांस, फल व सब्जी का भी उत्पादन हो रहा है।
इन तालाबों से सालाना 200 टन मछली समस्तीपुर जिले में खपत हो जाती है। यहां रोहू, कतला व नैनी मछली होती है। तालाब से ही मछली बिक जाती है। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड के अधिकारी भी यहां मछलीपालन देखने पहुंच चुके हैं। फिशरी डायरेक्टरेट की ओर से यहां के किसानों को फैसिलिटीज की गईं है। पानी नहीं सूखे इसके लिए सोलर पंप सेट लगाए गए हैं। तालाब की मेढ पर सब्जी व केले व अमरूद की खेती भी होती है। गौपालन के साथ ही मुर्गीपालन भी हो रही है। तालाब में बतख पालन भी हो रहा है।
फिशरी साइंटिस्ट की सलाह गाँव वालों की मेहनत और लगन ने यहां की लाइफस्टाइल भी बदल दी। कल तक गाँव के स्कूलों में पढाई करने वाले बच्चे अब शहरों के बड़े स्कूलों में पढ़ने लगे हैं। किसान अपने बच्चों को इंजीनियरिंग व एमबीए आदि की पढाई कराने में काबिल हो गए हैं। एमबीए और इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद भी यहां के कई बच्चों ने बडे पैकेज पर नौकरी की जगह मछलीपालन करना बेहतर समझा। गाँव के विकास कुमार भी ऐसे ही युवक हैं, जो एमबीए की डिग्री लेने के बाद मछलीपालन का काम कर रहे हैं।
शहजादापुर के सोनमार्च चौर फिशरी डेवलप्मेंट कमिटी के मेंबर सुनील कुमार ने बताया कि तत्कालीन जिला फिशरी के अधिकारी मछलीपालन की सही तकनीक बनाने के साथ खूब मोटीवेट किया। तब सभी किसान तालाब बनाने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे। बाद में कारवां बढ़ता गया और आज यह इलाका मछलीपालन का मॉडल बन चुका है। एनएफडीबी ने मछलीपालन ट्रेनिंग सेंटर, फिश फीड मिल और अन्य के लिए एक करोड़ का प्रोजेक्ट बनाया है।
फिशरी वैज्ञानिककों का कहना है कि गाँव के लोग फिशरी के बिजनेस को लेकर मोटिवेटेड हैं। मछलीपालन के लिए आंध्रप्रदेश भेज कर इन्हें ट्रेंनिंग दी गई। डिपार्टमेंट के स्तर पर जो फैसिलिटी दिलाई जा सकती थीं, दिलाने का प्रयास किया गया। गाँव वालों ने जब भी बुलाया, मछलीपालन में आ रही दिक्कतों का समाधान किया।
वर्ष |
उत्पादन जरूरत (आंकडा लाख टन में ) |
2010-11 |
2.5 4.25
|
2011-12 |
2.75 4.50
|
2012-13 |
3.50 5.00
|
2013-14 |
4.32 5.81
|
2014-15 |
4.70 6.00 |
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लेखन : संदीप कुमार, स्वतंत्र पत्रकार
अंतिम बार संशोधित : 2/26/2020
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