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छोटे-छोटे डेरी संसाधनों से प्रशिक्षण उपरान्त बनाया डेरी उद्योग

छोटे-छोटे डेरी संसाधनों से प्रशिक्षण उपरान्त बनाया डेरी उद्योग

भूमिका

करनाल जिला, राष्ट्रीय डेरी अनुसन्धान, करनाल द्वारा किये गये उत्पादन के विस्तार कार्यक्रमों के कारण डेरी क्षेत्र में अग्रणी रहा है। जिले में उच्च नस्ल के पशु होने के कारण दूध की उपलब्धता भी सरल है। इन्हीं सब बातों के मध्यनजर स्व.श्री जीवनदास ने सन 1950 में दुग्ध उत्पाद बनाने का एक छोटा सा व्यवसाय शुरू किया। तत्पश्चात उनके पुत्र श्री हरिचंद भारती डेरी के नाम से व्यवसाय को आगे बढ़ाया। श्री भारती ने लगभग 100-150 किलो दूध को प्रतिदिन एक छोटी दुकान में विभिन्न परम्परागत दुग्ध उत्पाद जैसे क्रीम, मक्खन व घी में परिवर्तित का व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने रखा। वर्ष 1986  में श्री भारती का सम्पर्क कृषि विज्ञान केंद्र के डेरी प्रौद्योगिकी के तकनीकी अधिकारियों व वैज्ञानिक तकनीकियों को अपनाकर बढ़ोतरी करने के लिए प्रेरित किया। श्री भारती के पुत्रों ने अब व्यवसाय में उनका हाथ बटाना शुरू कर दिया था।

वैज्ञानिक प्रशिक्षण से पाई सफलता

वर्ष 1986 में वह अपने पुत्र श्री प्रदीप भारती को कृषि विज्ञान केंद्र में दूध व दूध से बनने वाले पदार्थों की वैज्ञानिक प्रशिक्षण दिलवाने के लिए लाये। पुत्र द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने व्यवसाय में वैज्ञानिक पद्धति के अनुसरण से श्री भारती में आत्मविश्वास व उमंग का प्रवाह हुआ और उन्होंने 1988 में करनाल मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूर गाँव बुढाखेडा में एक दुग्ध संसाधन संयंत्र स्थापति किया। वहां उन्होंने जीवाणु रहित सुंगधित दुग्ध बनाना व बाजार में बेचना शुरू किया। वैज्ञानिक तकनीक से तैयार होने के कारण उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद के बाजार में बहुत प्रसिद्धि पाई।

तत्पश्चात श्री भारती ने व्यवसाय को और बढ़ाने की दृष्टि से अपने छोटे पुत्र श्री दिनेश को वर्ष 1992 में दुग्ध पदार्थ उत्पाद पर कृषि विज्ञान केंद्र में प्रशिक्षण दिलवाया। इस प्रशिक्षण ने उन्हें और आत्मविश्वास दिया और व्यवसाय में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया जिसके अंतर्गत उन्होंने 1994 में आइसक्रीम, कृषि विज्ञान केंद्र के तकनीक अधिकारियों द्वारा प्राप्त वैज्ञानिक प्रशिस्खन प्राप्त कि श्री दिनेश की देखरेख में बनी होने के कारण बाजार में अल्पविधि में ही प्रसिद्धि पा गई तथा भारती आइसक्रीम के करनाल व आसपास के क्षेत्रों में प्रचलित विभिन्न देशीय व अंतराष्ट्रीय ब्रांडों में एक जगह बनाई। इस प्रकार अब श्री हरी चंद ने और अधिक दूध इक्कठा कर विभिन्न पदार्थ में बनाना शुरू कर दिया।

वर्ष 1996 में उन्होंने अपने सबसे छोटे पुत्र श्री पंकज को भी अपने व्यवसाय में जोड़ने की सोची उसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने पुत्र को कृषि विज्ञान केंद्र में दुग्ध उत्पाद को सही वैज्ञानिक तरीके से बनाने का प्रशिक्षण दिलाया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में केंद्र के दुग्ध उत्पाद के विशेषज्ञों ने दूध संसाधन के मूल सिद्धांतों के साथ-साथ उत्पाद तैयार करने की नवीनतम जानकारी भी दी।

श्री हरी चंद ने विशवास होकर, अपना व्यवसाय सबसे बड़े पुत्र श्री योगेश की देखभाल में चारों पुत्रों को थमा दिया। अब श्री दिनेश ने अपने दादा द्वारा लगाई गई छोटी सी इकाई में कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण प्राप्त तीनों भाइयों की देखरेख में दुग्ध उत्पादों को बनाकर हैं तथा समय-समय आने वाली तकनीकी परेशानियों के लिए केंद्र के विशेषज्ञों से व नवीनतम जानकारी प्राप्त करते हैं। आज भारती डेरी लगभग 2000- 2500 लीटर प्रतिदिन संसाधित कर रही है तथा लगभग 1.5 लाख रूपये प्रतिवर्ष की आय इकाई से हो रहा है। इस डेरी के उत्पाद अपनी उच्च गुणवत्ता के कारण केवल करनाल में ही नहीं और आसपास के क्षेत्रों में भी उपभोक्ताओं द्वारा पसंद किये जा रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र के लिए विशेषज्ञ भी अपने इस उपलब्धि पर गर्वित अनुभव कर रहे हैं।

स्त्रोत:

स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार

 

अंतिम बार संशोधित : 5/22/2023



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