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शहद उत्पादन के पश्चात उसके प्रोसेसिंग के तरीके

शहद उत्पादन के पश्चात उसके प्रोसेसिंग के तरीके

परिचय

श्री रणवीर सिंह गाँव उचाना जिला करनाल का रहने वाला सीमान्त किसान था। सन 1989 में इन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, रा.डे.अनु.सं. करनाल से मधुमक्खी कोलोनियों के साथ इस कार्य को आरंभ किया। वर्ष 1990 में कॉलोनियों की संख्या 15 कर ली। बाद में यह क्रम जारी रहा था वर्ष 2005 में इनके पास मधुमक्खी की 70 कालोनियां हो गयी। इससे 12.60 क्विंटल शहद का उत्पादन हुआ जिन्हें 43 रु. प्रति कि.ग्रा. के भाव से बेचकर 52,920 रु. की आय प्राप्त की। इसके अलावा प्रति वर्ष कालोनोयों की भी बिक्री की गयी  वर्ष 2005 में कुल 20 कॉलोनियों को 720 रु. प्रति चार फ्रेम के साथ बेचकर 14,400 रु. की आय प्राप्त की। शहद तथा कॉलोनियों की बिक्री से होने वाली आय से श्री रणवीर सिंह ने एक आटा पीसने की चक्की भी खरीद ली है। इस दोहरे लाभ से किसान के जीवन में काफी अंतर आया है। आर्थिक तथा सामाजिक जीवन में सुधार आया है तथा बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ने लगे हैं।

शहद उत्पादन के अलावा शहद प्रोसेसिंग की भी जानकारी ली

श्री रणवीर सिंह को जब भी कोई मुशिकल आती है वह कृषि विज्ञान केंद्र के सम्पर्क में रहता है। अब वह कच्चा शहद बेचने के अलावा कुछ शहद की प्रोसेसिंग भी करने लगा है। इस शहद को वह स्वच्छ बोतलों में भरकर ऊँचे दाम पर बेचने लगा है। इससे उसकी आय में बढ़ोतरी हुई है।

मधुमक्खी पालन को देखते हुए आसपास के तीन अन्य किसानों ने भी कृषि विज्ञान केंद्र से मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लेकर इस व्यवसाय को अपनाया  है।

स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 3/13/2023



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