संयुक्त राष्ट्र निर्धारित “टिकाऊ विकास लक्ष्य” वैश्विक समुदायों से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं। विश्व में लगभग 2 बिलियन जनसंख्या अपुष्ट-भोजन से प्रभावित है जबकि कुल 759 मीलियन जनसंख्या कुपोषित है। दक्षिण एशिया विश्व की कुल जनसंख्या के 35 प्रतिशत गरीब लोगों का वास है तथा भारत की 21.9 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहती है। भारत विश्व के सबसे अधिक कुपोषित लोगों का घर है (194.6 मिलियन) जहाँ 5 साल से कम उम्र के 38.4 प्रतिशत बच्चे छोटे कद के एवं 35.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं। विटामिन एवं खनिज की कमी की वजह से भारत में जीडीपी में प्रतिवर्ष 12 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है।
खाद्य एवं पोषण को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से मख्य धारा में लाना हमारे लिए आवश्यक है। अनुमान है कि सुस्थित पोषण कार्यक्रम में निवेश किये गए प्रत्येक डॉलर से 16 डॉलर का फायदा होता है। इस संदर्भ में भारत में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नेतृत्व में कृषि अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम द्वारा फसलों में जैव संवर्द्धन की शुरुआत की है जो कुपोष को हटाने के लिए टिकाऊ एवं अपेक्षाकृत लागत प्रभावी उपाय है। अभी तक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा विभिन्न फसलों में दर्जन भर से अधिक जैव संवर्द्धित किस्मों का विकास किया गया है जो कि भोजन शृंखला में शामिल की जा सकती हैं जो हमारे मानव एवं पशुधन के अच्छे स्वास्थ्य में सहायक सिद्ध होगी। हाल ही में नीति आयोग, भारत सरकार की राष्ट्रीय पोषण रणनीति “कुपोषण मुक्त भारत” के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, जैव संवर्द्धित किस्मों को अधिक प्रभावी रूप से उपयोग में लाने के लिए प्रेरित करती है।
जैव संवर्द्धित किस्मों पर यह बुलेटिन “जैव संवर्द्धित किस्में: कुपोषण निवारण के लिए टिकाऊ उपाय” जिसमें किस्मों की उत्पादन क्षमता के साथ-साथ सम्बंधित पोषण लक्षण भी मुख्य आकर्षण है देश में पोषण सुरक्षा के लिए दूरदर्शक है।
मानद के समुचित विकास एवं वृद्धि के लिए पोषक आहार बहुत ही आवश्यक है। यह शारीरिक एवं मानसिक स्थिरता के लिए शरीर के मेटाबॉलिज्म को बनाए रखने के अलावा बीमारियों से भी बचाता है। भोजन हमारी प्रतिदिन की मेटाबॉलिक माँग को पूरा करने के लिए हमें ऊर्जा, प्रोटीन, आवश्यक वसा, विटामिन्स, एन्टी-आक्सीडेट्स तथा खनिज पदार्थ प्रदान करता है। क्योंकि इनमें से अधिकतर शरीर में नहीं बनते है अत: इनको आहार के द्वारा पूरा किया जाता है। इसके अलावा खाद्य भाग में विद्यमान पोषण विरोधी तत्व मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। असंतुलित भोजन खाने से विश्व में करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं जो कि बुरे स्वास्थ्य एवं सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की ओर ले जाता है। प्राथमिक तौर पर अभी तक बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए अधिक उपज देने वाली किस्मों के विकास पर ही जोर रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने धान्य, दलहन, तिलहन, सब्जी में सुधार किया है। अभी तक देश में विभिन्न फसलों की 5600 से अधिक किस्में विकसित की गई है जिनमें से विशेष गुणवत्तायुक्त किस्मों की संख्या नहीं के बराबर है। इन सभी जैव संवर्द्धित किस्मों का देश की पोषण सुरक्षा में बहुत महत्व है।
स्त्रोत: भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्
अंतिम बार संशोधित : 9/29/2019
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