हमारे देश की आबादी तेजी से बढ़ रही है। इस बढ़ती आबादी के लिए हमें ज्यादा भोजन के साथ-साथ समुचित पोषण की भी आवश्यकता है। खेती एवं बाग़ लगाने की सीमित होती जमीन से हमें अधिक से अधिक उत्पादन लेना होगा तभी हमलोग खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को प्राप्त कर पायेंगे। इसके लिए आज परम्परागत बागवानी से हटकर बागवानी में आधुनिक तकनीक को अपनाने की आवश्यकता है। आधुनिक बागवानी के अंतर्गत सूक्ष्म सिंचाई, रक्षित कृषि, सघन बागवानी इत्यादि आते है। परम्परागत बागवानी द्वारा प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादन तो कम होता ही है, साथ ही उनके प्रबंधन में श्रम शक्ति की भी अधिक आवश्यकता पड़ती है। इन्हीं सब कारणों से इस समय न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व के कई अन्य देशों में भी फल वृक्षों की सघन बागवानी पर जोर दिया जा रहा है ताकि कम जमीन पर उच्च गुणवत्ता वाले अधिक उत्पादन प्राप्त किए जा सकें।
सघन बागवानी में फल जल्दी आना शुरू हो जाता है साथ ही प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी अधिक होता है। फल की गुणवत्ता अच्छी होती है। इस पद्धति में मजदूरी भी कम लगता है, क्योंकि पौधा को कटाई-छंटाई करके छोटा रखा जाता है जिससे पौधे पर किया जाने वाला शस्य कार्व आसानी से हो पाता है। इस पद्धति में पूरे जमीन का सही-सही उपयोग कर पाते हैं। सघन बागवानी में खाद, पानी, सूर्य की रोशनी, फफूंदनाशी, कीटनाशी का लगभग पूरा का पूरा उपयोग हो जाता है जिससे कि परम्परागत बागवानी की अपेक्षा प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होता है।
आम भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय फल है। हमारे देश में आम को इसके विशिष्ट गुणों के कारण ‘फलों का राजा’ कहा जाता है। इस फल में स्वस्थ्य वृद्धि के बहुत से आवश्यक तत्व जैसे- विटामिन ए, बी, सी और बहुत से लवण भी काफी मात्रा में पाये जाते हैं। इसका उपयोग जैम, जेली, अचार, आमचूर, अमावट इत्यादि बनाने में किया जाता है।
सस्य क्रियाओं के उचित प्रबंधन से आम की सघन बागवानी लगाई जा सकती है। इसके लिए बागवान को सर्वप्रथम रूपरेखा बना लेना चाहिए कि इसके अंतर्गत कितने क्षेत्रफल में बागवानी करनी है, पानी की सुविधा है या नहीं, सड़क से कितना दूर है, कौन-सी किस्म लगानी है इत्यादि।
आम की बागवानी करीब-करीब सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है परन्तु कंकरीली, पथरीली, बलुई, क्षारीय एवं जल जमाव वाली भूमि का चयन नहीं करना चाहिए। इसके लिए दोमट एवं गहरी भूमि जिसका पी.एच. मान 5.5 से 7.5 के मध्य हो उपयुक्त मानी जाती है। अप्रैल-मई में खेत की गहरी जुताई कर 10-15 दिन के लिए छोड़ देते हैं। इससे खेत का कीड़ा-मकोड़ा मर जाता है। फिर खेत को समतल करके पौधा से पौधा एवं कतार से कतार की दूरी के अनुसार रेखांकन कर लेना चाहिए। आम्रपाली किस्म को छोड़कर सभी किस्मों के लिए रेखांकन 5 x 5 मीटर पर करना चाहिए। आम्रपाली में 2.5 x 2.5 मीटर पर रेखांकन करना चाहिए। रेखांकन के बाद गड्ढे की खुदाई कर मानसून से पहले 1.5 किग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट, 20 मिलीग्रा. क्लोरोपाइरीफ़ॉस एवं 30-40 किलोग्राम गोबर की खाद मिट्टी में मिलाकर गड्ढे को भर देना चाहिए।
उच्च गुणवत्ता वाले पौधे को जुलाई के मध्य तक तैयार गड्ढों में सावधानीपूर्वक लगा देते हैं एवं उसके चारो तरफ के मिट्टी को अच्छी तरह दबा देते हैं। पौधा लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करना चाहिए।
शुरू के दो वर्षो तक पौधों में मानसून आने से पहले प्रत्येक 5-6 दिनों पर सिंचाई करना चाहिए।
सघन बागवानी के अंतर्गत प्रारंभिक कटाई-छंटाई करना अत्यंत आवश्यक होता है। इसके लिए पौधा को जमीन से 60-70 सेंमी. पर शीर्ष कटिंग की जानी चाहिए। यह कार्य अक्टूबर-दिसम्बर तक करना चाहिए। कटिंग के फलस्वरूप मार्च-अप्रैल में नए प्ररोह उत्पन्न होते है जिसमें से चार प्ररोहों को चारों दिशाओं में रखकर सभी को हटा देते हैं। यह कार्य मई महीना में किया जाता है। फिर इन चार प्ररोहों का अक्टूबर-नवम्बर में कटाई किया जाता है। इस तरह कटाई-छंटाई करके पेड़ के चारों तरफ 3-4 शाखाओं को बढ़ने देते हैं फिर इन्हीं शाखाओं से पौधे का आकार छतरीनुमा करने के लिए उचित कटाई-छंटाई निरंतर करते रहना चाहिए। इसके उपरांत सूखी, अवांछित, घनी शाखाओं को एवं लगभग 15-20 प्रतिशत कल्लों को भी प्रतिवर्ष निकालते रहना चाहिए।
प्ररोहों की कटाई-छंटाई के बाद कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए।
100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस एवं 100 ग्राम पोटाश प्रति पौधा प्रतिवर्ष डालना चाहिए। यह मात्रा 10 वर्ष के बाद 1 किग्रा. निश्चित कर देते हैं। इसके अतिरिक्त सड़ी हुई गोबर की खाद शुरू के 10 वर्षों तक 40-50 किग्रा. एवं 10 वर्ष के बाद 70-80 किग्रा. प्रति वृक्ष जुलाई में डालना चाहिए। यूरिया के आधी मात्रा एवं फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा जुलाई में था यूरिया की शेष आधी मात्रा अक्टूबर में डालना चाहिए।
बरसात में प्राय: पत्ती खाने वाले घुन का प्रकोप बढ़ जाता है जो नई-नई पत्तियों को खा जाता है। इसके नियंत्रण हेतु कार्बेरिल कीटनाशक 0.2 प्रतिशत यानि 2 ग्राम कीटनाशक लीटर पानी के साथ मिलाकर 15 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करने से कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
इस प्रकार देखा गया है कि सामान्य बागवानी की अपेक्षा सघन बागवानी से 5-6 गुणा अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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