आम भारतवर्ष का राष्ट्रीय फल है। स्वाद एवं गुणों के आधार पर आम को “फलों का राजा” कहा जाता है। आम का जन्म स्थान पूर्वी भारत, वर्मा व मलाया खंड में है तथा यहाँ से यह फल सारे भारतवर्ष, लंका, उत्तरी आस्ट्रेलिया, फिलीपाइन्स, दक्षिणीय चीन, मध्य अफ्रीका, सूडान एवं विश्व के अन्य गर्म तथा नम जलवायु वाले स्थानों में फ़ैल गया। अपने देश में आम के बाग़ लगभग 18 लाख एकड़ भूमि में हैं, जिसमें आधा क्षेत्रफल उत्तर प्रदेश में ही है। शेष आधे भाग में बिहार, बंगाल, उड़िसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मद्रास एवं अन्य राज्यों में अवस्थित है।
आम सर्वोपयोगी फल है। कच्चे आम से विभिन्न प्रकार के आचार, मुरब्बे तथा चटनी बनाई जाती है। पके आम से खाने के अतिरिक्त आम स्मवायम (रस) तथा अमावट बनाने में होती है। अधपके आम से जैम बनाया जाता है।
आम से विटामिन “ए” तथा “सी” अच्छी मात्रा में प्राप्त होते हैं। इसमें शकरा का प्रतिशत 11 से 20 तक होता है तथा थोड़ा मात्रा में फ़ॉस्फोरस, लोहा एवं कैल्शियम भी मिलता है।
आम उष्ण कटिबन्धीय फल है। इसके लिए जून से अक्टूबर तक नम तथा शेष सात माह तक शुष्क जलवायु अति उत्तम है। अच्छे फल प्राप्त होने के लिए फल आने के कुछ सप्ताह पूर्व हल्की ठंड (औसत तापमान 150 सें. ग्रे. से 200 सें.ग्रे.) एवं शुष्क मौसम रहने से फूल अधिक संख्या में आते हैं तथा अच्छी उपज प्राप्त होती है।
ग्रीष्म ऋतु में अधिक ऊँचे तापमान से भी फलों तथा वृक्षों को हानि पहुँचती है। साधारणतय 400 सें.ग्रे. से 420 सें.ग्रे. तक तापमान आसानी से सह लेता है। साधारणतय: आम 100 से भी अधिक वार्षिक वर्षा वाले स्थानों में अधिक पाया जाता है। इससे कम वर्षा वाले क्षेत्र में आम लगाने के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
आम गहरी व फैलनेवाली जड़ों वाल बहु वार्षिक पौधा है। इसको बहुत उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता पड़ती है। मिट्टी से जल निकास उत्तम होना चाहिए। आम के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है। अधिक चिकनी अथवा बलुई मिट्टी में आम सफलतापूर्वक उन्नत नहीं किया जा सकता है। अधिक चूने वाली मिट्टी में पौधा धीरे-धीरे बढ़ता है तथा क्षारीय होने के कारण पौधों की पत्तियाँ शीघ्र झुलस जाती है। चिकनी वाली मिट्टी भी आम के लिए बहुत उपयोगी नहीं है क्योंकि वर्षा ऋतु में इनमें कीचड़ हो जाता है तथा अधिक जल संचय के कारण जड़ें वायु की कमी के कारण मर जाती है। जिससे पौधा भी धीरे-धीरे मर जाता है।
भारतवर्ष में लगभग आम की 1000 किस्में पाई जाती है लेकिन व्यवसायिक स्तर पर मुख्यत: 30 किस्मों को ही उगाया जाता है। भिन्न-भिन्न राज्यों में आम की अलग-अलग किस्में हैं जो जलवायु एवं मिट्टी के आधार पर ज्यादा लोकप्रिय है। उत्तर भारत में दशहरी, लंगड़ा, समरबहिस्त, चौसा, बम्बई, हरा लखनऊ, सफेद एवं फजली, पूर्वी भारत में बम्बई, माल्दा, हिमसागर, जरदलु, किसनभोग, गोपाल ख़ास, पश्चिम भारत में अल्फान्जो, पायरो, लंगड़ा, राजापुरी, केसर, फरनादिन, मानबुराद, मलगोवा तथा दक्षिण भारत में बोगनपाली, बानीशान, लंगलोढ़ा, रूमानी, मालगोवा, आमनपुर बनेशान, हिमायुदिन, सुवर्णरेखा एवं रसपुरी किस्में प्रसिद्ध हैं।
इन किस्मों में फलों के गूदा कड़ा होता है जैसे – लंगड़ा, दशहरी, नीलम, चौसा,आल्फान्जो, मल्लिका, आम्रपाली आदि।
इन किस्मों के फल रेशदार व रसयुक्त होते हैं, जिन्हें चूसकर उपयोग किया जाता है। इन फलों का प्रवर्धन मुख्यत: बीज द्वारा किया जाता है। इनमें उत्तर प्रदेश की मिठुवा गाजीपुर, मिठुवा सुंदरशाह, शरवती, विजरौन, लखनऊ सफेदा, हरदिलअजीज और रसकुनिया।
पकने के समय के आधार पर आम की किस्में तो तीन भागों में विभाजित किया जाता है
उत्तरी भारत के किस्मों के फल दक्षिणी भारत की किस्मों की अपेक्षा गुणों में अधिक अच्छे होते हैं लेकिन इनमें फलन क्रिया एक वर्ष के अंतर पर होती है। दक्षिणी भारत के किस्मों के फल न्यून क्षणी के होते हैं। लेकिन इसमें फल परिवर्तन लगते। हाल ही में नीलम और दशहरी के संकरण से मल्लिका और आम्रपाली किस्में विकसित की गई है। इन किस्मों के फल अच्छे गुणों वाले होते हैं। यह अनुमान लगाया जाता है कि यदि पेड़ की देखरेख ठीक प्रकार से की जाय तो यह किस्में प्रतिवर्ष फल दे सकती है।
आम का प्रवर्धन मुख्य रूप से दो विधियों से किया जाता है -
1.गुटी बाँधना
2. ठंठ प्ररोह दाव लगाना
3.कलम बाँधना –
(क) भेंट कलम बाँधना ईनारचिंग (ख) कलिकायन बडिंग
उपरोक्त विधियों में वर्त्तमान समय में कमल भेंट बाँधना काफी महत्वपूर्ण है। खासकर व्यवसायिक एवं सफलता को ध्यान में रखकर यह विधि काफी अपनाई जा रही है जिसके कारण आम वृक्षों का प्रसारण आसानी से किया जा रहा है।
शाखा उपरोपन जुलाई से सितम्बर माह तक किया जाता है क्योंकि इस समय शाखाओं में रस बहुतायत से बहता है। इससे कटान के स्थान पर एधा की शाखाओं की शीघ्र वृद्धि होती है तथा दोनों काट आपस में संयुक्त हो जाते हैं। अधिक वर्षा वाले स्थानों में सितम्बर तथा कम वर्षा वाले स्थानों में जुलाई का महीना इस काम के लिए उपयुक्त है। मूल वृंत पर 20 से.मी. से 30 से.मी. की ऊँचाई पर 3 से 5 से.मी. लम्बी व 6 मिमी. से 8 मिमी. चौड़ी लकड़ी छाल सहित निकाल दी जाती है। इस काट की गहराई शाखा की मोटाई की एक तिहाई हो सकती है। मूल वृंत के समान शाखा पर भी काट बनाया जाता है तथा दोनों कटे भागों को मिलाकर मोमो कपड़े, सुतली या पोलीथिन की पट्टी बाँध देते हैं। इस प्रकार दो से तीन माह में मूल वृंत व शाखा आपस में जुड़ जाते हैं। तत्पश्चात वृंत का जोड़ से ऊपर वाला भाग तथा शाखा के जोड़ से नीचे वाला भाग दो या तीन बार में अलग कर लेना चाहिए।
इसके लिए बीज पौधों को मूलवृंत के काम के लिए क्यारी में तैयार किया जाता है। एक वर्ष की आयु में ये पौधे कलिकायन के उपयुक्त हो जाते हैं। इसके लिए जुलाई या अगस्त माह उपयुक्त है। कली का चुनाव एक या दो वर्ष की आयु वाली शाखाओं से करना चाहिए। पत्तियों की कोख में कली पुष्ट तथा स्वस्थ दिखनी चाहिए। इन कली शाखों को काटने के पश्चात पत्तियाँ निकाल देना चाहिए तथा गीले कपड़े या मोम में लपेटकर रखना चाहिए। कली निकालकर वर्म विधि द्वारा वृंत में बैठा दी जाती है तथा केले के रेशे, रशियाँ इत्यादि से इस प्रकार बाँध देते हैं कि अंखुआ न ढंकने पाये। लगभग तीन सप्ताह में कली जुड़ जाती है तथा हरी रहती है और लगभग 6 सप्ताह बाद कली बढ़ना शुरू कर देती है। इस समय मूलवृंत के ऊपरी भाग को काट देना चाहिए। जुलाई माह में (कलिकायन) किये गये पौधे करीब एक साल में एक मीटर तक लम्बे हो जाते हैं तथा निश्चित स्थान पर लगाने योग्य हो जाते हैं।
आम के पौधे लगाने के लिए इच्छित स्थान पर एक मीटर लम्बे, चौड़े तथा गहरे गड्ढ़े मार्च या अप्रैल माह में 11 से 13 मीटर के अंतर पर खोदना चाहिए। लगभग एक माह पश्चात इसमें अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 40 किलो, 2 किलो राख व 2 किलो हड्डी का चूर्ण मिट्टी में मिलाकर भरें। एक वर्ष हो जाने के पश्चात जुलाई अथवा अगस्त माह में पौधा सावधानी से गमले से निकालकर गड्ढे के बीचो बीच में सीधा लगायें। लगने के बाद तने के निकट मिट्टी को दबाएँ व पानी दें। पौधे अधिकतर जुलाई व अगस्त माह में लगायें जाते हैं किन्तु भारी वर्षा होने वाले स्थानों में सितम्बर अथवा फरवरी में लगाना उचित होगा।
आम के लिए बहुत कम उर्वरक परीक्षण किये गये हैं। अत: प्रत्येक क्षेत्र व भूमि में इसकी संस्तुती ठीक से कर पाना कठिन है। आम के पेड़ों को उनकी आयु के अनुसार सारिणी में दी गी खाद एवं उर्वरकों की मात्रा का प्रयोग गोविन्द वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर के आम उद्यान में संतोषजनक पाया गया है।
पौधे की आयु (वर्षो में) |
गोबर की खाद (कि.ग्रा.) |
नेत्रजन (कि.ग्रा.) |
स्फूर (कि.ग्रा.) |
पोटाश (कि.ग्रा.) |
1 |
10 |
0.100 |
0.075 |
0.100 |
2 |
20 |
0.200 |
0.150 |
0.200 |
3 |
30 |
0.300 |
0.225 |
0.300 |
4 |
40 |
0.400 |
0.375 |
0.400 |
5 |
50 |
0.500 |
0.450 |
0.500 |
6 |
60 |
0.600 |
0.525 |
0.600 |
7 |
70 |
0.700 |
0.600 |
0.700 |
8 |
80 |
0.800 |
0.675 |
0.800 |
9 |
90 |
0.900 |
0.150 |
0.900 |
10 वर्ष एवं बाद |
100 |
1.00 |
0.750 |
1.00 |
सबौर में किए गए परीक्षण के अनुसार दस वर्ष या इससे अधिक आयु के पेड़ों को 0.72 किग्रा. नेत्रजन, 0.18 किग्रा. स्फूर और 0.675 किग्रा. पोटाश प्रतिवर्ष प्रति पेड़ देना चाहिए। आम अनुसंधान केंद्र लखनऊ से 73 ग्राम नेत्रजन, 18 ग्राम फ़ॉस्फोरस तथा 68 ग्राम पोटाश प्रति पेड़ प्रतिवर्ष दस वर्ष की आयु तक बढ़ाकर प्रयोग करने की संस्तुती की गई है।
आम की अच्छी उपज के लिए सिंचाई का बहुत महत्व है। नये पौधों में गर्मियों के दिनों में एक सप्ताह के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए। उत्तर भारत में फलदार पेड़ों को अक्टूबर से दिसम्बर तक सिंचाई नहीं करनी चाहिए, परन्तु अगर सितम्बर में उर्वरक दिए गये हों तो एक सिंचाई कर देनी चाहिए, जिससे उर्वरक आसानी से पेड़ों को उपलब्ध हो सके। फूल आने के समय भी सिंचाई नहीं करना चाहिए क्योंकि एस समय आर्द्रता अधिक होने के कारण चूर्णी कवक का प्रकोप बढ़ जाता है। जाड़े में छोटे पौधों को पानी देते रहना चाहिए ताकि पाला का प्रकोप नहीं हो सके। सिंचाई की आवश्यकता मिट्टी के अनुसार करनी चाहिए। भारी मिट्टी कम एवं बलुआही मिट्टी में अधिक सिंचाई करनी चाहिए।
ऐसे क्षेत्रों में जहाँ पाला पड़ता हो व लू चलती हो, पौधों को पाला से या लू से बचाने में सावधानी बर्तनी चाहिए। पौधे लगाने के बाद मूल वृंत पर निकलने वाले किस्में को समय-समय पर तोड़ते रहना चाहिए। गर्मी के दिनों में बाग़ की सिंचाई 7-10 दिनों के अंतराल पर और जाड़ों में 15-20 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए।
आम की सभी व्यवसायिक किस्मों में अनियमित फलन की समस्या है। ये किस्में दो वर्ष में एक बार फूलती-फलती है। फलने के प्रमाण पिछले वर्ष की फसल पर निर्भर करता है। जिस वर्ष आम की अच्छी फसल होती है उसे फसली वर्ष कहते हैं। जिस वर्ष फल कम या बिल्कुल नहीं आती है, उसे निष्फल वर्ष कहते हैं। उत्तर भारत की लंगड़ा और बम्बई किस्में द्विवर्षीय या अनियमित रूप से फलती हैं। दूसरी किस्में, जैसे – चौसा और फजली मध्यम श्रेणी की द्विवर्षीय फलती हैं। दशहरी, हिमसागर और सफदर पसंद किस्में इस समस्या से कुछ कम प्रभावित हैं। इन किस्मों में फल प्रतिवर्ष आते हैं। कुछ शाखाएं एक वर्ष फलती हैं, तो कुछ दूसरी वर्ष आते हैं। देश में केवल दो-तीन किस्में ऐसी है, जो प्रतिवर्ष नियमित रूप से फलती हैं, वे किस्में हैं – नीलम, बंगलोरा, तोतापरी, रेड स्माल। ये दक्षिण भारत में अच्छी तरह पनपती है। अनियमित फलनेवाली व्यवसायिक किस्में जब फलों से लदी होती हैं, तो उसमें नये प्ररोह नहीं बनते हैं। फल तोड़ने के बाद ही उसमें नये प्ररोह निकलते हैं, तो उसमें अगले वर्ष फल नहीं आते हैं, फलस्वरूप एक वर्ष का अंतर आ जाता है और द्विवर्षीय फलन का प्रादुर्भाव होता है।
अनियमित फलन के विषय में वैज्ञानिकों में काफी मतभेद है। कुछ लोगों का कहना है कि अनियमित फलन एक पैत्रिक गुण है। कुछ दूसरे वैज्ञानिकों का विचार है कि द्विवर्षीय फलन के मुख्य कारण है – नई वृद्धि में कमी तथा अपर्याप्त कार्बोहाइड्रेट में स्टार्च का विशेष महत्व है, जिसकी मात्रा अधिक होनी चाहिए। अनुसंधान कार्यों से यह पता चलता है कि फूल आने के लिए प्राराहों में ऑक्सीजन जैसे पदार्थो और निरोधक तत्वों की मात्रा अधिक तथा जिव्रेलिन जैसे पदार्थ की मात्रा कम होनी चाहिए। अभी हाल ही में इथरेल नामक दवा का प्रयोग समस्या के समाधान के लिए किया गया है, परन्तु दवा का विभिन्न क्षेत्रों में परीक्षण करने पर कुछ जगहों पर इसे सफलता मिली है। दवा का 200-250 भाग प्रति दस लाख भाग पानी में मिलाकर पुष्प कलिकाओं के बनने के पहले ही 12-15 दिनों के अंतर पर 4-5 छिड़काव करने पर फूल आने की संभावना बढ़ जाती है। छिड़काव सितम्बर माह में प्रारम्भ करनी चाहिए। उत्तर भारत में पुष्ट कलिकाएँ बनने का समय नवम्बर-दिसम्बर माह है।
उपज में द्विवार्षिक फलन की समस्या पाई जाती है। एक वर्ष वृक्ष में अधिक फल लगते हैं तो अगले वर्ष बहुत कम यह समस्या अनुवांशिक है। अत: इसका कोई बहुत कारगर नहीं है। विगत वर्षो में आम को कई संकर किस्में विकसित हुई है। जो इस समस्या से मुक्त है अत: प्रति वर्ष फल लेने के लिए संकर किस्मों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
आम के वृक्ष चार-पाँच साल की अवस्था में फलना प्रारम्भ करते हैं और 12-15 साल की अवस्था में पूर्ण रूपेण प्रौढ़ हो जाती है अगर इनमें फलन काफी हद तक स्थाई हो जाती है। एक प्रौढ़ वृक्ष से 1000 से 3000 तक फल प्राप्त होता है कलमी पौधे अच्छी देखभाल से 60-70 साल तक अच्छी तरह फलते हैं।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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