कुर्ग, हनीद्यू, ताइवान 786, वी, एन. आर
गर्म जलवायु पपीते के उत्पादन के लिए उचित है। तापमान की कमी पौधों को नष्ट कर देते हैं। सफल उत्पादन के लिए अधिकतम तथा न्यूनतम तापक्रम 380C एवं 100 C रहना चाहिए। अधिक वर्षा भी पौधे के लिए हानिकारक होती है।
बीज की मात्रा एक हेक्टेयर में 500 ग्राम काफी होती है। बीज पूर्ण पका हुआ, अच्छी तरह सूखा शीशे की बोतल या जार में रखा हो। इसके लिए 3 ग्राम केप्टान 1. किग्रा बीज को उपचारित करने के लिए काफी है बीज बोने के लिया क्यारी जमीन से ऊंची उठी हुई और संकरी होनी चाहिए। इसके अलावा बड़े गमले या लकड़ी के बक्से का भी प्रयोग कर सकते हैं। जिस स्थान पर नर्सरी होती है, उस जमीन की अच्छी जुताई एवं गुड़ाई करके कंकड़-पत्थर व खरपतवार साफ़ कर देना चाहिए तथा जमीन को 2 प्रतिशत फार्मेलिन से उपचारित कर लेना चाहिए। एक एकड़ के लिए 1x1 वर्ग मीटर जमीन में उगाये गये पौधे काफी है। इसमें 25x10x0.5 आकार की क्यारी बनाकर उपरोक्त मिश्रण की तरह लगाकर ½” गहराई पर 3”x6” के फासले पर पंक्ति बनाकर उपचारित बीज बो दें।
उत्तम जल निकास वाली सभी प्रकार की भूमि उपयुक्त है पौधे के पास जल इकट्ठा होने से तना गलन का रोग हो जाता है। पौधों की जड़ें अधिक गहराई तक नहीं जाती है। इसलिए उथली भूमि पर भी इसे लगाया जा सकता है। यदि भूमि दोमट हो तो उत्तम है।
पौधे दो मीटर के अंतर से लगाये जाते हैं। स्थान के अनुसार रोपण की दूरी में अंतर आ सकता है। पपीता लगाने के लिए 0.5x0.5x0.5 मीटर आकार के गड्ढे तैयार करें तथा एक गड्ढे में दो से तीन पौधों की बुवाई करें। जब पौधों में फूल आ जाते हैं तो उन्हें पहचनाकर प्रति गड्ढा एक ही पौधा रखते है। पौधे जुलाई से लेकर सिंतबर तथा फरवरी से अप्रैल तक लगाये जा सकते है।
खाद एवं उर्वरक |
एक माह |
छ: माह |
एक वर्ष |
दो वर्ष |
तीन वर्ष |
गोबर खाद या कम्पोस्ट (किलो) |
- |
- |
10 |
10 |
15 |
नाइट्रोजन (ग्राम) |
20 |
40 |
50 |
100 |
100 |
फास्फोरस (ग्राम) |
- |
- |
40 |
100 |
100 |
पोटाश (ग्राम) |
- |
- |
60 |
100 |
100 |
पपीता को सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है। ग्रीष्म ऋतु में प्रति माह और शरद ऋतु में प्रति पखवारा सिंचाई करना आवश्यक है। सिंचाई का पानी तने से दूर रहना चाहिए तथा एक बार में अधिक पानी नहीं देना चाहिए। मिश्रित तरल खाद का उपयोग पौधों को शीघ्र वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
गोबर 40 किलो, यूरिया 2 किलो, सुपर फास्फेट 2 किलो, जल 225 लिटर। उपर्युक्त मिश्रण को तीन दिन तक ड्रम में भरकर सड़ायें। तीन दिन बाद घोल को 450 लिटर बना लें और इसे पन्द्रह दिन के अंतर में दें। गोबर की खाद वर्षा ऋतु के आरंभ और और अन्य उर्वरक पांच भागों में बांटकर क्रमश: अगस्त अक्टूबर, दिसंबर, फरवरी एवं अप्रैल में दें।
निंदाई – गुड़ाई की बात पर ध्यान रखना अति आवश्यक है। नीचे की जमीन खाली होने के कारण इसमें काफी खरपतवार उग आते हैं, जिसके लिए हमें या तो कोई अंत: फसल लेना चाहिए अथवा समय – समय पर खरपतवार का नियंत्रण करते रहना चाहिए, जिससे अधिक उत्पादन के साथ खेत अथवा बगीचे भी साफ – सुथरे दिखाई देते है।
अंतिम बार संशोधित : 1/7/2020
इस पृष्ठ में केंद्रीय सरकार की उस योजना का उल्लेख ...
इस पृष्ठ में 20वीं पशुधन गणना जिसमें देश के सभी रा...
इस भाग में जनवरी-फरवरी के बागों के कार्य की जानकार...
इस भाग में अंतर्वर्ती फसलोत्पादन से दोगुना फायदा क...