अदरक एक लम्बी अवधि की फसल है। जिसे अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए। खेत तैयार करते समय 250-300 कुन्टल हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हई गोबर या कम्पोस्ट की खाद खेत में सामान्य रूप से फैलाकर मिला देना चाहिए।
प्रकन्द रोपण के समय 20 कुन्टल/हे. मी पर से नीम की खली डालने से प्रकन्द गलब एवं सूत्रि कृमि या भूमि भाक्ति रोगों की समस्याएं कम हो जाती है। रसायनिक उर्वरकों की मात्रा को 20% कम कर देना चाहिए यदि गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाला गया है तो स्वीकृत उर्वरकों की मात्रा 75 किग्रा. नत्रजन, किग्रा. कम्पोस्ट और 50 किग्रा.पोटाश हे. है। इन उर्वरकों को विघटित मात्रा में डालना चाहिए(तालिका) प्रत्येक बार उर्वरक डालने के बाद उसके ऊपर मिट्टी में 6 किग्रा. जिंक/हे.(30किग्रा.जिंक सल्फेट) डालने से उपज अच्छी प्राप्त होती है।
अदरक की खेती के लिए उर्वरकों का विवरण(प्रति हेक्टयर)
उर्वरक |
आधारीय उपयोग |
40 दिन बाद |
90 दिन बाद |
नत्रजन |
---- |
37.5 किग्रा |
37.5 किग्रा |
फास्फोरस |
50 किग्रा. |
------ | |
पोटाश |
25 किग्रा. |
25 किग्रा. |
------ |
कंपोस्ट गोबर की खाद |
250-300 कु. |
25 किग्रा. |
------ |
नीम की खली |
2 टन |
------ |
भारत के विभिन्न प्रदेशों में उगाई जाने वाली प्रजातियाँ
क्रं. |
राज्य |
प्रजातियों के नाम |
विशिष्टता |
1 |
आसाम |
बेला अदा,मोरन अदा, जातिया अदा |
छोटे आकार के कन्द तथा औषधीय उपयोग के लिये प्रयुक्त |
2. |
अरूणाचल प्रदेश |
केकी,बाजारस्थानीय नागा सिंह, थिंगिपुरी |
अधिक रेशा एवं सुगन्ध |
3. |
मणिपुर |
नागा सिंह,थिंगिपुरी |
अधिक रेशा एवं सुगन्ध |
4. |
नागालैण्ड |
विची, नाडिया |
सोठ एवं सुखी अदरक हेतु |
5. |
मेघालय |
सिह बोई, सिंह भुकीर,काशी |
औषधीय उत्तम अदरक |
6. |
मेजोरम |
स्थानीय,तुरा,थिंग पुदम, थिगंगिराव |
रेशा रहित तथा बहुत चरपरी अदरक |
7. |
सिक्किम |
भैसी |
अधिक उपज |
क्र. |
प्रमुख प्रजातियाँ |
औसत उत्पादन (किग्रा/हे.) |
रेशा(%) |
सूखी अदरक(%) |
1 |
रियो-डे-जिनेरियो |
29350 |
5.19 |
16.25 |
2 |
चाइना |
25150 |
3.43 |
15.00 |
3 |
मारन |
23225 |
10.04 |
22.10 |
4 |
थिंगपुरी |
24475 |
7.09 |
20.00 |
5 |
नाडिया |
23900 |
8.13 |
20.40 |
6 |
नारास्सपट्टानम |
18521 |
4.64 |
21.90 |
7 |
वायनाड |
17447 |
4.32 |
17.81 |
8 |
कारकल |
12190 |
7.78 |
23.12 |
9 |
वेनगारा |
10277 |
4.63 |
25.00 |
10 |
आर्नड मनजारी |
12074 |
2.43 |
21.25 |
11 |
वारडावान |
14439 |
2.22 |
21.90 |
ताजा अदरक ओरेजिन तेल रेशा सूखा अदरक एवं परिपक्व अवधि के अनुसार प्रमुख प्रजातियां
प्रजाति |
ताजा अदरक उपज (टऩ/हे.) |
परिपक्क अवधि (दिन) |
ओले ओरेजिन (%) |
तेल (%) |
रेशा (%) |
सूखा अदरक(%) |
आई.आई.एस.आर. (रजाता) |
23.2 |
300 |
300 |
1.7 |
3.3 |
23 |
महिमा |
22.4 |
200 |
200 |
2.4 |
4.0 |
19 |
वर्धा(आई.आई.एस.आर) |
22.6 |
200 |
6.7 |
1.8 |
4.5 |
20.7 |
सुप्रभा |
16.6 |
229 |
8.9 |
1.9 |
4.4 |
20.5 |
सुरभि |
17.5 |
225 |
10.2 |
2.1 |
4.0 |
23.5 |
सुरूचि |
11.6 |
218 |
10.0 |
2.0 |
3.8 |
23.5 |
हिमिगिरी |
13.5 |
230 |
4.3 |
1.6 |
6.4 |
20.6 |
रियो-डे-जिनेरियो |
17.6 |
190 |
10.5 |
2.3 |
5.6 |
20.0 |
महिमा (आई.एस.आर.) |
22.4 |
200 |
19.0 |
6.0 |
2.36 |
9.0 |
क्र. |
प्रयोग |
प्रजातियो के नाम |
1. |
सूखी अदरक हेतु |
कारकल, नाडीया, मारन, रियो-डी-जेनेरियो |
2. |
तेल हेतु |
स्लिवा, नारास्सापट्टाम, वरूआसागर, वासी स्थानीय, अनीड चेन्नाडी |
3. |
ओलेरिजिन हेतु |
इरनाड, चेरनाड, चाइना, रियो-डी-जिनेरियो |
4. |
कच्ची अदरक हेतु |
रियो-डे-जिनेरियो, चाइना, वायानाड स्थानीय, मारन, वर्धा |
क) |
कीटों के प्रति लक्षण |
प्रजाति |
लक्षण |
1 |
तना भेदक |
रियो-डे-जिनेरियो |
सहनशील |
2 |
कन्द स्केल |
वाइल्ड-21, अनामिका |
कम प्रभावित |
3 |
भण्डारण कीट |
वर्धा, एसीसी न .. 215, 212 |
प्रतिरोधी |
4 |
सूत्रकृमि (अदरक) |
वालयूवानाड, तुरा और एस . पी . एसीसी न . 36, 59 और 221 |
कम प्रभावित प्रतिरोधी |
क्र. |
रोग का नाम |
फफुंद नाशी |
प्रबन्धन |
1 |
पर्ण दाग |
मैंकोजेव |
2 मिली.प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें । |
2 |
उकठा या पीलिया |
मैंकोजेव +मैटालैक्जिल |
3मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर कन्दो को उपचारित करके बुवाई करें या खड़ी फसल में ड्रेनिचिंग करें । |
3 |
कन्द गलन |
मैंकोजेव +मैटालैक्जिल |
3मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर कन्दरो उपचारित करके .बुवाई करें या खड़ी फसल में ड्रेनिचिंग करें । |
4 |
जीवाणु उकठा |
स्ट्रेप्पोसाइकिलिन |
200 पी.पी.एन के घोल को कन्दों को उपचारित करेंं । |
क्र. |
कीट का नाम |
कीटनाशक |
प्रबन्धन |
1 |
केले की माहूं |
क्लोरोपाइरिफास |
2 मिली .प्रति लीटर पानी |
2 |
चइनीज गुलाब भृंग |
क्लोरोपाइरिफास (5 %)धूल |
25किग्रा/हे .बुवाई के खेत में डाले |
3 |
अदरक का घुन |
क्लोरोपाइरिफास (5 %)धूल |
25किग्रा/हे .बुवाई के खेत में डाले |
4 |
हल्दी कन्द द्राल्क |
क्लोरोपाइरिफास 5 %)धूल |
25किग्रा/हे .बुवाई के खेत में डाले |
5 |
नाइजर द्राल्क |
क्विनालफॉस धूल |
20 मिनट तक कन्दों को वोने और भण्डारन के पहले उपचारित करें |
6 |
इलायची थ्रिप्स |
डाइमेथोएट |
2 मिली/ली. पानी के साथ छिड़काव करेंं |
7 |
तना छेदक |
डाइमेथोएट |
2 मिली/ ली. पानी के साथ छिड़काव करेंं |
8 |
पत्ती मोडक |
डाइमेथोएट |
2 मिली/ ली. पानी के साथ करेंं |
अदरक की खुदाई लगभग 8-9 महीने रोपण के बाद कर लेना चाहिये जब पत्तियाँ धीरे-धीरे पीली होकर सूखने लगें। खुदाई से देरी करने पर प्रकन्दों की गुणवत्ता और भण्डारण क्षमता में गिरावट आ जाती है, तथा भण्डारण के समय प्रकन्दों का अंकुरण होने लगता हैं। खुदाई कुदाली या फावडे की सहायता से की जा सकती है। बहुत शुष्क और नमी वाले वातावरण में खुदाई करने पर उपज को क्षति पहुॅंचती है जिससे ऐसे समय में खुदाई नहीं करना चाहिेए। खुदाई करने के बाद प्रकन्दों से पत्तियों, मिट्टी तथा अदरक में लगी मिट्टी को साफ कर देना चाहिये। यदि अदरक का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाना है तो खुदाई रोपण के 6 महीने के अन्दर खुदाई किया जाना चाहिए। प्रकन्दों को पानी से धुलकर एक दिन तक धूप में सूखा लेना चाहिये। सूखी अदरक के प्रयोग हेतु 8 महीने बाद खोदी गई है, 6-7 घन्टे तक पानी में डुबोकर रखें इसके बाद नारियल के रेशे या मुलायम व्रश आदि से रगड़कर साफ कर लेना चाहिये। धुलाई के बाद अदरक को सोडियम हाइड्रोक्लोरोइड के 100 पी.पी.एम के घोल में 10 मिनट के लिये डुबोना चाहिए। जिससे सूक्ष्म जीवों के आक्रमण से बचाव के साथ-साथ भण्डारण क्षमता भी बड़ती है।अधिक देर तक धूप ताजी अदरक (कम रेशे वाली) को 170-180 दिन बाद खुदाई करके नमकीन अदरक तैयार की जा सकती है। मुलायम अदरक को धुलाई के बाद 30 प्रतिशतनमक के घोल जिसमें 1% सिट्रीक अम्ल में डुबो कर तैयार किया जाता है। जिसे 14 दिनों के बाद प्रयोग और भण्डारण के योग हो जाती है।
ताजा उत्पाद बनाने और उसका भण्डारण करने के लिये जब अदरक कडी, कम कड़वाहट और कम रेशे वाली हो, ये अवस्था परिपक्व होने के पहले आती हैं। सूखे मसाले और तेल के लिए अदरक को पूण परिपक्व होने पर खुदाई करना चाहिए अगर परिपक्व अवस्था के वाद कन्दों को भूमि में पड़ा रहने दें तो उसमें तेल की मात्रा और तिखापन कम हो जाऐगा तथा रेशों की अधिकता हो जायेगी। तेल एवं सौठं बनाने के लिये 150-170 दिन के बाद भूमि से खोद लेना चाहिये। अदरक की परिपक्वता का समय भूमि की प्रकार एवं प्रजातियों पर निर्भर करता है। गर्मीयों में ताजा प्रयोग हेतु 5 महिने में, भण्डारण हेतु 5-7 महिने में सूखे ,तेल प्रयोग हेतु 8-9 महिने में बुवाई के बाद खोद लेना चहिये ।बीज उपयोग हेतु जबतक उपरी भाग पत्तीयो सहित पूरा न सूख जाये तब तक भूमि से नही खोदना चाहिये क्योकि सूखी हुयी पत्तियॉ एक तरह से पलवार का काम करती है। अथवा भूमि से निकाल कर कवक नाशी एवं कीट नाशीयों से उपचारित करके छाया में सूखा कर एक गड्डे में दवा कर ऊपर से बालू से ढक देना चाहिये।
ताजा हरे अदरक के रूप में 100-150 कु. उपज/हे. प्राप्त हो जाती है। जो सूखाने के बाद 20-25 कु. तक आ जाती हैं। उन्नत किस्मों के प्रयोग एवं अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत उपज 300कु./हे. तक प्राप्त की जा सकती है।इसके लिये अदरक को खेत में 3-4 सप्ताह तक अधिक छोड़ना पड़ता है जिससे कन्दों की ऊपरी परत पक जाती है।और मोटी भी हो जाती हैं।
स्त्रोत: मध्यप्रदेश कृषि,किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग,मध्यप्रदेश
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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