बीज को 12 घंटे तक पानी में भिगोयें तथा पौधशाला में बोआई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम (बैविस्टीन) फफूंद नाशी की 2 ग्राम मात्रा प्रतिकिलो बीज में उपचारित कर बोयें |
(1) बुआई मेंड़ पर या रेजड बेडमें करने से अधिक पैदावार मिलती है क्योंकि ऐसा करने से जमाव पर असर नहीं पड़ता है और अतिरिक्त जल की निकासी हो जाती है |
(2) उकठा रोग से बचाव के लिए अवरोधी किस्मे लगानी चाहिए | समुचित बीजोपचार कराना चाहिए एवं क्षेत्र प्रभावित खेतों में हर साल अरहर की खेती नहीं करनी चाहिए |
उन्नत किस्में: झारखंड राज्य के लिए बिरसा नाईजर -1 एवं बिरसा नाईजर-2 उन्नत किस्मों की सिफारिश की जाती है |
फसल प्रणाली: हल्दी के साथ अरहर की खेती से जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ने के साथ-साथ दलहन की उपलब्धता भी बढ़ेगी | हल्दी के दो-तीन पंक्ति के बाद एक पंक्ति अरहर की बुआई की जा सकती है |
(1) सीधी बुआई 100 किलोग्राम, छिटकवा विधि 80 किलोग्राम, हल के पीछे लाईन में प्रति हैक्टर | रोपाई: 50 किलोग्राम उन्नत प्रभेद (बड़ा दाना), 40 किलोग्राम उन्नत प्रभेद (मध्यम व छोटा दाना), 15 किलोग्राम संकर धान, एवं 5 किलोग्राम ‘श्री’ विधि में प्रति हैक्टर बीज दर लगता है |
(2) पौधशाला को खरपतवारों से मुक्त रखें | बिचड़ों की लगभग 12-15 दिनों की बढ़वार के बाद पौधशाला में दानेदार कीटनाशी कार्बोफुर्रांन -3 जी, 250 ग्राम प्रति 100 वर्गमीटर की दर से डालें |
आम के लिए जरदालू, बॉम्बे ग्रीन, हिमसागर दशहरी, सफेद मालदह, मल्लिका, आम्रपाली और चौसा इन किस्मों की अनुशंषा की जाती है |
2-3 टोकरी गोबर की सड़ी हुई खाद (कम्पोस्ट), 2 कि.ग्रा. करंज अथवा नीम की खली 1.0 कि.ग्रा. हड्डी का चूरा अथवा सिंगल सुपर फास्फेट एवं 50 ग्रा. क्लोर पाइरीफास धूल/20 ग्रा. फ्यूराडान/20 ग्रा. थीमेट-10 जि को गड्ढे की ऊपरी सतह की मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर गड्ढा भर देना चाहिए |
पपीते की बीजाई के लिए वाशिंग्टन, हनीड्यू, सी. ओ. -1, सी. ओ. -2, सी. ओ. -3 सी. ओ.-4, पूसा मेजस्टी, पूसा जायंट, पूसा ड्रवार्फ पंत पपीता -1, पंत पपीता-2, ये किस्में अनुशंषित की जाती है |
300 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फासफ़ोरस तथा 300 ग्राम पोटाश प्रति पौधा प्रति वर्ष नाइट्रोजन को पाँच, फासफ़ोरस को दो तथा पोटाश को तीन भागों में बाँट कर देना चाहिए |
अमरुद की सरदार (लखनऊ -49), इलाहाबाद सफेदा तथा अर्का मृदुला यह किस्मों की सिफारिश की जाती है |
जिन बागों में प्ररोह पिटिका का प्रकोप लगातार होता रहा है उसमें 0.05 प्रतिशत मोनोक्रोटोफ़ॉस कीटनाशी का छिड़काव मौसम के शुरुआत में करें | यदि आवश्यकता हो तो दूसरा छिड़काव 15 दिनों के बाद करें |
रोगग्रसित पौधों में 40 किग्रा गोबर की खाद + 4.5 किलो नीम/करंज खली + 150 ग्रा. ट्राइकोडर्मा (मोनीटर) + 1 कि.ग्रा. यूरिया + 800 ग्रा. सिं.सु. फ़ॉ. + 500 ग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश + 1 कि.ग्रा. चूना प्रति वृक्ष के हिसाब से दो भागों में बांटकर दें | यह प्रक्रिया लगातार 2 वर्षो तक अवश्य करें |
हर साल पौधों को 10-15 कि.ग्रा. गोबर की सड़ी खाद, के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों की भी उपयुक्त मात्रा देनी चाहिए |
नाशपाती की नेतरहाट लोकल तथा नट पीयर, सतालू की प्रताप, शान-ए-पंजाब एवं प्रभात तथा चीकू की काली पत्ती, पी.के.एम.1, डी.एस.एच.2, क्रिकेट बाल एवं भूरी पत्ती इस क्षेत्र की सफलतम किस्मे लगाये |
गलाधोंट: 1. पोटाशियम परमैगनेट पानी में मिलाकर दें | 2. पोटाशियम आयोडाइड 1 ग्राम को 300 मि.ली. साफ पानी में मिलाकर त्वचा में इंजेक्शन दें | 3. इंजेक्शन टेट्रासाइक्लिन टेरामाइसिन/ ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन 10 मि.ग्रा./किलोग्राम वजन भार की दर से तीन दिन तक दें| 4. इंजेक्शन इंरोफ्लोक्सा सिन 2, 5-5 मि.ग्रा./ किलोग्राम वजन भार की दर से मांस में तीन दिन तक दें | 5. इंजेक्शन सल्फाडिमाडिन 150 मिग्रा./किलोग्राम वजन भार की दर से नस में तीन दिन तक सूई दें | टीकाकरण: मानसून शुरू होने से पहले जून में एलम प्रेस्पिटेट-एच. एस. टीका त्वचा में दे |
स्त्रोत: राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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