उन्नत प्रभेद |
: |
ए.-300, अक्षागिरी-59-2-1 |
जमीन की तैयारी |
: |
अगात धान काटने के तुरंत बाद दो-तीन जुताई करें एवं पाटा देना न भूलें। ऐसा करने से भूमि की नमी संरक्षित रहेगी। |
बुआई का समय |
: |
मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बुआई अवश्य कर डालें। अधिक ठंड पड़ने से अंकुरण पर बुरा असर पड़ता है। |
बीज दर |
: |
15-20 किग्रा./हें. |
कतार की दूरी |
: |
30-45 सें.मी. |
उर्वरक |
: |
20:20:20 किग्रा. एन.पी.के. प्रति हें. (25 किलो यूरिया, 45 किलो डी.ए.पी., 34 किलो मयुरियट ऑफ़ पोटाश प्रति/हें. की दर से बुआई के समय ही व्यवहार करें) |
निकाई-गुड़ाई |
: |
प्रारम्भ में इसकी वृद्धि बहुत कम होती है। इसलिए खरपतवार से फसल की प्रतिस्पर्द्धा अधिक होती है। अत: एक माह के अंदर इनकी निकाई-गुड़ाई आवश्यक है। |
: |
इस फसल में बीमारी तथा कीड़ों का प्रकोप कम होता है, लेकिन कभी-कभी काली लाही का आक्रमण होता है। अत: इसके नियंत्रण के लिए क्लोरपाईरीफ़ॉस या रोगर-35 ई.सी. का छिड़काव पन्द्रह दिनों के अंतराल पर दो बार करें) |
उन्नत प्रभेद |
: |
तोरी: टी-9, पी.टी.-303 राई: शिवानी, वरुणा, पूसा बोल्ड, क्रान्ति |
बुआई |
: |
बीस सितम्बर से दस अक्टूबर तक। |
कतार की दूरी |
: |
30 सें.मी. – 30 सें.मी. |
पौधों की दूरी |
: |
10 सें.मी. – 10 सें.मी. |
बीज दर |
: |
5 कि./हें. – 7 कि./हें. |
उर्वरक |
: |
60:40:20 किग्रा. एन.पी.के प्रति हें. 80:40:20 किग्रा. एन.पी.के प्रति हें. |
उपज |
: |
4-5 क्विं./हें. – 8-10 क्विं./हें. |
तेल की मात्रा |
: |
42.9 प्रतिशत – 42 प्रतिशत |
कटाई |
: |
पौधों के 75 प्रतिशत भाग पीले पड़ने पर कटाई करें। पौधों के 75 प्रतिशत भाग पीले पड़ने पर कटाई करें। |
तीसी के साथ चना की मिश्रित खेती (तीन-एक कतार) में लाभप्रद है।
उन्नत प्रभेद |
: |
तोरी: टी-9, पी.टी.-303 राई: शिवानी, वरुणा, पूसा बोल्ड, क्रान्ति |
बुआई |
: |
बीस सितम्बर से दस अक्टूबर तक। |
कतार की दूरी |
: |
30 सें.मी. – 30 सें.मी. |
पौधों की दूरी |
: |
10 सें.मी. – 10 सें.मी. |
बीज दर |
: |
5 कि./हें. – 7 कि./हें. |
उर्वरक |
: |
60:40:20 किग्रा. एन.पी.के प्रति हें. 80:40:20 किग्रा. एन.पी.के प्रति हें. |
उपज |
: |
4-5 क्विं./हें. – 8-10 क्विं./हें. |
तेल की मात्रा |
: |
42.9 प्रतिशत – 42 प्रतिशत |
कटाई |
: |
पौधों के 75 प्रतिशत भाग पीले पड़ने पर कटाई करें। पौधों के 75 प्रतिशत भाग पीले पड़ने पर कटाई करें। |
उन्नत प्रभेद (ओ.पी. किस्म) |
: |
1.मार्डेन: 85-88 दिन, उपज क्षमता:7-8 क्विं./हें., तेल की मात्रा: 34-35% 2. सी.ओ.-4: परिपक्वता: 85-90 दिन, उपज 10-12 क्विं./हें., तेल की मात्रा: 38-41% 3. डी.आर.एस.एफ.-108: परिपक्वता 90-95 दिन (खरीफ), 95-100 दिन (रबी), उपज: 10-12 क्विंटल, तेल: 36-39% |
कृषि कार्य |
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जमीन की तैयारी |
: |
दो-तीन बार खेत की अच्छी तरह जुताई कर पाटा चलाकर समतल बना लें। रबी अथवा बसंतकालीन सूर्यमुखी के लिए बुआई पूर्व सिंचाई करके जमीन की तैयारी करें जिससे की मिट्टी में पर्याप्त नमी हो सकें। |
बुआई का समय |
: |
खरीफ फसल – 1 जुलाई-15 जुलाई रबी फसल – 1 अक्टूबर – 15 अक्टूबर बसंतकालीन/गर्मा -1 मार्च – 15 मार्च |
बीज दर एवं पौधों की दूरी |
: |
8-10 किग्रा.प्रति हेक्टेयर बुआई कतार में करना चाहिए। इसके लिए कतार से कतार की दूरी 60 सें.मी. एवं पौधों की दूरी 30 सें.मी. रखना चाहिए। |
बीजोपचार |
: |
बैविस्टीन 2.5 ग्रा./किग्रा. बीज अथवा इमिडाक्लोप्रीड@ 5 ग्रा./किग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। |
खाद एवं उर्वरक |
: |
5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर |
उर्वरक वर्षाश्रित खेती |
: |
40 किग्रा. नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फ़ॉस्फोरस, 50 किग्रा. पोटाश एवं 25 किग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर। |
सिंचित खेती |
: |
ओ.पी. किस्म के लिए: 50:40:25 किग्रा. नाइट्रोजन, फ़ॉस्फोरस, पोटाश एवं सल्फर प्रति हेक्टेयर। संकर किस्म: 60:90:60:25 किग्रा. एन.पी.के.एस. प्रति हेक्टेयर। |
निकाई-गुड़ाई |
: |
निकाई-गुड़ाई बुआई के 20-25 दिन बाद एवं 35-40 दिन बाद करना चाहिए। फसल को 60 दिनों तक खरपतवार रहित रखना चाहिए। खरपतवारी नाशी पेंडी मेथालिन 1.5 किग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हें. की दर से छिड़काव करना चाहिए। पौधे जब घुटने तक के ऊँचाई के हो जाये तो उसकी जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देना चाहिए। |
जल प्रबंधन |
: |
रबी फसल के लिए क्रांतिकवर्धन अवस्था जैसे कली प्रवर्त्तन (20-25 दिन बाद) पुष्प प्रवर्तन (5-60 दिन बाद) एवं बीज प्रवर्त्तन (70-75 दिन बाद) तीन सिंचाई करना चाहिए। बसंतकालीन/ग्रीष्मकालीन फसल में 4-10 सिंचाई प्रत्येक 10-15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए। खरीफ फसल सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। |
पौधा संरक्षण |
: |
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कटाई |
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जब फूल का पिछला भाग पीला पड़ जाये तो कटाई करना चाहिए एवं धूप में सुखाकर डंडे से पीटकर बीज निकाल लेना चाहिए। |
भंडारण |
: |
बीज को अच्छी तरह से सुखाकर जिसमें 10-12% से ज्यादा नमी न हो भंडारण करना चाहिए। |
उपज |
: |
ओ.पी. किस्म: औसत उपज 10-12 क्विं./हें. एवं संकर किस्म 14-15 क्विं./हें. |
उन्नत प्रभेद देर से: बी ओ 147 |
: |
लाल विगलन रोगरोधी। सभी प्रकार की मिट्टियों के लिए उपयुक्त। सूखे एवं जल जमाव को सहने की क्षमता। उपज क्षमता 1000 क्विं./हें. । 15 जनवरी के बाद तैयार हो जाती है। शर्करा की मात्रा 10.7 प्रतिशत। रस में बिक्स की मात्रा – 20 से 22 प्रतिशत। |
रोपाई |
: |
शरदकालीन गन्ना – अक्टूबर। बसंतकालीन गन्ना – फरवरी। गन्ने की फसल की रोपाई में गन्ना के तीन आँख वाला टुकड़ा अच्छा रहता है। बीज-टुकड़ों को कवक आदि से बचाने के लिए 1 ग्राम थिरम या 2 ग्राम बैविस्टीन प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर दो घंटे के लिए डुबो दिया जाता है। बीज-टुकड़ों को विषाणु मुक्त करने के लिए 54 सें.ग्रे. तापमान वाले पानी में 2 घंटे उपचारित करना आवश्यक है। |
बीज की मात्रा |
: |
प्रति हेक्टेयर 35 से 36 हजार बीज-टुकड़े जिनका बहार लगभग 50 से 70 क्विंटल होता है। |
रोपने की विधि |
: |
20 सें.मी. गहरी नालियों में 90 सें.मी. की दूरी पर गन्ना रोपना तथा वर्षा ऋतु में उस पर मिट्टी चढ़ाना। नाली बनाकर गन्ना रोपने से दूसरी विधियों की अपेक्षा अधिक उपज प्राप्त होती है। |
खाद एवं उर्वरक |
: |
रोपाई के एक-डेढ़ माह पूर्व 10-15 टन गोबर की खाद देकर जुताई कर दें। 170:80:60 किग्रा. एन. पी. के. प्रति हें. । यूरिया – 315 किग्रा. डी.ए.पी. – 176 किग्रा./हें. मयुरियटी ऑफ़ पोटाश – 100 किग्रा./हें. नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा तथा फ़ॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय दें। नाइट्रोजन की शेष 2/3 मात्रा रोपाई के 45 से 90 दिनों बाद दें। |
उन्नत प्रभेद |
: |
एल.आर.ए.-5166 अरबिंदो (पीएसएस-2), धनलक्ष्मी, विक्रम। अरबिंदों कम समय में (130-135 दिन) में तैयार हो जाता है एवं औसत उपज 8-10 क्विं./हें. है। |
कृषि कार्य |
|
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जमीन की तैयारी |
: |
दो-तीन बार खेत की अच्छी तरह जुताई करके पाटा चला दें। जुताई के समय 5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति/हें. की दर से खेत में अच्छी तरह से मिला दें। कपास टांड जमीन की फसल है, इसलिए खेत में पानी का जमाव नहीं होना चाहिए। |
बुआई का समय |
: |
मध्य जून से मध्य जुलाई |
बुआई की विधि |
: |
खेत की तैयारी के बाद 75 सें.मी. की दूरी पर डच हो से 3 सें.मी. गहरी लाइन बना लें (लाइन अधिक गहरी न हो इसका ध्यान रखना चाहिए), लाइन में अनशंसित खाद की मात्रा देकर मिट्टी में मिला दें। 30 सें.मी. की दूरी पर 2-3 बीज डालकर हल्की मिट्टी से ढंक दें। |
बीज दर |
: |
10-12 किलोग्राम प्रति हें. । |
खाद की मात्रा |
: |
नाइट्रोजन 80 किग्रा., फ़ॉस्फोरस 50 किग्रा. एवं पोटाश 40 किग्रा./हें. एवं नीम या करंज की खली 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर पंक्ति में डालें। |
पुष्पण एवं टिड़ों की अवस्था |
: |
जब कपास की फसल पर अत्यधिक फूल आने लगे तब 20 दिनों के अंतराल पर 2 प्रतिशत डी.ए.पी. के घोल से छिड़काव करने से फूल अच्छी तरह से टिड़ों (बाल्स) में परिवर्तित हो जाते हैं। |
निकाई-गुड़ाई |
: |
स्थिति के अनुसार दो बार निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। पहली निकाई-गुड़ाई बुआई के 25-30 दिनों के बाद एवं दूसरी 40-45 दिनों के बाद करके 40 किग्रा. यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से टाप ड्रेसिंग के बाद कतार पर मिट्टी चढायें। |
कीट-व्याधि नियंत्रण |
: |
60 दिनों तक कपास में किसी दवा की आवश्यकता नहीं होती है। बुआई के समय नीम या करंज की खली डालनी चाहिए। जिससे चूसने वाले कीटों का रोकथाम होता है।
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कटनी |
: |
कपास में फूल आने के 40-50 दिनों के बाद कपास की फसल तैयार होने लगता है। अत: टिंडा (बाल्स) फुटते ही उसमें से रूई प्रत्येक सप्ताह निकाल लेना चाहिए। |
नोट |
: |
बुआई के समय कपास बीज को गोबर में मिलाकर रगड़ने से दाना अलग-अलग हो जाता है जिससे बुआई के समय बीज डालने में परेशानी नहीं होती है। |
उपज |
: |
ओ.पी. बेराइटी – औसत उपज 8-10 क्विं./हें. संकर – 12-14 क्विं./हें. |
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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