गेंदा भारतीय फूलों में अत्यंत लोकप्रिय है तथा इसे पूरे वर्ष उगाया जता है। कम समय में ज्यादाफूल खिलने, कई रंगों में खिलने, जल्द न खराब होने तथा सभी मौसमों एवं मिट्टियों में उगाए जाने के कारण यह व्यावसायिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण फूल है। प्राकृतिक रंग बनाने, कुक्कुटों के भोजन और तेल निकालने में उसका उपयोग बढ़ता ही जा रहा है। इन्हीं सब महत्व के कारण बीज उत्पादन तकनीक की जानकारी से स्वस्थ बीज बनाकर लाभ भी कमाया जा सकता है और इसकी खेती का विस्तार भी किया जा सकता है।
भारत में अब अधिक उपज तथा अच्छे गुणों वाली अनेक उन्नतशील और संकर किस्में उपलब्ध हैं। किसानों को बीज उत्पादन के लिए बढ़ावा देने के ली किस्मों के प्रमाणित बीज तथा तकनीक उपलब्ध कराना अति आवश्यक है। ये बीज आनुवंशिक शुद्धता, उचित अंकुरण क्षमता आदि गुणों के साथ-साथ रोगाणुओं से भी मुक्त होते है।
(क) अफ़्रीकी गेंदा (टेगेट्स): इसके गुणसूत्रों की संख्या 24 होती है। इसके पौधे फैले तथा लम्बे (90 सें. मी.) होते है। इसके फूल बड़े (5-10 सें.मी.) होते हैं एवं पीला, चमकीला पीला, स्वर्णपीला, नारंगी और सफेद रंगों में पाये जाते हैं।
किस्म: पूसा नारंगी, पूसा बसंती, जायंट डबल अफ्रीकन आरेन्ज, जायंट डबल अफ्रीकन येल्लो।
(ख) फ्रेंच गेंदा (टेगेट्स पेटुला): इसके गुणसूत्रों की संख्या 48 होती है। इसके पौधे सघन तथा छोटे आकार (30-40 सें.मी.) के होते है। इसके फूल एकहरे एवं दोहरे प्रकार के होते हैं। फूलों
का रंग पीला, नारंगी, चित्तीदार, लाल एवं मिश्रित पाया जाता है।
(1) एकहरी किस्म: स्टार ऑफ़ इंडिया, हार्मोनी।
(2) दोहरी किस्म: रस्टी रेड, फ्लेम, स्प्रे, बोनिटा, आरेन्ज, लेमन ड्रॉप, इत्यादि।
बीज उत्पादन के लिए मिट्टी गहरी, उपजाऊ, जलनिकास वाली, मौसमी खरपतवार रहित, जल धारण कारने वाली हो। पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच वाली मिट्टी अच्छी मानी जाती है।
समशीतोष्ण जलवायु गेंदा की अच्छी वृद्धि, विकास एवं ज्यादा फूल के लिए अति उपयुक्त होती है। बीज भी इसी जलवायु में अधिक तथा अच्छे गुणों के बनते हैं।
बीज का अंकुरण 18 से 30 डिग्री सें.ग्रे. के बीच तापमान होने से अच्छा होता है। एक एकड़ के लिए 300 से 350 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज को ऊँची क्यारियों में 15-20 सें.मी. ऊँची, एक मीटर चौड़ी तथा 3 मीटर लम्बी क्यारियों में लगाना चाहिए। क्यारियों में 10 किलो गोबर की खाद प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिलानी चाहिए। बीजों को 2-3 सें.मी. गहराई पर कतार से कतार 5 सें.मी. की दूरी पर लगाना चाहिए। क्यारियों पर चींटी एवं अन्य कीट से बचाव के लिए लिन्डेन के धूल का छिड़काव करना चाहिए। अच्छे बीज का अंकुरण 5-7 दिनों में होने लगता है। सिंचाई हजारा (रोज केन) से सुबह शाम आवश्यकता अनुसार करनी चाहिए।
गेंदा के अच्छे बीज उत्पादन के लिए बीज को सितम्बर माह में बो कर अक्टूबर माह में पौधे को खेत में लगा देना चाहिए। पौधशाला से पौधों को उखाड़ने के 2-3 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए तथा उखाड़ने के समय सिंचाई कर पौधे को उखाड़े।
खेत को 2-3 बार जुताई करके प्रति एकड़ 12 टन गोबर खाद पौधा लगाने के 30 दिन पहले ही खेत में मिला देना चाहिए। पौधा लगाने के 2-3 दिन पहले प्रति एकड़ 200 किलो सिंगल सुपर फास्फेट और 135 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश खाद देनी चाहिए तथा क्यारियाँ बनाकर सिंचाई कर देनी चाहिए।
25-30 दिनों में बीज से बिचड़ा या पौधे तैयार हो जाते हैं। बिचड़ो को शाम के समय लगाना चाहिए जिससे पौधे की मृत्यु दर कम होती है।
खेत तैयार करते समय खाद देने के बाद क्यारियाँ बनाकर पौधा लगा देना चाहिए। जब पौधे 25 दिनों के हो जाएँ तब यूरिया खाद 12.5 किलो/एकड़ मिट्टी चढ़ाने के समय देना चाहिए तथा फिर 40 दिनों बाद 125 किलो/एकड़ यूरिया का उपनिवेश करना चाहिए।
बीज उत्पादन के लिए सिंचाई की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए। सभी अवस्थाओं में नमी रहनी चाहिए। प्रत्येक सप्ताह खेत में हल्की सिंचाई करने से उत्पादन अच्छा होता है।
बीज उत्पादन के लिए अफ़्रीकी गेंदा के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सें.मी. रखनी चाहिए। एक एकड़ में लगभग 30,000 पौधों की आवश्यकता होती है। फ्रेंच गेंदा के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 20 सें.मी. रखनी चाहिए। एक एकड़ में लगभग 67,000 पौधों की आवश्यकता होती है।
अफ़्रीकी गेंदा में ऊपरी तनों को तोड़ने से ज्यादा शाखाएँ निकलती हैं जिससे ज्यादा समान रूप से फूल खिलते है। बिचड़ा लगाने के 40 दिनों बाद मुख्य शाखाओं को तोड़ना चाहिए। फ्रेंच गेंदा के लिए शाखाओं को तोड़ने की आवश्यकता नहीं होती है।
गेंदा पर-परागित पौधा है। इसमें पर-परागण मुख्यत: मधुमक्खी द्वारा होता है। एक किस्म से दूसरी किस्मों के बीच कम से कम 500 मीटर की दूरी होनी चाहिए। इससे किस्मों की शुद्धता बनी रहती है। प्रजनक तथा मूल बीजोत्पादन के लिए किस्मों की पृथक्करण दूरी 800-1000 मीटर रखी जाती है।
बीज से तैयार पौधों का वानस्पतिक वृद्धि के समय या फूल खिलने के पहले और फूल खिलने के समय निरीक्षण करना चाहिए। पौधे की वृद्धि के समय, पत्तों का रंग, तनों का रंग, को देखकर अवांछित पौधों को निकालकर फेंक या जला देना चाहिए। फूल खिलने के समय फूलों का रंग, फूल के प्रकार को देखकर तुरन्त ही अवांछित पौधे उखाड़कर फेंक देना चाहिए जिससे कि पर-परागण न हो सके तथा बीज अच्छे गुणों के हों।
(1) पौध गलन: यह रोग ज्यादातर पौधा की कोमल अवस्था में राईजक्टोनिया सोलेनी फफूंद के द्वारा लगता है। जड़ों तथा तने का निचला हिस्सा, जो भूमि से लगा होता है, सड़ने लगता है, फलस्वरूप खड़ी पौध यहीं से झुक कर गिर जाती है। नर्सरी को फ़ार्मल्डिहाइट (40 मी.ली./ली. पानी) से उपचारित कर बीज बोएँ तथा पौधा निकलने पर कॉपर आक्सिक्लोराइड दवा का 4 ग्राम/ली. पानी में घोल कर छिड़काव करें।
(2) पर्णदाग और झुलसा: यह रोग अल्टेनेरिया टेगेटिका तथा सरकोस्पोरा फफूंद द्वारा लगता हैं। इससे पत्तियों पर भूरे काले रंग का दाग होने लगता है तथा बाद में पत्तियाँ जल जाती हैं। इस रोग के लिए ब्लाइटाक्स दवा 4 ग्राम या वेवस्टीन दवा 2 ग्राम/ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(3) पाउडरी मिल्ड्यू: यह रोग ओडियम स्पेसिज फफूंद द्वारा होता है। सफेद रंग का पाउडर जैसा छिड़काव हुआ पौधे के ऊपर दिखाई देता है। इसकी रोक थाम के लिए सल्फेक्स दवा 3 ग्राम/ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(4) वायरस: गेंदा में कुकुम्बर मोजेक वायरस और एस्टर यलो वायरस का प्रकोप माहू और गार्सहॉपर कीट द्वारा होता है। रोग ग्रसित पौधा को उखाड़ कर जला देना चाहिए तथा मालाथियान दवा 1.5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(1) रेड स्पाइडर माइट: यह नन्हा कीट फूल खिलने के समय ज्यादा लगता है। पत्तियों पर रंगहीन सफेद दाग बना देते हैं तथा फूल सूखे जैसे गंदे दिखने लगते हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए डाइकोफाल 2.5 मि.ली./ली. पानी में घोलकर 1 मि.ली. गोन्द मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
(2) रोयेंदार लार्वा: यह लार्वा पत्तियों, फूल को खाकर पौधे को नुकसान पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए इकाल्कस दवा 2 मि.ली./ली. पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
पूर्ण विकसित, सूखे फूल को सुबह के समय तोड़ना चाहिए। फूल के बाह्यदलपुंज (कैलिक्स) को हटाकर बीजों को निकालना चाहिए। फूलों की पंखुड़ियों को पहले हटा लेना चाहिए, फिर बाह्यदलपुंज को सावधानी से हटाकर स्वस्थ बीज एकत्र करना चाहिए। बीज एकत्र कर हवा के बहाव में उड़ाकर अच्छे बीज छाँटकर रखना चाहिए। बीज की उपज फसल प्रबंधन तथा परागण पर निर्भर करती है। साधारण फसल में 300-400 किलो ग्राम सूसा अफ़्रीकी गेंदा फूल का प्रति एकड़ उत्पादन होता है, जिससे 30-35 किलो बीज का उत्पादन प्रति एकड़ होता है। 1000 बीज का वजन 2.46 ग्राम (पूसा बसंती) और 2.98 ग्राम (पूसा नारंगी) होता है।
बीजों का भंडारण 7 से 7.5% नमी रहने पर थीरम और साइटोजाइन से उपचारित कर 8 महीनों तक पोलीथिन के थैले में किया जा सकता है। कपड़े की थैली में 5-6 महीनों तक संरक्षित रखा जा सकता है।
क्र.सं. |
मद |
खर्च (रु. में.) |
1 |
भूमि की तैयारी एवं नर्सरी |
3000 |
2 |
300 ग्राम बीज का मूल्य |
450 |
3 |
सिंचाई |
3200 |
4 |
पिंचिग |
160 |
5 |
गुड़ाई एवं खरपतवार निकालना, रोगिंग |
1200 |
6 |
खाद एवं उर्वरक |
6000 |
7 |
रोग एवं कीट नियंत्रण |
1000 |
8 |
फूल को तोड़ना |
1200 |
9 |
बीज निकालना |
5000 |
|
कुल खर्च |
21210 |
35 किलो बीज का मूल्य 1250/- रूपये/किलो की दर से 43750
लाभ: (बीज बेचने पर कुल आमदनी – कुल खर्च) 22540
नोट: लागत एवं आय अनुपात किस्म, स्थिति एवं स्थान के हिसाब से परिवर्तनीय है।
क्र.सं. |
स्थानीय नाम |
वैज्ञानिक नाम उम्र (वर्ष) |
परिपक्वता |
उपयोगिता |
1 |
अर्जुन |
टर्मीनैलिया अर्जुना |
10-15 |
लकड़ी, टेनिन, टसर |
2 |
आकाशी |
एकेशिया आरी क्युलीप्तर्मिस |
10-12 |
जलावन, लकड़ी |
3 |
इमली |
टैमिरेन्ड्स इंडिका |
8-10 |
लकड़ी, जलावन, फल, स्टार्च |
4 |
करंज |
पोंगैनिया पिन्नेटा |
8-10 |
चारा, लकड़ी, बीज, तेल के लिए |
5 |
काला सिरिस |
एलवीजिया लेबेक |
12-15 |
लकड़ी, चारा |
6 |
कचनार |
बाहुनिया वेरा गाटा |
8-10 |
लकड़ी, चारा |
7 |
खैर |
एकेशिया कटेचु |
15-20 |
लकड़ी, जलावन |
8 |
गम्हार |
मेला ना आरबीरिया |
12 |
लकड़ी |
9 |
चकुंडी |
कैशिया सियामिया |
8-10 |
लकड़ी, जलावन |
10 |
तून |
टूना सिलिएटा |
15-20 |
लकड़ी, जलावन |
11 |
नीम |
एजाडिरैकटा डिका |
8-10 |
चारा, फल, तेल, लकड़ी, औषधि |
12 |
बबूल |
अकेशिया निलोटिका |
15-20 |
चारा, टैनिन, गोंद, लकड़ी, जलावन |
13 |
बकैन |
मिलिया एजिडिरिक |
8 |
चारा, फल, लकड़ी |
14 |
बेल |
इगल मार्मिलास |
8-10 |
लकड़ी, फल, चारा |
15 |
ब्लूगम |
युक्सिप्ट्स |
8-10 |
लकड़ी, पोल, तेल, औषधि |
16 |
बाँस |
डेन्डारोकैलामस स्ट्रिकटस |
4-5 |
पेपर, जलवान, चारा, अचार |
17 |
महुआ |
मधुका इंडिका |
8 |
फल, फूल, लकड़ी |
18 |
शीशम |
डलबर्जिया सिस्सू |
12-15 |
लकड़ी, चारा, जलावन |
19 |
सफेद सिरिस |
एलबिहजया प्रोसेरा |
12-15 |
लकड़ी, चारा |
20 |
सखुआ |
शोरिया रोबस्टा |
80-120 |
लकड़ी, तेल |
21 |
सागवान |
टेकटोना ग्रांडिस |
- |
लकड़ी |
22 |
सेमल |
बाम्बाकस सीबा |
10-15 |
लकड़ी, फाइबर |
23 |
हर्रा |
बमिनैलिया चेबुला |
10 |
फल, औषधि |
क्र.सं. |
जैविक खाद का नाम |
पोषक तत्वों की प्रतिशत मात्रा |
||
नाइट्रोजन |
स्फुर |
पोटैश |
||
1 |
गोबर की खाद |
0.5 |
0.3 |
0.4 |
2 |
कम्पोस्ट |
0.4 |
0.4 |
1.0 |
3 |
अंडी की खली |
4.2 |
1.9 |
1.4 |
4 |
नीम की खली |
5.4 |
1.1 |
1.5 |
5 |
करंज की खली |
4.0 |
0.9 |
1.3 |
6 |
सरसों की खली |
4.8 |
2.0 |
1.3 |
7 |
तिल की खली |
5.5 |
2.1 |
1.3 |
8 |
कुसुम की खली |
7.9 |
2.1 |
1.9 |
9 |
बादाम की खली |
7.0 |
1.3 |
1.5 |
क्र.सं. |
उर्वरकों का नाम |
उपलब्ध पोषक तत्व (प्रतिशत में) |
||
नाइट्रोजन |
स्फुर |
पोटैश |
||
1 |
यूरिया |
46.0 |
- |
- |
2 |
अमोनियम सल्फेट |
20.6 |
- |
- |
3 |
अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट |
26.0 |
- |
- |
4 |
अमोनियम नाइट्रेट |
35.0 |
- |
- |
5 |
कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट |
25.0 |
- |
- |
6 |
अमोनियम क्लोराइट |
25.0 |
- |
- |
7 |
सोडियम नाइट्रेट |
16.0 |
- |
- |
8 |
संजीवन |
26.0 |
- |
- |
9 |
सिंगल सुपर फ़ॉस्फेट |
- |
16.0 |
- |
10 |
ट्रिपल सुपर फ़ॉस्फेट |
- |
48.0 |
- |
11 |
डाई कैल्सियम फ़ॉस्फेट |
- |
38.0 |
- |
12 |
पोटैशियम सल्फेट |
- |
- |
48.0 |
13 |
म्यूरिएट ऑफ़ पोटैश |
- |
- |
60.0 |
14 |
पोटैशियम नाइट्रेट |
13.0 |
- |
40.0 |
15 |
मोनो अमोनियम फास्फेट |
11.0 |
48.0 |
- |
16 |
डाई अमोनियम फ़ॉस्फेट |
18.0 |
46.0 |
- |
17 |
सुफला (भूरा) |
20.0 |
20.0 |
- |
18 |
सुफला (गुलाबी) |
15.0 |
15.0 |
15.0 |
19 |
सुफला (पीला) |
18.0 |
18.0 |
9.0 |
20 |
ग्रोमोर |
20.0 |
28.0 |
- |
स्त्रोत: रामकृष्ण मिशन आश्रम, दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र, राँची।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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