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झारखण्ड में आम की खेती

परिचय

आम भारतवर्ष तथा  झारखण्ड का एक प्रमुख फल है|  इसे रुचिकर स्वाद, मनमोहक सुगंध तथा रंगों से परिपूर्ण होने के कारण फलों का राजा कहा जाता है|  फलों में कार्बोहाईड्रेट एवं सुक्क्षम पौष्टिक तत्वों के अलावा विटामिन ‘ए’ और ‘बी’ भी प्रचुर मात्रा में पायेजाते हैं|  आम की खेती में लागत कम आने कीAam वजह से छोटे किसान भी इसका खेती करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं|

आम के फल अपरिपक्व अवस्था तक उपयोग में लाये जाते हैं| इसके फलों की पैदावार बढ़ाकर निर्यात करने से काफी विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है केन्द्रीय बागवानी परिक्षण केंद्र पर किये गये परीक्षण एवं विभिन् क्षेत्रों के सर्वेक्षण से यह ज्ञात हो चूका है कि छोटानागपुर पठार कि जलवायु एवं भूमि इसके उत्पादन के लिये उपयुक्त है|  भूमि का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान देना आवश्यक है कि भूमि में जल निकास की समुचित व्यवस्था करके इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है|

किस्में

हमारे देश में लगभग एक हजार से अधिक किस्में पाई जाती हैं|  जिनमें से निम्नलिखित कुछ किस्में ही व्यापारिक स्तर पर इस क्षेत्र में उपयुक्त पाया गया है :-

१. गुलाब खास : यह सबसे अगेती किस्म है| इसके फल मध्यम आकार के होते हैं तथा फलों के पकने पर उनमें आकर्षक गुलाबी रंग आ जाता है|  इसके फलों में विशेष प्रकार का स्वाद होता है जो इसके नाम को चरितार्थ करता है|

२. बम्बई हरा : यह भी जल्दी पकने वाली किस्म है इसके फलों का रंग हरा होता है, लेकिन पकने पर पीला हो जाता है|  इसके फल बहुत स्वादिष्ट होते हैं तथा भण्डारण में इसे कुछ दिनों तक आसानी से सुरक्षित रखा जा सकता है|

३. मालदह : इसके फलों का रंग हरा होता है|  गुदा हल्का पीला, रसदार और रेशाहिन् होता है| गुठली पतली तथा रस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है|  फलों का स्वाद अच्छा होने के कारण इस जाति के फलों की मांग बाजार में अधिक है|

४. कृष्णभोग: इसके फल गोल, स्वादिष्ट तथा मध्यम आकार के होते हैं| यह मध्य में पकने वाली जाति है तथा पकने पर फल पीले हो जाते हैं|

५. हिमसागर : इसके फल स्वादिष्ट चपटे आकार के होते हैं जिनका रंग पकने पर पीला हो जाता है|  यह भी जल्दी पकने वाली किस्म है|

६. महमूद बहार : इसके फल स्वादिष्ट तथा मध्यम आकार के होते हैं|  यह देर से तैयार होने वाली जाति है|

७. जरदालू : यह अधिक फल देने वाली किस्म है|  इसके फलों का आकार मध्यम, लम्बा और रंग सुनहरा पीला होता है|  रस की मात्रा मध्यम होती है|  फलों का स्वाद काफी मीठा होता है|

८. लंगड़ा : इसके फलों का रंग हरा, गुदा हल्का पीला, रेशाहिन् होता है|  इसकी गुठली पतली तथा रस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है| शुरू के वर्षों में अधिक फल गिरने के कारण उपज कम होतो है|  इसके फलों का स्वाद इस क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है|

९. दशहरी : इस किस्म के फल लम्बे और पतले होते हैं|  गुदे में रेशा बिल्कुल नहीं पाया जाता है|  फल मीठे, रसदार और स्वादिष्ट होते हैं|  पौधे लगाने के चार साल बाद अच्छी तरह फलने लगते हैं|  डिब्बा बन्दी के लिये अच्छी किस्म है तथा इसके फलों की काफी दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है|

१०. फजली : इसके फलों का आकार बड़ा होता है|  यह मध्यम गुणों वाली तथा देर में पकने वाली किस्म है|  इसके फलों को अधिक समय तक रखा जा सकता है|

११. आम्रपाली : यह आम की नई किस्म है जो हर वर्ष फल देती है|  इसके पौधे बौने होते हैं|  इसलिये यह किस्म सघन खेती तथा गृहवाटिका के लिये उपयुक्त  है|  इसमे काफी संख्या में फल आते हैं तथा फल पौधा लगाने के तीसरे वर्ष से ही काफी संख्या में आने लगते हैं|  फलों का आकार मध्यम होता है जो कुछ देर में पकते हैं तथा उसका स्वाद अच्छा होता है|  इसके फलों को काफी दिनों तक रखा जा सकता है|  इसके फल एक साथ नहीं पकते|  यह इस जाति की कमी है|  भूमि में नमी कम होने पर फलों में फटकर गिरने की समस्या पाई जाती है|

प्रसारण

छोटानागपुर पठार में लगाये गये ज्यादातर आम के पौधे गुठली द्वारा उगाकर तैयार किये गये हैं जिन्हें बीजू के नाम से जानते हैं,  जिनमें मात्री-पित्री आनुवंशिक गुणों का अभाव होता है तथा फल अच्छी गुणवता के नहीं होते हैं|  आधिक पैदावार एवं उत्तम गुणवत्ता के लिए वानस्पतिक विधि द्वारा प्रसारण उत्तम होगा|  इस विधि द्वारा तैयार किये गये पौधों में फल शीघ्र लगते हैं तथा पौधों का आकार बीजू की अपेक्षा काफी छोटा होता है जिसके कारण यह कम जगह में भी लगाये जा सकते हैं|  वानस्पतिक विधि द्वारा पौधे तैयार करने की कई विधियाँ हैं जैसे भेंट कलम, विनियर ग्राफित्तंग, प्रान्कुर प्रसारण एवं मृद्शाखा कलम आदि|

.भेंट कलम बांधना :

यह आम के प्रवर्धन की बहुत सरल एवं अत्यधिक प्रचलित विधि है|  इस विधि में एक वर्ष पुराने गमले में लगे बीजू पौधों को, जिनपर कलम बांधनी होती है, मात्री वृक्ष पर मूलवृन्त के समान छोटी शाखा का चुनाव करते हैं|   दोनों शाखाओं से ४-५ से. मी. लम्बी छाल और थोड़ी लकड़ी एक ओर से काट ली जाती है|  फिर दोनों कटे हुए भागों को सुतली से या पालीथीन से बांध दिया जाता है|  लगभग दो माह में शाखाएँ जुड़ जाती हैं|  जब जोड़ पक्का हो जाए तो मात्री वृक्ष की शाखा को जोड़ के ठीक नीचे से काटकर अलग कर दिया जाता है|  इसके बाद मूलवृन्त पौधा का ऊपरी भाग जोड़ के ऊपर से काट दिया जाता है|  इस प्रकार तैयार किये गये कलमी पौधों को पहले किसी छायादार स्थान पर रखना चाहिए एवं उसके बाद बाग में रोपाई के लिये प्रयोग करना चाहिये|

२. विनियर कलम चढ़ाना :

यह भेंट कलम की तुलना में सुविधाजनक विधि है|  इसमे मूलवृन्त को पौधशाला में तैयार किया जाता है अर्थात बीजू पौधों को मत्रिविक्ष के समीप ले जाने की आवश्यकता नही पड़ती है| कलम बांधने के लिये ३-४ माह पुरानी स्वच्छ शाखाओं का चुनाव किया जाता है|  करीब एक सप्ताह पूर्व इन चुनी हुई शाखाओं की पत्तियों को तोड़ देते हैं|  बीजू पौधे (मूलवृन्त) जिनपर कलम चढानी है एक वर्ष की अवस्था के होने चाहिये|  कलम बांधने के लिये मूलवृन्त पर ४-५ से. मी. लम्बी छाल व् कुछ लकड़ी छील कर कटे हुए भाग के निचले छोर को ‘व्ही’ आकार देना चाहिए|  इसी तरह संकुर डाली को भी छीलकर मूलवृन्त के कटे हुए भाग में जोड़ देना चाहिए|  सांकुर डाली की लम्बाई १०-१५ से.मी. होनी चाहिए|  विनियर कलम बांधने का उत्तम समय फरवरी –मार्च व् जून-जुलाई है|  इस विधि में ८०-८५ प्रतिशत सफलता मिलती है|  यह एक सस्ती और सरल विधि है|

३. प्रांकुर प्रसारण विधि :

इस विधि को स्टोन ग्राफितंग कहते हैं|  इसमें कम समय एवं खर्च में पौधे को तैयार किया जा सकता है|  इसमें उगते हुए बीजू पौधों पर कलम बांधी जाती है|  इस विधि की सफलता के लिए वायुमंडल में उचित नमी का होना अत्यन्त आवश्यक है|

४. मृदुशाखा कलम प्रशारण :

असिंचित क्षेत्रों में स्व-स्थाने विधि द्वारा बाग तैयार करने के लिये यह विधि बहुत उपयोगी पाई गई|  इसमें निर्धारित दूरी पर बीज बो दिये जाते हैं जिनपर एक वर्ष बाद कलम बांधी जाती है|  कलम बांधने के लिये कोमल टहनियों के प्रयोग किया जाता है|  कलम बांधने के लिये मूलवृन्त की मृदुशाखा को ऊपर से काट कर उसमें ‘व्ही’ आकार में कटते हैं तथा जिस जातिकी कलम बांधनी है उसकी पूर्व बताई गई विधि द्वारा पहले से तैयार शाखा लेकर उसके निचले भाग ‘व्ही’ आकार का इतना मोटा काटते हैं कि मूलवृन्त की काट में सही प्रकार आ जाये|  इनको पोलीथीन से बांध देते हैं|  कलम बांधने का उत्तम समय जून-जुलाई व् फरवरी – मार्च पाया गया|

पौधरोपण

आम के पौधों को लगाने का मुख्य समय जुलाई से अगस्त तक है|  इस क्षेत्र में २-३ वर्षा के बादTreeपौधरोपण करने से काफी सफलता मिली है|  रोपाई के पूर्व खेत को गहराई से जोतकर समतल बना लिया जाता है|  भूमि के समतल होने के पश्चात जाति के अनुसार उचित दूरी पर एक मीटर व्यास के गड्डे बना लिये जाते हैं, ऊपर की आधी मिट्टी गड्डे के एक तरफ व् नीचे की मिट्टी दूसरी तरफ रखी जाती है|  इन गडडों को पौधा लगाने के १५-२० दिन पूर्व ऊपर की मिट्टी में २० कि. ग्र. सड़ी गोबर कि खाद, २.५ कि. ग्र. सिंगल फास्फेट और १५० ग्राम एल्ड्रिन धूल मिलाकर भर दिया जाता है|  गड्डे भरते समय मिट्टी को अच्छी तरह दबाते हैं तथा भूमि कि सतह से १५-२० से. मी. उठा हुआ रखते हैं|  दो-तीन वर्षा होने के बाद गड्डे कि मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाती है|  यदि मिट्टी अधिक बैठ गई हो तो ऊपर से मिट्टी डालकर भूमि को समतल कर देते हैं|  इसके बाद पौधों को इन तैयार गडडों के बीच में लगाकर उतनी ही मिट्टी में दबाते हैं जितना वह पौधा में था|

अधिकांश जातियों जैसे गुलाब खास, बम्बई हरा, महमूद बहार आदि को १०x१० मीटर कि दूरी लगाते हैं तथा आम्रपाली किस्म को ५ x ५ मीटर कि दूरी पर लगाते हैं|

खाद एवं उर्वरक

आम  के पेड़ों कि आयु के अनुसार नीचे दे गई खाद व् उर्वरकों कि मात्रा देना उचित रहेगा :-

(क)  चार वर्ष तक के पेड़ों में प्रतिवर्ष २० कि.ग्रा. गोबर का खाद, ४०० ग्राम यूरिया, १ किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा ४०० ग्राम मयूरेट आफ पोटाश|

(ख)   चार वर्ष से अधिक आयु के पेड़ों में प्रतिवर्ष ४० कि. ग्रा. गोबर का खाद, १ किलो यूरिया, २ किलो सिंगल फास्फेट तथा १ किलो म्युरयेत आफ पोटाश|

उपरोक्त उर्वरकों कि आधी मात्रा वर्षा के शुरू में आधी मात्रा वर्षा के समाप्त होने के समय सितम्बर माह में देना चाहिये|

सिंचाई

जिस वर्ष पौधा लगाया जाता है उस वर्ष उसमे सिंचाई कि आवश्यकता पड़ती है|  सिंचाई गर्मियों में ७-१० व् जाड़ों  में १२-१५ दिन पर करते रहना चाहिये| पौधे के चारों ओर कि भूमि को घास से द्धाकने पर भूमि में नमी बनी रहती है तथा सिंचाई कि कम आवश्यकता पड़ती है|  बड़े पौधों मी सिंचाई कि आवश्यकता नहीं होती फिर भी फसल लगने के उपरान्त २-३ सिंचाई करने पर फल कम गिरते हैं तथा उनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है|

निराई-गुड़ाई

अच्छी पैदावार लेने के लिये यह आवश्यक है कि बाग में खर पतवारों का प्रकोप न हो|  इसके लिये वर्ष में तीन बार जुताई करनी चाहिए|  एक गुडाई वर्षा के शुरू में और दूसरी नवम्बर माह के अंत में करनी लाभप्रद होती है|  आवश्यकता पड़ने पर बीच में भी गुडाई कि जा सकती है|  नवम्बर में गुडाई करने से गुजिया कीड़े का प्रकोप कम किया जा सकता है|

रोग

आम के बाग में निम्न रोगों का प्रकोप होता है :-

१. पाउडरी मिल्डयू :यह रोग फरवरी – मार्च में पत्तियों,फलों एवं पुष्पों को हानि पहुंचाता है|  यह सफेद चूर्ण कि तरह होता है|  इस रोग से ग्रसित फल एवं फूल गिर कर नष्ट हो जाते हैं|  अत्: इसकी रोकथाम अत्यंत आवश्यक है|  इसके लिए ०.२ प्रतिशत गंधक या ०.१ प्रतिशत वेविस्तिन का एक छिडकाव फूल आने के तुरन्त बाद १० दिन के अन्तराल से दो बार करना चाहिए|      

२. अन्थ्रेकनोज : यह रोग नव पल्लवों पुष्पों तथा फलों को प्रभावित करता है|  इससे प्रभावित टहनियाँ सूखने लगती  हैं|  इसकी रोकथाम के लिए प्रभावित डाली को काट कर ०.१ प्रतिशत वेविस्तिन का छिडकाव करना लाभप्रद होगा|

३. बैक्त्नरियल कैंकर : यह रोग वैक्टीरिया द्वारा होता है|  इसमे पत्तों पर भूरे रंग का धब्बा बनता है साथ ही प्रभावित पत्ते गिर जाते हैं|  रोग की तीव्रता में इसका प्रभाव फलों पर भी होता है| फल गिरने लगते हैं| इसकी रोकथाम के लिए ब्लू कापर का छिडकाव करना चाहिए|

४. रेड-रस्ट :  इसमे भी पत्तियों पर भूरे दाग पड़ते हैं जिससे पत्ते गिरने लगते हैं|  इसकी रोकथाम के लिए आक्सीक्लोराइड का ०.३ प्रतिशत का छिडकाव करना चाहिए|

स्त्रोत: हलचल, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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