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समेकित रोग प्रंबधन

परिचय

समेकित रोग प्रंबधन का अभिप्राय है रोगों का प्रकोप न होने देना अथवा रोग के संक्रमण एवं उसकी उग्रता को कम करना। समेकित रोग प्रबन्धन में विभिन्न फसलों में रोगाणुओं से होने वाले नुकसान को यथासंभव कम करना है। रोग जनकों को पूर्ण रूप से नष्ट करना न तो संभव है न इसकी आवश्कता है। समेकित रोग प्रबन्धन में वातावरण के प्रदूषण को रोकने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कवकनाशी, जिवानुनाशी तथा रोग नियन्त्रण में प्रयुक्त अन्य रसायनों का आवश्कतानुसार एवं समुचित उपयोग हो इसके लिए रोगजनकों के जीवनचक्र एवं उससे होने वाले नुकसान की जानकारी आवश्यक है। जैविक विधियों द्वारा रोगों के प्रबन्धन का महत्व काफी बढ़ा है। फसलों के कई मृदाजनित रोगों के प्रबन्धन, ट्राईकोडर्मा, फफूंद की विभिन्न प्रजातियों (ट्राईकोडर्मा विरिडी, ट्राईकोडर्मा, हेमेटन, ग्लायोकलाईडियम वायरिंग) द्वारा किया जाता है। जैविक विधि में रोगजनकों के प्रंबधन के लिए कवकों, जीवाणुओं, एक्टिनोमाईसीज, वायरस, प्राटोजोआ, सूत्रक्रिमी एवं माईट का भी प्रयोग किया जाता है।

समेकित रोग प्रबन्धन के प्रमुख घटक है

  1. स्वाथ्य, रोगाणुमुक्त एवं उप्चारिता बीज का उपयोग २) खर-पतवार तथा विभिन्न रोगों के पोषी पौधों का नियंत्रण 3) रोगग्रस्त मृदा में फसलचक्र अपनाना एवं संबधित फसलों का 3-4 वर्षों के लिए परित्याग 4) मृदाजनित रोगों के प्रंबधन के लिए प्रचुर मात्रा में जैविक खाद एवं जैविक विधियों का उपयोग, 5) अंतरवर्ती फसल, पल्वार (म्लोचिग) एवं अन्य विधियों द्वारा रोगाणुओं की वृद्धि की रोकथाम, उर्वरकों, सिचाई तथा रोग के प्रंबधन में प्रयुक्त रसायनों का समुचित उपयोग, (7) फसलों की उन्नत एवं रोगरोधी किस्मों का चयन एवं 8) अनुशंसाओं के अनुसार फसलों की उपयुक्त समय पर बोआई एवं कटाई।

प्रमुख खरीफ फसलों में समेकित रोग प्रबन्धन

धान झारखण्ड राज्य की सबसे महत्वपूर्ण फसल है। इस राज्य की  बहुसंख्यक आबादी का प्रमुख आहार चावल है। तथा इसकी खेती अन्य फसलों की तुलना में व्यापक पैमाने पर की जाती है। मकई  और मडुआ की खेती भी इस राज्य में बड़े पैमाने पर की जाती है। दलहनी फसलों में अरहर, मुंग, उड़द, तेलहन में मूंगफली सब्जियों में भिन्डी, बैगन, कद्दू जाति की सब्जियां इस मौसम की अन्य प्रमुख फसल है।

खरीफ फसलों के रोग एवं उसके समेकित प्रंबधन की प्रमुख अनुशासएं निम्नलिखित है

फसल एवं प्रमुख रोग

अनुशासाएं

भूरी चित्ती, ब्लास्ट या झुलसा, जीवनुज पर्ण अंगमारी, पर्णच्छद अंगमारी (सीथ ब्लास्ट) एवं फ़ॉलस समट

भूरी चित्ती एवं झुलसा रोगों के लिए बीज का बैविस्टिन या वीटाफैक्स फफूंदनाशक दवा २) ग्राम मात्रा प्रति किग्रा. बीज की बोआई से पूर्व सुखा उपचार करें।

 

जीवाणुज पर्ण अंगमारी रोग के लिए बीज को स्ट्रप्टोसाईकिलिन के घोल (२ ग्राम मात्रा 10 लीटर पानी में) पूरी रात भिगोकर उपचारित करें।

 

खड़ी फसल में भूरी चित्ती तथा झुलसा रोगन की रोकथाम के लिए हिनोसान (0.1%) कवच (0.२%) अथवा बीम (0.05%) का छिड़काव करें।

 

पर्णचछेद अंगमारी की रोकथाम कोणटाफ (0.1%) के छिड़काव से की जा सकती है। फोल्स समत रोग के प्रकोप से बचाव के लिए टिल्ट (0.1%0 अथवा ऑक्सीक्लोराइड (02%) का छिड़काव बालियाँ निकलने से पूर्व करें। नेत्रजन उर्वरक का उपयोग अनुशंसाएँ के अनुसार ही करें।

मकई (हेलिमंथोस्पोरियम झुलसा, सीथ ब्लाईट एवं किट्ट रोग)

बोआई से पूर्व बीज का थरिम फफूंदनाशक (3 ग्राम मात्र प्रति किलोग्राम बीज) से सुखा उउपचार करें हेलिमंथोस्पोरियम झुलसा, सीथ ब्लाईट एवं किट्ट रोग प्रारंभिक लक्षण प्रकट होने पर इंडोफिल एम्-45 (0.25%) का छिड़काव करें। सीथ ब्लाईट रोग की रोकथाम के लिए कोंटाफ (0.1%) का छिड़काव करें।

मडुआ( ब्लास्ट या झुलसा रोग)

झुलसा रोग की रोकथाम के लिए 50% बालियाँ आने के पश्चात बीम (0.05%) हिनोसान (0.1%0 अक एक छिड़काव अथवा साफ (0.२%) का दो छिड़काव करें।

अरहर (मलानी रोग)

बोआई से पूर्व बीज का बैविस्टीन  फफूंदनाशक (२  ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज) से सुखा उपचार करें। बीजोपचार ट्राईकोडर्मा आधारित जैविक फुफुन्द नाशी (4 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज) से भी की जा सकती है।

 

अरहर की रोग सहिस्ष्णु किस्मों (जिअसे बंसत, बहार, शरद, बिरसा अरहर-1) का चयन करें)

 

प्रारंभिक अवस्था में मलानी रोग से बचाव के लिए बैविस्टीन (0.5%) छिड़काव करें। छिड़काव इस प्रकार करें ताकि पौधों के साथ जड़ के पास की मिट्टी भी सिचित हो जाए।

 

अरहर-ज्वार की मिलवान/अंतव्रती फसल मलानी रोग के प्रसार को रोकने में सहायक हॉट है। अरहर का फसलचक्र के साथ किया जाए तो रोग में कमी हो जाती है।

मुंग, उड़द (पत्र लाक्षण एन्थ्रेक्नोज, वायरस रोग, जालीदार अंगमारी रोग)

रोगग्रस्त फसल से प्राप्त बीज का उपयोग न करें।

 

बोआई से पूर्व बीज का बैविस्टीन  फफूंदनाशक (२  ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज) से सुखा उपचार करें।

 

वायरस रोगों के कीटों से प्रसार रोकने के लिए सर्वंगी कीटनाशी मेटास्टेसिस (1 मिली लिटर प्रतिलीटर पानी में ) छिड़काव करें।

मूंगफली (टिक्का रोग)

बोआई से पूर्व बीज का बैविस्टीन  फफूंदनाशक (२  ग्राम मात्रा)/ थिरम (3 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज सुखा उपचार करें।

 

खड़ी फसल में रोग के प्रांरभिक लक्षण प्रकट होने बैविस्टिन (0.०७५%) इंडोफिल एम्-45 (0.15%) का छिड़काव करें।

भिन्डी (पीला शिरा मोजैक वायरस रोग, पत्र लक्षण चुरना फुफुन्द रोग)

उन्न्त रोग सहिष्णु किस्मों (जैसे परभनी क्रांति, पंजाब-7. अर्का अभय, अर्का अनामिका, पूसा ए-4) का चयन करें।

 

बोआई से पूर्व बीज का बैविस्टीन  फफूंदनाशक (२  ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज) से सुखा उपचार करें।

 

कुडों में दानेदार सर्वंगी कीटनाशी (कार्बोफुर्रोंन-3 जी) 3 ग्राम प्रति वर्ग मीटर  की दर से करें।

 

पत्र लांक्षण एवं चूर्णीफफूंद रोगों एक प्रारंभिक लक्षण प्रकट होने पर का बैविस्स्टीन (0.1%) का एक छिड़काव करें।

बैगन (मलानी रोग)

बैंगन की रोग सहिष्णु किस्मों( जैसे स्वर्णश्री, स्वर्णमणि, अर्का केशव, अर्का निधि) का चयन करें।

 

गर्मियों में गहरी जुताई कर खेत  को खिला छोड़ दें

 

फसलचक्र में 3 वर्षों तक सोलेनेसी कुल की सब्जियां (आलू, बैगन, टमाटर, मिर्च शिमला मिर्च) नहीं लगाएँ।

 

खेत में प्रचुर मात्रा में गोबर की सड़ी काढ एवं खली का प्रयोग करें।

 

खेत में बिचड़ों को रोपने से पूर्व उनकी जड़ों को स्ट्रेप्टोसाईकिलन के घोल (२ ग्राम 10 लीटर पानी में) 1 घंटे तक डुबाएं।

 

स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : समेति, कृषि विभाग , झारखण्ड सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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