रासायनिक खादों के लिए नमूना लेना
जो भाग देखने में मृदा की किस्म तथा फसलों के आधार पर जल निकास व फसलों की उपज के दृष्टिकोण से भिन्न हो, उस प्रत्येक भाग की निशानदेही लगायें तथा प्रत्येक भाग का खेल मानें|
मृदा का फसल नमूना लेने के लिए मृदा परीक्षण ट्यूब (Soil Tube), बर्मा (Soil Auger), फावड़ा तथा खुरपे का प्रयोग किया जा सकता है|
(क) मृदा के ऊपर घास – फूस साफ करें|
(ख) भूमि कि सतह से हल की गहराई (0-15 सें|मी|) तक मृदा ट्यूब या बर्मा द्वारा मृदा की एकसार टुकड़ी लें| यदि आपको फावड़े या खुरपे का प्रयोग करना हो तो “V” के आकार का 15 सें|मी| गहरा गढ्ढा बनायें| अब एक ओर से ऊपर से नीचे तक 2-6 सें|मी| मोटाई की मिट्टी की एकसार टुकड़ी काटें| एक खेत में 10 – 12 अलग अलग स्थानों (बेतरतीब ठिकानो) से मृदा की टुकड़ियाँ लें और उन सबको एक भगोने या साफ़ कपडें में इकठ्ठा करें|
(ग) अगर खड़ी फसल से नमूना लेना हो, तो मृदा का नमूना पौंधों की कतारों के बीच वी खाली जगह से लें| जब खेत में क्यारियां बना डी गई हो या कतारों में खाद डाल डी गई हो तो मृदा का नमूना लेने के लिए विशेष सावधानी रखें|
नोट :- रासायनिक खाद की पट्टी वाली जगह से नमूना लें| जिन स्थानों पर पुरानी बाड़, सड़क हो और जहाँ गोबर खाद का पहले ढेर लगाया गया हो या गोबर खाद डाली गई हो, वहां से मृदा का नमूना लें| ऐसे भाग से नमूना लें, जो बाकी खेत से भिन्न हो| अगर ऐसा नमूना लेना ही, तो इसका नमूना अलग रखें|
एक खेत के भिन्न – भिन्न स्थानों से तसले या कपड़ें में इकठ्ठे किये हुए नमूने को छाया में रखकर सुखा लें| हर नमूने के साथ नाम, पता और खेत के नंबर का लेबल लगायें| अपने रिकॉर्ड के लिए भी उसकी एक नकल रख लें| दो लेबल तैयार करें – एक थैली के अन्दर डालने के लिए और दूसरा बाहर लगाने के लिए| लेबल कभी भी स्याही से न लिखें| हमेशा बॉल पेन या कॉपिंग पेंसिल से लिखें|
खेत व खेत की फसलों का पूरा ब्यौरा सूचना परचा में लिखें| यह सूचना आपकी मृदा की रिपोर्ट व सिफारिश को अधिक लाभकारी बनाने में सहायक होगी| सूचना पर्चा कृषि विभाग के अधिकारी से प्राप्त किया जा सकता है| मृदा के नमूने के साथ सूचना पर्चा में निम्नलिखित बातों की जानकारी अवश्य दें :-
खेत के नंबर या नाम :
अपना पता (पिन कोड सहित):
नमूने का प्रयोग (बीज वाली फसल और किस्म):
मृदा का स्थानिय नाम:
भूमि की किस्म (सिंचाई वाली या बारानी):
सिंचाई का साधन :
प्राकृतिक निकास और भूमि के नीचे पानी कि गहराई :
भूमि का ढलान :
फसलों की अदला – बदली :
खादों या रसायनों का ब्यौरा, जिसका प्रयोग किया हो :
कोई और समस्या, जो भूमि से सम्बंधित हो :
हर नमूने को एक साफ़ कपडें की थैली में डालें| ऐसी थैलियों में नमूने n डालें जो पहले खाद आदि के प्रयोग में लाई जा चुकी हो, किसी और कारण खराब हो|
एक लेबल थैली के अन्दर डालें तथा थैली अच्छी तरह से बंद करके उसके बाहर भी एक लेबल लगा दें|
तीन साल के अन्तराल पर अपनी भूमि की मृदा का परीक्षण एक बार अवश्य करवा लें| एक पूरी फसल – चक्र के बाद मृदा का परीक्षण हो जाना अच्छा है| हलकी या समस्याग्रस्त भूमि की मृदा के परीक्षण की अधिक आवश्यकता है|
वर्ष में जब भी भूमि की स्तिथि नमूने लेने योग्य हो, नमूने अवश्य एकत्रित कर लेना चाहियें| यह जरुरी नहीं कि मृदा का परीक्षण केवल फसल बोने के समय करवाया जाएँ|
किसान भाइयों के लिए बिभिन्न संस्थाओं में मिट्टी जाँच की सुविधा निशुल्क उपलब्ध है| ये संस्था है : मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (कांके रांची), क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र (चियांकी एवं दारिसाई), कृषि विज्ञान केंद्र (बोकारो, गढ़वा आदि), विभागीय मिट्टी जाँच प्रयोगशाला (रांची, चक्रधरपुर, लातेहार, दुमका), दामोदर घाटी निगम (हजारीबाग)
मिट्टी के प्रकार |
पी|एच| |
सुधारने के उपाय |
झारखण्ड में लगभग 10 लाख हैं, कृषि योग्य भूमि अम्लीय हैं| |
उपयोग को ध्यान में रखते हुए 6|0 पी| एच| मान तक की मिट्टी को ही सुधारने की आवश्यकता है| |
चना/ बेसिल स्लैग/डोलोमाइट का चूर्ण 3 से 4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय कतारों में डालकर मिट्टी को पैर से मिला दें| उसके बाद उर्वरको का प्रयोग एवं बीज की बुआई करें| जिस फसल में बुझा चूना की आवश्यकता है उसी में चूना तत्व दें, जैसे दलहनी फसल, मूंगफली, मकई इत्त्यादी| चुने की यह मात्रा प्रत्येक फसल में बुआई के समय दें| |
फसल चक्र पोशक तत्वों की कमी
वर्ष में तीन से चार बार एक ही
खेत में सब्जी उगने वाले क्षेत्र बोरोन, कैल्शियम,सल्फर,मोलिब्डेनम
धान-परती स्फूर, सल्फर, कैल्शियम
धान-मटर स्फूर, सल्फर, कैल्शियम
मूंगफली+अरहर स्फूर, कैल्शियम, बोरोन
धान-सब्जी पोटाश
मक्का-गेंहू नेत्रजन
पौधों में आवश्यक पोशक तत्वों की कमी की पहचान फसल की प्रकृति एवं अवस्था के आधार पर की जाती है| विभिन्न पोशक तत्वों के लक्षण विभिन्न फसलों पर अलग-अलग ढंग से दीखते है| इन लक्षणों को अनुभव के आधार पर किसान भाई सहज ढंग से पहचान सकते है|
नेत्रजन
यह पौंधों की वान्स्प्तीक वृद्धि में योगदान देता है|
यह पत्तियों को हरा रंग प्रदान करता है|
धान्य फसलों के दानों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाता है|
नेत्रजन की कमी से पौधों की पत्तियों का रंग पीला या हल्का हरा हो जाता है|
डेन वाली फसलों जैसे- मकई, धान आदि में सबसे पहले पौधों की निचली पत्तियां सुखना प्रारंभ कर है और धीरे –धीरे ऊपर की पत्तियां भी सूख जाती है|
पत्तियों का रंग सफ़ेद एवं पत्तियां कभी-कभी जल जाती है|
हरी पत्तियों के बीच-बीच में सफ़ेद धब्बे पड़ जाते हैं|
वृक्ष पर फल पकने से पहले गिर जाते है|
स्त्रोत: बिरसा विश्व विद्यालय
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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