बीन्स अथवा फ्रेंचबीन झारखण्ड की एक प्रमुख सब्जी की फसल है। इसकी खेती रांची, लोहरदगा, गुमला एवं हजारीबाग जिलों में साल भर सफलतापूर्वक होती है। बसंत एवं शरद ऋतु में झाड़ीदार किस्में तथा बरसात एवं शरद ऋतु में लत्तरदार किस्मों की खेती की जाती है। दलहनी फसल होने के कारण यह वायुमंडलीय नाईट्रोजन को भूमि में संचित करती है जिससे जमीन की उर्वरता बढ़ती है एवं अगली फसल को नाइट्रोजन का लाह मिलता है। फ्रेंचबीन की मुलायम फलियाँ सब्जी के लिए काफी आच्छी मानी जाती है। कुपोषण दूर करने के लिए भोजन में फ्रेंचबीन का महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें अधिक मात्रा में सहजपाच्य प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेटस तथा विटामिन्स पाए जाते हैं ।
फ्रेंचबीन में पाए जाने वाले पोषक तत्व (प्रति 100 ग्राम खाने योग्य भाग)
नमी |
91.4 ग्रा. |
मैग्नेशियम |
38.0 मि. ग्रा. |
प्रोटीन |
1.7 ग्रा. |
मैगनीज |
0.12 मि. ग्रा. |
वसा |
0.1 ग्रा. |
जस्ता |
0.42 मि. ग्रा. |
रेशा |
1.8 ग्रा. |
विटामिन ‘ए’ |
132.0 माइक्रोग्राम |
कार्बोहाइड्रेट |
4.5 ग्रा. |
(कैरोटीन) |
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खनिज तत्व |
0.5 ग्रा. |
विटामिन ‘बी’-1 |
0.08 मि. ग्रा. |
कैल्शियम |
50.0 मि. ग्रा. |
विटामिन ‘बी’-2 |
0.06 मि. ग्रा. |
फास्फोरस |
28.0 मि. ग्रा. |
नियासिन |
0.30 मि. ग्रा. |
पोटाशियम |
129.0 मि. ग्रा. |
(निकोटोनिक अम्ल) |
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गंधक |
37.0 मि. ग्रा. |
फोलिक अम्ल |
15.5 मि. ग्रा. |
सोडियम |
4.3 मि. ग्रा. |
विटामिन ‘सी’ |
24.0 मि. ग्रा. |
लोहा |
1.7 मि. ग्रा. |
उर्जा |
26.0 कि. कैलोरी |
तांबा |
0.21 मि. ग्रा. |
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इसकी फलियाँ सीधी, लम्बी (13.58 सेंटीमीटर ) चपटी (1.26 सेंटीमीटर), मुलायम, रेशारहित एवं हरे रंग की होती है। फलियाँ बुआई से 45-50 दिन में तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 100-120 किवं/हे/ है। इसके परिपक्व चमकीले लाल-भूरे रंग के, बड़े आकारयुक्त बीजों को दाल (राजमा) के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। बागवानी एवं कृषि-वानिकी शोध कार्यक्रम, प्लांडू से विकसित इस किस्म के बीज वहीं से प्राप्त किये जा सकते हैं।
भारतीय बागवानी अनुसन्धान संस्थान, बैंगलूर से विकसित इस किस्म की फलियाँ सीधी, लम्बी (15.1 सेंटीमीटर) चपटी (1.08 सेंटीमीटर), रेशारहित, मुलायम एवं हरे रंग की होती है। इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी है तथा दूर बाजार में भेजने के लिए यह किस्म उपयुक्त है। बुआई से 45 दिनों बाद फलियाँ पहली तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 120 क्वि./हे. है। इस किस्म के बीज बागवानी एवं कृषि-वानिकी शोध कार्यक्रम, प्लांडू से प्राप्त किए जा सकते है।
इसकी फलियाँ लम्बी (12.5 सेंटीमीटर), गोल (0.98 सेमी व्यास), चिकनी, रेशारहित एवं हरे रंग की होती है। फलियों की पहली तुड़ाई बुआई के 55-60 दिन बाद की जाती है। यह किस्म मोजैक विषाणु रोग के प्रति मध्यम रूप से अवरोधी है। इसकी उपज क्षमता 90 क्वि./हे. है। इसके बीज गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर से प्राप्त किए जा सकते हैं।
इसकी किस्म की फलियाँ मुलायम, लंबी (16.72 सेंटीमीटर), गोल (1.0 सेंटीमीटर व्यास), चिकनी, रेशारहित एवं हरे रंग की होती है। बुआई से 50 दिनों में फलियाँ पहली तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 150-200 क्वि./हे. है। इसकी उपज क्षमता 180-230 क्वि./हे. के बीच है। बीजों के लिए बागवानी एवं कृषि-वानिकी शोध कार्यक्रम, प्लांडू से प्राप्त किए जा सकते हैं।
इसकी फलियाँ लम्बी (15.18 सेंटीमीटर), गोल (1.05 सेंटीमीटर व्यास), रेशारहित एवं हरे रंग की होती है। बुआई से 50 दिनों में फलियाँ पहली तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 120-150 क्वि./हे. तक है। । इसके बीज भारतीय बीज निगम तथा बाजार से उपलब्ध हो सकते है।
इस किस्स्म की फलियाँ मुलायम, लम्बी (13.70 सेंटीमीटर ), गोल (1.05 सेंटीमीटर व्यास), रेशारहित एवं हरे रंग की होती है। बुआई से 50 दिनों में फलियाँ पहली तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 200-250 क्वि./हे. तक है। इसके बीज भारतीय बीज निगम तथा बाजार से उपलब्ध हो सकते है।
इसकी किस्म की फलियाँ मुलायम, लंबी (13.41 सेंटीमीटर), गोल (1.04 सेंटीमीटर व्यास), गूदेदार, रेशारहित एवं हरे रंग की होती है। बुआई से 60-65 दिनों बाद फलियाँ पहली तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 120-140 क्वि./हे. है। इस किस्म के बीज बागवानी एवं कृषि-वानिकी शोध कार्यक्रम, प्लांडू से प्राप्त किए जा सकते हैं
इसकी किस्म की फलियाँ मुलायम, लंबी (12.70 सेंटीमीटर), गोल (1.01 सेंटीमीटर व्यास), गूदेदार, रेशारहित एवं हरे रंग की होती है। बुआई से 60-65 दिनों बाद फलियाँ पहली तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 150-180 क्वि./हे. है। इस किस्म के बीज बागवानी एवं कृषि-वानिकी शोध कार्यक्रम, प्लांडू से प्राप्त किए जा सकते हैं
इसकी किस्म की फलियाँ मुलायम, लंबी (13.43 सेंटीमीटर), गोल (1.04 सेंटीमीटर व्यास), गूदेदार, रेशारहित एवं हरे रंग की होती है। बुआई से 50-55 दिनों बाद फलियाँ पहली तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 180-200 क्वि./हे. है। इस किस्म के बीज बागवानी एवं कृषि-वानिकी शोध कार्यक्रम, प्लांडू से प्राप्त किए जा सकते हैं
इसकी किस्म की फलियाँ लंबी (13.43 सेंटीमीटर), गोल (1.0 सेंटीमीटर व्यास), गूदेदार, रेशारहित एवं हरे रंग की होती है। बुआई से 50 दिनों बाद फलियाँ पहली तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 120-150 क्वि./हे. है। इस किस्म के बीज बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, कांके, रांची से प्राप्त किए जा सकते हैं
इसकी किस्म की फलियाँ लंबी (12.89 सेंटीमीटर), गोल (1.17 सेंटीमीटर व्यास), गूदेदार, रेशारहित एवं हरे रंग की होती है। बुआई से 50-55 दिनों बाद फलियाँ पहली तुड़ाई योग्य हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 130-160 क्वि./हे. है। भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान के कटराइन, हिमाचल प्रदेश स्थित क्षेत्रीय केंद्र से विकसित इस किस्म के बीज वहीं से प्राप्त कर सकते हैं।
फ्रेंचबीन ऐसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, लेकिन अच्छी उपज के लिए जैविक पदार्थ से परिपूर्ण, उचित जल निकासयुक्त, हल्की मिट्टी फ्रेंचबीन के लिए उपयुक्त होती है। अधिक आम्लिक मिट्टी में 25 क्वि./हे. की दर से बुआई से एक महीना पहले कृषि में प्रयुक्त चुना मिलना अच्छा रहता है। खेत की तैयारी के लिए 3-4 बार जुताई अवश्य की जानी चाहिए।
दलहनी फसल होने के कारण इसमें नाइट्रोजन उर्वरक की कम मात्रा में आवश्यकता होती है। फिर भी उन्नत खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विं, सड़ी हुई गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय मिला देना उचित होगा। इसके अलावा 60 कि. ग्रा. यूरिया, 315 कि. ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट तथा 85 कि. ग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई के समय खेत में अच्छी तरह से मिला देने चाहिए। पुनः 60 कि. ग्रा. यूरिया बुआई के 25-30 दिन बाद टापड्रेसिंग के रूप में पौधों की जड़ से दूर प्रयोग करनी चाहिए।
झाड़ीदार फ्रेंचबीन की बंसत ऋतु की फसल के लिए फरवरी के पहले सप्ताह में एवं शरद –शीत ऋतु की फसल के लिए सितम्बर के दूसरे पखवाड़े में बुआई करना उपयुक्त होगा। लत्तरदार किस्मों की बरसाती खेती के लिए जून माह के दूसरे पखवाड़े में बुआई करना उचित रहता है। बरसाती फसल की बुआई मेड़ पर करनी चाहिए जबकि बाकी मौसमों की फसल के लिए बुआई समतल जमीन में कर सकते हैं। बुआई क्यारी बनाकर पंक्तियों में करनी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी झाड़ीदार फ्रेंचबीन के लिए 45 सेंटीमीटर एवं लत्तरदार फ्रेंचबीन के लिए 1 मीटर रखनी उचित होगी। दोनों प्रकार की किस्मों के लिए बीज से बीज की दूरी 15-20 सेंटीमीटर रखी जा सकती है| बीज 2-3 से.मी. गहराई पर बोने चाहिए। एक हेक्टेयर खेत की बुआई के लिए झाड़ीदार फ्रेंचबीन के लगभग 50-75 कि. ग्रा. एवं लत्तरददर फ्रेंचबीन एक 22-25 कि. ग्रा. बीज की आवश्यकता पड़ती है।
बीज के उचित अंकुरण के लिए बोने से एक या दो दिन पहले खेत में हल्की सिंचाई करनी जरुरी है। अंकुरण के बाद आवश्यकतानुसार सप्ताह में एक या दो बार सिंचाई करनी आवश्यक है। पौधों में फूल आने से पहले एक सिंचाई अवश्य करनी चाहिए इससे फलियाँ अधिक लगती हैं। फलियाँ भरने के समय भी फसल में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
खड़ी फसल में समय-समय पर खरपतवार निकालते रहने चाहिए ताकि पौधे अच्छी तरह विकसित हो सकें। बुआई से 25-30 दिनों के बाद गुड़ाई करके पौधों कि जड़ों के पास यूरिया प्रयोग करना ठीक होगा एवं उसके पश्चात पौधों के पास मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। इस समय एक हल्की सिंचाई करनी आवश्यक होती है।
लत्तरदार फ्रेंचबीन में बढ़ती हुई लत्तर को सहारा देने के लिए सुखी डालियों का प्रयोग करें या पंक्ति में बांस की खूंटी गाड़कर उसमें तार या सुतली बाँध देनी चाहिए। इस प्रकार सहारा देने से फसल से पैदावार अच्छी मिलती है तथा देखभाल में सुविधा होती है।
बीन्स की फलियों की तुड़ाई मुलायम अवस्था में की जाती है। फूल आने के लगभग 15 दिन बाद फलियाँ तुड़ाई योग्य हो जाती है। फलियों की तुड़ाई सुबह अथवा शाम के समय करनी चाहिए जिससे फलियाँ ज्यादा ताजा अवस्था में बाजार पहुँच सकें। तथा उनके उचित दाम मिल सकें। तुड़ाई उपरान्त फलियों की छंटाई करके अच्छी फलियों का रंग, आकार एवं आकृति के अनुसार श्रेणीकरण कर लें। बांस की टोकरी या पटसन के बोरे में उन्हें भरकर स्थानीय बाजार में ले जाना ठीक रहता है। वर्गीकृत फलियों को बाजार में बेचने में सुविधा होती है तथा उनका उचित मूल्य मिलता है।
इस बीमारी के कारण फलियों एवं पत्तियों के ऊपर काले-पीले धब्बे पड़ जाते हैं। प्रभावित पत्तियां सिकुड़ या सुख जाती हैं। इससे बचने के लिए स्वस्थ पौधों से बीज संग्रह करना चाहिए तथा बुआई से पहले बीजों को बाविस्टिन दवा (2.5 ग्रा./कि. ग्रा. बीज) से उपचारित कर लेना चाहिए।
खड़ी फसल में, डाईथेन एम्-45 दवा 2 ग्रा./कि. ग्रा. प्रति लीटर पानी में मिलाकर, 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव् करना चाहिए।
इस रोग से प्रभावित पत्तियों की दोनों सतहों पर छोटे, गोल, भूरे रंग के पाउडर जैसे उभरे हुए दाने नजर आते हैं। प्रभावित पत्तियां सुख कर गिर जाते हैं। रोकथाम के लिए वीटावैक्स 1 ग्रा. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव् करना चाहिए।
जीवाणु झुलसा (बैक्टीरियल ब्लाईट) इस रोग से प्रभावित पत्तियों के ऊपर भूरे रंग के दाग पड़ जाते हैं एवं दाग का घेरा हुआ अंश हल्का पीला हो जाता है। फलियों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए स्ट्रेप्टोसाईंक्लिन दवा 5.0 ग्रा. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव् करना चाहिए। साथ ही स्वस्थ पौधों से बीज संग्रह करके बुआई करनी चाहिए।
इस बीमारी से फ्रेंचबीन के पत्ते सिकुड़ जाते हैं तथा उन पर हरे-पीले धब्बे बन जाते हैं। रोगी पौधों को उखाड़ का नष्ट का देना चाहिए। रोगोर दवा 1.0 मि.ली./ली. पानी में मिलाकर छिड़काव् करें इस प्रकार वाहक कीड़ों का नियंत्रण करने से इस बीमारी का प्रसार कम हो जाता है।
ये बहुत छोटे काले रंग के कीड़े मुलायम पत्तियों, शाखाओं, फलों एवं फूलों का रस चूसते हैं जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं तथा उनकी बढ़बार रुक जाती है। इससे बचाव के लिए रोगोर या नुवाक्रान दवा 2 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव् करना चाहिए।
ये कीट फ्रेंचबीन की फलियों में छेद कर अंदर के कच्चे बीजों को खा जाते हैं। नियंत्रण के लिए नुवाक्रान दवा 2 मिली लीटर या जैविक कीटनाशक डेल्फिन (बी.टी.) दवा 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर मेछिड़काव् करना चाहिए।
पर्यावरण एवं स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कीट नियंत्रण हेतु खेत में नीम की खली (10 क्विं./हे.) का प्रयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त 40 ग्राम नीम के बीज का चूर्ण रातभर पानी में भिंगोकार छान लें एवं इसे 1 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव् करें अथवा 1 मिली. नीम का तेल 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव् किया जा सकता है। नीम की बढ़ती हुए मांग को देखते हुए किसान अपने खेत की उत्तर दिशा में या बंजर जमीन पर अधिक नीम के पौधे लगाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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