भारत की अर्थव्यवस्था में मटर का विशेष स्थान होने कारण इसका अधिक महत्व है। यह सब्जी तथा दाल दोनों के लिए प्रयोग किया जाता है। कार्बोहाइड्रेट तथा विटामिन के साथ – साथ इसमें पाच्य प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। इसके अतिरिक्त इसमें खनिज पदार्थ की भी मात्रा अधिक होती है।
इसकी खेती यहाँ पर प्राचीन समय से ही होती आ रही है। इसका जन्म स्थान अलग – अलग बताया जाता है बाग़ वाली मटर का जन्म स्थान इथोपिया बताया जाता है, जबकि खेती वाली मटर का जन्म स्थान हिमालय का तराई प्रदेश अथवा रूम सागरीय प्रदेश माना जाता है।
इसका आहार मूल्य इस प्रकार –
(प्रति 100 ग्राम खाने योग्य भाग में)
नमी |
72.0 ग्राम |
खनिज पदार्थ |
0.8 ग्राम |
वसा प्रोटीन |
0.1 ग्राम |
अन्य कार्बोहाइड्रेटस |
40.0 मि. ग्राम |
रेशा |
4.0 ग्राम |
कैल्शियम |
20.0 मि. ग्राम |
कैलोरीज |
93.0 ग्राम |
आक्जैलिक एसिड |
0.04 मि. ग्राम |
मैगनीशियम |
34.0 मि. ग्राम |
लोहा |
1.5 मि. ग्राम |
फास्फोरस |
139.0 ग्राम |
पोटेशियम |
0.05 मि. ग्राम |
सोडियम |
7.8 मि. ग्राम |
सल्फर |
95.0 मि. ग्राम |
कॉपर |
23.0 मि. ग्राम |
थियामिन |
0.25 मि. ग्राम |
विटामिन |
129.0 आई. यु |
निकोटिन एसिड |
0.8 मि. ग्राम |
राइवोफ्लेविन |
0.01 मि. ग्राम |
विटामिन सी. |
9.0 मि. ग्राम |
प्रोटीन |
7.2 ग्राम |
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भूमि – अच्छी जल निकास वाली हल्की उपजाऊ मिट्टी मटर की खेती के लिए उपयुक्त होती है। इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती पी. एच. 6 से 7.5 होती है।
उन्नत किस्में – अर्किल, बोने विला, हरबोना, आजाद पी- 11 इन सभी में अर्किल सबसे अगेती किस्म है तथा छोटानागपुर के पठार के किसानों में काफी प्रचलित है।
लगाने या बोने का समय – अक्टूबर – नवंबर
लगाने की विधि – खेत को कई बार जुताई कर अच्छी प्रकार तैयार कर लेते हैं। खेत की तैयारी के समय ही गोबर की सड़ी हुई खाद मिला देते हैं। ऐसे तैयार नमी युक्त खेत में मटर के बीज सीधे बोये जाते हैं।
बीज दर – 32 – 40 किलो प्रति एकड़। लेकिन अगेती किस्मों के 40-48 किलो प्रति एकड़। बीज को राइजोबोयम कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए।
बीज बोने की दूरी – कतारों की दूरी 30-45 सें. मी.
बीज की दूरी 6-8 सें. मी.
खाद तथा उर्वरक की मात्रा (प्रति एकड़)
गोबर की सड़ी खाद |
80 - 100 क्विंटल प्रति एकड़ |
यूरिया |
20 - 25 किलो |
सिंगल सुपर फास्फेट |
120 – 160 किलो |
म्यूरिएट ऑफ पोटाश |
30 किलो |
पूरी गोबर खाद यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट्स तथा म्यूरिएट ऑफ पोटाश को खेत की तैयारी के समय ही दे देते हैं।
आवश्यकतानुसार 8 - 10 दिनों पर सिंचाई करते रहें।
मटर में ‘पाउडर मिल्ड्यू’ नाम बीमारी लगती है, उसकी रोकथाम के लिए सल्फेस या कराथेन नामक दवा का प्रयोग करें। (2-4 ग्राम तथा 2 मि. ली. प्रति लीटर पानी में)
‘शूट फ्लाई’ नामक कीड़ा का प्रकोप मटर पर होता है जिससे पौधे मर जाते हैं। इसकी रोकथाम हेतु रोगर दवा (1 -2 मि. ली. प्रति लीटर पानी में) का छिडकाव करें।
स्रोत : रामकृष्णा मिशन आश्रम, राँची
अंतिम बार संशोधित : 2/20/2023
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