सूत्रकृमि
अपतृण (खरपतवार)
क्षतिकारक कीट
सूत्रकृमि (नेमाटोड )
अपतृण (खरपतवार)
कवक व्याधियाँ
जीवाणु-व्याधियां
१. टीप ओभर या बैक्टेरियल साफ्ट रौट
विषाणुक व्याधियाँ
कृषि पारिस्थितिक पद्धति विश्लेषण (आयेसा)
आयेसा के आधारभूत अवयव निम्न प्रकार हैं।
सर्वेक्षण/क्षेत्र –भ्रमण
क्षेत्र –भ्रमण द्वारा सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य विशेष प्रभावित क्षेत्र में कीट एवं व्याधि के प्रारंभिक विकास का अनुश्रवण करना है किसी खास अंतराल पर कृषकों को क्षेत्र –भ्रमण करने हेतु प्रोत्साहित करना आवश्यक है। अगर आर्थिक न्यूनतम स्तर से प्रकोप आगे बढ़ जाता है तो फसल सुरक्षा हेतु उपचार अपनाना चाहिए।
भ्रमण सर्वेक्षण – केला उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण सर्वेक्षण प्रारंभ करें प्रत्येक बगीचे में 20-25 पौधों का गहन अध्ययन करें। लक्षण एवं बर्बादी को अंकित करें।
क्षेत्र –भ्रमण – राज्य सरकार की उद्यान विभाग को हर संभव् प्रयास करना चाहिए कि वे अपने विभिन्न मिडिया, प्रचार एवं प्रसार की सहायता से कृषकों को कीट एवं व्याधि के संबंध में सूचित करते रहें।
जाल द्वारा कीट अनुश्रवण
केला के कीट के प्रकोप के आगमन को अनुश्रवण करने हेतु फेरामोन/स्यूडोस्टेम जाल को जगह=जगह पर स्थापित करना चाहिए। इसके लिए राज्य सरकार के उद्यान विभाग को क्षेत्र-भ्रमण की खोज के आधार पर तथा नये स्थानों पर जाल लगाना चाहिए। इस प्रक्रिया को कृषकों के बीच में लोकप्रिय बनाने हेतु राज्य सरकार के उद्यान विभाग द्वारा इसे प्रचारित एवं प्रसारित किया जाना चाहिए।
स्यूडोस्टेम जाल; केला के बगीचा एन 350 पौधों पर 20 स्यूडोस्टेम जाल रखना चाहिए। एक सप्ताह पर बदल दें। इसी प्रकार पौधा के स्टम्प पर डीस्क रखकर प्रयास किया जा सकता है। यह प्रक्रिया फसल कटाई के पश्चात की जाती है। स्यूडोस्टेम को जमीन की सतह से 1 फीट की ऊंचाई पर कट दें एवं काटे गए भाग पर स्यूडोस्टेम डिस्क रख दें। डिस्क के बगल में कुछ कंकड़-पत्थर रख दें। जिससे विभील को डीस्क मेंजाने का रास्ता हो जाए। यह जाल केला कार्म विभील एवं केला स्टेम विभील दोनों पर नियंत्रण रखा है। यह प्रक्रिया कीटों के अनुश्रवण एवं कीटों के फंसाने दोनों का कार्य करता है।
फेरामोन जाल ; फेरामोन चारा केला कार्म विभील को फंसाने एवं कीटों के अनुश्रवण दोनों कार्य करता है। कम जाल घनत्व यानि 4 जाल प्रति हेक्टेयर बिछाने से फॉर्म बर्बादी कम होती ही एवं केला उत्पादन में वृद्धि होती है। प्रारंभ के जाल को क्षेत्रीय सीमा से 10 मीटर पर एवं 20 मीटर अलग-अलग लगाना चाहिए। फिर प्रत्येक माह जाल को 20 मीटर जाल के चिन्हित क्षेत्र में इधर-उधर घुमाते रहना चाहिए।
आर्थिक न्यूनतम स्तर (इटीएल)
सर्वेक्षण क्षेत्र-भ्रमण के प्रतिफल के आधार पर प्रसार कार्यकर्त्ता विभिन्न कीटों के आर्थिक न्यूनतम स्तर की गनना कर सकते हैं तदनुसार कृषकों को कीट प्रबन्धन प्रकिया प्रारंभ करने हेतु सलाह दे सकते है मुख्य कीटों का इटीएल का अध्ययन अभी पूर्णतः नहीं किया गया है। फिर भी निम्न दर्शाये गये माप से नियंत्रण उपचार में सहायता मिल सकता है।
कीट /पेस्ट |
इटीएल |
केला धड़ विभिल |
5% प्रभावित पौधे |
केला कार्म विभिल |
5 विभिल/ट्रैप |
केला कॉर्म विभिल
पौधा रोपाई के 3सरें, 5वें एवं 7वें महीने में कार्बोफ्यूरान 20 ग्राम/पौधा मिट्टी में उपयोग करें।
केला पत्ती खानेवाला कैटरपीलर
इंडोसल्फान 1.5 मिलि०/लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें।
मांदावासी सूत्रकृमि
कृषीय प्रक्रिया
भौतिक प्रक्रिया
बुआई सामग्री के निर्जीव भाग/चोट लगे भाग को काटकर एक आकार में बना लें एवं इसे 50-55 सेंटीग्रेड गर्म पानी में 30 मिनट तक रखने से पौध सूत्रकृमि रहित हो जाता है।
जैविक नियंत्रण प्रक्रिया
परपोषी पौध प्रत्तिरोधता
प्रभेद पिजैंग बटुआयु, पिजैंग जारी बुआया, पिजैंग इडोर कुडा, पराहा मैसूर, हाईब्रिड एस एच-3142, कुद्ली (ए ए) पेडालीमूनजील (एए बी), कुनान (एएबी० आईरीयबकाई पुभन (एबी), पीजांग सेरीबू (ए ए) टोंगाट (ए ए) भेनुटू कुनान (एबी), एनैकोमबन, येलाकीबल, आईरांकाई पुमन, करप्यूराभैली एवं –कोडन सूत्रकृमि प्रकोप के लिए मध्यवर्ती प्रतिरोधी पाए गए हैं।
रसायनिक नियंत्रण प्रकिया
जड़ क्षतिकारक सूत्रकृमि
चक्राकार सूत्रकृमि
जड़ गांठ सूत्रकृमि
सिस्ट सूत्रकृमि
आर० सिमलिस के लिए अपनाये गये अनुशंसित प्रबंधन को सिस्ट सूत्रकृमि के लिए अपनाया जा सकता है:
मुरझाना (वील्ट)
सिगाटोका लीफ स्पॉट
एन्थ्रेकनोज
इस व्याधि के नियंत्रण हेतु छिलका में आघात से बचाव, अच्छी कृषि प्रणाली अपनाने,पौधों से मरी हुई पत्तियों को हटाने, फलों का रेफ्रीजरेशन, फलों का पॉली एथिलीन थैले में परिवहन एवं 15 दिवसीय अंतराल पर 2% क्लोरोथालोनील या 0.15% प्रोक्लोरोज या 0.1% कार्बेन्डाजीम का चार बार छिड़काव श्रेयकर होता है।
घनकन्द (कार्म) सड़ न/सर-सड़न/टीप ओभर
वाइरल व्याधि : निम्नलिखित निरोधक रणनीति द्वारा संक्रमित क्षेत्र से असंक्रमित क्षेत्र में व्याधि फैलाव को कम किया जा सकता है।
कृषीय प्रक्रिया
रसायनिक प्रकिया
कीट/व्याधि |
अवस्था |
अनुशंसित कीट प्रबन्धन प्रक्रिया |
केला धड़ |
5वां माह |
विभिल के अनुश्रवण हेतु 30 से. मी० लम्बाई वाले कटे हुए स्युडोस्टेम स्थापित करें। |
विभिल |
6वां माह |
मोनोक्रोटोफॉस (2 मि०ली०/लीटर) से स्युडोस्टेम को सराबोर कर दें। |
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7वां माह |
अगर कीड़ा खाने से बर्बादी नजर आये तो मोनोक्रोटोफॉस(150 मि०ली० 350 मि० ली० पानी) का 2 मि०ली०/प्रति पौध के दर से दो जगह 30 कोण पर स्टेम इंजेक्टर स एफ्ला जमीन से २ की ऊंचाई पर दूसरा ४ की ऊंचाई पर सुई दें। |
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कटाई के पश्चात |
स्युडोस्टेम को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर फसल को बचे भाग को नष्ट कर दें। विभिल को नो नष्ट करने एवं फसल के बचे भाग को सुखाने के लिए सकर को जड़ से निकाल दें। एवं छोटे टुकड़ों में काटकर जमीन की अंदर गाड़ दें। |
केला कार्म विभिल |
बुआई के पूर्व
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स्वस्थ एवं असंक्रमित सकर का चयन करें। |
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बुआई के समय |
सकर को काट-छांट कर साफ कर लें, फिर 30 मिनट तक गर्म पानी (5050 सेंटीग्रेड) से उपचारित करें। विभिल के अण्डों एवं ग्रब्स को नष्ट करने हेतु सकर को 05% मोनोक्रोटोफॉस घोल में 30 मिनट तक डुबो कर रखें एवं 72 घंटों तक छाया में सुखा लें। |
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तीसरा महीना |
कस्मोल्युर ट्रैप-4 संख्या/हेक्टेयर या स्टमप ट्रैप पर लम्बाई के कटे हुए स्यूडोस्टेम और डिस्क स्थापित करें। |
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तीसरा महीना, पांचवां, सातवाँ महीना |
प्रति पौध २० ग्राम की दर से कार्बोफ्यूरॉन से मिट्टी उपचार करें। |
केला, पत्ती खाने वाला कैटरपीलर |
तीसरा महीना- पांचवां महीना |
अण्डों को हाथ से चुनकर बर्बाद कर दें। |
सूत्रकृमि |
बुआई के पूर्व |
स्वस्थ एवं संक्रमण रहित सकर का चयन करें। |
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बुआई के समय |
सकर को साफ कर गर्म पानी से उपचारित करें। |
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तीसरा महीना |
40 ग्रा०/पौध की दर से कार्बोफ्यूरान का प्रयोग करें। |
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6वां-7वां महीना |
500 ग्राम/पौध नीम खल्ली का प्रयोग करें। |
सामान्य |
बुआई के पूर्व |
वील्ट एवं वायरस रहित सकर का ध्यान करें |
व्याधियां |
बुआई के समय |
सकर को कार्बेन्डाजीम(0.2%) में 30-45 मिनट तक डुबो कर रखें। |
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बुआई के पश्चात |
बायोकंट्रोल एजेंट ट्राईकोडर्मा स्पेसीज 15 ग्राम/प्रति गड्ढा की दर से उपयोग करें। |
वील्ट एवं वायरल बीमारियाँ |
बुआई के पूर्व |
व्याधि रहित बलशाली सकर का चयन कर बुआई करें। |
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बुआई के पश्चात |
जब व्याधि के लक्षण दिखाई दे, पौध को जड़ से निकालकर जला दें। |
खरपतवार |
बुआई के पूर्व |
गहरी जुताई एवं खरपतवार की निकौनी कर साफ फसलोत्पादन करें। |
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बुआई के पश्चात |
दलहन जैसे काउपीआ का फसलोत्पादन करें। |
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बुआई के 2 माह पश्चात |
1200 लीटर पानी में 3 कि०ग्राम/हेक्टेयर डियोरॉन का छिड़काव करें। दलहनी हरी खाद का प्रयोग करें। |
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बुआई के 3रा-5वां माह पश्चात |
1200 लीटर पानी में ग्लाईफोस्ट ग्रामोजोन 1.5 लीटर/प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। |
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बुआई के 6 माह पश्चात |
1200 लीटर पानी में ग्लाईफोस्ट ग्रामोजोन 1.5 लीटर/प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। यांत्रिक निकाई एवं कोड़ाई करे। पत्तों के कारण ज्यादा छाया हो जाने से खरपतवार पर स्वयं नियंत्रण हो जाता है। |
क्र.सं. |
कीटनाशक का नाम |
कीटनाशक अधिनियम 1971 के अनुसार वर्गीकरण |
विषाक्तता त्रिभुज का रंग |
जोखिम के अनुसार डब्ल्यू एचओ वर्गीकरण |
प्रथम उपचार के उपाय |
विष प्रभाव के लक्षण |
विष प्रभाव के उपचार |
प्रतीक्षा अवधि (दिनों की सं.) |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
कीटनाशक – आर्गनोफॉस्फोट कीटनाशक |
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१
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इंडोसल्फान
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अत्यंत विषैला
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पीला
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श्रेणी 2 माध्यम नुकसानदेह
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प्रभावित व्यक्ति प्रदूषित क्षेत्र सेअलग हटा दें।
(क) चमड़ी से सम्पर्क स्थिति में प्रदूषित कपड़े को जल्द उतार दें और साबुन तथा अधिक पानी से धो दें। (ख) आँख में प्रदुषण आँख को साफ एवं ठंडे पानी से अनुकों बार आंख को धोंएं। (ग) श्वास संसर्ग व्यक्ति को खुली हवा में रखे, गला और छाती के आस- पास के कपड़े ढीले कर दें। (घ) खाना संसर्ग – अगर व्यक्ति होश में है तो गले में ऊँगली डालकर उल्टी कराएं\ दूध, शराब एवं चर्बी वाले पदार्थ न दें। यदि व्यक्ति बेहोश है तो ध्यान दें कि उसकी श्वसन प्रणाली साफ एवं बिना किसी रुकावट के हो व्यक्ति के सिर थोड़ा नीचा रखकर चेहरे को एक किनारे घुमा दें सांस लेने में कष्ट हो तो मुख से या नाक सांस दें। चिकित्सीय सहायता पीड़ित को तुरंत कीटनाशक के डब्बे, लेबल के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाएं। |
उल्टी, बैचैनी, मिचली बेहोशी, तेज धड़कन श्वास-क्रिया में ह्रास तथा मृत्यु |
- 2-4 लीटर नल के जल से पेट का प्रक्षालन करे 130 ग्राम सोडियम सल्फेट को एक कप पानी में मिलाकर कैथारसीस करावें। -बेचैनी एवं धड़कन को कम करने हेतु बार्बिच्युरेट्स की उपयुक्त मात्रा लगातार दें। -श्वसनक्रिया का नजदीक से ध्यान रखें। अगर आवश्यक हो तो कृत्रिम श्वास देने की व्यवस्था करें। -तेल, तेलिय पदार्थ, तेलीय दस्तकारक एडरनालीन का प्रयोग न करे। -उत्तेजकपदार्थ का प्रयोग न करें। -प्रत्येक चार घंटों पर इंट्राभेनस कैल्सियम ग्लूकोनेट (10%-10 मिली०-एम्पुल) दें।
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आर्गेनोफस्फेट कीटनाशक |
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2
3. |
क्वीनॉल फॉस
फौसफामीनडॉन |
अत्यधिक जहरीला
अत्यधिक जहरीला |
पीला
चमकीला लाल |
श्रेणी 2 सामान्य जोखिम भरा
श्रेणी 1 अत्यंत नुकसानदेह
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हल्का-भूख न लगना, सरदर्द चक्कर आना, कमजोरी, बेचैनी जुबान लड़खड़ाना एवं पलकें
कांपना, अल्पदृष्टि, देखने में कष्ट होना। सामान्य- मितली, लार बहना आंसू बहना, पेट में मरोड़, उल्टी पसीना आना, नाड़ी की गति धीमी मांसपेशियाँ कांपना, अल्पदृष्टि तीव्र- दस्त, पलको की कोई प्रतिक्रिया नहीं बिलकुल स्थिर, सांस लेने में तकलीफ फेफड़ा फूलना, रंग नीला पड़ना, अवरोध नियन्त्रण में कमी, मूर्च्छा, बेहोशी एवं हृदय अवरुद्ध होना। |
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-ओ०पी० के विष के अत्यधिक प्रभाव दिखने पर एट्रोपिन इंजेक्शन (वयस्कों के लिए 2-4 मि०ग्राम) बच्चों के लिए 0.5-10 मि०ग्राम) की अनुशंसा की जाती है। 5-10 मिनट के अंतराल पर उपरोक्त को दुहरावें जब तक कि दवा का असर न दिखें शीघ्रता शीघ्रता अति आवश्यक एंट्रोपीन इंजेक्शन 1-4 मि.ग्रा. 1 जब विष के लक्षण पुनः दिखाई दे तो 2 मि.ग्रा. दोबारा दें। ( 15-16 मिनट अंतराल) अत्यधिक लार बहना अच्छा संकेत और एट्रोपीन की आवश्यकता है। -हवा आने के रास्ते खुले रखें, चूसें, ऑक्सीजन प्रयोग करें, इंडोट्रैकियल टूयूब डालें । टैकियोटॉमी करें और आवश्यकतानुसार कृत्रिम सांस दें। -मुंह में विष चले जाने की दशा में यदि यदि उल्टी न हो रही तो 5% सोडियम बाईकार्बोनेट से पेट का प्रक्षालन करें, , चमड़ी में सम्पर्क के लिए साबुन और पानी से धोएं ( आँख नमक पानी से धोएं) सम्पर्क में आए स्थानों में धोते समय रबर के दस्ताने पहन लें। एट्रोपिन के अलावा 2-पीएएम (2- पाईरिडीन एल्डोक्जाएम मेथीओडाटाड दें। 1 ग्रा. एवं शिशुओं के लिए 0.25 ग्रा. इंट्राविनस धीमीगति में 5 मिनट की अवधि में और निर्देश के अनुसार समय-समय पर इसका दुहराव करें एक से अधिक इंजेक्शन की आवश्यकता हो सकती है। मोरफिन, थियोफायलिन एमीनोफायलीन बारबीचुरेट्स देने से बचें, फेनेथायाजीन दें। -नीला पड़ गये रोगी को एट्रोपीन न दें। पहले कृत्रिम सांस दें फिर एट्रोपिन दें। |
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कार्बामेट्स |
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4 |
कार्बाराइल |
उच्च रूप से विषैला
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पीला |
श्रेणी 2 सामान्य नुकसान
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पुतलियों का संकुचन, लार निकलना, जोर से पसीना अवसाद, मांसपेशियों में तालमेल न होना मतली उल्टी, दस्त, पेडू में दर्द छाती में में कड़ापन |
1-4 एम० जी० एट्रोपीन इंजेक्शन जब विष के लक्षण दुबारा दिखें तो 2 फिर से दुहरावें एम जी (15-60 मिनट अंतराल पर) अधिक लार निकलना अच्छा चिन्ह, एट्रोपीन की और आवश्यकता है। हवा आनेवाले मार्ग खुलें रखें, प्रश्वास की क्रिया करें। , ऑक्सीजन प्रयोग करें इंट्रोटैकियल टूयूब डालें ट्रैकियोटॉमी करें और आवश्यकतानुसार कृत्रिम सांस दें। यदि उल्टी न आती हो तो 5% सोडियम बाईकार्बोनेट से पेट प्रक्षालन करें, चमड़ी में सम्पर्क के लिए साबुन और पानी से धोएं ( आँख नमक पानी से धोएं) सम्पर्क में आए स्थानों में धोते समय रबर के दस्ताने पहन लें। -ऑक्सीजन - मॉरफीन यदि आवश्यक हो। -थियोफायलीन एवं एमीनोफायलीन तथा बार्बोच्युरेट्स से बचें। पीएएम एवं अन्यऑक्सीजाईम हानिकारक नहीं है, वास्तव में रूटीन इस्तेमाल के निर्देश दिए गए हैं नीले पड़ गये रोगी को एट्रोपिन न दें। पहले कृत्रिम श्वास दे फिर इसके बाद एट्रोपिन दें। |
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कवकनाशक |
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कॉपर आक्सीक्लोराइड
मैनकोजेब
सेविडोल |
कम जहरीला |
नीला
हरा |
श्रेणी 3 कम जोखिम
सामान्य उपयोग में अल्प नुकसानदेह |
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सिरदर्द .तेज, धड़कन उल्टी, चेहरा
लाल होना। नाक, गला, आंख और चमड़ी में खुजली
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कोई विशिष्ट प्रतिकारक नहीं। चिकित्सा अनिवार्य रूप से लक्षण पर निर्भर है। |
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स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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