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पपीता के लिए समेकित कीट प्रबन्धन पैकेज

पपीता के लिए समेकित कीट प्रबन्धन पैकेज

 

मुख्य क्षतिकारक

राष्ट्रीय महत्व के  क्षतिकारक

  1. ए  के टिड्डा (एके ग्रास हॉपर)
  2. लाल मकड़ी (रेड स्पाइडर माईट)

सूत्रक्रीमि  नेमाटोड)

  1. वृक्काकार सूत्रक्रीमि  (रेनीफॉर्म नेमाटोड)

बीमरियां

  1. धड़/पद/कंठ सड़न
  2. ऐनथ्रैकनोज
  3. मोजैक
  4. पत्ती का मुड़ना

अपतृण (खरपतवार)

  1. साईपेरस रोंटूडस
  2. डिजितेरिया सैंगुनैलिस
  3. सिटेरिया  ग्लुकेई
  4. सिलोमी भीसकोसा
  5. ट्राईडैक्स प्रोक्मबर्न
  6. साइनोडोन डक्टाईलोन (बरमुडा घास/हरियाली)

चिड़ियाँ

  1. कौवा
  2. मैना
  3. तोता

क्षेत्रीय महत्व के क्षतिकारक

  1. उजली मक्खी
  2. लाही
  3. धड़ –छेदक
  4. स्केल कीट
  5. मिली बग
  6. फल मक्खी

सूत्रकृमि

  1. जड़ गाँठ सूत्रकृमि

रोग

  1. आद्र गलन
  2. चूर्ण फुफुन्दी
  3. विकृत वलय चित्ती वायरस
  4. जड़=सड़न
  5. शीर्ष गुच्छ
  6. फल सड़म
  7. पत्ती-चित्ती

अपतृण (खरपतवार)

  1. बरमूडा घास
  2. हंस घास
  3. कांग्रेस घास
  4. केकड़ा घास
  5. काष्ट घास
  6. कोंपल
  7. मुर्ग-कलंगी

कीट अनुश्रवण

क्षेत्र सर्वेक्षण

क्षेत्र सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य  किसी विशेष क्षेत्र में कीट एवं रोग का अनुश्रवण करना है। फसल मौस्स्म के प्रारंभ में किसी विशेष क्षेत्र के कीट प्रकोप सर्वेक्षण का एक मार्ग पहचानित कर लेना चाहिए। भ्रमण सर्वेक्षण के प्रतिफलों के आधार पर राज्य के प्रसार कार्यकर्त्ता/कर्मचारी/पदाधिकारी को चाहिए कि  वे प्रखंड एवं ग्राम स्तर पर कृषकों से सम्पर्क बनाये रखे। कृषकों को कीट एवं रोग के प्रकोप को दर्शाने हेतु भ्रमण के लिए गतिशील रखें, इसके लिए विशेष अंतराल पर भ्रमण हेतु उन्हें अनुबंधित करना आवश्यक है। क्षेत्र –भ्रमण के क्रम में पाए जाने वाले परिणामों के आधार पर ही फसल सुरक्षा उपायों को अपनाना श्रेयकर है।

कृषि पारिस्थितिक तंत्र विश्लेषण (आयेसा)

आयेसा एक ऐसा उपगमन मार्ग है जिससे प्रसार कार्यकर्त्ता एवं कृषक विशेष क्षेत्र परिस्थिति में स्वस्थ फल-उत्पादन के लिए कीट, रक्षक, मृदा अवस्था, फसल स्वास्थ्य, मौसमी कारकों का उपयोग कर सकते हैं। क्षेत्रीय परिस्थिति में इस प्रकार के विश्लेषण से कीट प्रबन्धन प्रक्रिया में निर्णय लेने हेतु काफी सहायता मिल सकती है। आयेसा के आधारभूत अवयव निम्न प्रकार है –

  1. विभिन्न अवस्था पर पौधा का स्वास्थ्य
  2. कीट एवं प्रतिरक्षक जनसंख्या का गति विश्लेषण
  3. मृदा अवस्था
  4. मौसमी कारक
  5. कृषक का पूर्व अनुभव

पपीता के लिए समेकित क्षति कारक कीट प्रबन्धन रणनीतियां

कृषीय प्रक्रिया

  1. पेड़ के चारों तरफ बारंबार जुताई करने से टिड्डों, मिलीबग आदि कीड़ों के विभिन्न अवस्थाओं का विकास बाधित हो जाता है, जिससे इनकी जनसंख्या की वृद्धि रुक जाती है नवम्बर-दिसम्बर माह के पेड़ के तनों पर अल्काथीन की पट्टी बाँध देने से पेड़ पर चढ़ने  वाले कीट जैसे मिली बग के आक्रमण में ह्रास हो जाता है। खेत की जुताई करने के पश्चात 4 किलोग्राम प्रति पेड़ नीम के खल्ली का प्रयोग श्रेयकर होता है।
  2. पौधा के नजदीक लगातार खरपतवार की सफाई एवं कोड़ाई  करना चहिई।
  3. पपीता पौधा के नजदीक लतेदार पौधों को नहीं लगाना चाहिए क्योंकि ये पपीता को हानि पहुँचाने वाले विभिन्न कीड़ों को आश्रय प्रदान करते हैं।
  4. वायरस प्रतिरोधी प्रभेदों जैसे गोडाका भेला, बंगलोर, क्वाम्बटोर आदि की ही पैदावार लेनी चाहिए।
  5. पौधशाला में अधिक प्रकाश के द्वारा मिट्टी का सौरीकरण करने से कीट एवं सूत्रकृमि (नेमोटोड) के प्रकोप की संभावना कम जो जाती है।
  6. उचित जल निकास की व्यवस्था करनी चाहिए।

यांत्रिक नियंत्रण प्रक्रिया

  1. माईट से प्रभावित पत्तियों एवं टहनियों को काटकर नष्ट कर दें।
  2. सभी प्रभावित पौधों को नष्ट का बगीचे की उपयुक्त सफाई करें।
  3. तैयार फलों के पौधों को गनी बैग से लपेट कर रखना चाहिए, जिसका निचला सिरा पक्के फलों को एकत्रित करन हेतु खुला रहना चाहिए। इससे फलों पर चिड़ियों का प्रकोप कम हो जाता है। फलों को ज्यादा पकने नहीं देना चाहिए।
  4. तैयार फलों को तोड़ते समय सावधानी रखनी चाहिए कि फलों पर आघात न आयें,  ऐसा होने स इ फुफुन्दी का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है और फल सड़ जाते हैं।

जैविक नियंत्रण प्रकिया

  1. संरक्षण

पपीता को कीट प्रकोप से सुरक्षित रखने हेतु विभिन्न प्रकार के परभक्षी परजीवी एवं रोगाणुओं का प्रयोग किया जाता, उदाहरण- मकड़ी, कोकसिनेलीड्स, लिंडेरस, लोफांथी, चिलोकोरस, बिजुगस, क्रीप्पेगनाथा नोडिसेप्स, क्राइजोपरला, लैकसीपरेडा (उजली मक्खी के अण्डों के परभक्षी) ट्राईलियोग्राफा डासी, स्पैलानजिया स्पेसिज, पैचीकृप्वाडेसीस डूबियर्स, ओपिसय स्पेसिज, गिटो नाईड्स  परस्पाइकेस, डीरबाईनस जिफारडी (स्केल कीट के परजीवी) रोडोलिया फ्यूमिडा (मिली बग के परभक्षी) प्रजातियों को विविध संरक्षण विधियों द्वारा संरक्षित कर रखना  चाहिए।

वानस्पतिक कीटनाशक

  1. 5% नीम बीज गुठली का रस (NSKE) के प्रयोग कीट की संख्या घटाने में सहायक है।
  2. पौधशाला में मूंगफली तेल का 1 मि०ली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव तथा पपीता पौधों पर 2 मि०ली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव से कीट रोगवाहक की रोक थाम होती है।

रसायनिक नियंत्रण प्रक्रिया

  1. लाल मकड़े के प्रकोप को रोकने हेतु 18.5% डायकोफॉल/केलथेन  का 1.5-2.0 लीटर प्रति 1000 लीटर पानी का घोल का छिड़का लाभप्रद होता है।
  2. पाउडरी मिल्ड्यू  के नियंत्रण  हेतु ट्राईडोमार्फ (0.1%)। डिनोकैप (0.1%) का 15 दिनों के अंतराल पर बारी-बारी से छिड़काव करना चाहिए।
  3. एन्थ्रैकनोज के नियंत्रण हेतु मैनकोजेब (0.25%) का प्रयोग लाभकारी होता है।
  4. जड़ एवं पद सड़न व्याधि से प्रभावित क्षेत्रों में 1.0 कि०ग्रा चुना तथा 100 ग्राम कॉपर सल्फेट का मिश्रण प्रति गड्ढा छिड़काव करना चाहिए।
  5. टिड्डों एवं कीट रोगवाहक के नियंत्रण हेतु मालाथिन योन या 50  मि०ली डायजीनॉन +200 ग्राम गुड़ का 2 लीटर पानी में मिश्रण बनाकर एक चौड़े बर्तन में रख देना चाहिए। यह जहरीला प्रलोभन का कार्य करता है।

कीटनाशक उपयोग के लिए मौलिक सावधानियाँ

कीटनाशक क्रय

  1. एक बार प्रयोग के लिए जितनी मात्रा की आवश्यकता है उतनी ही मात्रा में कीटनाशक का क्रय करें, जैसे-100,250, 500 या 1000 ग्राम/ मिली०
  2. रिसते हुए डिब्बों, खुला, बिना मोहर, फटे बैग में कीटनाशक का क्रय न करें।
  3. बिना अनुमोदित लेबल वाले कीटनाशक का चयन न करें।

भण्डारण

  1. घर के अंदर कीटनाशक का भण्डारण न करें।
  2. मौलिक मोहरबंद डब्बे का ही प्रयोग करें।
  3. कीटनाशक को किसी दुसरे पात्र में स्थानांतरित न करें।
  4. खाद्य सामग्री या चारा के साथ कीटनाशक को न रखें।
  5. कीटनाशक को बच्चों या पशुओं के पहुँच के बाहर रखे।
  6. वर्षा या धुप में कीटनाशक के साथ न रखें।

हस्तलन

  1. खाद्य पदार्थों के साथ कीटनाशक को न लावें तथा परिवहन न करें।
  2. अधिक कीटनाशक की मात्रा को सर पर, कंधों पर , पीठ पर रखकर स्थानांतरित न करें।

छिड़काव हेतु घोल निर्माण में सावधानियाँ

  1. केवल शुद्ध जल का प्रयोग करें।
  2. निर्माण अवधि में अपना नाक, आँख, मुंह, कान तथा हाथ का बचाव करें।
  3. घोल निर्माण करते समय हाथ का दस्ताना, चेहरे का मुखौटा, नकाब तथा सर को ढकते हुए टोपी का प्रयोग करें। इस अवधि में कीटनाशक हेतु उपयोग किये गये पॉलिथीन  का उपर्युक्त कार्य हेतु इस्तेमाल न करें।
  4. घोल निर्माण करते समय डिब्बे पर अंकित सावधानियाँ को पढ़कर अच्छी प्रकार समझ लें, तदनुसार कार्रवाई करें।
  5. छिड़काव किये जाने वाली मात्रा में ही घोल का निर्माण करें।
  6. दानेदार कीटनाशक को जल के साथ मिश्रण न बनावें।
  7. मोहरबंद पात्र के सान्द्र कीटनाशक को हाथ के सम्पर्क में न आने दें। छिड़काव मशीन के टैंक को न सूंघें।
  8. छिड़काव मशीन के टैंक में कीटनाशक ढालते समय बाहर न गिरने दें।
  9. छिड़काव मिश्रण तैयार करते समय खाना, पीना, चबाना, या धूम्रपान करना मना है।

उपकरण

  1. सही प्रकार के उपकरण का ही चयन करें।
  2. रिसनेवाले या दोषपूर्ण उपकरण का प्रयोग न करें।
  3. उचित प्रकार को नोजल का ही प्रयोग न करें।
  4. रुकावट पैदा होने और नोजल को मुंह से न फूंकें तथा साफ करें। इस कार्य टूथ-ब्रश एवं स्वच्छजल का ही प्रयोग करें।
  5. अपतृण /खरपतवार नाशक तथा कीट प्रयोग हेतु एक ही छिड़काव मशीन का उपयोग न करें।

कीटनाशक छिड़काव हेतु सावधानियाँ

  1. केवल सिफारिश की गयी मात्रा तथा सांद्रता के घोल का ही प्रयोग करें।
  2. कीटनाशक का छिड़काव गर्म टिन की अवधि  एवं तेज वायु गति के समय न करें।
  3. वर्षोपरांत या वर्षा के पूर्व (अनुमानित) कीटनाशक का छिड़काव न करें।
  4. वायुगति दिशा के विरुद्ध कीटनाशक का छिड़काव न करें।
  5. इमलसीफियवुल कासंट्रेट फार्मुलेशन का प्रयोग बैटरी चालित यू एल भी स्प्रेयर से न करें।
  6. छिड़काव के पश्चात स्प्रेयर, बाल्टी आदि को साबुन पानी से साफ कर लें।
  7. बाल्टी या अन्य पात्र जिसका उपयोग  छिड़काव में किया गया है, उसका घरेलू कार्य हेतु पुनः उपयोग न करें।
  8. छिड़काव के तुरंत बाद उपचारित क्षेत्र में जानवर या मजदूर का प्रवेश वर्जित कर दें।

निपटान

  1. बचे हुए छिड़काव घोल को तालाब, जलाशय या पानी के पाइप के सम्पर्क में न आने दें।
  2. उपयोग किये गये बर्तन, डब्बे को पत्थर से पिचकाकर जल स्रोत से दूर मिट्टी में काफी गहराई में गाड़ दें।
  3. खाली डब्बे का उपयोग खाद्य भंडारण हेतु न करें।

 

स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार

 

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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