भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश हैं जहाँ कुल कृषि योग्य भूमि का लगभग 60% भाग वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर है| वर्षा आधारित क्षेत्रों में फसलों की उत्पादकता उनकी वास्तविक क्षमता से बहुत कम होती है तथा अनियमित वर्षा के कारण पारम्परिक खेती आर्थिक दृष्टि से अत्यंत जोखिम भरी है| इस प्रकार के सीमित प्राकृतिक रूप से जलवायुवीय तनावों को सहन करने में ज्यादा सक्षम होते हैं परन्तु इनकी उत्पादकता भी सिंचित क्षेत्रों की तुलना में काफी कम होती है| कई अनुसंधानों में यह निष्कर्ष निकला है कि कुछ महत्वपूर्ण अवस्थाओं पर जीवन रक्षक सिंचाई की व्यवस्था कर वर्षा आधारित क्षेत्रों में भी फलदार वृक्षों की उत्पादकता को काफी हद तक सिंचित क्षेत्रों के बराबर लगाया जा सकता है| फलदार पौधों की सिंचाई के लिए अब तक अनुमोदित सभी विधियाँ सिंचित भूमि के लिए बनाई गई हैं जहाँ सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं| सिंचाई की इन परम्परागत विधियों में पानी की अधिक आवश्यकता होती है तथा भूमि सतह से वाष्पीकरण, कोशित्व एवं खरपतवार द्वारा अधिकतर पानी व्यर्थ चला जाता है| यह सेर्विदित है कि वर्षा आधारित क्षेत्रों में पानी की हमेशा समस्या रहती है तथा सिंचाई के लिए उपलब्धता तो बहुत ही सीमित होती है| इस प्रतिकूल परिस्थिति में फलदार वृक्षों की जीवन रक्षक सिंचाई के लिए उप-सतही तौलिया विधि अति उपयुक्त एवं कारगर सिद्ध हो सकती है| इस विधि द्वारा सिंचाई का पानी सीधे के जड़ क्षेत्र में (सतह से लगभग 25-30 सेंटीमीटर नीचे) प्रवेश करता है तथा भूमि सतह पूर्णतया सूखी रहा जाती है| परिणामस्वरूप सतही वाष्पीकरण एवं कोशित्व द्वारा होने वाले सिंचाई-जल के नुकसान की सम्भावना नहीं रहती| भूमि सतह रहने से पौधे के आसपास खरपतवार भी नियंत्रित रहते हैं| आसपास के पत्थरों के प्रयोग में लाने से खेत के ऊपरी परत से पत्थर की मात्रा कम हो जाती है फलस्वरूप भूमि अंतरफसलीकरण के लिए ज्यादा उपयुक्त हो जाती है|
तकनीकी उपयुक्तता
उप-सतही तौलिया विकसित वृक्षों (3-4 वर्ष से ज्यादा आयु) की सिंचाई के लिए उपयोगी एवं कारगर तकनीक है जो पथरीले, सूखे एवं असमतल क्षेत्रों में बागवानी के लिए अति उपयुक्त है| इसे बनाने की विधि बहुत ही सरल, सस्ती एवं आसान है जिसे बगैर किसी तकनीकी सहायता के बनाया जा सकता है| एक बार तौलिया बनाने के बाद कई वर्षों तक बिना किसी रखरखाव के कारगर सिंचाई का प्रंबध किया जा सकता है| सिंचाई-जल के साथ-साथ घुलनशील पोषक तत्वों एवं कीटनाशकों (क्लोरापाइरीफॉस इत्यादि) का भी प्रयोग किया जा सकता है|
उप-सतही तौलिया बनाना बहुत ही आसान है| एक मजदूर दिन घर में इस प्रकार के लगभग 4से 5 तौलिये बना सकता है| चार तौलिये प्रतिदिन के हिसाब से प्रति तौलिया लागत निम्नलिखित है
कुल खर्च 330/-रूपये
प्रति तौलिया खर्च (330/4) 82.50/-रूपये
अनुपयोग की सम्भावनाएं :
स्रोत: मृदा एवं जल प्रबंधन विभाग, औद्यानिकी एवं वानिकी विश्विद्यालय; सोलन
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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