प्रदेश के 90% ग्रामीण जनसंख्या प्रत्यक्ष व अप्रयत्क्ष रूप से कृषि आधारित आय पर निर्भर रहते हैं| जिनमें से लगभग 86% कृषक सीमांत एवं लघु वर्ग के अंतर्गत आते हैं| हिमाचल प्रदेश में सिंचाई की सुविधा बहुत कम होने के कारण लगभग 80% खेती योग्य भूमि वर्षा पर आश्रित हैं| पर्वतीय क्षेत्रों में सामान्यतः लहरदार स्थलाकृति होने के कारण जमीन के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं हो पाती है क्योंकि पादेश में औसतन 1200 मिलीलीटर वर्षा प्रति वर्ष होने के साथ-साथ इसका वितरण भी असामान्य होता है| ज्ञानत्वय है कि वर्ष के केवल चार महीनों (जून से सितम्बर) में ही वर्षा की कुल मात्रा का 80% भाग प्राप्त हो जाता है| जिसका 65-70% भाग तेज बहाव के कारण नदी नालों द्वारा निचले क्षेत्रों में चला जाता है| इसलिए प्रदेश में फसलोत्पादन के लिए वर्षा जल का महत्व और अधिक बढ़ जाता है जो वर्षा जल संचयन की आवश्यकता को प्रबल करता है| चूँकि पहाड़ी क्षेत्रों में नदी-नालों का पानी सिंचाई के लिए उपलब्ध करना बहुत अधिक महंगा होने के कारण अनुपयोगी हो जाता है| इसलिए वर्षा जल संचयन ही एक मात्र विकल्प रह जाता है|
तालाब के लिए स्थान का चयन करते समय निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिये:
जल संचयन क्षमता
वर्षा जल संचयन हेतु तालाब की संचयन क्षमता सिंचाई योग्य भूमि की सिंचाई जल आवश्यकता के आधार पर निर्धारित की जाती है| जबकि चश्मा जल संचयन हेतु इसकी क्षमता चश्मा के जल स्राव मात्रा पर निर्भर करती है|
कम घनत्व वाली काली पोलीथीन चादर से मंडित तालाब आमतौर पर समलम्ब चतुर्भुज आकार के बनाये जाते हैं| किनारों की ढलान 1:1 से 2:1 तक रखी जाती है ऐसे तालाब की जल संचयन क्षमता निम्नलिखित सूत्र द्वारा निर्धारित की जा सकती है|
कम घनत्व वाली पोलिथीन चादर की मोटाई 800 गेज (200-250 माइक्रोन/200 जी. एस. एम्.) उत्तम रहती है| इस चादर की गुणवत्ता भारतीय मानक संस्थान मार्क 2508/1977 के अनुरूप ही होनी चाहिए| तालाब की भंडारण क्षमता 1000 घन मीटर या इसके अधिक होने पर 1000 गेज मोटी मंडित चादर का प्रयोग किया जाता है|
तालाब की संरचना
तालाब की संरचना में इसकी खुदाई, ढलानदर किनारे तथा तलभाग की तयारी, पॉलीथीन चादर का जोड़ना, जल निकास नाली लगाना, पत्थर या ईंटें ढलानदार किनारों पर लगाना आदि कार्य शामिल हैं|
खुदाई
सर्वप्रथम खुदाई करके तालाब का एक अनुमानित आकार दिया जाता है| निश्चित परिणाम के लिए ढलानदार किनारों की सफाई करके 1:1 का ढलान दिया जाता है और कोई भी नुकीले पत्थर चाहे तलभाग में भों अथवा किनारों पर हों दुर्मुट द्वारा जमीन में ही दबा दिये जाते अहिं या बाहर निकाल दिये जाते हैं| घास, पत्थर आदि पर काबू पाने के लिए एट्राजीन को 400 ग्राम प्रति 1000 वर्गमीटर के हिसाब से स्प्रे किया जाना आवश्यक है| यदि तालाब के तलभाग या किनारों में जड़ें इत्यादि हों तो उनको उखाड़ दिया जाना चाहिए ताकि भविष्य में किसी भी किस्म के खरपतवार की उत्पत्ति न हो सके| उसके बाद किसी एक ढलानदार किनारे पर तालाब के धरातल से 30-45 सेंटीमीटर पर निकास पाइप लगा दिया जाता है जिसके बाहरी छोर पर गेट वाल्व लगाया जाता है जिसे आवश्यतानुसार जल सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सके|
कम घनत्व वाली पॉलिथीन चादर 1.8 मीटर से 7.0 मीटर की चौड़ाई में उपलब्ध होती है| आमतौर पर आवश्यकतानुसार चौड़ाई वाली चादर ही खरीदनी चाहिए| किन्तु ऐसा सम्भव न हों तो इन चादरों को जोड़कर वांछित आकार की चादर तैयार की जा सकती है| चादर जोड़ने के लिए तारकोल को 100 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करके चादर वाले भाग से 30 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी के रूप में फैलाया जाता है| तदोपरान्त चादर के तारकोल वाले भाग के ऊपर दूसरी चादर को डाल दिया जाता है और अब उस भाग को ऊपर से गोल बेलनाकार लड़की से दबा दिया जाता है और इन जुडी हुई शीटों को ठण्डा होने दिया जाता है| ऐसा करने से जोड़ स्थान से जल रिसाव नहीं होता| यदि पॉलीथीन शीट कहीं से कट जाते ये उसमें छिद्र हो जाए तो एक पॉलीथीन के टुकड़े को गर्म तरल तारकोल के साथ छिद्र पर चिपका दिया जाता है|
नोट: गर्म तारकोल के उचित तापक्रम की जाँच आवश्यक है| इसके लिए तारकोल को चादर के ऊपर डालकर देख लें कि चादर में छेद न हों और तारकोल मुक्त रूप से फैल रहा हो|
तालाब में निकास पाइप दृढ़ित करना
टैंक से जल निकास के लिए अधिक घनत्व वाली काली पॉलीथीन, पी वी सी या जी आई पाइप का प्रयोग किया जा सकता है| निकास पाईप को टैंक के धरातल से 30-45 सेंटीमीटर ऊपर सीमेंट, रेत एवं कंक्रीट (1:3:6) से दृढ़ित किया जाता है तथा निकास पाईप के दूसरे छोर पर गेट वाल्व लगाया जाता है|
पोलीथीन चादर को तालाब में बिछाना
अधिक गर्मी यह तेज हवा की स्थिति में पोलीथीन की चादर नहीं बिछानी चाहिए| निकास पाईप दृढ़ करने के तुरंत बाद पोलीथीन चादर को तालाब में बिछाया जाता है तथा किनारों पर अस्थायी रूप से चादर को सहारा दिया जाता है तथा निकास पाईप को चादर में से निकालने के लिए, चादर में निकास पाईप के व्यास से 5 सेंटीमीटर बड़ा छेद कर दिया जाता है फिर पोलीथीन चादर के ऊपर लगभग 5 सेंटीमीटर मोटी डाल दी जाती है|
गोल पत्थरों या ईंटों को तालाब के ढलानदर किनारों पर बैठाना
ढलानदार किनारों पर काली पोलीथीन चादर को गोल पत्थरों या ईटों से ढक दिया जाता है| नदी के किनारों पर उपलब्ध गोल पत्थर ही बैठाते समय चादर की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक होता है| तालाब की ढलान के अंतिम किनारे से लगभग २० सेंटीमीटर अनुमानित व्यास के पत्थर लगाने की शुरुआत की जाती है और नीचे से ऊपर तक इन पत्थरों का आकार घटाते हुए कर्म में लगायें जिसके फलस्वरूप शिखर पर पत्थरों की मोटाई लगभग 10 सेंटीमीटर ही रह जाये| पत्थर इस प्रकार रखे जाते हैं कि वे के दूसरे की कड़ी में मजबूत पकड़ प्रदान कर सकें| तदोपरान्त पत्थरों के बीच की खाली जगह को सीमेंट. रेत (1:8) से भर दिया जाता है| अब शिखर की 30 सेंटीमीटर चौड़ाई के पत्थरों पर सीमेंट से पलस्तर किया जाता है है| यदि तालाब की गहराई 2.0 मीटर से अधिक हो तो लम्बवत दिशा में 2.0 मीटर के अन्तराल पर 30 सेंटीमीटर चौड़ाई में सीमेंट का पलस्तर किया जाता है|
प्रवाहित वर्षा जल में बारीक मिट्टी, रेत तथा कंकड़ इत्यादि की पर्याप्त मात्रा होने के कारण सिल्टेश टंकी का निर्माण आवश्यक होता है| प्रवाहित वर्षा जल को मुख्य तालाब में डालने से पूर्व इस टंकी (गाद) में डाला जाता है जिससे उसमें उपस्थित मिट्टी इत्यादि नीचे बैठ जाती है और पानी साफ हो जाता है| फलस्वरूप काफी हद तक मिट्टी रहित जल मुख्य तालाब में प्रवेश करता है| सिल्टेशन टैंक से मुख्य तालाब में जल प्रवेश के लिए जल प्रवेश नाली बनाई जाती है ताकि पोलीथीन चादर के निचे से जल रिसाव न हो सके|
तालाब की सिंचाई क्षमता
लगभग 50 से 200 घनमीटर क्षमता वाले तालाब का निर्माण छोटा से छोटा किसान व्यक्तिगत तौर पर भी आसानी से कर सकता है| सौ घनमीटर क्षमता का तालाब लगभग एक कनाल क्षेत्र (400 वर्गमीटर) में सब्जी उत्पादन के लिए पर्याप्त होता है| एक बार पानी से भरने 100 घनमीटर तालाब से एक कनाल क्षेत्र में 5 सेंटीमीटर की 5 सिंचाईयां की जा सकती है| यदि उच्च प्रौद्योगिकी जैसे आधुनिक सिंचाई प्रणली का इस्तेमाल किया जाए तो सम्भावित सिंचाईयां भी उच्च स्तर पर हो सकती है और उसी पानी से ज्यादा क्षेत्र में सिंचाई की जा सकती है|
तालाब की जीवन अवधि
यदि तालाब का निर्माण अच्छी गुणवत्ता की सामग्री से आचे कारीगरों द्वारा कराया जाए और उसका रखरखाव समुचित तरीके से किया जाए तो यह तालाब लगभग 20 साल तक जल संग्रहण कर सकता है|
विशेष सावधानी: इस तरह से निर्मित तालाब के चारों तरफ कंटीले तार की सहायता से घेराबंदी अत्यंत आवश्यक है जो किसी भी अवांछीय जानवर, इंसान या चलायेमान वस्तु/पदार्थ को तालाब में गिरने या जाने से रोकने में सहायक होता है|
स्रोत: मृदा एवं जल प्रबंधन विभाग, औद्यानिकी एवं वानिकी विश्विद्यालय; सोलन
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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