यदि मानसून में 15 दिनोंं की देरी हो
फसल |
आकस्मिक उपाय |
नारियल |
गिरी के गिरने को रोकने के लिए सिंचाई को जारी रखना आवश्यक है। अन्तराल पर मि.ली./ग्राम की दर पर 1.0% ब्रोडो मिक्सचर या मैनकोजेब 75डब्ल्यूपी 5 ग्राम/300 मि.ली. या फास्फोरस अम्ल (एकोमिन) घोम (0.5%)क्राउन उपयोग द्वारा प्रोफिलैटिक बड शैट उपचार (पहला प्रयोग 15 जून से पहले पूरा किया जा सकता है)।स्टेम ब्लीडिंग से प्रभावित हिस्से को हटाना एवं कवननाशी हैक्साकोनजाल 5 इसी(5.0%घोल) को प्रभावित स्थान पर लगाना या प्रभावित क्षेत्र में ट्रिकोडरमा के टाल्क पेस्ट का प्रयोग। राइनोसेरस बिटल एवं रेड पाम वीभिल के लिए उपयुक्त प्रोफ़ीलैप्टीकप्रबंधन उपायों को अपनाना। |
सुपारी |
गिरी को गिरने, झुलसने एवं क्षय को रोकने के लिए सिंचाई को जारी रखना आवश्यक है। द्विमासिक अन्तराल पर 300 मि.ली. पाम की दर पर 1.0% ब्रोडोमिक्सचर या फास्फोरस अम्ल (एकोमिन ) घोल (0.5%) के क्राउनप्रयोग द्वारा प्रोफिलैक्टिक बड रॅाट उपचार/फ्रूट रॅाट उपचार (पहलाप्रयोग 15 जून से पहले पूरा किया जा सकता है) |
कोको |
संक्रमण की स्थिति में टी मॅासकीटों बग का नियंत्रण करना निम्नलिखित किसी भी कीटनाशी का लैम्डा साइलोथ्रिन (0.03%)5ईसी 0.6मिली/लीटर या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 5 सी 0.25 मि.ली./ली.का छिड़काव।पहले छिड़काव के बाद यदि संक्रमण रहता है तो 15 से 20 दिनों तक छिड़काव करते रहें। मि.ली बग का नियंत्रण करना : स्प्रै फेनथिन (0.04%)80 इसी 0.5 मि.ली./लि. यदि नशीजीवी आक्रमण दोबारा हो तो पर 30 दिनों के अन्तराल पर दूसरी बार छिड़काव करें । |
यदि मानसून में ३० दिनों की देरी हो
फसल |
आकस्मिक उपाय |
नारियल |
गिरी के गिरने को रोकने के लिए सिंचाई को जारी रखना आवश्यक है क्योंकि इसके कारण उपज में कमी आती है। द्विमासिक अन्तराल पर 300 मि.ली./ग्राम की दर पर 1.0%ब्रोडो मिक्सचर या मैनकॅाजेब 75डब्ल्यूपी 5 ग्राम/300 मि.ली. या फास्फोरस अम्ल (एकोमिन) घोम (0.5%)क्राउन उपयोग द्वारा प्रोफिलैटिक बड शैट उपचार (पहला प्रयोग15 जून से पहले पूरा किया जा सकता है)।स्टेम ब्लीडिंग से प्रभावित हिस्से को हटाना एवं कवननाशी हैक्साकोनजाल 5 इसी(5.0%घोल ) को प्रभावित स्थान पर लगाना या प्रभावितक्षेत्र में ट्रिकोडरमा के टाल्क पेस्ट का प्रयोग । धीरे-धीरे स्केल इन्सेक्ट का फैलना (ऐस्पीडीयोटस डिस्ट्रिक्टर) एवं स्लग कैटरपिल्लर (मैक्रोप्लेक्ट्रा नैरोरिया/कानथियला रौडंडा ) एवं इन्स्फ्लोरेंस कैटर पिल्लर के अनियमित रूप से फैलने से इन्डोमिक स्पॅाट में वत्राचेडरा एरिनोसिला का होना इसके अलेया उपरोक्त तीनों नाशीजीवी नारियल को संक्रमित करने वाले सूक्ष्मनाशी कीट है। |
कोको |
मानसून में देरी से टी मॅासकीटों बग एवं मिली बग का संक्रमण बढ़ जाता है । उपरोक्त नियंत्रित उपाय को अपनाने की आवश्यकता है । |
वनस्पतिक चरण में वर्षा की कमी
फसल |
आकस्मिक उपाय |
नारियल |
नारियल के पेड़ के प्री-बियरिंग के लिए लाइफ सेविंग सिंचाई आवश्यक है । |
सुपारी |
बसल स्टेम रॅाट को नियंत्रित करने के लिए त्रैमासिक अन्तराल पर 100 मि.ली. हैक्साकोनजाल (5.0% घोल) जड़ में डालना एवं 2 कि0 ग्रा0/ग्राम की दर पर ट्रिकोडरमा वर्जित नीम केक का बेसिन प्रयोग (प्रयोग के समय 2 कि0 ग्रा0/ग्राम नीम केक सहित टी. ट्रिडे टॅाल्फ़ फॅामुलेशन का 50 ग्रा0)। रेड एवं व्हाईट माँइटस, स्कैल इन्सेक्ट के कारण पौधों की प्रारम्भिक वृद्धि एवं रोपण प्रभावित होगी। ऊपर उल्लेखित सुपारी प्रबंधक के लिए निम्नलिखित उपायों को शुरू किया जा सकता है । |
कोको |
टी मॅासकीटों बग के नियंत्रण उपायों को जरी रखना आवश्यक है।चेरेल रॅाट को कार्बनडेजियम (0.05%) या मैनकोजेब 0.2 के छिड़काव से नियंत्रित किया जा सकता है । |
पुनरुत्पादन चरण में बारिश की कमी
फसल |
आकस्मिक उपाय |
नारियल |
गिरी को गिरने से रोकना और पौधों की वृद्धि को रोकना। मृदा की प्रकृति के अनुसार 15-30 दिन में कम-से-कम एक बार सिंचाई करना आवश्यक है । हलाकि नारियल वर्षा सिंचित फसल है, लेकिन पुनरुत्पादन चरण जो निरंतर प्रक्रिया है,के दौरान नारियल नमी दबाव के प्रति संवेदनशील होता है । लगातार सूखे की स्थिति में कोकोनट एरीपोफाईड माईट, एसेरिया, गुरररोनिस में वृद्धि हो सकती है। |
सुपारी |
लगातार सूखे की स्थिति में स्केल इन्सेक्ट की संख्या में वृद्धि हो सकती है। |
कोको |
कार्बनडेजिंम (0.05%) अथवा मैनकोजेब (0.2%) के छिड़काव से शेरिल शेट पर नियंत्रण किया जा सकता है। टी मोस्कीटो बग और फली (पोड) पर मिलीबग के संक्रमण से उपज व गुणवत्ता प्रभावित होती है। उपयुक्त नियंत्रण उपायों को अपनाना आवश्यक है। |
आवधिक सूखा
ये फसलें सूखा सह्य नहीं होती हैं क्योंकि ये वर्षा सिंचित फसलें हैं। इन पौधों के जीवन के लिए जीवन रक्षक सिंचाई आवश्यक है ।
फसल |
आकस्मिक उपाय |
नारियल |
कम वर्षा/नमी और अत्यधिक वर्षा के प्रभावों को रोकने के लिए कृषि पद्धतियों के भाग के रूप में निम्नलिखित कार्य किए जा सकते है “ बजल स्टेमरोट, स्टेम ब्लीडिंग और लीफ ब्लाइट से उपयुक्त वर्णित रोग गंभीर होते हैं और पाम को क्षति पहुँचा सकते हैं। पाम को बचाने के लिए इन रोगों के लिए कवक नाशियों का उपयोग करना आवश्यक है । सूखे की स्थितियां/कम वर्षा की स्थितियां
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सुपारी और कोक |
कम वर्षा/नमी और अत्यधिक वर्षा के प्रभावों को रोकने के लिए पद्धतियों के भाग के रूप में निम्नलिखित कार्य किए जा सकते हैं – सूखे की स्थितियां/कम वर्षा की स्थितियां
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भारत में स्थापित अधिकतर काजू प्लान्टेशन वर्षासिंचित हैं और इनमें से केवल कुछ प्लान्टेशन की सिंचाई के तहत कवर है। पश्चिमी व पूर्वी तटीय क्षेत्रों में काजू की खेती अच्छे से हुई और इसके बाद कर्नाटक, तमिलनाडु,गुजरात,छत्तीसगढ़ व पूर्वोत्तर व हिमालयी राज्यों में काजू की खेती की गई। काजू प्रतिकूल जलवायुवीय स्थितियों और वर्षा के भी अनुकूल है अर्थात अल्प वर्षा क्षेत्र (लगभग 800 मिमी) से अधिक वर्ष क्षेत्र (लगभग 4000 मिमी)। यह काजू की व्यापकता अनुकूलता को दर्शाता है ।
मानसून में 15-30 दिन की देरी होने पर
जून से सितम्बर की अवधि में मानसून की शुरुआत होने पर काजू की खेती की जाती है। मानसून में देरी होने पर मानसून के अनुसार पौधरोपण में देरी हो सकती है । प्रारम्भ में काजू की ताजा कलम को पर्याप्त मृदा नमी की आवश्यकता होती है और इसलिए मानसून के दौरान काजू का पौधा रोपण किया जाता है। पौधा रोपण के बाद सूखे पड़ने की स्थिति में काजू को संरक्षि सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। शुष्क भूमि स्थितियों में मटके से सिंचाई की सिफारिश की जाती है ।
वनस्पति चरण में वर्षा की कमी
लगाए गए पौधे प्रतिकूल मृदा नमी की स्थितियों में जीवित रहते हैं । बारिश के मौसम में कम वर्षा के कारण सूखे की स्थिति बनी रहने पर उपज प्रभावित होती है । इसी स्थिति में उपज क्षति को कम करने के लिए सिंचाई सुविधाओं की उपलब्धता के अनुसार संरक्षित सिंचाई की जा सकती है । हालांकि मृदा नमी के संरक्षण के लिए शुष्क बायोमास द्वारा सतह की मल्चिंग सहायक होती है ।
पुनरुत्पादन चरण में वर्षा की कमी
पिछले वर्षों में वर्षा के आसमान वितरण के कारण दिसंबर से मई की अवधि में विशेष रूप से पुनरूत्पादन चरण काजू को नमी दबाव का सामना करना पड़ता है जिससे गिरी समय से पहले ही वृक्ष से गिर जाती है। गंभीर नमी दबाब की स्थितियों में फल ठीक से नहीं लगता व फील्ड क्षति के कारण उनका उचित विकास नहीं हो पता। ऐसी समस्याओं का सामना करने के लिए उचित मृदा और हस्क बरियल अथवा कोकोनट हस्क बरियल के साथ-साथ क्रिसेट बंडिंग, ट्रैचिंग, इनवार्ड बेसिन आदि जैसे जल संरक्षण उपाय उपयोगी हैं ।
अधिक आर्द्रता के साथ-साथ सूक्ष्म जल वायु में सुधार करने से जल संचयन के जरिए तालाबों में इकट्ठे किए गए पानी से जनवरी से मार्च के दौरान 15 दिन में एक बार 200 लीटर पानी प्रति पौधा की अनुपूरक सिंचाई पुष्पण व गिरी के विकास में सहायता करती है । इससे कुछ सीमा तक पुष्प व गिरी शुष्कन में कमी आती है और नट व कर्नल के वजन में वृद्धि होती है ।
अावधिक सूखा
आवधिक चरण में कम वर्षा अथवा जल्दी वर्षा बंद हो जाने से काजू की उपज विशेष रूप से पछेती किस्मों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उचित मृदा नमी स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए कम वर्षा की अवधि के दौरान व वर्षा जल संचयन व वर्षा जल के पुनः चक्रण का सुझाव दिया जा ककता है । इसके अलावा जल स्रोत की उपलब्धता के अनुसार मृदा संरक्षण उपाय अपनाना व ड्रिप लगाना सहायक होगा।
स्त्रोत : राष्ट्रीय बागवानी मिशन,भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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